Namo namo one man army

Namo namo one man army Surat THE REAL HERO INDIA

*अच्छी सीख*एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!...
30/06/2025

*अच्छी सीख*

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!
हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??
यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !
भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।
वह जोर से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।
ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??
ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।
सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा
पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??
अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!
उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।
दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।
कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।
पंचलोग भी आ गये!
बोले- भाई किस बात का विवाद है ??
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!
लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे!
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।
इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!
फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जाँच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!
यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!
रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!
हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??
पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?
उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!
लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!
शायद इतने साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता व गुण आदि न देखते हुए, हमेशा , ये हमारी बिरादरी का है, ये हमारी पार्टी का है, ये हमारे एरिया का है, के आधार पर हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!
यही कहानी है हमारे सभी समाज और देश की , इस आलेख से किसी को ठेस पहुंची हो तो क्षमा प्रार्थी।

संकलन: अशोक खाखोलिया, सूरत।

30/06/2025
30/06/2025
30/06/2025
30/06/2025
29/06/2025

महाभारत काल के वो हथियार जो आज की आधुनिक मिसाइल्स से भी अत्यधिक विनाशक थे। ऐसे कौन-कौन से प्रमुख अस्त्र थे आइए जानते हैं!

महाभारत केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि वह एक ऐसा महासंग्राम था जिसमें धर्म, अधर्म, राजनीति, नीति-अनीति, और सबसे महत्वपूर्ण — दिव्य अस्त्रों की शक्ति की परीक्षा हुई थी। उस काल में युद्ध केवल तलवारों और बाणों से नहीं लड़ा जाता था, बल्कि ऐसे दिव्य अस्त्रों का प्रयोग होता था, जो मंत्रों और तप के बल पर प्राप्त किए जाते थे। ये अस्त्र अत्यंत विनाशकारी थे और इनमें ब्रह्मांड को प्रभावित करने की क्षमता थी। आइए विस्तार से जानते हैं महाभारत काल के सबसे खतरनाक और दिव्य अस्त्रों के बारे में — कौन से अस्त्र किसके पास थे, उन्हें कैसे प्राप्त किया गया, और उन्होंने किस पर इनका प्रयोग किया।

1. ब्रह्मास्त्र

ब्रह्मास्त्र सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली अस्त्रों में से एक था। यह ब्रह्मा जी का दिव्य अस्त्र था। इसे छोड़ने के बाद कोई भी अस्तित्व सुरक्षित नहीं रह सकता था — भूमि, जल, वायु, आकाश सब नष्ट हो सकते थे। इसकी मारक क्षमता इतनी थी कि यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा जाएं तो पूरी पृथ्वी का विनाश संभव है।

किसके पास था: अर्जुन, अश्वत्थामा, कर्ण

कैसे मिला: यह अस्त्र वेदों और मंत्रों के गहन अध्ययन व तप से प्राप्त किया जाता था। अर्जुन को यह अस्त्र भगवान शिव की कृपा से और उनके निर्देश पर महर्षि व्यास तथा अन्य गुरुओं से प्राप्त हुआ। अश्वत्थामा को यह अस्त्र अपने पिता द्रोणाचार्य से प्राप्त हुआ था। कर्ण ने भी परशुराम से इसे प्राप्त किया।

कब प्रयोग हुआ: युद्ध के अंतिम चरण में, जब अश्वत्थामा ने घटोत्कच की मृत्यु के बाद पांडवों को मारने के लिए इसे छोड़ दिया, परंतु अर्जुन ने भी प्रत्युत्तर में ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। तब ऋषि व्यास प्रकट हुए और उन्होंने दोनों को उसे वापस लेने को कहा, अर्जुन ने तो ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा न कर सका। उसने ब्रह्मास्त्र को उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र पर निर्देशित कर दिया। फलस्वरूप परीक्षित मरा, लेकिन बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पुनः जीवन दिया।

2. पाशुपतास्त्र

यह भगवान शिव का सबसे प्रलयंकारी अस्त्र माना जाता है। यह अस्त्र इतना शक्तिशाली था कि इसे केवल चरम स्थिति में ही प्रयोग किया जा सकता था, अन्यथा सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता था। इस अस्त्र को छोड़ने से पहले साधक को पूर्ण संयम, तप और भक्ति का पालन करना होता था।

