24/07/2025
मूवी देख कर जरूरी बकवास कर रहा हूँ,. सुन भी लो वालों. फ़िल्म का कहकही में खूब ब्रांडिंग किया गया है। कोई सक नहीं है ,..
‘Saiyara’ जिस तरह से सोशल मीडिया में ट्रेंड करता है, वह सिर्फ़ एक इमोशनल मार्केटिंग का हिस्सा है। प्रोमो, म्यूजिक, बीटीएस (Behind the Scene) और कंटेंट क्रिएटर्स के जरिए इसे एक cult-classic की तरह push किया जा रहा है ताकि दर्शक यह भूल जाएँ कि यह असल में एक “बनावटी भावना की पैकेजिंग” है।जो लोग इसे “डिज़र्विंग ऑस्कर” कह रहे हैं, शायद उन्होंने मुग़ल-ए-आज़म, आनंद, या सात हिंदुस्तानी जैसी क्लासिक फ़िल्में देखी ही नहीं।
आज के दौर में ज़्यादातर फ़िल्में स्क्रीन की बजाए स्क्रीनशॉट के लिए बनती हैं। और Saiyara उसी डिजिटल भावुकता का हिस्सा है।बस इतना ही कि हर चमकती चीज़ पर “कल्ट” का ठप्पा न लगाएँ।भावनाओं को समझें — और उन कहानियों को भी, जो सिर्फ़ प्रेम में नहीं, बल्कि समाज, ज़िम्मेदारी, और संघर्ष की सच्चाई में सांस लेती हैं।क्योंकि हर सैयारा में एक सितारा नहीं होता,कभी-कभी वो सिर्फ़ एक चक्कर काटती उलझन होती है — जो दर्शकों को इमोशनली ब्लैकमेल कर जाती है।
यह भाग मेरा नहीं है ⬇️
लेकिन अगर इसके प्रोडक्शन कि चर्चा करें तो उसमें भी खास चीज को ताक में रखकर बनाया गया है। लोग कह रहे हैं- सैयारा भी सभी हिन्दी फिल्मों की तरह सवर्ण परिवारों की कहानी है।आदित्य चोपड़ा पैसा लगाया,महेश भट्ट के भांजे मोहित सूरी ने फ़िल्म को डिरेक्ट किया।
फ़िल्म में काम करने के लिए चंकी पांडेय के भतीजे अहान पांडेय और पंजाबी मूल की अनीत पड्डा को कास्ट किया गया।अहान पांडेय को क्रिश कपूर का किरदार दिया गया और अनीत पड्डा को वाणी बत्रा नाम दिया गया।
यह फ़िल्म पूरी तरह सवर्ण टीम की फ़िल्म है। पर सिनेमाघरों में जाकर पिछड़ा,अति पिछड़ा मोड़ घांची,दलित और आदिवासी युवा रो रहे हैं। साभार -दिलीप मंडल साहब (व्हाट्सएप पर प्राप्त)
Note - फोटो के स्थिति को देखकर ग़लत न समझे यह बस मौज में बैठकर देखने की परिस्थिति थी, क्यों कि कहानी पैसावसूल आभासित नहीं होने लग