19/08/2025
मार्मिक प्रसंग।।🌺
सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी थी। लक्ष्मण के साथ भयंकर युद्ध में मेघनाद का वध हुआ।
😉🤞🙆🏻
अपने पति की मृत्यु का समाचार पाकर सुलोचना ने अपने ससुर रावण से राम के पास जा कर पति का शीश लाने की प्रार्थना की।
किंतु रावण इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने सुलोचना से कहा - कि वह स्वयं राम के पास जाकर मेघनाद का शीश ले आये।
क्योंकि राम पुरुषोत्तम हैं, इसीलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए।
🤞🤗❤️🙏
रावण के महापराक्रमी पुत्र इन्द्रजीत (मेघनाद) का वध करने की प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाने के लिये प्रस्तुत हुए, तब राम उनसे कहते हैं -🤞😉
हे "लक्ष्मण! रण में जाकर तुम अपनी वीरता और रणकौशल से रावण-पुत्र मेघनाद का वध कर दोगे,
इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है।
परंतु एक बात का विशेष ध्यान रखना कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे।
क्योंकि मेघनाद एक नारी-व्रत का पालक है और
उसकी पत्नी परम पतिव्रता है।
🤞😉🤗❤️
ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमारी सारी सेना का ध्वंस हो जाएगा और हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी।
लक्ष्मण जी अपनी सेना लेकर चल पड़े, समरभूमि में उन्होंने वैसा ही किया।
युद्ध में अपने बाणों से उन्होंने मेघनाद का मस्तक उतार लिया, पर उसे पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया।
हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले आये।
😉😐🫢
मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुई उसकी पत्नी सुलोचना के पास जाकर गिरी।
सुलोचना चकित हो गयी, दूसरे ही क्षण अत्यंत दु:ख से कातर होकर विलाप करने लगी।
पर उसने भुजा को स्पर्श नहीं किया। उसने सोचा, सम्भव है यह भुजा किसी अन्य व्यक्ति की हो।
😉😐🫢
ऐसी दशा में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा। निर्णय करने के लिये उसने भुजा से कहा - "यदि तू मेरे स्वामी की भुजा है,
तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृत्तांत लिख दे। भुजा को दासी ने लेखनी पकड़ा दी। लेखिनी ने लिख दिया - "प्राणप्रिये! यह भुजा मेरी ही है।
😉🤞🤗
युद्ध भूमि में श्रीराम के भाई लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ। लक्ष्मण ने कई वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा छोड़ रखी है।
वह तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है।
संग्राम में उनके साथ मेरी एक नहीं चली।
अन्त में उन्हीं के बाणों से विद्ध होने से मेरा प्राणान्त हो गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है।
😉🤗❤️🙏
पति की भुजा-लिखित पंक्तियां पढ़ते ही सुलोचना व्याकुल हो गयी। पुत्र-वधु के विलाप को सुनकर लंकापति रावण ने आकर कहा - 'शोक न कर पुत्री।
😉🤞🙆🏻
प्रात: होते ही सहस्त्रों मस्तक मेरे बाणों से कट-कट कर पृथ्वी पर लोट जाऐंगे।
मैं रक्त की नदियां बहा दूंगा। करुण चीत्कार करती हुई सुलोचना बोली - "पर इससे मेरा क्या लाभ होगा पिता जी??
सहस्त्रों नहीं करोड़ों शीश भी मेरे स्वामी के शीश के अभाव की पूर्ती नहीं कर सकेंगे,
फिर उन स्त्रियों का क्या दोष जो उनकी भी मांग मेरी तरह उजाड़ देंगे पिता श्री??
इससे मेरे दुःख तो कम नहीं हो जायेगें??
सुलोचना ने निश्चय हो कर कहा, हे लंकाधिपति, हे पिता श्री अब मुझे आज्ञा दें 'मुझे अब सती हो जाना है.. अब बिलंब न करें पिता श्री.. मेरा समय पूरा हुआ...
🙏🫢☺️
किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था। फिर वह कैसे सती होती?
जब अपने ससुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगवाने के लिए कहा, तब रावण ने उत्तर दिया- "देवी! तुम स्वयं ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो।
🤞😉🤗
जिस समाज में बालब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण तथा एक पत्नी व्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए।
मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।"
🤞🤗❤️
सुलोचना अपने ससुर की आज्ञा से रामा दल को तैयार हुई,
सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं चलकर सुलोचना के पास आये और बोले -
"देवी! तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा और पराक्रमी थे। उनमें बहुत-से सदगुण थे।
किंतु विधि की लिखी को कौन बदल सकता है??
आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में पीड़ा हो रही है। सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी।
🤗❤️🙏
श्रीराम ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा - "देवी! मुझे लज्जित न करो।
पतिव्रता की महिमा अपार है, उसकी शक्ति की तुलना नहीं है।
मैं जानता हूँ कि तुम परम सती हो। तुम्हारे सतित्व से तो विश्व भी थर्राता है।
अपने स्वयं यहाँ आने का कारण बताओ, बताओ कि मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ?
😄❤️🤞
सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली - "राघवेन्द्र! मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ पर आई हूँ।
श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।
🙏❤️🤗
पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया।
उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं। रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा -
"सुमित्रानन्दन! तुम भूलकर भी गर्व मत करना कि मेघनाथ का वध तुमने किया है।
मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी भी
पुरुष के पास नहीं थी।
🤞😐🙆🏻
यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था,
आपकी पत्नी भी पतिव्रता है और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने वाली..उनकी अनन्य उपसिका हूँ।
🤞🤗🙆♀️
पर मेरे पति देव पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के लिये युद्ध में उतरे थे, इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे।
🤞🙆♀️😥😢
सभी योद्धा सुलोचना को राम शिविर में देखकर चकित थे। वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि सुलोचना को यह कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान राम के पास है??
🙆🏻😉
जिज्ञासा शान्त करने के लिये सुग्रीव ने पूछ ही लिया कि यह बात उन्हें कैसे ज्ञात हुई कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है??
सुलोचना ने स्पष्टता से बता दिया - "मेरे पति की भुजा युद्ध भूमि से उड़ती हुई मेरे पास चली गयी थी। उसी ने लिखकर मुझे बता दिया।
व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे - "निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है फिर तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है...???
श्रीराम ने कहा - "व्यर्थ बातें मत करो मित्र। पतिव्रता के महाम्तय को तुम नहीं जानते। यदि वह चाहे तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।
🤞🤨❤️
श्रीराम की मुखकृति देखकर सुलोचना उनके भावों को समझ गयी।
उसने कहा - "यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे।
सुलोचना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कटा हुआ मस्तक जोरों से हंसने लगा।
🤞😐♥️😉
यह देखकर सभी दंग रह गये। सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया। सभी पतिव्रता की महिमा से परिचित हो गये थे।
चलते! समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की-हे करूणानिधान, हे "भगवन,
वैसे तो मुझे इस युद्ध से या युद्ध के परिणाम में कोई
रुचि नहीं है,
धर्म के साथ स्वयं नारायण के रूप में भगवान आ गए हैं धरा पर तो धर्म की रक्षा तो होनी ही है...
परन्तु आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है और मैं
उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूँ...
🤗🙏❤️😢
अत: आज युद्ध बंद रहे तो आपकी विशिष्ट कृपा होगी 🙏😥🙆♀️
श्रीराम ने सुलोचना की प्रार्थना स्वीकार कर ली,
सुलोचना पति का सिर लेकर वापस लंका आ गई।
लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी।
पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी
और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही क्षणों में सती हो
गई। fans Highlights