
10/06/2024
उत्तर प्रदेश में गांव गांव में एक दहशत फैलाई जा रही है कि समाजवादी पार्टी के बहुत सांसद हो गए हैं और अब वक्फ बोर्ड किसी भी जमीन पर दावे कर देगा तो वह उसकी हो जाएगी। अगर कोई ऐसी अफवाह है तो यह सरकार का दायित्व है कि अधिकारी उससे जनता को उबारते। लेकिन दहशत में वोट की फसल कटती हो तो भला ऐसा क्यों किया जाएगा? यह करने का कोई मतलब नहीं है।
हकीकत यह है कि वक्फ बोर्ड एक सरकारी संस्था है, जिसके पदाधिकारी केंद्र या राज्य सरकारें नियुक्त करती है। यह संस्था किसी की जमीन पर दावा नहीं कर सकती है न उसे किसी से छीन सकती है। संविधान से परे शक्तियां तो छोड़िए, इसकी शक्ति किसी स्थानीय प्रशासन से भी इतर नहीं है।
गोरखपुर के एक मित्र ने अनुरोध किया कि इस पर आप कुछ सोशल मीडिया पर लिखें! पहले तो समझ में न आया कि इस बेवकूफी पर क्या लिखें? फिर अपनी समझ के मुताबिक लिखने की कोशिश की। हालांकि आरएसएस भाजपा के लोग वक्फ को लेकर तमाम दहशत पहले भी फैलाते रहे हैं कि बोर्ड को असीमित पावर है, यह संविधान विरुद्ध है आदि आदि। मित्र Diwakar Gupt के लिए यह मेहनत की, वरना अब इन दुनियाबी चीजों में मन नहीं लगता।
वक्फ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है रोकना। अगर कोई व्यक्ति सम्पत्ति अल्ला के नाम पर कोई सम्पत्ति दान कर देता है तो वह वक्फ में चला जाता है। अगर आपके पास कोई जमीन है और आप वयस्क हैं, उसे दान करते हैं कि वह सार्वजनिक हित मे काम आए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाती है। यह मौखिक नहीं है, लिखत पढ़त में जमीन दान की जाती है कि वक्फ के लिए मैंने दिया। उस पर कब्रिस्तान, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल या कोई भी ऐसी चीज बनाई जा सकती है जो सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल की जा सके और हर नागरिक उसका लाभ उठा सके।
वक्फ की जमीन बेची नहीं जा सकती। इसे विरासत में नहीं दिया जा सकता। कोई व्यक्ति दान देकर उसे वापस नहीं ले सकता कि यह हमारे बाप दादा की प्रॉपर्टी है इसे वापस दीजिए।
इस सम्पदा को बेचा नहीं जा सकता, लेकिन पट्टे पर दिया जा सकता है। इसमें दुकान बनाकर किराए पर लगाया जा सकता है। यह किसी भी मजहब तक सीमित नहीं है, स्कूल अस्पताल का लाभ सभी उठा सकते हैं। दिल्ली में वक्फ बोर्ड ने सैंकड़ों दुकानें बनवाकर किराए पर लगाई हैं जिनमे 80% दुकानें हिंदुओ की हैं जो मामूली किराए पर रोजी रोटी चला रहे हैं।
भारत मे 1954 में पहली बार वक्फ एक्ट पारित किया गया। बाद में 1995 में बने एक कानून में वक्फ बोर्ड को अतिरिक्त शक्तियां दी गईं। इसकी वजह यह है कि इस समय रक्षा और रेल मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है। इसकी जमीन पर दबंग, गुंडे मवाली कब्जा कर लेते हैं और उसे अपने मुताबिक निजी इस्तेमाल करते हैं।
