मानस कल्पतरुः

मानस कल्पतरुः ||| जय जय शंकर, हर हर शंकर |||
सर्वजनहिताय वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार गिलहरी प्रयास हेतु
(1)

॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण, हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥

॥ शुक्लय जुर्वेदीय माध्यंदिनि वाजसनेयी शाखा दक्षिण शिखा दक्षिण पाद
पञ्च प्रवर कात्यायन सूत्र गर्ग गोत्र देवता शिव॥

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स्त्री नख़ से शिख तक सुंदर होती है, पुरुष नहीं।    पुरुष का सौंदर्य उसके चेहरे पर तब उभरता है जब वह अपने     साहस के बल प...
26/09/2025

स्त्री नख़ से शिख तक सुंदर होती है, पुरुष नहीं।
पुरुष का सौंदर्य उसके चेहरे पर तब उभरता है जब वह अपने
साहस के बल पर विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल कर लेता है
ईश्वर ने गढ़ते समय पुरुष और स्त्री की लंबाई में थोड़ा सा अंतर
कर दिया। पुरुष लंबे हो गए , स्त्री छोटी हो गई।
इस अंतर को पाटने के दो ही तरीके हो सकते है।
या तो स्त्री पांव उचका कर बड़ी हो जाए , या पुरुष माथा
झुका कर छोटा हो जाए.... बाबा लिखते है, जब राजा जनक
के दरबार में स्वयंबर के समय माता भगवान् राम को वरमाला
पहनाने आई, तो प्रभु उनसे ऊंचे निकले ।
माता को उचकाना पड़ता, पर प्रभु ने स्वयं ही सर झुका दिया।
दोनों बराबर हो गए....वही से तो सीखते है हम सबकुछ.....
स्त्री पुरुष संबंधों में यदि प्रेम है, समर्पण है, सम्मान है, तो
बड़े से बड़े अंतर को भी थोड़ा सा उचक कर या सर नवा कर
पाट दिया जा सकता है।
गाँव के बुजुर्ग कहते है, पुरुष की प्रतिष्ठा उसकी स्त्री तय करती है।
और स्त्री का सौंदर्य उसका पुरुष.... दोनों के बीच समर्पण हो तभी
उनका संसार सुंदर होता है।

👉ऐसा देखा गया है .....पूजन सामिग्री बेचने वाली दुकानों पर  #पूजा_का_घी अलग सस्ता क्यों  मिलता है …..??😢 ,  #पूजा_में_व्य...
25/09/2025