किसके पास था: केवल अर्जुन

कैसे मिला: अर्जुन ने कठोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। तब शिव जी ने स्वयं अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए किरात रूप में आकर युद्ध किया। अर्जुन ने अपने पराक्रम और भक्ति से शिव को प्रसन्न किया और उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान किया।

कब प्रयोग हुआ: महाभारत युद्ध में अर्जुन ने इसे प्रयोग में नहीं लिया, क्योंकि इसका प्रयोग केवल आपात स्थिति में किया जा सकता था और इससे बड़े स्तर पर हानि हो सकती थी।

3. नारायणास्त्र

यह अस्त्र भगवान विष्णु से संबंधित था और इसका प्रयोग केवल एक बार किया जा सकता था। यह अस्त्र मन की भावना के अनुसार स्वयं कार्य करता था। यदि शत्रु समर्पण कर दे तो यह अस्त्र उसे क्षमा कर देता था, लेकिन यदि प्रतिरोध करे, तो वह अस्त्र उसे निश्चित रूप से भस्म कर देता था।

किसके पास था: अश्वत्थामा

कैसे मिला: अश्वत्थामा को यह अस्त्र भगवान विष्णु के ध्यान से और अपने पिता द्रोणाचार्य से मंत्रों द्वारा प्राप्त हुआ था।

कब प्रयोग हुआ: महाभारत युद्ध के पश्चात जब अश्वत्थामा ने क्रोध में पांडवों के शिविर पर आक्रमण किया, तब उसने नारायणास्त्र का प्रयोग किया। पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर अस्त्र का प्रतिरोध नहीं किया और अपने शस्त्र नीचे रख दिए, जिससे उनकी रक्षा हो गई।

4. अग्न्यास्त्र

यह अग्निदेव से संबंधित अस्त्र था। इसे छोड़ने से शत्रु पक्ष में भयंकर अग्नि प्रज्वलित हो जाती थी जो सबकुछ जला सकती थी।

किसके पास था: अर्जुन, द्रोणाचार्य, कर्ण

कैसे मिला: यह अस्त्र गुरु से दीक्षा में प्राप्त होता था। अर्जुन ने यह अस्त्र द्रोणाचार्य से सीखा था।

कब प्रयोग हुआ: अर्जुन ने कई बार युद्ध में इसका उपयोग किया, विशेष रूप से कौरव सेना के रथों और वाहनों को जलाने में।

5. वायव्यास्त्र

यह वायु देव का अस्त्र था जो तूफान और भयंकर वायु से शत्रु पक्ष को तहस-नहस कर सकता था। इससे शत्रु का संतुलन बिगड़ जाता था और वो लड़ने में असमर्थ हो जाते थे।

किसके पास था: अर्जुन

कैसे मिला: यह अस्त्र अर्जुन को गुरु द्रोणाचार्य से प्राप्त हुआ था।

कब प्रयोग हुआ: जब अर्जुन को भारी सेना से घिरा गया, तब उसने इस अस्त्र का उपयोग कर चारों ओर आंधी-तूफान मचाया और सेना को तितर-बितर कर दिया।

6. नागास्त्र

नागों के राजा वासुकी के नाम पर यह अस्त्र बनाया गया था। यह अस्त्र एक विशाल नाग रूप में जाकर शत्रु पर प्रहार करता था।

किसके पास था: कर्ण

कैसे मिला: कर्ण को यह अस्त्र अपनी तपस्या और नाग वंश के सहयोग से प्राप्त हुआ था। कुछ कथाओं में उल्लेख है कि यह उसे एक नाग से प्राप्त हुआ जिसने अर्जुन से बदला लेने की इच्छा से कर्ण की सहायता की।

कब प्रयोग हुआ: कर्ण ने कुरुक्षेत्र युद्ध में इस अस्त्र का प्रयोग अर्जुन के विरुद्ध किया। परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने इसे अपनी छाती पर झेल लिया और अर्जुन को बचा लिया।

7. त्वष्टास्त्र और इंद्रास्त्र

ये अस्त्र इंद्र और अन्य देवताओं से संबंधित थे। इन्हें अमोघ माना जाता था। त्वष्टा देव ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता देवता माने जाते हैं और उनके द्वारा दिया गया अस्त्र सर्जनात्मक और विध्वंसात्मक दोनों होता था।

किसके पास था: अर्जुन, कर्ण, भीष्म

कैसे मिला: यह अस्त्र दिव्य ध्यान और गुरु की कृपा से प्राप्त हुआ था।

कब प्रयोग हुआ: विशेष रूप से महाभारत के प्रारंभिक दिनों में जब भीषण संहार आवश्यक होता था।

8. शंख, चक्र और गदा से जुड़े दिव्यास्त्र

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं सुदर्शन चक्र और कौमोदकी गदा के धारक थे। उन्होंने युद्ध में सक्रिय रूप से हथियार नहीं उठाए थे, लेकिन जब अर्जुन संकट में पड़ा, तब उन्होंने चक्र उठाकर भीष्म पितामह पर प्रहार करने की चेतावनी दी थी।

विशेष क्षमताएं: सुदर्शन चक्र का वेग और नियंत्रण मंत्रों द्वारा होता था। यह जहाँ से गुजरता था, वहाँ शत्रु का विनाश निश्चित था।

9. ब्रह्मशिरा अस्त्र

यह ब्रह्मास्त्र का एक और रूप था जो उससे भी अधिक विनाशकारी था। इसका प्रयोग करने से चारों दिशाओं में अग्नि, वायु और जल में विकृति आ जाती थी।

किसके पास था: अर्जुन और अश्वत्थामा

कब प्रयोग हुआ: युद्ध समाप्ति के बाद, जब अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश को समाप्त करने के लिए इसका प्रयोग किया और अर्जुन ने भी इसका प्रत्युत्तर दिया। तब व्यास जी ने हस्तक्षेप करके दोनों को रोका। अर्जुन ने तो इसे वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा नहीं ले सका।

महाभारत का युद्ध केवल बाहुबल का नहीं, बल्कि दिव्य अस्त्रों, मंत्र शक्ति, और मानसिक सामर्थ्य का संग्राम था। हर एक अस्त्र के साथ जुड़ी थी उसकी साधना, उसकी मर्यादा और उसकी विनाशक शक्ति। पांडवों और कौरवों के पास समान प्रकार के अस्त्र थे, लेकिन उनका प्रयोग कैसे और किस भावना से किया गया — यही निर्णायक बना।

इन दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति केवल गुरु कृपा, तप और योगबल से ही संभव थी। आज के विज्ञान के युग में ये अस्त्र केवल कल्पना जैसे लग सकते हैं, लेकिन उस युग में ये वास्तविक अस्त्र थे, जिनका प्रयोग पूरी जिम्मेदारी और मर्यादा के साथ किया जाता था। यही महाभारत की सबसे गूढ़ और चमत्कारिक विशेषता है।

🙏🏻🚩जय श्री कृष्णा 🙏🏻🚩

Putin                   :72 YrsXi Jing Ping       :72 YrsNarendra modi :74 yrsNetanyahu         :75 YrsDonald Trump    :...
29/06/2025

Putin :72 Yrs
Xi Jing Ping :72 Yrs
Narendra modi :74 yrs
Netanyahu :75 Yrs
Donald Trump :79 Yrs
Khemanai :84 yrs

और हम सोचते है कि 60 के बाद कुछ नहीं हो सकता और इन लोगों ने दुनिया हिला रखी है
*जागो वरिष्ठ नागरिकों ,जागो ।🥳😎
🌹😏😀 🤪🤓🤝👍

*गुस्सा काबू में रख कर पढना...क्योंकि, गुस्सा तो पढ़ने के बाद जबरदस्त आने वाला है!!*    क्या आपको पता है 1967 में भारत न...
25/06/2025

