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जय श्री कृष्ण
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27/06/2025
    Jai Matadi 🙏
03/04/2025

Jai Matadi 🙏

15/03/2025

कर्म योगी वह व्यक्ति है जो अपने कर्मों को बिना किसी स्वार्थ या अपेक्षा के, केवल धर्म और कर्तव्य के रूप में करता है। कर्म योगी का जीवन उद्देश्य न केवल अपनी भलाई, बल्कि समाज और संसार की भलाई के लिए काम करना होता है।

कर्म योगी के गुण:

1. निःस्वार्थ सेवा: कर्म योगी बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की चाह के, निःस्वार्थ रूप से अपने कर्तव्यों को निभाता है।

2. स्वधर्म का पालन: कर्म योगी अपने कर्तव्यों (धर्म) को निभाते हुए जीवन जीता है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो—व्यवसाय, परिवार, समाज, आदि।

3. फल की आशा से मुक्त: कर्म योगी अपने कार्यों का फल भगवान पर छोड़ देता है। वह अपने कर्मों में केवल कर्तव्य निभाता है, न कि किसी पुरस्कार की चाह रखता है।

4. सकारात्मक मानसिकता: कर्म योगी अपने कार्यों में सकारात्मक सोच रखता है, और किसी भी परिस्थिति में संतुष्ट रहता है।

श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म योग:

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।" (भगवद्गीता 2.47)

अर्थ:
"तुम्हारा कर्म में अधिकार है, उसके फल में नहीं। तुम कर्म को करो, लेकिन फल की चिंता मत करो।"

यह श्लोक कर्म योग का मुख्य सिद्धांत है, जहां व्यक्ति अपने कर्तव्यों को निस्वार्थ भाव से करता है, बिना किसी परिणाम की चिंता किए।

कर्म योगी के उदाहरण:

1. महात्मा गांधी: उन्होंने अपने जीवन में सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के आधार पर निःस्वार्थ सेवा की। उनका जीवन कर्म योग का आदर्श था।

2. संत तुकाराम: महाराष्ट्र के संत तुकाराम ने भक्ति और सेवा को अपने कर्म का हिस्सा बनाया। वे समाज की भलाई के लिए काम करते थे और इसके लिए किसी पुरस्कार की इच्छा नहीं रखते थे।

कर्म योगी वह है जो अपने कर्मों को उच्चतम उद्देश्य और निःस्वार्थ भाव से करता है, और इस प्रक्रिया में वह स्वयं को और समाज को उन्नति की दिशा में ले जाता है।

15/03/2025

श्रीमद्भगवद्गीता का पहला श्लोक, जो श्रीकृष्ण द्वारा कहा गया है:

भगवान श्रीकृष्ण का पहला उपदेश द्वितीय अध्याय में शुरू होता है। यह अर्जुन को मोह और विषाद से निकालने के लिए दिया गया पहला श्लोक है—

श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 2)

श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥

हिन्दी अर्थ:

श्रीभगवान ने कहा: हे अर्जुन! यह मोह तुझे इस कठिन समय में कैसे आ गया? यह न तो श्रेष्ठ पुरुषों को शोभा देता है, न स्वर्ग प्राप्ति का साधन है और न ही यश देने वाला है।

व्याख्या:

यह पहला श्लोक है जो स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा। जब अर्जुन युद्ध करने से पीछे हटकर शोक और मोह में डूब गए, तब श्रीकृष्ण उन्हें तर्क देकर समझाने लगे। इस श्लोक में वे अर्जुन को यह बताते हैं कि उनका यह व्यवहार कायरता का प्रतीक है, यह श्रेष्ठ पुरुषों के आचरण के विपरीत है और इससे अर्जुन को अपयश ही मिलेगा।

यह श्लोक गीता के उपदेश की शुरुआत करता है, जहां श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने कर्तव्य (धर्म) का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं।

15/03/2025

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15/03/2025

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