👉ऐसा देखा गया है .....पूजन सामिग्री बेचने वाली दुकानों पर #पूजा_का_घी अलग सस्ता क्यों मिलता है …..??😢 ,
#पूजा_में_व्यर्थ_निकृष्ट_घृत_कपड़े_फल_मिठाई क्यों चढ़ाते हो जो तुम खा नहीं सकते …?
जो तुम पहिन नही सकते ...?
जो तुम्हारे लिए व्यर्थ है
वही सामिग्री पूजा में कुछ लोभी , लोलुप व्यापारियों द्वारा बेची जा रही है और लालचियों भगतों द्वारा खरीदी और देवपूजन में भेंट की जा रही है,,
यह कहानी नहीं बल्कि एक कड़वी सच्चाई है
अभी कॉलोनी में घुसते ही मन्दिर के पास वाली दुकान पर भीड़ देखकर याद आया कि लोग पूजा का सामान खरीदने उमड़े हैं।
इससे हमें यह ध्यान आया कि फिर से आप सबको सतर्क कर दें। लोग पूजा के लिए घी खरीदने जाने पर माँगते हैं..
"भइया, पूजा वाला घी देना!"
🚩 ये पूजा वाला घी क्या होता है भई ? 🚩
आप जैसे अनजान और नादान लोगों को पुनः बता दें कि यह मरे हुए जानवरों की वसा(चर्बी) होती है जो घी के नाम पर बेची जा रही है।
क्योंकि इसको कोई खाता तो है नहीं। तो सस्ते के नाम पर यही खरीद लेते हैं लोग कि "जलाना ही तो है।"
आप नौ दिन व्रत रहकर अपने आराध्य को घी के नाम पर मरे हुए जानवर की चर्बी अर्पित करना चाहते हैं ? बताइये ??
घी जलाते ही क्यों हैं पूजा, यज्ञ, हवन आदि में ??
इसका कारण कभी सोचे ??
शुद्ध घी को यदि जलाएंगे तो उसका धुआँ जहाँ जहाँ जाएगा, वहाँ वहाँ की वायु को शुद्ध करता जाएगा। यह सारे हानिकारक बैक्टीरिया, कीटाणु आदि को मार देता है। इसीलिए हमारे ज्ञानी ऋषि मुनियों ने इसको पूजा पाठ आदि के साथ जोड़ा था।
अब जरा आप सोचिये! कि केवल सस्ते के लालच में आप मरे हुए जानवरों की सड़ी गली चमड़ी/ वसा को पूजा, यज्ञ, हवन आदि के नाम पर अपने घर में जला रहे हैं। इससे कीटाणु मरेंगे ??
या और बुरी तरह फैलेंगे ??
और, यह सारा धंधा भी मलेच्छों का ही है। अब सोचिये कि वो आपके धर्म का सर्वनाश करने के लिए उस 'पूजा वाला घी' में और क्या क्या मिलाते होंगे। मतलब कि खुद के घर को जानवरों के श्मशान की दुर्गन्ध से भर भी लो, अपने छोटे छोटे बच्चों तथा बुजुर्गों के शरीर के भीतर बीमारी के कीटाणु भी भर दो, और साथ के साथ मलेच्छों का यह घी खरीद कर उन्हें और धनवान भी बनाओ।
अच्छा है न ?
खाने वाला शुद्ध घी ही जलाने में आप कितने गरीब हो जाएंगे भाई ?
कितना कुन्तल घी आप जला देते हैं ?
चुनाव आपका है, इच्छा है आपकी...!!!
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चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 किलोमीटर के दायरे में आप घूमने जाओ
तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी,
यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं,
इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता है,
इस चर्बी से मुख्यतः 3 चीजे बनती हैं।
1- एनामिल पेंट (जिसे हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं)
2- ग्लू (फेविकोल इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं)
3- और तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती है वो है "शुध्द देशी घी"
जी हाँ " शुध्द देशी घी"
यही देशी घी यहाँ थोक मंडियों में 120 से 150 रूपए किलो तक भरपूर बिकता है,
इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता है,
इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भंडारे कराने वाले करते हैं। लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके पूण्य कमा रहे हैं।
इस "शुध्द देशी घी" को आप बिलकुल नही पहचान सकते
बढ़िया रवे दार दिखने वाला ये ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता है,
औधोगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं,
अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी " डालडा" "फॉर्च्यून" खाते हो उसमे क्या मिलता होगा।
कोई बड़ी बात नही देशी घी बेंचने का दावा करने वाली कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं।
इसलिए ये बहस बेमानी है कि कौन घी को कितने में बेंच रहा है,
अगर शुध्द ही खाना है तो अपने घर में गाय पाल कर ही आप शुध्द खा सकते हो ||
🚩 पूजनादि की सामग्री विक्रय करने वाले
यदि सामग्री घटिया एवं मूल्य से बहुत अधिक दाम पर बेचते हैं तो समझिए उनकी भविष्य में दुर्दशा सुनिश्चित हो सकती है... आप मनुष्य को तो ठग सकते हो लेकिन उसे नहीं भयावह परिणाम की प्रतीक्षा करें।।
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मार्मिक प्रसंग।।🌺सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी थी। लक्ष्मण के साथ भयंकर युद्ध मे...
19/08/2025

