18/07/2024
एक दिन, मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आमतौर पर रात में 7 बजे के बाद आता हूं, लेकिन उस दिन 6 बजे ही आ गया। सोचा था कि घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा और फिर उसे बाहर खाना खाने चलने के लिए कहूंगा। बहुत साल पहले, हम ऐसा करते थे।
घर आया तो देखा कि पत्नी टीवी देख रही थी। मैंने सोचा कि जब तक वह अपना सीरियल देख रही है, मैं कंप्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा। कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीते हुए दुकान के काम करने लगा।
मेरे मन में था कि पत्नी के साथ बैठकर बातें करूंगा और फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा, पर कब 7 से 9 बज गए, पता ही नहीं चला। पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, और मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खाने के बाद हम लोग नीचे टहलने चलेंगे और बातें करेंगे। पत्नी खुश हो गई।
हम खाना खाते रहे और इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा। खाते-खाते मैं सीरियल में डूब गया और सोफे पर ही सो गया। जब नींद खुली, तब आधी रात हो चुकी थी। मुझे बहुत अफसोस हुआ। मन में सोचकर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा, पर शाम क्या, आधी रात भी निकल गई।
ऐसा ही होता है, ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे, पर हम कभी नहीं जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे, पर नहीं कर पाते।
आधी रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी। मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठकर कुछ सोच रहा था। पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। जामुनी रंग के सूट में मुझे मिली थी। फिर मैंने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख में, ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।
पर ये कैसा साथ? मैं सुबह जागता हूं और अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वह सुबह जागती है, मेरे लिए चाय बनाती है। चाय पीकर मैं कंप्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूं, वह नाश्ते की तैयारी करती है। फिर हम दोनों दुकान के काम में लग जाते हैं। मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं, वह साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं।
मैं एक बार दुकान चला गया, तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे बिना दुकान का काम नहीं चलता। वह अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है। देर रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं। एक पूरा दिन खर्च हो जाता है, जीने की तैयारी में।
वह पंजाबी सूट वाली लड़की मुझसे कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती, मैं नहीं जानता। पर मुझे खुद से शिकायत है। आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों?
कई बार लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं। कल से मैं सोच रहा हूं, वह कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे। क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कंप्यूटर, कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं?
मैं तो सोच ही रहा हूं, आप भी सोचिए कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ समय बिताइए। जो अपने माँ-बाप, भाई-बहन, सगे-संबंधी सबको छोड़कर आपसे रिश्ता जोड़कर आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया, उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही।
एक दिन अफसोस करने से बेहतर है, सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वह निकल जाएगी, पता भी नहीं चलेगा। जो पल मिले ख़ुशी से जियो.. अपनों के लिये समय निकले..