29/08/2025
ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! हमने आपको भुला दिया।
वक़्त की धारा ने हमारी नसों में ग़फ़लत का ज़हर उतार दिया है। दुनिया की रंगीनियों, बाज़ार की चकाचौंध और धन-दौलत की हवस ने हमारे दिलों को ऐसा ढक लिया कि वह आईना, जिसमें कभी मुस्तफ़वी शिक्षाओं की रौशनी जगमगाती थी, धूल से भर कर धुँधला गया।
ऐ नबी रहमत ﷺ! हम ज़ुबान से दावा करते हैं कि हम आपके ग़ुलाम हैं, लेकिन ज़िंदगी के काम हमारी गवाही नहीं देते। हमने आपके अख़्लाक़ की पारदर्शिता को कहानियों में क़ैद कर दिया, आपकी सुन्नत को सिर्फ़ रस्मों तक सीमित कर दिया, और आपके पैग़ाम को अपनी इच्छाओं के अधीन कर लिया।
हमने वह किताब भुला दी जिसे आपने हमारे सुपुर्द किया था। क़ुरआन को हमने ताक़ों की ज़ीनत तो बनाया, मगर दिल की ज़ीनत न बना सके। हमने वह न्याय भुला दिया जिसके लिए आपने समाज का निर्माण किया। हमने वह मोहब्बत भुला दी जिसे आपने ईमान की बुनियाद बताया। हमने वह भाईचारा भुला दिया जिसके ज़रिए आपने मदीना की गलियों को जन्नत का नमूना बनाया था।
ऐ नबी करीम ﷺ! आज हम एक ऐसी दुनिया में खड़े हैं जहाँ ताक़त को हक़ और कमज़ोरी को जुर्म समझा जाता है। मुसलमान बिखरे हुए हैं, उम्मत के दिल टुकड़े-टुकड़े हैं। हमारी ज़ुबान पर दरूद है मगर हमारे किरदार में आपकी झलक नहीं। हम महफ़िलों में आपका ज़िक्र तो करते हैं मगर बाज़ारों में आपकी शिक्षाओं को रौंद डालते हैं।
ऐ अल्लाह के हबीब ﷺ! यह सच है कि हमने आपको भुला दिया, मगर आपकी याद हमारे दिल की गहराइयों से कभी मिट नहीं सकती। यह उम्मत आज भी जानती है कि इसकी بقا आप ही के नक़्श-ए-क़दम पर है। हमारे ज़ख़्मों का मरहम आपकी सीरत ही में है, हमारी अंधेरों की रौशनी आपकी सुन्नत ही में है, और हमारी भटकी हुई राहों की मंज़िल आप ही का दामन है।
अब ज़रूरत इस बात की है कि हम तौबा के आँसुओं से अपने दिलों को धो डालें, और फिर से आपकी शिक्षाओं को ज़िंदगी की सीढ़ी बनाएँ। हमें फिर से वही ग़ुलामी अपनानी होगी जिसमें इज़्ज़त है, वही अनुसरण जिसमें रौशनी है, और वही मोहब्बत जिसमें निजात है।
ऐ नबी ﷺ! हमने आपको भुला तो दिया, मगर अब हम यह वादा करते हैं कि दोबारा आपको याद करेंगे, आपके दर पर झुकेंगे, और आपकी सुन्नत के साए में अपनी ज़िंदगी गुज़ारेंगे। क्योंकि हमारी रूह की प्यास सिर्फ़ आप ही के रहमत के झरने से बुझ सकती है।
ऐ नबी मुकर्रम ﷺ! हम अपनी ग़लतियों को मानते हैं। हम मानते हैं कि हमने आपको भुला दिया। मगर अब हम यह वादा करते हैं कि फिर से आपकी याद को अपनी ज़िंदगी में ज़िंदा करेंगे, आपकी सुन्नत को अपना स्वभाव बनाएँगे, और आपके क़ुरआन को अपनी हिदायत का चिराग़ बनाएँगे।
हमारे दिलों की प्यास का पानी सिर्फ़ आपकी सीरत है, हमारी उम्मत के ज़ख़्मों का मरहम सिर्फ़ आपकी इताअत है, और हमारी बिखरी हुई ज़िंदगी को सँभालने वाली रस्सी सिर्फ़ क़ुरआन और सुन्नत है।