27/07/2025
समाज के नाम मुझ दीवाने विक्रम का एक खुला पत्र
विषय मौत की भी हिस्सेदारी तय कीजिए
आदरणीय समाज,
मैं एक शिक्षक हूं — अंतिम पायदान पर खड़ा वह व्यक्ति जिसे हर दुर्घटना के बाद सबसे पहले दोषी ठहरा देना सबसे आसान होता है।
आज मैं आपसे कोई सवाल नहीं पूछता, बस एक सच्चाई की चिट्ठी खोलकर रखता हूं।
हर सरकारी निर्माण कार्य — चाहे स्कूल हो, सड़क हो या कोई शौचालय — "हिस्सेदारी" से शुरू होता है। कोई ठेकेदार, कोई अभियंता, कोई विभाग, कोई जनप्रतिनिधि — सबका हिस्सा तय होता है, और जैसे ही सबका पेट भर जाता है, काम पूरा मान लिया जाता है।
NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मिल जाती है, भले ही भवन गिरने को तैयार हो।
लेकिन जब वही भवन गिरता है,
जब दीवारें मासूमों की लाशों पर ढहती हैं,
जब छतें स्कूल नहीं, श्मशान बना देती हैं,
तो फिर एक ही नाम गूंजता है — "शिक्षक!"
क्यों?
क्या शिक्षक ने भवन का टेंडर पास किया था?
क्या उसने घटिया ईंटें लगवाईं?
क्या वह NOC देने वाला अधिकारी था?
नहीं।
फिर भी हर जांच रिपोर्ट में यही लिखा जाता है — "प्राथमिक दृष्टया शिक्षक की लापरवाही प्रतीत होती है।"
आज मैं दीवाना विक्रम समाज से कहता हूं —
जिस तरह निर्माण में हिस्सा तय होता है, उसी तरह मौत की भी हिस्सेदारी तय कीजिए।
ठेकेदार कितना दोषी?
अभियंता ने क्यों आंख मूंदी?
पंचायत ने निरीक्षण क्यों नहीं किया?
विभागों ने कब से दीवारों की जगह फाइलों में भवन गढ़ने शुरू किए?
और शिक्षक...
वह तो बस एक अभिभावक है, जो बच्चों को पढ़ाने आया था —
छत गिराने नहीं, शव ढोने नहीं।
आपसे विनम्र प्रार्थना है —
हमें बार-बार बलि का बकरा बनाना बंद कीजिए।
हमें दोष नहीं, सहयोग दीजिए।
हमें मंचों पर भाषण नहीं, भवनों की मजबूती दीजिए।
वरना वो दिन दूर नहीं जब शिक्षक टिफिन के साथ संजीवनी भी लाना शुरू कर देंगे — क्योंकि स्कूल भवन पर अब भरोसा नहीं रहा।
यह केवल एक शिक्षक की आवाज नहीं,
पूरे तंत्र की आत्मा का करुण क्रंदन है।
इसे सुनिए — इससे पहले कि दीवारें फिर किसी मासूम पर गिर जाएं।
झालावाड़ हादसे के बाद सोशल मीडिया पर वायरल पत्र....
#शिक्षक