
01/10/2024
#उम्र भी पतंग है कट ही जाती है।
घटते घटते एक दिन घट ही जाती है।।
#अम्मा छूटते जीवन का हिसाब पकड़ रही थी।
बीती उम्र की पुरानी किताब पकड़ रही थी।।
अक्षर शब्द वाक्य सब धुंधले हो गए थे।
कुछ के तो भावार्थ भी जैसे खो गए थे।।
अवस्था की डायरी का ये अंतिम पेज था।
मगर आगे पलटने से अम्मा को परहेज था।।
#मरना सबको है एक दिन ये कहे जा रही थीं।
ठहरती यात्रा की पीड़ा सहे जा रही थीं।।
ससुराल और मायके का प्रतिबिंब था नयन में।
पछतावा था उस भूल का जो हो गई थी चयन में।।
बेटे बेटियों का मोह,पोते पोतियों का बखान था।
याद था वो खूब जो पहले कच्चा मकान था।।
क्या कर पाए क्या रह गया सबका सार था।
उन दो बूढ़ी आंखों में समूचा संसार था।।
थी और जीने की लालसा मगर सामने सच्चाई थी।
याद था वो दिन जब पहली रोटी गोल बनाई थी।।
स्कूल का बस्ता गुरू जी की मार थी।
बटुए में थी जीत मगर हाथों में हार थी।।
उस थकती आवाज ने मुझमें इतनी गहराई दी।
कि मुझे मेरे #भविष्य की ललकार तक सुनाई दी।।
#उम्र भी पतंग है कट ही जाती है।
घटते घटते एक दिन #घट ही जाती है।।
#जीवन #बुढ़ापा
अंकिता तिवारी की ✍️..
#कवयित्री #अयोध्या राष्ट्रीय कवि संगम
व्यक्ति जब उम्र के आखिरी पड़ाव पर होता है तो कुछ इसी तरीके की उठापटक मन मस्तिष्क में चलती है उसी को कविता का रूप देने का प्रयास किया है। आपका मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद आमंत्रित है