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चरण शरण में आइके धरु तिहारो ध्यान।।संकट से रक्षा करो , हे महावीर हनुमान।।🚩🙏जय_श्री_राम‌‌ 🚩🙏🙏🚩जय_श्री_हनुमान 🙏🚩
10/06/2025

चरण शरण में आइके धरु तिहारो ध्यान।।
संकट से रक्षा करो , हे महावीर हनुमान।।
🚩🙏जय_श्री_राम‌‌ 🚩🙏
🙏🚩जय_श्री_हनुमान 🙏🚩

09/06/2025

उस क्षण में, अर्जुन ने सिर्फ़ कृष्ण को ही नहीं देखा...उसने संपूर्ण ब्रह्मांड को देखा - सृजन, विनाश, अनंत काल - सब कुछ एक ही अद्भुत दृश्य में। एक ऐसा क्षण जिसने संदेह को शांत किया, भय को समाप्त किया, और समर्पण को जगाया। यह सिर्फ़ अर्जुन की कहानी नहीं है। यह एक अनुस्मारक है

हनुमान चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन मान्यता है कि मंगलवार और शनिवार को 7 बार पाठ करने से विशेष लाभ म...
07/06/2025

हनुमान चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन मान्यता है कि मंगलवार और शनिवार को 7 बार पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है. शास्त्रों के अनुसार, हनुमान चालीसा का पाठ रोजाना 100 बार करना चाहिए, लेकिन अगर ऐसा करना संभव न हो तो 7, 11 या 21 बार भी पाठ किया जा सकता है.

🌞 *~ वैदिक🌤️  *दिनांक - 07 जून 2025*🌤️ *दिन -  शनिवार*🌤️ *विक्रत संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*🌤️ *शक संवत -...
07/06/2025

🌞 *~ वैदिक
🌤️ *दिनांक - 07 जून 2025*
🌤️ *दिन - शनिवार*
🌤️ *विक्रत संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*
🌤️ *शक संवत -1947*
🌤️ *अयन - उत्तरायण*
🌤️ *ऋतु - ग्रीष्म ॠतु*
🌤️ *मास - ज्येष्ठ*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - द्वादशी पूर्ण रात्रि तक*
🌤️ *नक्षत्र - चित्रा सुबह 09:40 तक तत्पश्चात स्वाती*
🌤️ *योग - वरीयान सुबह 11:18 तक तत्पश्चात परिघ*
🌤️ *राहुकाल - सुबह 09:17 से सुबह 10:57 तक*
🌤️ *सूर्योदय - 05:57*
🌤️ *सूर्यास्त - 07:17*
👉 *दिशाशूल - पूर्व दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण - निर्जला एकादशी (भागवत),द्वादशी वृद्धि तिथि*

💥 *विशेष- द्वादशी को पूतिका(पोई) अथवा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।' (ब्रह्म पुराण')*
💥 *शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय।' का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है। (ब्रह्म पुराण')*
💥 *हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।(पद्म पुराण)*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *निर्जला एकादशी* 🌷
➡️ *07 जून 2025 शनिवार को निर्जला एकादशी (भागवत) है।*
🙏🏻 *निर्जला एकादशी व्रत से अधिक मास सहित २६ एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है । इस दिन किया गया स्नान, दान जप, होम आदि अक्षय होता है ।*

