Jagdish. k.Mehta freelance writer, Teacher , Orchardist

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Jagdish. k.Mehta freelance writer, Teacher , Orchardist Only motto is to spread happiness,peace,optimism and bring smiles on the faces of folks .

25/07/2025

जिस सुख का अंत दुख है, वह सुख,सुख नहीं।

10/07/2025

"कर्ता करे न कर सके, गुरु किए सब होय। सात द्वीप नौ खंड में, गुरु से बड़ा ना कोय।"
गुरु महाराज के चरणों में शत शत नमन
आप सबको गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

09/07/2025
09/07/2025

एक नगर में सदना कसाई जी थे, यूँ तो उनका कुल धर्म कसाई का था? मगर वे थे बहुत उच्च कोटि के महात्मा थे l बहुत से महात्मा उनके साथ भगवत चर्चा करने उनके पास जाते थे। एक बार उन्होंने श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करने का निर्णय लिया मार्ग में थोड़ा विश्राम करने के लिए वे एक घर के बाहर बैठ गए। उस घर की स्त्री ने जब सदना जी को देखा तो वो उन पर आसक्त हो गयी

पहले उनको भोजन के लिए पूछा, उस स्त्री के भाव से अनभिज्ञ सदन जी ने उसके हाथ का भोजन गृहण कर लिया। अब उस स्त्री ने कहा कि इतनी संध्या हो गयी है, आज रात्रि आप यहीं विश्राम करिए, सदन जी ने पहले तो मना किया मगर वे तो स्त्री की सेवा भाव ही देख रहे थे तो उन्होंने रात में ठहरने के लिए हाँ कह दी। रात्रि में उस स्त्री ने अपने भाव सदना जी के सामने प्रस्तुत किये, सदन जी बोले तुम ब्याहता हो तुम्हें ऐसा चरित्र शोभा नहीं देता l

तो उस स्त्री ने समझा कि शायद ये मेरे पति की वजह से मना कर रहा है, वो स्त्री गयी और और उसने अपने पति की हत्या कर दी। वो फिर सदना जी के पास गई और कहा अब मेरे पति भी नहीं हैं, अब तुमको मुझसे प्रेम करना पड़ेगा, सदन जी के मना करने पर उस स्त्री ने कहा यदि तुमने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मैं शोर मचाकर सब से कहूँगी कि तुमने मेरे साथ दुर्व्यवहार की चेष्टा की और मेरे मना करने पर मेरे पति की हत्या कर दी। सदना जी धर्मात्मा थे वे कोई भी धर्म विरुद्ध आचरण भूल के भी नहीं करते थे, उन्होंने उस स्त्री से कहा कि मैं कोई भी पाप आचरण नहीं करूंगा, वे चाहे जो करें।

उस स्त्री ने शोर कर के आसपास वालों को इकठ्ठा किया और सभी सदना कसाई जी को राजा के दरबार मे ले गए। राजा ने जब सदन कसाई से सत्य के बारे में पूछा तब सदन कसाई जी ने कहा कि मैं चाहे जो कहूँ किंतु मेरे पास मेरी सत्यता का प्रमाण नहीं है किंतु महाराज आपसे एक विनती है मुझे प्राणदंड के अलावा कुछ भी दंड दे दीजिए, मैं जगन्नाथ जी के दर्शन करने जा रहा था और उनके दर्शन के पूर्व मैं प्राण नहीं त्यागना चाहता।

राजा भी महात्माओं को मानने वाला था, राजा ने सदना कसाई को प्राण दंड तो नहीं दिया किंतु उनके हाथ कटवाने के निर्देश दिए, सदन कसाई बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने जगन्नाथ जी को मन ही मन धन्यवाद देते हुए कहा कि प्रभु आप कितने कृपालु हो, अपने दर्शन के पूर्व आपने मेरे प्राणों की रक्षा की। सदना जी के दोनों हाथ काटकर छोड़ दिया गया, वे शारीरिक पीड़ा से तनिक भी विचलित नहीं हुए, उनकी कटी भुजाओं से रक्त बह रहा था फिर भी वे जगन्नाथ प्रभु के गुण गाते हुए उनके दर्शन हेतु पहुंच गए

