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आयुर्वेद में सेहत का खजाना पाया जाता है,,,जिनमें प्रियंगु का नाम भी आता है। प्रियंगु को हिन्दी में बिरमोली, धयिया भी कहत...
26/07/2025

आयुर्वेद में सेहत का खजाना पाया जाता है,,,
जिनमें प्रियंगु का नाम भी आता है। प्रियंगु को हिन्दी में बिरमोली, धयिया भी कहते हैं। प्रियंगु दाया में पौष्टिकता का गुण इतना होता है कि वह आयुर्वेद में औषधि के रूप में काम करता है। प्रियंगु का औषधिपरक गुण पेट और त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज में आयुर्वेद में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है

प्रियंगु क्या है,, ?
प्राचीन चरक, सुश्रुतादि संहिता काल से लेकर भावमिश्र के समय तक यह संदिग्ध नहीं थी। चरक के मूत्र विरेचनीय, पुरीषसंग्रहणीय, सन्धानीय, शोणित स्थापनीय गणों में तथा विभिन्न रोगों में पेस्ट, काढ़ा, आसव (Distillate), तेल, घी कल्पों में इसकी योजना की गई है। सुश्रुत के प्रिंग्वादि, अंजनादि, एलादि गणों में तथा विभिन्न रोगों में यह कई कल्पों में प्रयुक्त हुई है। वाग्भट्ट के प्रियंग्वादि गणों में धन्वन्तरी निघण्टु के चन्दनादि वर्ग में कैयदेव निघण्टु के औषधीय वर्ग में तथा भाव प्रकाश के कर्पूरादि वर्ग में इसकी गणना की गई है। वर्तमान में तीन पौधों 1. Callicarpa macrophylla Vahl 2. Aglaia roxburghiana Miq. तथा 3. Prunus mahaleb Linn. का प्रयोग प्रियंगु के रूप में किया जाता है।

अन्य भाषाओं में प्रियंगु के नाम (Names of Priyangu in Different Languages)
प्रियंगु का वानास्पतिक नाम Callicarpa macrophylla Vahl (कैलीकार्पा मैक्रोफिला) Syn-Callicarpa incana Roxb. होता है। इसका कुल Verbenaceae (वर्बीनेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Perfumed cherry (परफ्यूम्ड चेरी) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि प्रियंगु और किन-किन नामों से जाना जाता है।

Sanskrit-वनिता, प्रियंगु, श्यामा, लता, गोवन्दनी, फलिनी, कान्ता, कृष्णपुष्पी, कृशाङ्गी, कारम्भा, प्रियक, गोवर्णी, भेदिनी, फलप्रिया, गौरी, वृत्ता, गौरवल्ली, शुभा, प्रेयसी, सुमङ्गा, मङ्गल्या, अङ्गनाप्रिया, प्रियवल्ली, नारिवल्लभी, वर्णभेदनी, सुभगा;
Hindi-प्रियंगु दाया, बिरमोली, धयिया;
Odia-प्रियन्गु (Priyangu);
Uttrakand-दैआ (Daia), दया (Daya), शिवाली (Shiwali);
Kannada-प्रियंगु (Priyangu);
Gujarati-घँऊला (Ghanula), प्रियंगु (Priyangu);
Tamil-नललु (Nalalu);
Telugu-प्रियंगु (Priyangu);
Bengali-मथारा (Mathara);
Nepali-दयालो (Dyalo), श्वेतदयालो (Shwet dayalo);
Punjabi-सुमाली (Sumali), प्रियंगु (Priyangu);
Malayalam-नलल (Nalal), चिमपोपिल (Chimpopil,);
Marathi-गौहल (Gohal), गहुला (Gahula)।
English-बिग लीफ ब्यूटी बेरी (Big leaf beauty berry), ब्यूटी बेरी (Beauty berry)


प्रियंगु के औषधीय गुण (Medicinal Properties of Priyangu in Hindi)
प्रियंगु किन-किन बीमारियों के लिए औषधी के रूप में काम करता है इसके बारे में जानने के लिए सबसे पहले औषधीय गुणों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

प्रियंगु प्रकृति से तीखा, कड़वा, मधुर, शीत, लघु, रूखा, वातपित्त से आराम दिलाने वाला, चेहरे की त्वचा की रंगत को निखारने में मददगार , घाव को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।

यह उल्टी, जलन, पित्त के बढ़ने के कारण बुखार, रक्तदोष, रक्तातिसार, शरीर से बदबू आना, खुजली, मुँहासे, कोठ (Throat disorder), रक्तपित्त (Haemoptysis), विष, आभ्यांतर दाह (जलन), तृष्णा या प्यास, तथा गुल्म या ट्यूमर में लाभप्रद होता है।

इसके बीज मूत्र संबंधी रोग तथा आमाशयिक क्रियाविधिवर्धक होते हैं। इसकी जड़ आमाशयिक क्रियाविधिवर्धक होती है।

प्रियंगु के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Priyangu in Hindi)
प्रियंगु कैसे और किन-किन बीमारियों के लिए इलाज के रूप में काम आता है, इसके बारे में जानने के लिए आगे पढ़ते हैं-

दांत संबंधी रोगो के इलाज में फायदेमंद प्रियंगु (Priyangu Beneficial to Treat Dental Diseases in Hindi)

प्रियंगु का औषधिकारक गुण का फायदा पाने के लिए समान मात्रा में प्रियंगु, नागरमोथा तथा त्रिफला को पीसकर दांतों पर रगड़ने से शीताद रोग में लाभ मिलता है।

रक्तातिसार में लाभकारी प्रियंगु (Benefits of Priyangu in Blood Dysentry in Hindi)
अगर खान-पान में असंतुलन होने के कारण दस्त से खून निकल रहा है तो प्रियंगु का इस तरह से इस्तेमाल करने पर जल्दी आराम मिलता है-

-शल्लकी, प्रियंगु, तिनिश, सेमल तथा प्लक्ष छाल चूर्ण (2-3 ग्राम) को मधु के साथ सेवन कर अनुपान में दूध पीने से अथवा चूर्ण से दूध को पकाकर मधु मिला कर पीने से अथवा चावल के धोवन में मधु तथा प्रियंगु पेस्ट मिलाकर पीने से पित्तातिसार तथा रक्तातिसार में लाभ होता है।

-1-2 ग्राम प्रियंगु फल (1-2 ग्राम) के पेस्ट में मधु मिलाकर तण्डुलोदक के साथ पीने से रक्तातिसार में लाभ होता है।

पेट फूलने की समस्या से दिलाये राहत प्रियंगु (Priyangu Beneficial in Acidity in Hindi)
पेट की समस्या को शांत करने के लिए प्रियंगु चूर्ण का सेवन करने से पाचन संबंधी समस्या, आमाशय शूल में लाभ होता है।

पेट दर्द से दिलाये आराम प्रियंगु (Benefit of Priyangu to Get Relief from Stomach Ache in Hindi)
पेट दर्द से परेशान हैं और कोई भी उपचार काम नहीं आ रहा है तो 1-2 ग्राम प्रियङ्गु फूल तथा फल चूर्ण का सेवन करने से अजीर्ण या बदहजमी , अतिसार या दस्त, उदर शूल या पेट दर्द तथा प्रवाहिका या पेचिश में लाभ होता है। इसके अलावा 50 मिग्रा हींग, 1 ग्राम प्रियंगु तथा 1 ग्राम टंकण को गुड़ के साथ पीसकर 125 मिग्रा की गोली बनाकर सुबह शाम खिलाने से पेट दर्द से आराम मिलता है।

मूत्र संबंधी बीमारियों के उपचार में लाभकारी प्रियंगु (Use of Priyangu to Treat Urinary Diseases in Hindi)
मूत्र करते वक्त दर्द होना, जलन होना, रूक रूक कर पेशाब आने जैसे लक्षण मूत्र संबंधी बीमारियों में होते हैं। इनसे राहत पाने में प्रियंगु का सेवन लाभकारी होता है। प्रियंगु के पत्तों को पानी में भिगोकर, मसल-छानकर मिश्री मिलाकर पीने से मूत्र-विकारों में लाभ होता है।

सुखप्रसवार्थ में फायदेमंद प्रियंगु (Priyangu Beneficial to Ease Delivery in Hindi)
प्रियंगु जड़ के पेस्ट को नाभि के नीचे लेप करने से कठिन प्रसव में गर्भ सरलता से बाहर आ जाता है।