मार्मिक प्रसंग।।🌺
सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी थी। लक्ष्मण के साथ भयंकर युद्ध में मेघनाद का वध हुआ।
😉🤞🙆🏻
अपने पति की मृत्यु का समाचार पाकर सुलोचना ने अपने ससुर रावण से राम के पास जा कर पति का शीश लाने की प्रार्थना की।
किंतु रावण इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने सुलोचना से कहा - कि वह स्वयं राम के पास जाकर मेघनाद का शीश ले आये।
क्योंकि राम पुरुषोत्तम हैं, इसीलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए।
🤞🤗❤️🙏
रावण के महापराक्रमी पुत्र इन्द्रजीत (मेघनाद) का वध करने की प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाने के लिये प्रस्तुत हुए, तब राम उनसे कहते हैं -🤞😉
हे "लक्ष्मण! रण में जाकर तुम अपनी वीरता और रणकौशल से रावण-पुत्र मेघनाद का वध कर दोगे,
इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है।
परंतु एक बात का विशेष ध्यान रखना कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे।
क्योंकि मेघनाद एक नारी-व्रत का पालक है और
उसकी पत्नी परम पतिव्रता है।
🤞😉🤗❤️
ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमारी सारी सेना का ध्वंस हो जाएगा और हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी।
लक्ष्मण जी अपनी सेना लेकर चल पड़े, समरभूमि में उन्होंने वैसा ही किया।
युद्ध में अपने बाणों से उन्होंने मेघनाद का मस्तक उतार लिया, पर उसे पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया।
हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले आये।
😉😐🫢
मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुई उसकी पत्नी सुलोचना के पास जाकर गिरी।
सुलोचना चकित हो गयी, दूसरे ही क्षण अत्यंत दु:ख से कातर होकर विलाप करने लगी।
पर उसने भुजा को स्पर्श नहीं किया। उसने सोचा, सम्भव है यह भुजा किसी अन्य व्यक्ति की हो।
😉😐🫢
ऐसी दशा में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा। निर्णय करने के लिये उसने भुजा से कहा - "यदि तू मेरे स्वामी की भुजा है,
तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृत्तांत लिख दे। भुजा को दासी ने लेखनी पकड़ा दी। लेखिनी ने लिख दिया - "प्राणप्रिये! यह भुजा मेरी ही है।
😉🤞🤗
युद्ध भूमि में श्रीराम के भाई लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ। लक्ष्मण ने कई वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा छोड़ रखी है।
वह तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है।
संग्राम में उनके साथ मेरी एक नहीं चली।
अन्त में उन्हीं के बाणों से विद्ध होने से मेरा प्राणान्त हो गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है।
😉🤗❤️🙏
पति की भुजा-लिखित पंक्तियां पढ़ते ही सुलोचना व्याकुल हो गयी। पुत्र-वधु के विलाप को सुनकर लंकापति रावण ने आकर कहा - 'शोक न कर पुत्री।
😉🤞🙆🏻
प्रात: होते ही सहस्त्रों मस्तक मेरे बाणों से कट-कट कर पृथ्वी पर लोट जाऐंगे।
मैं रक्त की नदियां बहा दूंगा। करुण चीत्कार करती हुई सुलोचना बोली - "पर इससे मेरा क्या लाभ होगा पिता जी??
सहस्त्रों नहीं करोड़ों शीश भी मेरे स्वामी के शीश के अभाव की पूर्ती नहीं कर सकेंगे,
फिर उन स्त्रियों का क्या दोष जो उनकी भी मांग मेरी तरह उजाड़ देंगे पिता श्री??
इससे मेरे दुःख तो कम नहीं हो जायेगें??
सुलोचना ने निश्चय हो कर कहा, हे लंकाधिपति, हे पिता श्री अब मुझे आज्ञा दें 'मुझे अब सती हो जाना है.. अब बिलंब न करें पिता श्री.. मेरा समय पूरा हुआ...
🙏🫢☺️
किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था। फिर वह कैसे सती होती?
जब अपने ससुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगवाने के लिए कहा, तब रावण ने उत्तर दिया- "देवी! तुम स्वयं ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो।
🤞😉🤗
जिस समाज में बालब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण तथा एक पत्नी व्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए।
मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।"
🤞🤗❤️
सुलोचना अपने ससुर की आज्ञा से रामा दल को तैयार हुई,
सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं चलकर सुलोचना के पास आये और बोले -
"देवी! तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा और पराक्रमी थे। उनमें बहुत-से सदगुण थे।
किंतु विधि की लिखी को कौन बदल सकता है??
आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में पीड़ा हो रही है। सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी।
🤗❤️🙏
श्रीराम ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा - "देवी! मुझे लज्जित न करो।
पतिव्रता की महिमा अपार है, उसकी शक्ति की तुलना नहीं है।
मैं जानता हूँ कि तुम परम सती हो। तुम्हारे सतित्व से तो विश्व भी थर्राता है।
अपने स्वयं यहाँ आने का कारण बताओ, बताओ कि मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ?
😄❤️🤞
सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली - "राघवेन्द्र! मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ पर आई हूँ।
श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।
🙏❤️🤗
पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया।
उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं। रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा -
"सुमित्रानन्दन! तुम भूलकर भी गर्व मत करना कि मेघनाथ का वध तुमने किया है।
मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी भी
पुरुष के पास नहीं थी।
🤞😐🙆🏻
यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था,
आपकी पत्नी भी पतिव्रता है और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने वाली..उनकी अनन्य उपसिका हूँ।
🤞🤗🙆‍♀️
पर मेरे पति देव पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के लिये युद्ध में उतरे थे, इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे।
🤞🙆‍♀️😥😢
सभी योद्धा सुलोचना को राम शिविर में देखकर चकित थे। वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि सुलोचना को यह कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान राम के पास है??
🙆🏻😉
जिज्ञासा शान्त करने के लिये सुग्रीव ने पूछ ही लिया कि यह बात उन्हें कैसे ज्ञात हुई कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है??
सुलोचना ने स्पष्टता से बता दिया - "मेरे पति की भुजा युद्ध भूमि से उड़ती हुई मेरे पास चली गयी थी। उसी ने लिखकर मुझे बता दिया।
व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे - "निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है फिर तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है...???
श्रीराम ने कहा - "व्यर्थ बातें मत करो मित्र। पतिव्रता के महाम्तय को तुम नहीं जानते। यदि वह चाहे तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।
🤞🤨❤️
श्रीराम की मुखकृति देखकर सुलोचना उनके भावों को समझ गयी।
उसने कहा - "यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे।
सुलोचना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कटा हुआ मस्तक जोरों से हंसने लगा।
🤞😐♥️😉
यह देखकर सभी दंग रह गये। सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया। सभी पतिव्रता की महिमा से परिचित हो गये थे।
चलते! समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की-हे करूणानिधान, हे "भगवन,
वैसे तो मुझे इस युद्ध से या युद्ध के परिणाम में कोई
रुचि नहीं है,
धर्म के साथ स्वयं नारायण के रूप में भगवान आ गए हैं धरा पर तो धर्म की रक्षा तो होनी ही है...
परन्तु आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है और मैं
उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूँ...
🤗🙏❤️😢
अत: आज युद्ध बंद रहे तो आपकी विशिष्ट कृपा होगी 🙏😥🙆‍♀️
श्रीराम ने सुलोचना की प्रार्थना स्वीकार कर ली,
सुलोचना पति का सिर लेकर वापस लंका आ गई।
लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी।
पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी
और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही क्षणों में सती हो
गई। fans Highlights

ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी..!!>> एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गयावह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और क...
26/07/2025

ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी..!!
>> एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया....
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।
ध्यान रखे
आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है। fans Raghu Yadav Vikram Singh Panda

⚜️*।।गुरुमंत्र का प्रभाव।।*⚜️           .....'स्कन्द पुराण' के ब्रह्मोत्तर खण्ड में कथा आती हैः काशी नरेश की कन्या कलावत...
17/07/2025

⚜️*।।गुरुमंत्र का प्रभाव।।*⚜️
.....'स्कन्द पुराण' के ब्रह्मोत्तर खण्ड में कथा आती हैः काशी नरेश की कन्या कलावती के साथ मथुरा के दाशार्ह नामक राजा का विवाह हुआ। विवाह के बाद राजा ने अपनी पत्नी को अपने पलंग पर बुलाया परंतु पत्नी ने इन्कार कर दिया। तब राजा ने बल-प्रयोग की धमकी दी।

पत्नी ने कहाः "स्त्री के साथ संसार-व्यवहार करना हो तो बल-प्रयोग नहीं, स्नेह-प्रयोग करना चाहिए। नाथ ! मैं आपकी पत्नी हूँ, फिर भी आप मेरे साथ बल-प्रयोग करके संसार-व्यवहार न करें।"

आखिर वह राजा था। पत्नी की बात सुनी-अनसुनी करके नजदीक गया। ज्यों ही उसने पत्नी का स्पर्श किया त्यों ही उसके शरीर में विद्युत जैसा करंट लगा। उसका स्पर्श करते ही राजा का अंग-अंग जलने लगा। वह दूर हटा और बोलाः "क्या बात है? तुम इतनी सुन्दर और कोमल हो फिर भी तुम्हारे शरीर के स्पर्श से मुझे जलन होने लगी?"