और प्रभु को देखते ही जैसे ही उन्होंने अपनी कटी भुजाओं से अपने हाथ जोड़ने की मुद्रा बनाई वैसे ही उनकी नवीन हाथ प्रकट हो गए। सदना जी फफक फफक के रो पड़े। प्रभु ने सदना जी से पूछा कि तुम्हारे साथ इतना बड़ा अन्याय हुआ तुमको ज़रा भी रोष नहीं आया मेरे ऊपर। सदना जी ने कहा प्रभु आपकी दी हुई विपत्ति में भी मुझे संपत्ति दिखाई देती है तो मैं किस बात का रोष करूँ आपसे। धन्य हैं सदना कसाई जैसे भक्त

Celebrating my 9th year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉
29/11/2024

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16/10/2024

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Manoj Kumar, Renu Kaith, Sangram Kaith

16/10/2024

उनका अगला लक्ष्य, प्राइवेट जेट खरीदना होना चाहिए था।
वैसे भी, किसी की कुल सम्पत्ति अगर 18 हज़ार करोड़ रूपए की हो, तो 300 करोड़ रूपए के प्राइवेट जेट विमान खरीदने पर ऑडिटर भी एतराज नहीं करेगा । और जब पैसा अथाह हो तो फिर मुश्किल ही क्या है ?
यूँ भी, लक्ष्मी जब छप्पर फाड़कर धन बरसाती हैं, तो ऐसे फैसले किसी को खर्चीले नहीं लगते। शायद इसलिए एक खरबपति के लिए जेट विमान ख़रीदना ऐसा ही है जैसे किसी मैनजेर के लिए मारुती कार खरीदना।
लेकिन जोहो कारपोरेशन(Zoho Corporation ) के चेयरमैन, श्रीधर वेम्बू पर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी मेहरबान थीं। इसलिए उनके इरादे औरों से बिलकुल अलग थे।
प्राइवेट जेट खरीदना तो दूर, उन्होंने अपनी कम्पनी बोर्ड के निदेशकों से कहा कि वे अब कैलिफ़ोर्निया(अमेरिका) से जोहो कारपोरेशन का मुख्यालय कहीं और ले जाना चाहते हैं।
श्रीधर के इस विचार से कम्पनी के अधिकारी हतप्रभ थे.. क्यूंकि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के लिए कैलिफ़ोर्निया के बे-एरिया से मुफीद जगह दुनिया में और कोई है ही नहीं। गूगल, एप्पल , फेसबुक, ट्विटर या सिस्को, सब के सब इसी इलाके में रचे बसे, फले फूले।
पर श्रीधर तो और भी बड़ा अप्रत्याशित फैसला लेने जा रहे थे।
वे कैलिफ़ोर्निया से शिफ्ट होकर सीएटल या हूस्टन नहीं जा रहे थे।वे अमेरिका से लगभग 13000 किलोमीटर दूर चेन्नई वापस आना चाहते थे।
उन्होंने बोर्ड मीटिंग में कहा कि अगर डैल, सिस्को, एप्पल या माइक्रोसॉफ्ट अपने दफ्तर और रिसर्च सेंटर भारत में स्थापित कर सकते हैं तो जोहो कारपोरेशन को स्वदेश लौटने पर परहेज़ क्यों है ?
श्रीधर के तर्क और प्रश्नो के आगे बोर्ड में मौन छा गया। फैसला हो चुका था। आई आई टी मद्रास के इंजीनियर श्रीधर वापस मद्रास जाने का संकल्प ले चुके थे।उन्होंने कम्पनी के नए मुख्यालय को तमिल नाडु के एक गाँव(जिला टेंकसी) में स्थापित करने के लिए 4 एकड़ जमीन पहले से खरीद ली थी।और एलान के मुताबिक, अक्टूबर 2019 , यानि ठीक एक साल पहले श्रीधर ने टेंकसी जिले के मथलामपराई गाँव में जोहो कारपोरेशन का ग्लोबल हेडक्वार्टर शुरू कर दिया। यही नहीं, 2.5 बिलियन डॉलर के जोहो कारपोरेशन ने पिछले ही वर्ष सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कारोबार में 3,410 करोड़ रूपए का रिकॉर्ड राजस्व प्राप्त करके टेक जगत में बहुतों को चौंका भी दिया।
स्वदेश क्यों लौटना चाहते थे श्रीधर ?
