जमा देसी Jmaa Desi

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एक सौ चालीस करोड़ जनता के देश में इतनी साँठी नहीं होती है कि हरेक के बाटे में सीजन में दो चार बार  परांठे और पकौड़े आ जा...
07/08/2025

एक सौ चालीस करोड़ जनता के देश में इतनी साँठी नहीं होती है कि हरेक के बाटे में सीजन में दो चार बार परांठे और पकौड़े आ जाएं।

लेकिन भस्मासुर के अंडे खेतों में इतना जहर जरूर डलवा देते हैं कि आधे जगत को रोग हो जाएं।

मैने शोध यात्रा में UP के कुछ किसान देखे थे जो अपने खेत में भैंसे चरा के सांठी को दूध में बदल लेते थे।

वो और उनके जीव इतने हट्टे कट्टे थे कि उन्हें देख कर मन भरता था।

इधर सब जगह भस्मासुरों के रिश्ते नाते वालों ने टारगेट सेट किए हुए हैं इनके इनाम भी ऐसे है जिन्हें बताने में ही मेरी रेप्यूटेशन डाउन होने लगती है।

फिर भी कमजोर लीवर वालों फैटी लीवर वालों पहचान लो इस बूटी को किसी साफ सुथरी जगह से तोड़ लाना और देवी अन्नपूर्णा के सुपुर्द कर देना वो रगड़ पीट के अमृत बना देगी और थम परांठे पाड़ लेना दो दो चार।

सेधेंगे नहीं।

सुकून और मेहनत की ऐसी   जिंदगी भी अपने आप में बहुत कुछ है ❤️किसान की जिन्दगी की सादगी का अदभुत चित्र । पेड़ के तने पर टं...
26/06/2025

सुकून और मेहनत की ऐसी जिंदगी भी अपने आप में बहुत कुछ है ❤️
किसान की जिन्दगी की सादगी का अदभुत चित्र । पेड़ के तने पर टंगे चाय पानी की कौन कौन चीजों के नाम आप बता पाएंगे ।

ये तो तय है कि गर्न्थो वाली कहानियों में जो मुकुट वाले हैं हम उनमें से नहीं है क्योंकि हम पग्गड़ (पगड़ी) वाले हैं हमारे पु...
10/06/2025

ये तो तय है कि गर्न्थो वाली कहानियों में जो मुकुट वाले हैं हम उनमें से नहीं है क्योंकि हम पग्गड़ (पगड़ी) वाले हैं हमारे पुरखों ने भी मुकुट नहीं पगड़ी बांधी। आज के ईरान क्षेत्र से लेकर इराक अफगानिस्तान होते हुए उत्तर महाराष्ट्र बिहार तक तक लगभग कौमो का पहनावा ना मुकुट है ना टोपी। ..तो ये मुकुट टोपी प्रोपगैंडा है जो धर्म ने फैलाया।
वैसे मुकुट वाले थाईलैंड इंडोनेशिया के सांस्कृतिक इतिहास में जरूर हैं।
मतलब बारत(भारत) मे धार्मिक पाखण्ड पूर्व वालों का है जबकि जाट समेत लगभग कोमें रहन-सहन-संस्क्रति-भाषा अनुसार) पश्चिम से ताल्लुकात रखती हैं । तो साफ है चंद मुट्ठी भर पूर्व एशिया वाले हमारे ऊपर अपना धार्मिक एजेंडा लादे हुए है, हम बावले ख़ामख़ा बोझ मर रहे।

एक बात और ढोंगी समाज जो नारी को पूजने की वस्तु और भोगने की वस्तु समझता था उसके उलट जाट समाज(लगभग सभी किसान कौमो) में नारी प्रधान समाज था । ये जानकर हर्ष होता है कि हम उस समाज से हैं जहां नारी ही चौधरी रही है।

#जाटो_का_सांसकर्तिक_इतिहास

गांव मोडाखेड़ा (हिसार) हरियाणा  में 25 वर्षों से लगातार जल सेवा कर रहे श्री राजकुमार  #चमार जी , जो यहां पर ठेके पर खेती...
03/06/2025

