
22/01/2025
जीवन के बाद देहदान से बड़ा कोई परोपकारी कार्य नहीं: चिकित्सा महाविद्यालय महासमुंद
महासमुंद: शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय महासमुंद में इस वर्ष का पहला देहदान हुआ। 60 वर्षीय महिला कैलाश दासी ने अपने शरीर को चिकित्सा शोध के लिए दान किया। यह सराहनीय कार्य संत रामपाल जी महाराज की प्रेरणा से संभव हुआ। कैलाश दासी की 20 जनवरी को मृत्यु के बाद उनके पुत्र महेश दास ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करते हुए यह निर्णय लिया।
महेश दास ने बताया कि उनकी माता की अंतिम इच्छा थी कि मृत्यु के पश्चात उनके शरीर का उपयोग मानवता की भलाई और चिकित्सा अनुसंधान में हो। उन्होंने यह प्रेरणा संत रामपाल जी महाराज के सत्संग से प्राप्त की। संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संगों में जीवन और मृत्यु दोनों में मानवता की सेवा का संदेश देते हैं।
कबीर साहेब जी के वचनों से प्रेरणा:
"पशु के चाम की जूती बन जा, नौबत और नगाड़ा।
नर देह किसी काम न आवे, ये जल बुझ हो जा क्षारा।।"
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, मृत्यु भोज, पाखंड और कर्मकांड से दूर रहना शास्त्र सम्मत है। वे अपने अनुयायियों को जीवित माता-पिता की सेवा करने और मृत्यु के बाद अपने शरीर को समाज के हित में दान करने का संदेश देते हैं। देहदान के माध्यम से चिकित्सा अनुसंधान को नई दिशा मिलती है और समाज को लाभ होता है।
चिकित्सकों ने सराहा योगदान:
मेडिकल कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. कुंज बिहारी पटेल, विभागाध्यक्ष डॉ. दीप्ति गौतम और डॉ. ओंकार कश्यप ने इस पहल की सराहना की। उन्होंने बताया कि संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों द्वारा किया गया यह कार्य समाज में जागरूकता बढ़ा रहा है और चिकित्सा शिक्षा में योगदान दे रहा है। अब तक इस कॉलेज में जितने भी देहदान हुए हैं, वे सभी संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों द्वारा किए गए हैं।
समाज के लिए प्रेरणा:
संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी न केवल स्वयं जागरूक हो रहे हैं, बल्कि अपने कार्यों से दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं। ऐसे परोपकारी कदम समाज में नई दिशा और संवेदनशीलता ला रहे हैं। यह पहल मानवता की सेवा के साथ-साथ एक मजबूत और जागरूक समाज के निर्माण में सहायक है।
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