22/11/2025
इस देश की मीडिया आदिवासी हिड़मा के मारे जाने पर चीख-चीखकर हेडलाइन बनाती है…
लेकिन मीडिया कभी यह नहीं दिखाती कि आज भी आदिवासी अपने जल–जंगल–ज़मीन के लिए संघर्षरत हैं।
इस देश की मीडिया कभी यह नहीं दिखाती कि सरकारें “विकास” के नाम पर आदिवासियों के आशियाने उजाड़ती हैं, और पूँजीपतियों की लूट को ढाल बनाकर पूरे समुदाय को बेघर कर देती हैं।
इस देश की मीडिया कभी यह नहीं दिखाती कि आदिवासी बहन–बेटियाँ आज भी असुरक्षित हैं, शोषण-अत्याचार आज भी जारी हैं।
इस देश की मीडिया कभी यह नहीं दिखाती कि आदिवासी आज भी गरीबी, भुखमरी और विस्थापन की मार झेल रहे हैं।
इस देश की मीडिया कभी यह नहीं दिखाती कि निहत्थे, निर्दोष आदिवासी आज भी “नक्सली” का ठप्पा लगाकर गोली मार दिए जाते हैं।
इस देश की मीडिया कभी यह नहीं पूछती कि जिनके पास दो वक्त की रोटी नहीं… उनके हाथों में हथियार आखिर पहुँचते कैसे हैं?
इस देश की मीडिया कभी यह नहीं दिखाती कि आदिवासी समुदाय आज भी न्याय के लिए दर-दर भटक रहा है, ठोकरें खा रहा है।
इस देश की मीडिया कभी यह नहीं दिखाती कि इसी आदिवासी समुदाय ने अंग्रेज़ों के खिलाफ इस धरती के लिए आख़िरी सांस तक लड़ाई लड़ी थी… और आज आज़ादी के दशकों बाद उन्हें क्या मिला?
गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोज़गारी, शोषण, बलात्कार, अत्याचार, विस्थापन… और नक्सली कहकर मारा जाना!
आदिवासी यदि अधिकारों की लड़ाई लड़े — तो नक्सली!
आदिवासी यदि जल-जंगल-ज़मीन की बात करे — तो नक्सली!
आदिवासी यदि अपनी बेटियों की सुरक्षा की बात करे — तो नक्सली!
आदिवासी यदि अपने समुदाय की रक्षा करे — तो नक्सली!
आख़िर इस तथाकथित लोकतांत्रिक राष्ट्र के लोगों को क्या हो गया है?
यह कैसा लोकतंत्र है, जो हर आदिवासी आवाज़ को दबाने के लिए “नक्सली” का भयावह ठप्पा लगाने में लगा हुआ है?
यह किसका लोकतंत्र है? जनता का… या पूँजीपतियों के लूटतंत्र का?
नक्सलवाद को जन्म देने वाला कौन?
अपने ही नागरिकों को हथियार उठाने पर मजबूर करने वाला कौन?
जब न्याय व्यवस्था, शासन व्यवस्था और कानून व्यवस्था ही अन्याय का माध्यम बन जाए — तो क्या केवल नक्सली जिम्मेदार हैं?
या फिर उन राजनीतिक ताकतों की नीतियाँ भी समान रूप से अपराधी हैं, जिन्होंने दशकों तक आदिवासियों को हाशिये पर धकेला?
सरकारें आखिर चाहती क्या हैं?
आदिवासियों के जीवित रहते हुए उनका संग्रहालय?
और वास्तविक जीवन में विस्थापन, भूख, गरीबी, शोषण, अत्याचार और मृत्यु?
आख़िर यह अन्याय कब तक जारी रहेगा?
क्योंकि जिस देश की नींव न्याय नहीं होती
वह देश धीरे-धीरे एक विशाल यातनागृह बन जाता है।
👉 वह जंगल बचाने की सोच लेकर निकला था
लेकिन हथियार की राह ने उसे संघर्ष और हिंसा में धकेल दिया। (शासन की नजर में)लेकिन आदिवासी समाज की रक्षा करने वाले , जंगलों में अपना जीवन यापन करने वाला , जिसका
नाम काफी था हिड़मा, जिसकी वजह से आज छत्तीसगढ़ (बस्तर) का जंगल बच्चा हुआ था , आज हिड़मा को मार दिया गया मतलब अब जंगल खत्म हो जाएगा !!
शासन प्रशाशन की नजर में नक्सली , लेकिन वहां की आम जनता का भगवान माना गया हिड़मा, भावपूर्ण श्रद्धांजलि 💐🍃🙏
#माड़वी
#जोहार_हिड़मा