श्रीधर, अमेरिका की किसी एजेंसी या बैंक या स्टॉक एक्सचेंज के दबाव के कारण स्वदेश नहीं लौटे। उनपर प्रतिस्पर्धा का दबाव भी नहीं था। वे कोई नया व्यवसाय भी नहीं शुरू कर रहे थे। वे किसी नकारात्मक कारण से नहीं, एक सकारात्मक विचार लेकर वतन लौटे। उन्होंने कई वर्ष पहले संकल्प लिया था कि अगर जोहो ने बिज़नेस में कामयाबी पायी तो वे प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा स्वदेश में निवेश करेंगे। कम्पनी के मुनाफे को वे गाँव के बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने पर भी खर्च करेंगे। इसी इरादे से उन्होंने सबसे पहले मथलामपराई गाँव में बच्चों के लिए निशुल्क आधुनिक स्कूल खोले।कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के जानकार श्रीधर गाँव में ही जोहो विश्वविद्यालय भी बना रहे हैं जहाँ भविष्य के सॉफ्टवेयर इंजीनियर तैयार होंगे। फोर्ब्स मैगज़ीन में दिए एक इंटरव्यू में श्रीधर बताते हैं कि टेक्नोलॉजी को अगर ग्रामीण इलाकों से जोड़ा जाए तो गाँव से पलायन रोका जासकता है । " गाँव में प्रतिभा है, काम करने की इच्छा है...अगर आधुनिक शिक्षा से हम बच्चों को जोड़े तो एक बड़ा टैलेंट पूल हमे गाँव में ही मिल जायेगा। इसीलिए मैं भी बच्चों की क्लास में जाता हूँ , उन्हें पढ़ाता भी हूँ। मेरी कोशिश गाँव को सैटेलाइट से जोड़ने की है। हम न सिर्फ दूरियां मिटा रहे हैं, न सिर्फ पिछड़ापन दूर कर रहे हैं , बल्कि शहर से बेहतर डिलीवरी गाँव से देने जा रहे है....प्रोडक्ट चाहे सॉफ्टवेयर ही क्यों न हो , " श्रीधर बताते हैं।
तस्वीरें ज़ाहिर करती हैं कि श्रीधर बेहद सहज और सादगी पसंद इंसान हैं। वे लुंगी और बुशर्ट में ही अक्सर आपको दिखेंगे। गाँव और तहसील में आने जाने के लिए वे साईकिल पर ही चल निकलते हैं।उनकी बातचीत से, हाव भाव से, ये आभास नहीं होता कि श्रीधर एक खरबपति सॉफ्टवेयर उद्योगपति हैं जिन्होंने 9 हज़ार से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है जिसमे अधिकाँश इंजीनियर है। उनकी कम्पनी के ऑपरेशन अमेरिका से लेकर जापान और सिंगापुर तक फैले हैं जहाँ 9,300 टेक कर्मियों को रोजगार मिला है। श्रीधर का कहना है कि आने वाले वर्षों में वे करीब 8 हज़ार टेक रोजगार भारत के गाँवों में उपलब्ध कराएंगे और ग्लोबल सर्विस को देश के नॉन-अर्बन इलाकों में शिफ़्ट करेंगे। शिक्षा के साथ गाँवों में वे आधुनिक अस्पताल, सीवर सिस्टम, पेयजल, सिंचाई, बाजार और स्किल सेंटर स्थापित कर रहे हैं।
एक सवाल अब आपसे
क्या कारण है कि देश में श्रीधर जैसे हीरों की परख जनता नहीं कर पाती ? क्या कारण है कि हम असली नायकों को नज़रअंदाज़ करके छद्म नायकों को पूजते हैं ? श्रीधर चाहते तो आज कैलिफ़ोर्निया में निजी जेट विमान पर उड़ रहे होते, सेवन स्टार लक्ज़री विला में रहते, अपनी कमाई को विदेश में ही निवेश करते जाते ... आखिर उन्हें स्वदेश लौटने की ज़रुरत ही क्या थी? फिर भी उनके त्याग का देश संज्ञान नहीं लेता ?
क्या कीचड़ उछाल और घृणा-द्वेष से रंगे इस देश में अब श्रीधर जैसे लोग अप्रासंगिक हो रहे है ?
या हम लोग इतने निकृष्ट और निर्लज होते जा रहे हैं कि नर में नारायण की जगह नालायक ढूंढने लगे हैं ?
श्रीधर जैसे अनेक ध्रुव तारे आज देश को आलोकित कर रहे हैं पर इन तारों की चमक, समाज को चौंधियाती नहीं है। उनके कर्म, न्यूज़ चैनल की सुर्खियां को रौशन नहीं करते हैं।
और जिन्हे सुबह शाम, रौशन किया जा रहा है वे अँधेरे के सिवा आपको कुछ दे नहीं सकते।
मेरा आग्रह आपसे है
अगर बच्चों का भविष्य बदलना है
तो कुछ देर के लिए न्यूज़ चैनल बंद कीजिये
और
अपने आस पास
अपने गाँव देस में श्रीधर ढूंढिए।

