19/07/2024
दुनियादारी पर राहत इंदौरी के शेर
आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मज़ा चखा के ही माना हूं मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझ को ख़ानदानी चाहिए
मौत लम्हे की सदा ज़िंदगी उम्रों की पुकार
मैं यही सोच के ज़िंदा हूं कि मर जाना है
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं
वही दुनिया वही सांसें वही हम
वही सब कुछ पुराना चल रहा है
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
ज़िंदगी भी काश मेरे साथ रहती उम्र-भर
ख़ैर अब जैसे भी होनी है बसर हो जाएगी
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा