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आज का पैग़ाम
06/09/2025

आज का पैग़ाम

02/09/2025

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🌹इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह अपने घर वालों और औलाद के साथ बहुत ही खुशमिजाज़ी से पेश आते थे, और फ़रमाते थे कि इससे:
* तुम्हारा रब राज़ी होता है
* माल में बरकत होती है
* और उम्र में इज़ाफ़ा होता है
हम सारी दुनिया के इंसानों के साथ खुशमिज़ाजी से पेश आते हैं और दोस्त-अहबाब पर ख़र्च करने को अपने लिए ख़ुशकिस्मती समझते हैं। लेकिन जब बात अपने बच्चों और बीवी की आती है तो इसमें सख़्ती, बदमिज़ाजी और कंजूसी से काम लेते हैं, और जब ऐसा करेंगे तो:
* अल्लाह नाराज़ होगा
* माल में बरकत नहीं होगी
* और उम्र में बीमारियों का सामना करना पड़ेगा
दुआ है अल्लाह पाक से कि हम सबको पूरी दुनिया के इंसानों के साथ-साथ अपने घर वालों और बच्चों के साथ भी खुशमिज़ाजी और उदारता का दिखावा करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।
आमीन या रब्बुल आलमीन।

01/09/2025

रसूल-ए-अकरम ﷺ की घरेलू ज़िंदगी
✍️ रसूल-ए-अकरम ﷺ की घरेलू ज़िंदगी इंसानियत के लिए एक ऐसी रौशन मिसाल है जो हर दौर के इंसान को सुकून, मोहब्बत और इंसाफ़ का सबक देती है। आप ﷺ का घराना सादगी और बड़ाई का ऐसा आइना था जिसमें अल्लाह की रहमत की झलकियाँ साफ़ नज़र आती हैं।
रसूल-ए-अकरम ﷺ की घरेलू ज़िंदगी पूरी इंसानियत के लिए एक मुकम्मल नमूना है। आप ﷺ का घर सादा, पाक और सुकून-ओ-रहमत का गहवारा था। घरेलू ज़िंदगी में आप ﷺ ने न सिर्फ़ एक शौहर की हैसियत से बल्कि एक बाप और दादा की हैसियत से भी बेहतरीन किरदार पेश किया।
✍️सादी मगर पुर-वक़ार ज़िंदगी
आप ﷺ का घर शान-ओ-शौकत से खाली मगर दिलों के सुकून से भरा हुआ था। बिस्तर कभी खजूर की छाल का होता और कभी ज़मीन पर चटाई बिछा ली जाती। कई-कई दिन चूल्हे में आग न जलती, मगर सब्र और शुक्र की हालत घरों को जन्नत जैसा सुकून अता कर देती। दुनिया की आसानियाँ मौजूद न थीं, लेकिन दिल अल्लाह के ज़िक्र और रसूल ﷺ की मोहब्बत से भरे हुए थे।
✍️अज़वाज-ए-मुतह्हरात के साथ अच्छा बर्ताव
घर में आप ﷺ की सबसे अहम सिफ़त रहमत और मोहब्बत थी। आप अपनी अज़वाज-ए-मुतह्हरात (रज़ी अल्लाहु अन्हुन्न) के साथ शफ़क़त, नरमी और इंसाफ़ से पेश आते। कोई छोटी-सी बात भी होती तो मुस्कुराकर समझा देते। आप ﷺ घर के कामों को हल्का न समझते, बल्कि अपने कपड़े ख़ुद सी लेते, जूते मरम्मत करते और बकरी का दूध निकालने में भी शरीक होते। यही वह सुन्नत है जो घरेलू ज़िंदगी को मोहब्बत और सुकून की बुनियाद अता करती है।
✍️इंसाफ़ की रौशनी
आप ﷺ के निकाह में कई अज़वाज थीं, लेकिन आपने सबके साथ इंसाफ़ को अपना तरीक़ा बनाया। वक़्त की तक़सीम हो या रिश्तों का मामला, आप ﷺ की इंसाफ़ पसंदगी ऐसी थी कि हर बीवी ख़ुद को ख़ास समझती थी। यह वह इंसाफ़ है जो आज भी दुनिया के हर शौहर के लिए एक नमूना है।
✍️औलाद से बेपनाह मोहब्बत
अपनी औलाद और नवासे-नवासियों से आप ﷺ की मोहब्बत बेमिसाल थी। हज़रत फ़ातिमा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) आतीं तो आप ﷺ अदब से खड़े हो जाते और अपनी जगह पर बिठाते। हज़रत हसन और हुसैन (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) को कंधों पर बिठा लेते और फ़रमाते: "ये दोनों मेरी दुनिया के फूल हैं।"
ऐसा प्यार भरा तरीक़ा उम्मत को यह सबक देता है कि बच्चों के साथ शफ़क़त, मोहब्बत और इज़्ज़त घरेलू ज़िंदगी को जन्नत जैसा माहौल अता करती है।
✍️मशवरा और सब्र
घर के मामलों में आप ﷺ कभी अपनी राय नहीं थोपते थे, बल्कि बीवियों से सलाह लेते थे। सुलह-ए-हुदैबिया के मौक़े पर हज़रत उम्म-ए-सलमा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) की राय मानकर आप ﷺ ने घरेलू मशवरे को इज़्ज़त बख़्शी। इसी तरह घरेलू ज़िंदगी में सब्र और बर्दाश्त को आप ﷺ ने अपनी आदत बनाया।
✍️घरेलू ज़िंदगी का पैग़ाम
आप ﷺ ने फ़रमाया: "तुममें सबसे बेहतर वह है जो अपने घर वालों के साथ बेहतर हो, और मैं अपने घर वालों के लिए सबसे बेहतर हूँ।" (तिरमिज़ी)
यह फ़रमान आप ﷺ की घरेलू ज़िंदगी का निचोड़ है, जिससे हर दौर के इंसान को यह पैग़ाम मिलता है कि मोहब्बत, इंसाफ़, सादगी और खिदमत ही वे ख़ूबियाँ हैं जो घर को जन्नत बना देती हैं।
✨ रसूल-ए-अकरम ﷺ की घरेलू ज़िंदगी का यह नमूना आज भी हर मुसलमान के लिए रौशनी है। अगर हम अपने घरों में इन शिक्षाओं को अपनाएँ तो घर अमन-ओ-सुकून, मोहब्बत-ओ-रहमत और ख़ुशियों का मरकज़ बन जाएँगे।