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03/09/2024

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Jogi Mehta, Indarjeet Singh

03/09/2024

#नानक लौटे; परमात्मा हो कर लौटे। फिर उन्होंने जो भी कहा है, एक-एक शब्द बहुमूल्य है। फिर उस एक-एक शब्द को हम कोई भी कीमत दें तो भी कीमत छोटी पड़ेगी। फिर एक-एक शब्द वेद-वचन हैं।

अब हम जपुजी को समझने की कोशिश करें...

* * *
इक ओंकार सतनाम
करता पुरखु निरभउ निरवैर
अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरु प्रसादि

‘वह एक है, ओंकार स्वरूप है, सतनाम है, कर्ता पुरुष है, भय से रहित है, वैर से रहित है, कालातीत-मूर्ति है, अयोनि है, स्वयंभू है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।’


एक सूफी फकीर हुआ जुन्नैद। बहुत प्रेम करता था अपने बेटे को। फिर बेटा अचानक मर गया किसी दुर्घटना में, तो दफना आया। पत्नी थोड़ी हैरान हुई। पत्नी सोचती थी कि बेटा मरेगा तो जुन्नैद पागल हो जाएगा; इतना प्रेम करता था बेटे को। लेकिन जैसे जुन्नैद को कुछ हुआ ही नहीं। जैसे बेटा मरा ही नहीं। जैसे कोई बात ही नहीं हुई, जुन्नैद वैसा ही रहा। आखिर सांझ होते-होते जब लोग विदा हो गए सहानुभूति प्रगट करके, तो पत्नी ने पूछा कि कुछ दुख नहीं हुआ तुम्हें? मैं तो सोचती थी तुम टूट जाओगे। इस बेटे से तुम्हें इतना प्रेम था।

जुन्नैद ने कहा कि एक क्षण को धक्का लगा था, फिर मुझे याद आया, जब यह बेटा नहीं था तब भी मैं था और खुश था। जब यह बेटा नहीं था तब भी मैं था और खुश था; अब यह बेटा नहीं है तो दुख होने का क्या कारण है? फिर वैसे ही हो गया, जैसे पहले था। बेटा बीच में आया और गया। न पहले दुखी था तो अब दुखी होने का क्या कारण? बिना बेटे के मजे में था। अब फिर बिना बेटे के हूं। फर्क क्या है? बीच का एक सपना टूट गया।

जो बनता है और मिट जाता है, वह सपना है। जो आता है और चला जाता है, वह सपना है । लहरें सपना हैं, सागर सच है। अनेक लहरें हैं, एक सागर है। हमें अनेक दिखाई पड़ता है। और जब तक एक न दिखाई पड़ जाए, तब तक हम भटकते रहेंगे। क्योंकि एक ही सच है।

इक ओंकार सतनाम और नानक कहते हैं कि उस एक का जो नाम है, वही ओंकार है। और सब नाम तो आदमी के दिए हैं।

राम कहो, कृष्ण कहो, अल्लाह कहो, ये नाम आदमी के दिए हैं। ये हमने बनाए हैं। सांकेतिक हैं। लेकिन एक उसका नाम है जो हमने नहीं दिया; वह ओंकार है, वह ओम है।

क्यों ओंकार उसका नाम है? क्योंकि जब सब शब्द खो जाते हैं और चित्त शून्य हो जाता है और जब लहरें पीछे छूट जाती हैं और सागर में आदमी लीन हो जाता है तब भी ओंकार की धुन सुनाई पड़ती रहती है। वह हमारी की हुई धुन नहीं है। वह अस्तित्व की धुन है। वह अस्तित्व की ही लय है।