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *बहूपयोगी औषधि – सोंठ* 🌷
👉🏻 *जब अदरक सूख जाता है तब उसकी सोंठ बनती है | सोंठ पाचनतंत्र के लिए अत्यंत उपयोगी है | यह सारे शरीर के संगठन को सुधारती है, मनुष्य की जीवनशक्ति और रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है | यह आम, कफ व वात नाशक है | गठिया, दमा, खाँसी, कब्जियत, उल्टी, सूजन, ह्रदयरोग, पेट के रोग और वातरोगों को दूर करती है |*
💊 *औषधीय प्रयोग* 💊
➡ *वातनाशक गोलियाँ : सोंठ के चूर्ण में समभाग गुड़ और थोडा – सा घी डाल के २- २ ग्राम की गोलियाँ बना लें | १ -२ गोली सुबह लेने से वायु और वर्षाकालीन जुकाम से रक्षा होती है | बारिश में सतत भीगते – भीगते काम करनेवाले किसानों और खेती के काम में लगे मजदूरों के लिए यह अत्यंत लाभदायक है | इससे शारीरिक शक्ति व फूर्ती बनी रहती है |*
➡ *सिरदर्द : सोंठ को पानी के साथ घिसलें | इसका लेप माथे पर करने से कफजन्य सिरदर्द में राहत मिलती है |*
➡ *मन्दाग्नि : सोंठ का आधा चम्मच चूर्ण थोड़े – से गुड़ में मिलाकर कुछ दिन प्रात:काल लेने से जठराग्नि तेज हो जाती है और मन्दाग्नि दूर होती है |*
➡ *कमर दर्द व गठिया : सोंठ को मोटा कूट लें | १ चम्मच सोंठ २ कप पानी में डाल के उबालें | जब आधा कप पानी बचे तो उतार के छान लें | इसमें २ चम्मच अरंडी – तेल डाल के सुबह पियें | दर्द में राहत होने तक हफ्तें में २ -३ दिन यह प्रयोग करें |*
🌷 *पुराना जुकाम* 🌷
😤 *१) ५ ग्राम सोंठ १ लीटर पानी में उबालें | दिन में ३ बार यह गुनगुना करके पीने से पुराने जुकाम में लाभ होता है |*
😤 *२) पीने के पानी में सोंठ का टुकड़ा डालकर वह पानी पीते रहने से पुराना जुकाम ठीक होता है | ( सोंठ के टुकड़े को प्रतिदिन बदलते रहें | )*
😤 *सर्दी – जुकाम : ५ ग्राम सोंठ चूर्ण, १० ग्राम गुड़ और १ चम्मच घी को मिलालें | इसमें थोडा -सा पानी डालके आग पर रखके रबड़ी जैसा बना लें | प्रतिदिन सुबह लेने से ३ दिन में ही सर्दी – जुकाम मिट जाता है |*
💥 *सावधानी – रक्तपित्त की व्याधि में तथा पित्त प्रकृतिवाले ग्रीष्म व शरद ऋतु में सोंठ का उपयोग न करें |*

*🔱🚩🇮🇳 आर्यावर्त भरतखण्ड 🇮🇳🚩🔱*

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

तीव्र और नाटकीय प्रकाश व्यवस्था एक अलौकिक, आध्यात्मिक वातावरण की रचना करती है। भगवान शिव गहन ध्यान में लीन हैं, उनके मुख...
06/06/2025

तीव्र और नाटकीय प्रकाश व्यवस्था एक अलौकिक, आध्यात्मिक वातावरण की रचना करती है। भगवान शिव गहन ध्यान में लीन हैं, उनके मुख पर शांत संयम और भीतर की अपार शक्ति झलकती है। स्वर्ग से उतरती देवी गंगा उनकी जटाओं में समाहित हो रही हैं, जलधारा एक दिव्य लय में प्रवाहित होती हुई प्रतीत होती है।

उनके चारों ओर एक स्वर्णिम आभा फैली हुई है, जो उनकी ब्रह्म चेतना और सृष्टि के प्रति करुणा का प्रतीक है। दृश्य में गहरा कंट्रास्ट है — प्रकाश और छाया का अनुपम संतुलन, जो इस क्षण को रहस्यपूर्ण और आध्यात्मिक बना देता है।

पूरे दृश्य में एक रहस्यमय अनुभूति है, मानो समय थम गया हो और यह क्षण केवल आत्मा के अनुभव के लिए बना हो — शिव की उपस्थिति में न केवल ध्यान, बल्कि ब्रह्मांड की निःशब्द गूंज महसूस होती है।

निर्जला एकादशी, महापुण्यकारी उपायज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी, जो इस वर्ष 6 जून 2025 को पड़ रही है,  #लेख...
05/06/2025

निर्जला एकादशी, महापुण्यकारी उपाय

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी, जो इस वर्ष 6 जून 2025 को पड़ रही है,

#लेखांक को पूरा पढ़े

हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, यद्यपि वर्ष में 24 एकादशियाँ होती हैं, निर्जला एकादशी का महत्व उन सभी से बढ़कर है. इसे 'सुपर एकादशी' कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि इस एक व्रत का पालन करने से आपको वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है. यह पावन दिन सीधे भगवान विष्णु की असीम ऊर्जा से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है

व्रत और मंत्र जप का महत्व

यदि संभव हो तो निर्जला एकादशी के दिन निर्जल व्रत अवश्य रखें. यदि यह संभव न हो, तो कम से कम 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र की एक माला का जप करें. इसके अतिरिक्त, भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए उपाय को श्रद्धापूर्वक करें.

विशेष दीपक उपाय

निर्जला एकादशी के दिन गाय के घी के तीन दीपक तैयार करें और उन्हें निम्नलिखित स्थानों पर

प्रज्वलित करें

* पहला दीपक: इसे अपने घर में स्थित तुलसी के पौधे के नीचे रखें

* दूसरा दीपक: इसे अपने घर के मुख्य द्वार पर प्रज्वलित करें

* तीसरा दीपक: इसे किसी भी मंदिर के प्रांगण में स्थित पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं

यदि आप ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहाँ पीपल का पेड़ उपलब्ध नहीं है, तो केवल पहले दो दीपक ही जलाएं. इस उपाय को करने से भगवान विष्णु की साक्षात् कृपा और आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहेगा

🌹🌹🕉️🌹🌹*☘️श्री राधेश्याम*☘️**गंगा दशहरा 5 जून 2025 दिन बृहस्पतिवार**निर्जला,भीमसेनी एकादशी व्रत 6 जून 2025 दिन शुक्रवार**...
05/06/2025

🌹🌹🕉️🌹🌹
*☘️श्री राधेश्याम*☘️*

*गंगा दशहरा 5 जून 2025 दिन बृहस्पतिवार*

*निर्जला,भीमसेनी एकादशी व्रत 6 जून 2025 दिन शुक्रवार*

*एकादशी व्रत का पारण 7 जून 2025 दिन शनिवार सुबह से 12:00 बजे तक*

*प्रदोष व्रत 8 जून 2025 दिन रविवार*

*त्रयोदशी व्रत 9 जून 2025 दिन सोमवार*

*पूर्णिमा व्रत 10 जून 2025 मंगलवार व्रत की पूर्णिमा*

*पूर्णिमा ॥- जून 2025 बुधवार स्नान दान की पूर्णिमा*

*.आषाढ़ मास प्रारम्भ 12 जून 2025 से*

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05/06/2025

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🌸 जयस्तु पाण्डुपुत्राणां येषां पक्षे जनार्दनः 🌸अर्थ: सदैव विजय उन्हीं की होती है, जिनके पक्ष में स्वयं श्रीकृष्ण हों।क्य...
05/06/2025

🌸 जयस्तु पाण्डुपुत्राणां येषां पक्षे जनार्दनः 🌸

अर्थ: सदैव विजय उन्हीं की होती है, जिनके पक्ष में स्वयं श्रीकृष्ण हों।क्योंकि जहाँ-जहाँ भगवान श्रीकृष्ण हैं, वहाँ-वहाँ लक्ष्मी स्वयं उपस्थित रहती हैं। जिस रथ में अर्जुन और श्रीकृष्ण विराजमान थे, वह अग्निदेव द्वारा प्रदत्त था — संकेत था कि उस रथ का रुख जहाँ भी होगा, विजय निश्चित होगी।

तात्पर्य-क्योंकि भगवान कृष्ण उनके साथ हैं और जहां जहां भगवान विद्यमान है वही वही लक्ष्मी भी रहती है क्योंकि वे अपने पति के बिना नहीं रह सकती। अतः जैसा कि विष्णु या भगवान कृष्ण के शंख द्वारा उत्पन्न दिव्या ध्वनि से सूचित हो रहा था विजय तथा श्री दोनों ही अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थी ।इसके अतिरिक्त, जिस रथ में दोनों मित्र आसीन थे वह अर्जुन को अग्नि देवता द्वारा प्रदत था और से सूचित हो रहा था कि तीनों लोकों में जहां कहीं भी वह जाएगा वहां विजय निश्चित है

📖 भगवद गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, अपितु संपूर्ण वैदिक ज्ञान का सार है।जो इसे श्रीकृष्ण के परम भक्त की सहायता से, स्वार्थरहित भाव से समझने का प्रयास करता है — वह समस्त शास्त्रों के सार तक पहुँच जाता है।
।।श्री राम शरणम मम्।।

प्रभु जानत सब बिनहि जनाएँ ।कहहुॅ कवनि सिधि लोक रिझाए।भावार्थ:तुलसीदास जी कहते हैं की भगवान को सब कुछ पता है। दुनिया को प...
05/06/2025

प्रभु जानत सब बिनहि जनाएँ ।
कहहुॅ कवनि सिधि लोक रिझाए।

भावार्थ:

तुलसीदास जी कहते हैं की भगवान को सब कुछ पता है।
दुनिया को प्रसन्न करके कभी सिद्धि प्राप्त नहीं होती। अर्थात भगवान को प्रसन्न करने में लगे न की दुनिया को क्यूंकि दुनिया तो भगवान से भी नाराज़ रहती हैं।

