19/10/2025
“चोर कौन? जनता का फैसला बाकी है…???????
(सम्पूर्ण भारत विशेषांक)
कभी “वोट चोर” तो कभी “चुनाव आयोग चोर” —
देश की राजनीति इन दिनों आरोपों की ऐसी जुगलबंदी गा रही है,जिसमें हर नेता खुद को संत और दूसरे को चोर साबित करने में जुटा है।
राहुल गांधी हों या तेजस्वी यादव — दोनों का सुर एक ही है,“हम साफ हैं, बाक़ी सब गंदे हैं।”पर लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना यही है किहर कोई खुद को आईना दिखाना भूल गया है।
बिहार में कांग्रेस की हालत किसी फटी ढपली जैसी है —
जिस पर अब अपने ही कार्यकर्ता सुर बिगाड़ने लगे हैं।
टिकट बंटवारे के आरोपों में हालात इतने बिगड़े कि
पार्टी के वरिष्ठ नेता को अपने ही कार्यकर्ताओं से दौड़ा-दौड़ाकर मार खाना पड़ा।यानी न टिकट बचा, न इज़्ज़त।
उधर तेजस्वी यादव की पार्टी राजद भी कम सुर में नहीं है।टिकट के दावेदार मदन शाह का आरोप है कि
उनका टिकट पार्टी नेता संजय यादव ने ₹2 करोड़ 70 लाख में बेच दिया।ग़ुस्से और अपमान के बीच मदन शाह
लालू यादव के आवास के बाहर सड़कों पर रोते-बिलखते रहे,कुर्ता फाड़कर नारे लगाए — “न्याय दो!”
राजनीति की यह तस्वीर लोकतंत्र का आईना है —
जहां जनता अब दर्शक बन चुकी है,और दलों के भीतर “लोकतंत्र” का अर्थ बस लॉटरी टिकट रह गया है।
आज सवाल यही है —जब टिकट बिकते हैं, तो वोट चुराने की बात कौन करे?अगर घर के अंदर ही सौदेबाज़ी हो रही है,तो बाहर की सियासत में नैतिकता ढूंढना बेईमानी है।
जनता सब देख रही है —कौन चोर है, कौन चौकीदार, कौन व्यापारी।वह जानती है कि असली चोरी सिर्फ वोट की नहीं,भरोसे की हुई है।
और भरोसा एक बार टूटा तो…
फिर जनता के दिल में कोई टिकट नहीं कटता,
बस निराशा की मुहर लग जाती है।
🖋️ — सम्पूर्ण भारत संपादकीय