पत्नीः "नाथ ! मैंने बाल्यकाल में दुर्वासा ऋषि से शिवमंत्र लिया था। वह जपने से मेरी सात्त्विक ऊर्जा का विकास हुआ है। जैसे, अँधेरी रात और दोपहर एक साथ नहीं रहते वैसे ही आपने शराब पीने वाली वेश्याओं के साथ और कुलटाओं के साथ जो संसार-भोग भोगे हैं, उससे आपके पाप के कण आपके शरीर में, मन में, बुद्धि में अधिक है और मैंने जो जप किया है उसके कारण मेरे शरीर में ओज, तेज, आध्यात्मिक कण अधिक हैं। इसलिए मैं आपके नजदीक नहीं आती थी बल्कि आपसे थोड़ी दूर रहकर आपसे प्रार्थना करती थी। आप बुद्धिमान हैं बलवान हैं, यशस्वी हैं धर्म की बात भी आपने सुन रखी है। फिर भी आपने शराब पीनेवाली वेश्याओं के साथ और कुलटाओं के साथ भोग भोगे हैं।"

राजाः "तुम्हें इस बात का पता कैसे चल गया?"

रानीः "नाथ ! हृदय शुद्ध होता है तो यह ख्याल आ जाता है।"

राजा प्रभावित हुआ और रानी से बोलाः "तुम मुझे भी भगवान शिव का वह मंत्र दे दो।"

रानीः "आप मेरे पति हैं। मैं आपकी गुरु नहीं बन सकती। हम दोनों गर्गाचार्य महाराज के पास चलते हैं।"

दोनों गर्गाचार्यजी के पास गये और उनसे प्रार्थना की। उन्होंने स्नानादि से पवित्र हो, यमुना तट पर अपने शिवस्वरूप के ध्यान में बैठकर राजा-रानी को निगाह से पावन किया। फिर शिवमंत्र देकर अपनी शांभवी दीक्षा से राजा पर शक्तिपात किया।

कथा कहती है कि देखते-ही-देखते कोटि-कोटि कौए राजा के शरीर से निकल-निकलकर पलायन कर गये। काले कौए अर्थात् तुच्छ परमाणु। काले कर्मों के तुच्छ परमाणु करोड़ों की संख्या में सूक्ष्म दृष्टि के द्रष्टाओं द्वारा देखे गये हैं। सच्चे संतों के चरणों में बैठकर दीक्षा लेने वाले सभी साधकों को इस प्रकार के लाभ होते ही हैं। मन, बुद्धि में पड़े हुए तुच्छ कुसंस्कार भी मिटते हैं। आत्म-परमात्माप्राप्ति की योग्यता भी निखरती है। व्यक्तिगत जीवन में सुख-शांति, सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है तथा मन-बुद्धि में सुहावने संस्कार भी पड़ते हैं। और भी अनगिनत लाभ होते हैं जो निगुरे, मनमुख लोगों की कल्पना में भी नहीं आ सकते। मंत्रदीक्षा के प्रभाव से हमारे पाँचों शरीरों के कुसंस्कार व काले कर्मों के परमाणु क्षीण होते जाते हैं। थोड़ी-ही देर में राजा निर्भार हो गया और भीतर के सुख से भर गया।

शुभ-अशुभ, हानिकारक व सहायक जीवाणु हमारे शरीर में ही रहते हैं। पानी का गिलास होंठ पर रखकर वापस लायें तो उस पर लाखों जीवाणु पाये जाते हैं यह वैज्ञानिक अभी बोलते हैं, परंतु शास्त्रों ने तो लाखों वर्ष पहले ही कह दिया।

*सुमति-कुमति सबके उर रहहिं।*

जब आपके अंदर अच्छे विचार रहते हैं तब आप अच्छे काम करते हैं और जब भी हलके विचार आ जाते हैं तो आप न चाहते हुए भी कुछ गलत कर बैठते हैं। गलत करने वाला कई बार अच्छा भी करता है। तो मानना पड़ेगा कि मनुष्य शरीर पुण्य और पाप का मिश्रण है। आपका अंतःकरण शुभ और अशुभ का मिश्रण है। जब आप लापरवाह होते हैं तो अशुभ बढ़ जाता है। अतः पुरुषार्थ यह करना है कि अशुभ क्षीण होता जाय और शुभ पराकाष्ठा तक, परमात्म-प्राप्ति तक पहुँच जाय...

Address

Pantnagar
Rudrapur
263145

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