Vikram Kanth

Vikram Kanth Enjoy it every time........
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29/07/2025

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं ,,,

जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं..!!

29/07/2025
एहसास अपने थे अल्फाज अपने थे!🥀🍂बस वहीं समझ न सके जो खास अपने थे!!🥀🍂🍂
29/07/2025

एहसास अपने थे अल्फाज अपने थे!🥀🍂
बस वहीं समझ न सके जो खास अपने थे!!🥀🍂🍂

स्थिति की विवशता के कारण ही सब कुछ सहना पड़ता है,कभी मैंने  उसे बहुत प्रेम किया था पर आज वह मेरे प्रेम को ही भूल गयी है ...
28/07/2025

स्थिति की विवशता के कारण ही सब कुछ सहना पड़ता है,कभी मैंने उसे बहुत प्रेम किया था पर आज वह मेरे प्रेम को ही भूल गयी है तो मैं क्या कर सकता हूं? मैं फिर भी अपनी ही बातों की चिंता करता हूं लौट आया था खैर ये वर्ष भी बीत रहा है, आने वाले कई वर्ष भी बीत जाएंगे__है न विक्रम

28/07/2025

स्त्री बहुत ही शांत स्वभाव की होती हैं, उसकी चंचलता अपने पिता और अपने प्रेमी तक ही सीमित रहती है...!!!है न विक्रम

28/07/2025

लड़के प्रेम सुंदरता देखकर और लड़कियाँ प्रेम औक़ात देखकर करती हैं ये वो सत्य है जिसे हमेशा जानबूझकर झुठलाया गया है!!!है न विक्रम

28/07/2025

ऑपरेशन महादेव सफल हुआ
बधाई हो हम सभी भारतवासियों को... विक्रम के तरफ से

28/07/2025

निर्धन रहने का एक पक्का तरीक़ा है कि ईमानदार रहिये समझे विक्रम।

भाई लोग मैं बहुत खाया है आप लोगों ने खाया है फल का नाम बताइए
28/07/2025

भाई लोग मैं बहुत खाया है आप लोगों ने खाया है फल का नाम बताइए

समाज के नाम मुझ दीवाने विक्रम का एक खुला पत्रविषय मौत की भी हिस्सेदारी तय कीजिएआदरणीय समाज,मैं एक शिक्षक हूं — अंतिम पाय...
27/07/2025

समाज के नाम मुझ दीवाने विक्रम का एक खुला पत्र
विषय मौत की भी हिस्सेदारी तय कीजिए
आदरणीय समाज,
मैं एक शिक्षक हूं — अंतिम पायदान पर खड़ा वह व्यक्ति जिसे हर दुर्घटना के बाद सबसे पहले दोषी ठहरा देना सबसे आसान होता है।
आज मैं आपसे कोई सवाल नहीं पूछता, बस एक सच्चाई की चिट्ठी खोलकर रखता हूं।
हर सरकारी निर्माण कार्य — चाहे स्कूल हो, सड़क हो या कोई शौचालय — "हिस्सेदारी" से शुरू होता है। कोई ठेकेदार, कोई अभियंता, कोई विभाग, कोई जनप्रतिनिधि — सबका हिस्सा तय होता है, और जैसे ही सबका पेट भर जाता है, काम पूरा मान लिया जाता है।
NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मिल जाती है, भले ही भवन गिरने को तैयार हो।
लेकिन जब वही भवन गिरता है,
जब दीवारें मासूमों की लाशों पर ढहती हैं,
जब छतें स्कूल नहीं, श्मशान बना देती हैं,
तो फिर एक ही नाम गूंजता है — "शिक्षक!"
क्यों?
क्या शिक्षक ने भवन का टेंडर पास किया था?
क्या उसने घटिया ईंटें लगवाईं?
क्या वह NOC देने वाला अधिकारी था?
नहीं।
फिर भी हर जांच रिपोर्ट में यही लिखा जाता है — "प्राथमिक दृष्टया शिक्षक की लापरवाही प्रतीत होती है।"
आज मैं दीवाना विक्रम समाज से कहता हूं —
जिस तरह निर्माण में हिस्सा तय होता है, उसी तरह मौत की भी हिस्सेदारी तय कीजिए।
ठेकेदार कितना दोषी?
अभियंता ने क्यों आंख मूंदी?
पंचायत ने निरीक्षण क्यों नहीं किया?
विभागों ने कब से दीवारों की जगह फाइलों में भवन गढ़ने शुरू किए?
और शिक्षक...
वह तो बस एक अभिभावक है, जो बच्चों को पढ़ाने आया था —
छत गिराने नहीं, शव ढोने नहीं।
आपसे विनम्र प्रार्थना है —
हमें बार-बार बलि का बकरा बनाना बंद कीजिए।
हमें दोष नहीं, सहयोग दीजिए।
हमें मंचों पर भाषण नहीं, भवनों की मजबूती दीजिए।
वरना वो दिन दूर नहीं जब शिक्षक टिफिन के साथ संजीवनी भी लाना शुरू कर देंगे — क्योंकि स्कूल भवन पर अब भरोसा नहीं रहा।
यह केवल एक शिक्षक की आवाज नहीं,
पूरे तंत्र की आत्मा का करुण क्रंदन है।
इसे सुनिए — इससे पहले कि दीवारें फिर किसी मासूम पर गिर जाएं।

झालावाड़ हादसे के बाद सोशल मीडिया पर वायरल पत्र....
#शिक्षक

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