आमवात या गठिया से आराम दिलाने में फायदेमंद प्रियंगु (Benefit of Priyangu to Get Relief from Gout in Hindi)
प्रियंगु पत्ता, छाल, फूल तथा फल को पीसकर लेप करने से आमवात या वातरक्त के दर्द से जल्दी राहत पाने में मदद मिलती है।

विसर्प या हर्पिज के इलाज में फायदेमंद प्रियंगु (Priyangu Beneficial to Treat Herpes in Hindi)

शैवाल, नलमूल, वीरा तथा गंधप्रियंगु के 1-2 ग्राम में थोड़ा-सा घी मिला कर लेप करने से कफज विसर्प में लाभ होता है।

कुष्ठ रोग के उपचार में लाभकारी प्रियंगु (Benefit of Priyangu in Leprosy in Hindi)
प्रियंगु बीज या फूलों को पीसकर लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है। कुष्ठ के लक्षण बेहतर होने में मदद मिलती है।

रक्तपित्त में लाभकारी प्रियंगु (Priyangu Beneficial to Treat Haemoptysis in Hindi)
प्रियंगु का औषधीय गुण कान- नाक से ब्लीडिंग होने पर उसको रोकने में मदद करता है। इसके लिए प्रियंगु का इस तरह से इस्तेमाल करने पर लाभ मिलता है-

-लाल कमल एवं नील कमल का केसर, पृश्निपर्णी तथा फूलप्रियंगु से जल को पकाकर उस जल की पेया बना कर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

-खैर सार, कोविदार, सेमल तथा प्रियंगु फूल के चूर्ण (1-3 ग्राम) को मधु के साथ सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

-प्रियंगु-युक्त उशीरादि चूर्ण अथवा केवल प्रियंगु में समान मात्रा में लाल चंदन चूर्ण मिलाकर 1-2 ग्राम चूर्ण को शर्करा युक्त चावल के धोवन में घोल कर पीने से रक्तपित्त, तमक-श्वास, तृष्णा, दाह आदि का शमन होता है।

-1-2 ग्राम प्रियंगु पुष्प चूर्ण में शहद मिलाकर चाटने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

अतिसार या दस्त को रोकने में प्रियंगु का उपयोग फायदेमंद (Benefit of Priyangu in Diarrhoea in Hindi)

Dysentery

समान मात्रा में प्रियंगु, सौवीराञ्जन तथा नागरमोथा के चूर्ण (1-3 ग्राम) में मधु मिलाकर शिशु को चटाकर अनुपान में चावल का धोवन पिलाने से बच्चों में होने वाली पिपासा, उल्टी तथा अतिसार में लाभकारी होता है।

कीट के विष को कम करने में फायदेमंद प्रियंगु (Priyangu Beneficial to Treat Insect Bite in Hindi)
प्रियंगु कीट के विष के असर को कम करने में मदद करता है, उसका इस तरह से इस्तेमाल करने पर ज्यादा लाभ मिलता है-

-फूलप्रियंगु, हल्दी तथा दारुहल्दी के 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद तथा घी मिलाकर बनाए गए अगद को लेप, नस्य, पान आदि विविध-प्रकार से प्रयोग करने से लूता तथा कीट-दंशजन्य विषाक्त प्रभावों से आराम मिलता है।

-भोजन में प्रियंगु का प्रयोग विष के असर को कम करने में सहायक होता है।

प्रियंगु के उपयोगी भाग (Useful Parts of Priyangu)
आयुर्वेद के अनुसार प्रियंगु का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-

पत्ता
फल
फूल
जड़
प्रियंगु का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए (How to Use Priyangu in Hindi)
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए प्रियंगु का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 1-2 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।

प्रियंगु कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Priyangu Found or Grown in Hindi)
समस्त भारत में प्रियंगु लगभग 1800 मी की ऊँचाई पाया जाता है।।।

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औषधीय गुणों से भरपूर है ये पौधा, इन बीमारियों का माना जाता है काल, ऐसे करें सेवन,,,,मोरपंखी पौधा एक सजावटी पौधा है, जो अ...
26/07/2025

औषधीय गुणों से भरपूर है ये पौधा, इन बीमारियों का माना जाता है काल,
ऐसे करें सेवन,,,,

मोरपंखी पौधा एक सजावटी पौधा है, जो अपने खूबसूरत पत्तों के कारण बागवानी में लोकप्रिय माना जाता है. इसे धरतूणी या तामरपर्णी भी कहा जाता है.
इसे घर, गार्डन और ऑफिस की सजावट के लिए उपयोग किया जाता है. इसका नाम इसके पत्तों की बनावट के कारण पड़ा है, जो मोर के पंखों की तरह दिखती है. लेकिन इस पौधे के कई आयुर्वेदिक फायदे भी हैं. कई आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए मोरपंखी के पौधे का उपयोग किया जाता है.