*गुस्सा काबू में रख कर पढना...क्योंकि, गुस्सा तो पढ़ने के बाद जबरदस्त आने वाला है!!*
क्या आपको पता है 1967 में भारत ने चीन के 300 सैनिक मार दिए थे और मक्कार कांग्रेसी इस सफलता का श्रेय क्यों नहीं लेते.?
*तो 1967हुआ क्या था ?*
वास्तव में 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीनियों के दांत खट्टे कर दिए थे पर इसमें कांग्रेस सरकार का कोई रोल नहीं था।
हुआ ये था कि... 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान परस्त हो रहा था। अयूब खान भागा-भागा चीन गया। चीन से आग्रह किया कि वह भी एक मोर्चा खोल दे, ताकि भारत परास्त हो जाय। चीन ने पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारत को साफ़ तौर पर चेतावनी दी कि भारतीय सेना अपनी दो पोस्ट खाली कर दे। *एक चौकी था जेलेप और दूसरा था प्रसिद्ध नाथू ला।*
भीगी बिल्ली कांग्रेस ने सीधे तौर पर इस आदेश को मानना स्वीकार किया और सेना को आदेश दिया कि भारत दोनों चौकी खाली कर दे।
*यह वह समय था जब धरती के लाल "लाल बहादुर" बेमिसाल का रहस्यमय निधन ताशकंद में हो गया था।* इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बन चुकी थी। तो एक चौकी को आदेशानुसार खाली कर दिया गया और उस पर बाकायदा चीनियों ने कब्ज़ा भी कर लिया बिना वो भी एक बूँद रक्त बहाए।
*दुसरे नाथु ला पर तैनात थे जनरल संगत सिंह।* उन्हें कोर मुख्यालय प्रमुख जनरल बेवूर ने आदेश दिया नाथू ला खाली करने का,,, पर जनरल संगत सिंह ने उस आदेश को मानने से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया।
आगे की कहानी आपको अत्यंत दुखदायी है...खून के आसूं रुला देगी।
जनरल संगत सिंह अपनी टुकड़ी के साथ आदेश न होने के बावजूद डटे रहे। भयंकर झड़प हुई। भारत के करीब 65 सैनिक शहीद हो गए। हमारे जवान अपने हौसलों के साथ खुले में खड़े थे, जबकि चीन अपेक्षाकृत बेहतर हालात में हमारे जवानों को मार रहे थे। यहां सैनिक वीर गति को प्राप्त हो रहे थे, और पीएम मैडम किसी भी तरह इसे इस्तेमाल करने के मूड में नहीं थी।
फिर किसी भी बात की परवाह किये बिना जनरल संगत सिंह ने सीधे अपने सैनिकों को तोप इस्तेमाल करने को कहा,,, उसके बाद तो भारतीय सेना ने चीनियों पर ऐसा कहर बरपाया कि देखते ही देखते चीन के 300 चीनी जवान वहां इकतरफा ख़त्म कर दिए गए थे। *मामला ख़त्म होते ही जनरल संगत को सज़ा मिलनी ही थी। उन्हें वहां से तबादला कर कहीं और भेज दिया गया लेकिन नाथु ला दर्रा उसी महापुरुष के कारण सुरक्षित रहा।*
कल्पना कीजिये...
भारत की यह शौर्य गाथा जिसे पाठ्यक्रम का हिस्सा होना था, यह देश के नौनिहालों को बताना था, पर नहीं बताया गया...क्योंकि अगर यह बताया जाता तो भारत की यह शौर्यगाथा कांग्रेस की शर्म गाथा बन कर सामने आती, इसलिए इतनी बड़ी जीत को,, ,देश से लगभग छिपा लिया गया।
एक धमकी पर दो चौकी खाली कर देने का आदेश देने वाले, तोप चलाने की इजाज़त किसी कीमत पर भी नहीं देने वाले... ये वही कांग्रेस के लोग हैं जिन्होंने बाद में सामान्य गोली चलाने तक का अधिकार भी समझौता कर भारतीय सेना से वहां छीन लिया... *और उसी खांग्रेस का राजकुमार Doklam विवाद के समय टीवी पर प्रकट हो कर पूछता है कि जवानों को खाली हाथ क्यों भेजा.? !!*

25/06/2025

दारा सिंह ने लाइफ की एकमात्र कुश्ती हारी थी
पंडित ब्रह्मदेव मिश्र से

्री_परशुराम #ब्राह्मण #हिंदू #परशुरामजयंती

25/06/2025

कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।

कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)

कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?
(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)

कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।
स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?
(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)

कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।
स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।
मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)

वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)
माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

शिक्षा :-
विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।
दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....
अन्न के कण को
"और"
आनंद के क्षण को...
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Congratulations to PM Shri Narendra Modi Ji on being unanimously elected as the leader of the NDA. The last 10 years sta...
05/06/2024

Congratulations to PM Shri Narendra Modi Ji on being unanimously elected as the leader of the NDA. The last 10 years stand out as an era of large-scale development and welfare under the visionary leadership of Modi Ji. The NDA is firmly committed to serving the nation & its people with renewed strength & momentum.

*End of INDIA Alliance* 🚩

🤣😂🥰🙌🙏🏻
05/06/2024

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