30/08/2025

मैं क़ब्र हूँ:

मैंने बादशाहों को भी निगला और फ़कीरों को भी, मैंने हंसते चेहरों को ख़ाक किया और मासूम बच्चों को भी मां की गोद से छीन लिया।
मैं ख़ामोश हूं, मगर चीख़ती हूं!
हर गुज़रते जनाज़े के साथ तुम्हें आवाज़ देती हूं। तैयारी कर लो, तुम्हारी बारी आने वाली है।
तुम्हारे क़ीमती कपड़े यहां फटेंगे। तुम्हारा चेहरा, जिसको हर रोज़ संवारते हो, कीड़े खा जाएंगे। तुम्हारी आवाज़ जो सबको प्रभावित करती थी, यहां हमेशा के लिए ख़ामोश हो जाएगी।
यहां तुम होगे, तुम्हारे आमाल होंगे और मैं!
जब तेरे मां-बाप तुझे छोड़ कर चले जाएंगे, और दोस्त सिर्फ़ आंखें नम करके वापस पलट जाएंगे, मैं तेरी साथी बनूंगी, लेकिन कैसी?
वह तेरे आमाल तय करेंगे।
आज भी अगर ग़फ़लत में हो, तो फिर मौत तेरे लिए अचानक होगी। तैयारी कर लो। वक़्त बहुत कम है। मैं क़ब्र हूं! और मैं तुम्हारी मुंतज़िर हूं।
ए रब-ए-करीम अज़्ज़वजल! तू हमें अपनी रज़ा वाले काम करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा। हमें मौत से पहले मौत की तैयारी करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा। आमीन या रब्बुल आलमीन व बिजाहे ख़ातमिन्नबीयीन (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)।

