
11/06/2025
कितनी ही उम्र रही होगी उन दो लड़कियों की — ज्यादा से ज्यादा तेरह या चौदह। स्कूल ड्रेस पहने हुए थीं, कंधे पर बैग टांगे। मैं स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर बैठा ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था, और वो दोनों मेरे पीछे ही बैठी थीं। सुबह-सुबह की दो सहेलियाँ थीं और मस्ती से बातचीत में लगी हुईं।
एक सहेली ने कहा,
"मत पूछ, इतनी टेंशन है कि खाने-पीने तक का टाइम नहीं मिलता। मैं तो सच में टेंशन में रहती हूँ।"
इतना सुनकर मुझे लगा कि शायद अगले साल बोर्ड की परीक्षा देने वाली है, इसलिए अभी से पढ़ाई का प्रेशर झेल रही है।
दूसरी सहेली बोली,
"मुझे कोई टेंशन नहीं है। मस्त जी रही हूँ।"
मैं सोचने लगा, दोनों लड़कियाँ कितनी अलग हैं — एक पढ़ाई की टेंशन में घुली जा रही है और दूसरी बिलकुल बिंदास। हमारे स्कूल में भी कुछ छात्र-छात्राएँ हैं, जो पढ़ाई से डरते ही नहीं, और कुछ ऐसे हैं जो परीक्षा के नाम से ही बीमार हो जाते हैं।
फिर पहली लड़की बोली,
"तेरा तो सब अलग है। तेरा तो घर के पास ही रहता है, तुझे क्या टेंशन! जब चाहे मिल लेती है, इधर-उधर घूम भी लेती है। मेरे वाला तो रहता है बहुत दूर।"
"मेरे वाला"?
अब जाकर मुझे समझ आया कि टेंशन पढ़ाई की नहीं, बल्कि बॉयफ्रेंड को लेकर है! मैं अब पूरी तरह सतर्क होकर उनकी बातचीत सुनने लगा — यह तो मज़ेदार होने वाला था।
बिंदास दोस्त बोली,
"दूरी में थोड़ी बहुत टेंशन तो रहती ही है। तू उसको कह, यहीं कहीं कोई अच्छा काम देखे। दिल्ली में रहने की क्या ज़रूरत है? लेकिन इस महीने तेरे लिए अच्छा होगा। परसों तो आ रहा है ना?"
"हाँ, परसों आ रहा है।"
"तो सुन, इस बार हम चारों मिलकर फिल्म देखने चलेंगे। मैं अपने वाले को मना लूंगी। वो वैसे मूवी देखने का शौकीन नहीं है।"
"चल, ठीक है। पहले मेरा वाला आ तो जाए। जब तक नहीं आता, तब तक मेरी टेंशन बनी रहेगी। इस बार फ्लाइट से आ रहा है। विंडो सीट मिली है तो बहुत खुश है। मैं तो मना कर दी थी कि फ्लाइट में खिड़की मत खोलना, और नीचे मत देखना। ऊपर से देखने पर हार्ट फेल हो सकता है।"
यह सुनकर बिंदास दोस्त हँसते हुए बोली,
"धीरे बोल पगली! कोई सुन लेगा तो तेरी इज़्ज़त का सत्यानाश हो जाएगा। फ्लाइट की खिड़कियाँ खुलती ही नहीं।"
"क्या! सच में नहीं खुलती? अरे, कल तो इसी बात पर हमारी बहस हो गई। वो सही कह रहा था तब! ओह! अब तो माफ़ी मांगनी पड़ेगी। लेकिन एक बात बता — जब खुलती ही नहीं, तो खिड़की रखने की ज़रूरत क्या है?"
"तू भी ना! अरे बाप रे, तू इन बातों पर भी झगड़ा करती है?"
"तू उसे जानती नहीं। उसका कोई भरोसा नहीं। एक बार ट्रेन लेट हो गई थी, तो खड़गपुर में उतर कर मालगाड़ी से घर आ गया!"
"क्या! मालगाड़ी से आया? कोई ऐसे भी करता है? क्या दिमाग है!"
"उसका नहीं, वो आइडिया मेरा था। जब उसने फोन पर कहा कि खड़गपुर में ट्रेन खड़ी है और मालगाड़ियाँ निकल रही हैं, तो मैंने ही कहा — 'मालगाड़ी पकड़ ले, जल्दी पहुँच जाएगा।'"
ये सुनकर मैंने अपने कान पकड़े — सोचने लगा कहीं कान से खून तो नहीं निकल रहा। फ्लाइट की खिड़की बंद रखने की बात तक तो ठीक थी, लेकिन कोई सच में मालगाड़ी पकड़ कर घर आता है?
कुछ देर सोचने के बाद, मुझे एक और भावना ने घेर लिया — गुस्सा! और वो भी अपनी बीवी पर!
साउथ ईस्टर्न रेलवे जैसा चल रही है, रोज़ लेट, रोज़ परेशानियाँ — लेकिन जब मैं प्लेटफॉर्म पर ट्रेनों की बजाय मालगाड़ियों को निकलते देखता हूँ, तो सोचता हूँ कि क्यों न मैं भी मालगाड़ी पकड़ लूँ?
लेकिन कभी मेरी बीवी ने मुझसे ऐसा नहीं कहा —
"तुम भी गैलोपिंग मालगाड़ी पकड़कर जल्दी घर आ जाओ!"
अब बताइए, गुस्सा न आए तो क्या आए?
रेलवे तो हमारे बारे में सोचेगा नहीं, लेकिन बीवी तो अपनी होती है, ना?
आप ही बताइए — उस लड़की की कहानी सुनकर बीवी पर गुस्सा आएगा कि नहीं? 😄😄