जय हनुमान

जय सियाराम

जय काल भैरव, विकराल स्वरूप,भूत-प्रेत विनाशक, संकट हरो सब रूप।त्रिशूलधारी, खप्परवाले,शिव के गण, अघोरे निराले।भक्तों के तु...
05/06/2025

जय काल भैरव, विकराल स्वरूप,
भूत-प्रेत विनाशक, संकट हरो सब रूप।
त्रिशूलधारी, खप्परवाले,
शिव के गण, अघोरे निराले।
भक्तों के तुम हो रक्षक,
दुष्टों के हो संहारक।
दया करो, रक्षा करो,
हे भैरव, कृपा दृष्टि धर दो।

मृत्यु का रहस्य और शास्त्रों के अनुसार मृत्यु आने के पूर्व संकेत... #लेखांक को अवश्य पढ़ें...🔹 मानसिक और भावनात्मक बदलाव...
04/06/2025

मृत्यु का रहस्य और शास्त्रों के अनुसार मृत्यु आने के पूर्व संकेत...

#लेखांक को अवश्य पढ़ें...

🔹 मानसिक और भावनात्मक बदलाव
🔹 पशु-पक्षियों द्वारा संकेत
🔹 स्वप्न में संकेत

मृत्यु जीवन का अंत है, जब शरीर के सभी जैविक कार्य रुक जाते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हर जीवित प्राणी के साथ होती है। मृत्यु के बाद शरीर का विघटन शुरू हो जाता है और यह प्रकृति में वापस मिल जाता है। विभिन्न धर्मों और दर्शनों में मृत्यु को अलग-अलग तरीकों से समझाया गया है, जैसे कि आत्मा का परलोक में प्रवेश, पुनर्जन्म, या शाश्वत शांति। मृत्यु को लेकर मनुष्य के मन में कई प्रश्न और भय होते हैं, लेकिन यह जीवन का एक अटल सत्य है।

मृत्यु क्या है ?

1. श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार (अध्याय 2, श्लोक 20) मृत्यु क्या है

“न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।”

अर्थात, आत्मा न कभी जन्म लेती है और न मरती है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होती। यह शाश्वत है और केवल शरीर बदलती है।

2. पुराणों के अनुसार मृत्यु क्या है

सनातन धर्म में पुराणों के अनुसार, मृत्यु जीवन का एक अटूट और प्राकृतिक हिस्सा है। यह शरीर और आत्मा के बीच के संबंध का अंत माना जाता है। पुराणों में मृत्यु को एक संक्रमणकालीन अवस्था के रूप में देखा गया है, जहां आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। यह प्रक्रिया पुनर्जन्म के चक्र (संसार) का हिस्सा है।

1आत्मा की अमरता

पुराणों के अनुसार, आत्मा अजर और अमर है। मृत्यु केवल शरीर का नाश है, आत्मा का नहीं। आत्मा एक शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश करती है।

2मृत्यु की अनिवार्यता

पुराणों में मृत्यु को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा माना गया है। इसे भयभीत होने की बजाय स्वीकार करने और आत्मिक उन्नति के लिए एक अवसर के रूप में देखा जाता है।

संक्षेप में, पुराणों के अनुसार मृत्यु शरीर का अंत है, लेकिन आत्मा की यात्रा का एक नया चरण है। यह कर्म और धर्म के सिद्धांतों से जुड़ी हुई है और मोक्ष की प्राप्ति तक जारी रहती है।

3. आधुनिक विज्ञान के अनुसार मृत्यु क्या है

आधुनिक विज्ञान के अनुसार, मृत्यु शरीर के जीवन समर्थन कार्यों के पूरी तरह से बंद हो जाने की स्थिति है। इसे आमतौर पर निम्नलिखित चरणों में परिभाषित किया जाता है

1क्लिनिकल मृत्यु (Clinical Death)

यह वह स्थिति है जब हृदय की धड़कन और सांस रुक जाती है।

मस्तिष्क को रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाती है।

इस स्थिति में, यदि तुरंत चिकित्सकीय हस्तक्षेप किया जाए, तो व्यक्ति को वापस जीवित किया जा सकता है।

2. जैविक मृत्यु (Biological Death)

यह वह स्थिति है जब शरीर के सभी अंग और कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं।