वक्फ बोर्ड भारत सरकार द्वारा बनाया गया संगठन है। इसमें सरकार यह तय करती है कि कौन कौन सदस्य रहेगा। बोर्ड में सर्वे कमिश्नर होता है, जो संपत्तियों का लेखा-जोखा रखता है. इसके अलावा इसमें विधायक, सांसद, आइएएस अधिकारी, टाउन प्लानर, अधिवक्ता और बुद्धिजीवी जैसे लोग शामिल होते हैं। वक्फ ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। ट्रिब्यूनल में कौन शामिल होंगे, इसका फैसला राज्य सरकार करती है। वक्फ और दान मुस्लिम करते हैं इसलिए ज्यादातर पदाधिकारी मुस्लिम ही रखे जाते हैं।
मुस्लिम संगठन इस बात का प्रबल विरोध करते हैं कि अधिकार देने के नाम पर सरकार ने वक्फ बोर्ड पर अपना कब्जा कर लिया है और सरकार से जुड़े पालतू मुस्लिम नेता इसका भरपूर दुरुपयोग करते हैं। मुस्लिम संगठन चाहते हैं कि इसमें सरकार का दखल बंद होना चाहिए।
अब सवाल उठता है कि क्या वक्फ बोर्ड किसी की जमीन पर कब्जा कर सकता है? यह सोचना भी मूर्खतापूर्ण है।
पहली बात तो यह कि वक्फ बोर्ड को अपनी जमीन संभालना ही आफत है जिस पर गुंडों ने कब्जा कर रखा है। हर साल दानदाताओं की संख्या बढ़ती जा रही है जो चैरिटी में जमीन दान कर देते हैं कि उनकी सम्पदा का इस्तेमाल गरीबों, मजलूमो और जरूरतमंदों के लिए हो। ऐसे में वक्फ बोर्ड को किसी की जमीन पर कब्जा करने की जरूरत नहीं है।
दूसरी बात, यह बोर्ड पूरी तरह सरकारी है। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि योगी सरकार या शिवराज सरकार या मोदी सरकार है तो वक्फ बोर्ड में किनके लोग बैठे होंगे और वक्फ की प्रॉपर्टी पर कौन लोग रांद काट रहे हैं।
तीसरी बात, वक्फ बोर्ड हिन्दू तो छोड़िए किसी मुस्लिम की जमीन पर भी दावे नहीं कर सकता कि वह उसकी जमीन है। वह केवल उस जमीन पर दावे कर सकता है जो उसकी अपनी जमीन है और किसी ने उस पर कब्जा कर रखा है।
अब तमाम सरकारों ने लैंड रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण किया है। यह बहुत महान काम है, खासकर यूपी सरकार का। योगी आदित्यनाथ की कवायद है कि जमीन के नाम पर गांवों में चलने वाला खूनी संघर्ष रोका जाए, मुकदमे में बर्बाद हो रहे ग्रामीणों को बचाया जाए। ऐसा काम अगर वह कर ले गए तो यह मानवता के लिए बहुत महान होगा।
इस डिजिटलीकरण में तमाम जमीनें सामने आ रही हैं जो किसी दूसरे की है और कब्जा किसी और की है। इसका उदाहरण खुद मैं हूँ। बड़हलगंज में पिताजी के नाम एक जमीन है और हम लोगों को पता ही नहीं था, पापा बताते जरूर थे कि वहां हम लोगों का एक खेत था। जब डिजिटल हुआ तो रिकॉर्ड से पता चला कि वहां हमारी जमीन है। समस्या है कि हम लोग इतने भी गुंडे नहीं हैं कि अपनी जमीन कब्जेदारों से छुड़ा सकें!
इसी तरह डिजिटलीकरण के साथ वक्फ की बहुत सारी जमीनें निकली हैं जिन पर लोगों ने कब्जा जमा रखा है और उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। ज्यादातर कब्जेदार स्वाभाविक रूप से मुस्लिम हैं, हिन्दू का उसमें कोई मसला ही नहीं है।
तो चिल मारिये, अगर आपने वक्फ की जमीन नहीं कब्जियाया है, आपकी जमीन योगी जी या मोदीजी द्वारा नियुक्त कोई वक्फ बोर्ड छीन नहीं सकता। चाहे आप हिन्दू हों या मुसलमान😊
#भवतु_सब्ब_मंगलम