अस्तित्व के होने का ढंग ओंकार है। वह किसी आदमी का दिया हुआ नाम नहीं है। इसलिए ओम का कोई भी अर्थ नहीं होता। ओम कोई शब्द नहीं है। ओम ध्वनि है और ध्वनि भी अनूठी है। कोई उसका स्रोत नहीं है। कोई उसे पैदा नहीं करता। अस्तित्व के होने में ही छिपी है। अस्तित्व के होने की ध्वनि है।

29/02/2024

आरोही और आर्या क्रिकेटर आकाशदीप की भतीजी हैं, जिन्हें बड़े भाई के गुजरने के बाद आकाशदीप संभाल रहे हैं। सासाराम, बिहार से बिलॉन्ग करने वाले आकाशदीप ने भारतीय टीम में डेब्यू के दौरान मां के साथ दोनों भतीजियों को भी मैदान पर बुलाया था। दरअसल आकाशदीप के पिता के गुजरने के 6 महीने के भीतर उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया था। इसके बाद 3 साल तक आकाशदीप ने क्रिकेट छोड़ दिया था। आकाशदीप घर के आसपास काम करते थे और परिवार का भरण-पोषण करते थे।

जब लगा कि क्रिकेट के बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगा, तब 3 साल बाद वापसी की और आज भारतीय टीम के लिए खेल रहे हैं। टेनिस क्रिकेट में प्रतिदिन ₹2000 कमाने से लेकर भारतीय टीम का सफर बहुत कठिन रहा है। आकाशदीप को रांची टेस्ट में डेब्यू का मौका मिला, जहां उन्होंने पहली पारी में 3 विकेट हासिल किए। दूसरी पारी में आकाशदीप की गेंदबाजी नहीं आई। जिस तरह आकाशदीप ने अपनी भतीजियों को संभाला है, वह देखकर गर्व महसूस होता है। उन्होंने दोनों बच्चियों को पिता की कमी महसूस नहीं होने दी है। इस खूबसूरत तस्वीर पर प्रतिक्रिया जरूर दीजिए।

29/11/2023

एक स्कूल ने अपने युवा छात्रों के लिए एक मज़ेदार यात्रा का आयोजन किया,
रास्ते में वे एक सुरंग से गुज़रे, जिसके नीचे से पहले बस ड्राइवर गुज़रता था..
सुरंग के किनारे पर लिखा था पांच मीटर की ऊँचाइ..

बस की ऊंचाई भी पांच मीटर थी इसलिए ड्राइवर नहीं रुका.. लेकिन इस बार बस सुरंग की छत से रगड़ कर बीच में फंस गई, इससे बच्चे भयभीत हो गए..

बस ड्राइवर कहने लगा "हर साल मैं बिना किसी समस्या के सुरंग से गुज़रता हूं, लेकिन अब क्या हुआ?

एक आदमी ने जवाब दिया :

सड़क पक्की हो गई है इसलिए सड़क का स्तर थोड़ा बढ़ा दिया गया है..

वहाँ एक भीड़ लग गयी..

एक आदमी ने बस को अपनी कार से बांधने की कोशिश की, लेकिन रस्सी हर बार रगड़ी तो टूट गई, कुछ ने बस खींचने के लिए एक मज़बूत क्रेन लाने का सुझाव दिया और कुछ ने खुदाई और तोड़ने का सुझाव दिया..

इन विभिन्न सुझावों के बीच में एक बच्चा बस से उतरा और बोला "टायरों से थोड़ी हवा निकाल देते हैं तो वह सुरंग की छत से नीचे आना शुरू कर देगी और हम सुरक्षित रूप से गुज़र जाएंगे"..

बच्चे की शानदार सलाह से हर कोई चकित था और वास्तव में बस के टायर से हवा का दबाव कम कर दिया इस तरह बस सुरंग की छत के स्तर से गुज़र गई और सभी सुरक्षित बाहर आ गए..

घमंड, अहंकार, घृणा, स्वार्थ और लालच से हम लोगो के सामने फुले होते हैं। अगर हम अपने अंदर से इन बातों की हवा निकाल देते हैं तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना आसान हो जाएगा..

समस्याएं हम में हैं हमारे दुश्मनों की ताक़त में नहीं..

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