मस्तिष्क की कोशिकाएं स्थायी रूप से नष्ट हो जाती हैं, और व्यक्ति को वापस जीवित नहीं किया जा सकता।

शरीर में अपघटन (Decomposition) की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

3. मस्तिष्क मृत्यु (Brain Death)

यह वह स्थिति है जब मस्तिष्क के सभी कार्य स्थायी रूप से बंद हो जाते हैं।

इसमें मस्तिष्क के स्टेम (Brain Stem) का काम करना बंद हो जाता है, जो श्वास और हृदय गति को नियंत्रित करता है।

इस स्थिति में व्यक्ति को जीवित नहीं रखा जा सकता, भले ही हृदय और फेफड़े मशीनों की मदद से काम कर रहे हों।

मृत्यु की यह परिभाषा चिकित्सा विज्ञान और तकनीकी विकास के साथ विकसित हुई है। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में, मृत्यु को एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, न कि केवल एक घटना के रूप में।

शास्त्रों के अनुसार मृत्यु आने के पूर्व संकेत
हिंदू शास्त्रों में मृत्यु से पहले कुछ संकेतों का वर्णन मिलता है, जिन्हें मृत्यु पूर्व लक्षण कहा जाता है। विभिन्न ग्रंथों जैसे गरुड़ पुराण, अग्नि पुराण, योग वशिष्ठ और अन्य धर्मशास्त्रों में इन संकेतों का उल्लेख किया गया है।

1. स्वप्न में संकेत

यदि व्यक्ति बार-बार मृत परिजनों, यमदूतों, अंधकार, उल्टी गंगा या नदी पार करने, टूटी हुई माला, सूखे वृक्ष आदि के दर्शन करे, तो यह मृत्यु का संकेत हो सकता है।

स्वप्न में सफेद या काले कबूतर, उल्लू, कौआ, या गिद्ध देखना भी अशुभ माना जाता है।

2. शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes)

व्यक्ति की परछाई नहीं दिखती या बहुत धुंधली हो जाती है।

नाक, कान, या आंखों का तेज़ी से कमजोर होना।

शरीर से अचानक दुर्गंध आने लगना।

जीभ का सूख जाना और स्वाद खत्म हो जाना।

3. मानसिक और भावनात्मक बदलाव (Mental & Emotional Changes)

व्यक्ति को अपने जीवन के प्रमुख घटनाक्रम याद आने लगते हैं।

वह अचानक से शांत और गंभीर हो जाता है।

उसे परिजनों और परिचितों से मिलकर अजीब-सा मोह या विरक्ति होने लगती है।

वह अनजाने में मृत्यु की बात करने लगता है।

4. पशु-पक्षियों द्वारा संकेत (Omens from Animals & Birds)

कुत्ते का व्यक्ति को देख कर रोना या भूंकना।

गाय का अचानक से व्यक्ति की ओर देख कर रोना।

कौआ या उल्लू घर की छत पर लगातार बोलें या घर के आस-पास घूमते रहें।

5. प्रकृति और पंचतत्वों के संकेत (Signs from Nature & Elements)

घर में अचानक बिना कारण दीपक या दिए का बुझ जाना।

किसी शुभ कार्य के दौरान वस्त्र या माला का टूट जाना।

आसमान में अचानक से अपशकुन वाले बादल या धुएं जैसी आकृति दिखना।

6. चिकित्सा विज्ञान और मृत्यु के संकेत
आयुर्वेद और योग शास्त्र में मृत्यु से पहले कुछ शारीरिक बदलाव बताए गए हैं, जैसे

नाड़ी का बहुत धीमा या अनियमित हो जाना।

त्वचा का ठंडा पड़ना और शरीर में कंपन महसूस होना।

जीभ का रंग नीला या काला पड़ना।

व्यक्ति का बेहोश रहना और आंखों में चमक खत्म हो जाना।

निवारण और उपाय

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यदि ऐसे संकेत दिखें, तो भगवान के नाम का जाप करें और गंगा जल, तुलसी दल, या पंचगव्य ग्रहण करें।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

गाय को भोजन कराएं और ब्राह्मणों को दान दें।

घर में श्रीमद्भागवत कथा या रामायण पाठ करें।

निष्कर्ष: ये सभी संकेत केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बताए गए हैं और इनका अर्थ यह नहीं कि मृत्यु निश्चित ही आ जाएगी। लेकिन यदि ऐसे लक्षण दिखें, तो आध्यात्मिक साधना और पुण्य कर्मों में मन लगाना चाहिए।

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