29/08/2025

ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! हमने आपको भुला दिया।
वक़्त की धारा ने हमारी नसों में ग़फ़लत का ज़हर उतार दिया है। दुनिया की रंगीनियों, बाज़ार की चकाचौंध और धन-दौलत की हवस ने हमारे दिलों को ऐसा ढक लिया कि वह आईना, जिसमें कभी मुस्तफ़वी शिक्षाओं की रौशनी जगमगाती थी, धूल से भर कर धुँधला गया।
ऐ नबी रहमत ﷺ! हम ज़ुबान से दावा करते हैं कि हम आपके ग़ुलाम हैं, लेकिन ज़िंदगी के काम हमारी गवाही नहीं देते। हमने आपके अख़्लाक़ की पारदर्शिता को कहानियों में क़ैद कर दिया, आपकी सुन्नत को सिर्फ़ रस्मों तक सीमित कर दिया, और आपके पैग़ाम को अपनी इच्छाओं के अधीन कर लिया।
हमने वह किताब भुला दी जिसे आपने हमारे सुपुर्द किया था। क़ुरआन को हमने ताक़ों की ज़ीनत तो बनाया, मगर दिल की ज़ीनत न बना सके। हमने वह न्याय भुला दिया जिसके लिए आपने समाज का निर्माण किया। हमने वह मोहब्बत भुला दी जिसे आपने ईमान की बुनियाद बताया। हमने वह भाईचारा भुला दिया जिसके ज़रिए आपने मदीना की गलियों को जन्नत का नमूना बनाया था।
ऐ नबी करीम ﷺ! आज हम एक ऐसी दुनिया में खड़े हैं जहाँ ताक़त को हक़ और कमज़ोरी को जुर्म समझा जाता है। मुसलमान बिखरे हुए हैं, उम्मत के दिल टुकड़े-टुकड़े हैं। हमारी ज़ुबान पर दरूद है मगर हमारे किरदार में आपकी झलक नहीं। हम महफ़िलों में आपका ज़िक्र तो करते हैं मगर बाज़ारों में आपकी शिक्षाओं को रौंद डालते हैं।
ऐ अल्लाह के हबीब ﷺ! यह सच है कि हमने आपको भुला दिया, मगर आपकी याद हमारे दिल की गहराइयों से कभी मिट नहीं सकती। यह उम्मत आज भी जानती है कि इसकी بقا आप ही के नक़्श-ए-क़दम पर है। हमारे ज़ख़्मों का मरहम आपकी सीरत ही में है, हमारी अंधेरों की रौशनी आपकी सुन्नत ही में है, और हमारी भटकी हुई राहों की मंज़िल आप ही का दामन है।
अब ज़रूरत इस बात की है कि हम तौबा के आँसुओं से अपने दिलों को धो डालें, और फिर से आपकी शिक्षाओं को ज़िंदगी की सीढ़ी बनाएँ। हमें फिर से वही ग़ुलामी अपनानी होगी जिसमें इज़्ज़त है, वही अनुसरण जिसमें रौशनी है, और वही मोहब्बत जिसमें निजात है।
ऐ नबी ﷺ! हमने आपको भुला तो दिया, मगर अब हम यह वादा करते हैं कि दोबारा आपको याद करेंगे, आपके दर पर झुकेंगे, और आपकी सुन्नत के साए में अपनी ज़िंदगी गुज़ारेंगे। क्योंकि हमारी रूह की प्यास सिर्फ़ आप ही के रहमत के झरने से बुझ सकती है।
ऐ नबी मुकर्रम ﷺ! हम अपनी ग़लतियों को मानते हैं। हम मानते हैं कि हमने आपको भुला दिया। मगर अब हम यह वादा करते हैं कि फिर से आपकी याद को अपनी ज़िंदगी में ज़िंदा करेंगे, आपकी सुन्नत को अपना स्वभाव बनाएँगे, और आपके क़ुरआन को अपनी हिदायत का चिराग़ बनाएँगे।
हमारे दिलों की प्यास का पानी सिर्फ़ आपकी सीरत है, हमारी उम्मत के ज़ख़्मों का मरहम सिर्फ़ आपकी इताअत है, और हमारी बिखरी हुई ज़िंदगी को सँभालने वाली रस्सी सिर्फ़ क़ुरआन और सुन्नत है।

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