गांव मोडाखेड़ा (हिसार) हरियाणा में 25 वर्षों से लगातार जल सेवा कर रहे श्री राजकुमार #चमार जी , जो यहां पर ठेके पर खेती करते हैं लेकिन गर्मी के दो महीने सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक जल सेवा करते हैं. राजकुमार जी की मेहनत को दिल से सैल्यूट

Harshdeep Singh Gill रास्ते खोल दो किसान कमेरों की कामयाबी के।किसान की खुद की   के खाने की शुद्धता की गारंटी के आपको adv...
30/05/2025

Harshdeep Singh Gill रास्ते खोल दो किसान कमेरों की कामयाबी के।
किसान की खुद की के
खाने की शुद्धता की गारंटी के
आपको advance में शुभकामनाएं

घर से कोई बुजुर्ग गयागया क्या एक मेला जोड़ गया।भर-भर गाड़ियों में आई स्त्रियाँकिसी की चाचा की लड़की ब्याही थी उस गाँवकिस...
29/05/2025

घर से कोई बुजुर्ग गया
गया क्या एक मेला जोड़ गया।

भर-भर गाड़ियों में आई स्त्रियाँ
किसी की चाचा की लड़की ब्याही थी उस गाँव
किसी की बुआ की बेटी
किसी की ताऊ की बेटी की ननद
किसी की बचपन की सहेली
किसी की दूर के नेग में जात-बिरादरी से बाहर की पहचान थी
स्त्रियाँ मिलने के लिए मरी जा रही थी
इस घर, उस घर.....
पूरी गली स्त्रियों से भरी थी
पूरा गाँव स्त्रियों के दुपट्टों, सूटों, गहनों में गमक रहा था।

भजन गाती स्त्रियाँ
मृत्यु को भव्य करती, नाचती स्त्रियाँ
ढोलकी पर टूटती,
आवाज से आवाज मिलाती
आंसू से आंसू
हँसती, गले लग-लग मिलती
छोटों के सिर पर हाथ धरती
बड़ों के पैर पड़ती
घुटनों का दर्द लिए भी चाव में लुढ़कती
इनके रंग देखिए
इनकी बात सुनिए
बड़ी दूर-दूर से बरसों बाद लौटी हैं।

चौबीस-पच्चीस स्त्रियों के साथ भी मुश्किल से चार पुरूष हैं
कहीं पाँच में सिर्फ एक
एक कहता है- जिधर देख लो, जनानी ही जनानी भरी हैं
दूसरा हँसकर बोला- बेचारी काण- मुकाण लिकड़ैं
ब्याह म्हं कुण इन न बुलाए बैठ्या सै।
देर तक फिर हँसी गूँजती रही।

पुरुष ढूंढते रहे काज में आई स्त्रियों को
इस घर, उस घर, गाँव के गौर तक
स्त्रियां कान बंद कर मामी, मौसी, बुआ, बहन, सहेलियों से मिलती रही
आज ये बरसों की बात करेंगी
फिर जाने ऐसा मेला कब भरें।
@सुनीता करोथवाल की रचना
काज/कारज

अपने खेतों में बीज बोते हुए जो हलूर गाई जाती है वो ही किसान के मंत्र हैं,मेहनत करने में जो पसीना बहता है वही इस महायज्ञ ...
19/05/2025

अपने खेतों में बीज बोते हुए जो हलूर गाई जाती है वो ही किसान के मंत्र हैं,
मेहनत करने में जो पसीना बहता है वही इस महायज्ञ की आहुतियाँ हैं,
जँगली जानवरों पक्षियों से सुरक्षा करते समय विभिन्न प्रकार की आवाज़ें निकालना ही श्लोक और लयबद्ध राग हैं,
खेत की झोपड़ी में जलने वाला अलाव ही उस किसान का हवन कुंड है,
कड़कड़ाती भूख में खेत की मेड़ पर घर से आई रोटी खाना ही उसका भोग लगाना है,
छह महीने की तपस्या के पश्चात प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहार ही उसकी तपस्या का फल है,
इस हठयोगी से बड़ा कोई हठी नही हर बरस अपनी खेती में सट्टा लगाता रहता है,
परिणाम चाहे जो भी हो,

#जोहार_किसानी 🌾

  ❤️❤️
15/05/2025

❤️❤️

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