Gulabi Kiran - गुलाबी किरण

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अजीब शख़्स था ख़ुद अपने दुख बनाता थादिल-ओ-दिमाग़ पे कुछ दिन असर रहा उस का~ शिवेन्द्र सिंह    #गुलाबीकिरण
22/08/2025

अजीब शख़्स था ख़ुद अपने दुख बनाता था
दिल-ओ-दिमाग़ पे कुछ दिन असर रहा उस का

~ शिवेन्द्र सिंह

#गुलाबीकिरण

क़दम लेती है बढ़ कर ओस में भीगी हुई धरतीये पस-माँदा मुसाफ़िर शहर के मालूम होते हैं~Muzaffar Hanfi   #गुलाबीकिरण
21/08/2025

क़दम लेती है बढ़ कर ओस में भीगी हुई धरती
ये पस-माँदा मुसाफ़िर शहर के मालूम होते हैं

~Muzaffar Hanfi

#गुलाबीकिरण

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना हैजिगर मुरादाबादी ~   #गुलाबीकिरण
19/08/2025

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

जिगर मुरादाबादी ~

#गुलाबीकिरण

निदा फ़ाज़ली शायरी ❤️    #गुलाबीकिरण
18/08/2025

निदा फ़ाज़ली शायरी ❤️

#गुलाबीकिरण

16/08/2025

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के

मिर्ज़ा ग़ालिब

14/08/2025

रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया
साए के तौर लेट के चलना सिखा दिया

कमरे में आ के बैठ गई धूप मेज़ पर
बच्चों ने खिलखिला के मुझे भी जगा दिया

वो कल शराब पी के भी संजीदा ही रहा
इस एहतियात ने उसे मुझ से छुड़ा दिया

जब कोई भी उतर न सका मेरे जिस्म में
सब हाल मैं ने सिर्फ़ उसी को सुना दिया

अपना लहू निचोड़ के देखूँगा एक दिन
जीने के ज़हर ने उसे क्या कुछ बना दिया
फ़ज़्ल ताबिश

13/08/2025

पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
कितना आसान था इलाज मिरा

फ़हमी बदायूंनी

12/08/2025

कभी जब मुद्दतों के बा'द उस का सामना होगा
सिवाए पास आदाब-ए-तकल्लुफ़ और क्या होगा

यहाँ वो कौन है जो इंतिख़ाब-ए-ग़म पे क़ादिर हो
जो मिल जाए वही ग़म दोस्तों का मुद्दआ' होगा

नवेद-ए-सर-ख़ुशी जब आएगी उस वक़्त तक शायद
हमें ज़हर-ए-ग़म-ए-हस्ती गवारा हो चुका होगा

सलीब-ए-वक़्त पर मैं ने पुकारा था मोहब्बत को
मिरी आवाज़ जिस ने भी सुनी होगी हँसा होगा

अभी इक शोर-ए-हा-ओ-हू सुना है सारबानों ने
वो पागल क़ाफ़िले की ज़िद में पीछे रह गया होगा

हमारे शौक़ के आसूदा-ओ-ख़ुश-हाल होने तक
तुम्हारे आरिज़-ओ-गेसू का सौदा हो चुका होगा

नवाएँ निकहतें आसूदा चेहरे दिल-नशीं रिश्ते
मगर इक शख़्स इस माहौल में क्या सोचता होगा

हँसी आती है मुझ को मस्लहत के इन तक़ाज़ों पर
कि अब इक अजनबी बन कर उसे पहचानना होगा

दलीलों से दवा का काम लेना सख़्त मुश्किल है
मगर इस ग़म की ख़ातिर ये हुनर भी सीखना होगा

वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने
सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा

है निस्फ़-ए-शब वो दीवाना अभी तक घर नहीं आया
किसी से चाँदनी रातों का क़िस्सा छिड़ गया होगा

सबा शिकवा है मुझ को उन दरीचों से दरीचों से
दरीचों में तो दीमक के सिवा अब और क्या होगा
जॉन एलिया

11/08/2025

ये पैरहन जो मिरी रूह का उतर न सका
तो नख़-ब-नख़ कहीं पैवस्त रेशा-ए-दिल था

मुझे मआल-ए-सफ़र का मलाल क्यूँ-कर हो
कि जब सफ़र ही मिरा फ़ासलों का धोका था

मैं जब फ़िराक़ की रातों में उस के साथ रही
वो फिर विसाल के लम्हों में क्यूँ अकेला था

वो वास्ते की तिरा दरमियाँ भी क्यूँ आए
ख़ुदा के साथ मिरा जिस्म क्यूँ न हो तन्हा

सराब हूँ मैं तिरी प्यास क्या बुझाऊँगी
इस इश्तियाक़ से तिश्ना ज़बाँ क़रीब न ला

सराब हूँ कि बदन की यही शहादत है
हर एक उज़्व में बहता है रेत का दरिया

जो मेरे लब पे है शायद वही सदाक़त है
जो मेरे दिल में है उस हर्फ़-ए-राएगाँ पे न जा

जिसे मैं तोड़ चुकी हूँ वो रौशनी का तिलिस्म
शुआ-ए-नूर-ए-अज़ल के सिवा कुछ और न था

फहमीदा रियाज

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Raxaul
845305

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