मोरपंखी आयुर्वेद में अपनी औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. मोरिंगा मोरपंखी में अनेकों औषधीय लाभ पाए जाते हैं. आयुर्वेदिक डॉक्टर ने को बताया कि मोरपंखी के पत्तों का रस या पेस्ट त्वचा की जलन, घाव, और एलर्जी को ठीक करने में मदद करता है. यह एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुणों से भरपूर होता है, जो त्वचा संक्रमण को रोकने में सहायक है.

इसके पत्तों का उपयोग सूजन और दर्द को कम करने के लिए किया जाता है. आयुर्वेद में इसे गठिया या जोड़ों संबंधी समस्याओं में राहत के लिए उपयोग किया जाता है.

डॉक्टर ने बताया कि मोरपंखी के अर्क का उपयोग पाचन विकारों, जैसे अपच और पेट की सूजन को कम करने में किया जा सकता है.

इसके तेल या पत्तों के रस को बालों की जड़ों में लगाने से बालों की वृद्धि में मदद मिलती है और बाल झड़ने की समस्या कम होती है.

इसके अलावा इसका उपयोग अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता है. इसके पत्तों के रस का नियमित सेवन रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है.

इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में सहायक होते हैं.

डॉक्टर ने बताया कि बोर पिंकी का उपयोग कई तरीके से किया जाता है. इसके पत्तों को पीसकर रस के रूप में सेवन किया जाता है.

इसके अलावा इसका पेस्ट त्वचा और बालों पर लगाया जाता है. वहीं इसके पत्तों की हर्बल चाय भी बनाई जाती है...

होमियोपैथी में इससे बनी दवाई का नाम *Thuja* है l आप सभी लगभग thuja नमक दवाई से प्रिंसित होंगे l ये इसी मोरपंखी के पत्तों से बनती है..

नोट,,कोई भी आयुर्वेदिक दवाई का उपयोग करने से पहले अपने किसी डॉक्टर से सलाह जरूर ले,,।।

26/07/2025

" चंद्रमा..एक छोटा सा उपग्रह समूचे पृथ्वी की जल व्यवस्था को प्रभावित करता है...वैसे ही ब्रम्हांड स्थित करोड़ों गुना बड़े बड़े ग्रह नक्षत्र समूचे चराचर को प्रभावित करते है... इनका ज्ञान ही ज्योतिष शास्त्र...

रुद्रवंती जिसे वैज्ञानिक रूप से Cressa cretica या Astragalus कहा जाता है, एक औषधीय पौधा है जो आयुर्वेद में विभिन्न रोगों...
26/07/2025

रुद्रवंती जिसे वैज्ञानिक रूप से Cressa cretica या Astragalus कहा जाता है, एक औषधीय पौधा है जो आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के उपचार में उपयोगी है। यह मुख्य रूप से भारत के तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है और इसे कई स्थानीय नामों से जाना जाता है, जैसे रुदंती, खारदा, चावेल आदि। नीचे इसके औषधीय उपयोग और सेवन विधि की जानकारी दी गई है।।।

रुद्रवंती के औषधीय उपयोग

श्वसन संबंधी समस्याएं:....
रुद्रवंती का उपयोग खांसी, दमा (अस्थमा), और ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन समस्याओं में किया जाता है। यह बलगम को निकालने में मदद करती है और श्वास नलिकाओं को साफ करती है।
यह गले की खराश और सूजन को कम करने में भी सहायक है।

पाचन तंत्र:.....
पेट संबंधी समस्याओं जैसे अपच, कब्ज, और गैस में रुद्रवंती लाभकारी है। यह पाचन को बेहतर करती है और आंतों की सूजन को कम करती है।
यह भूख बढ़ाने में भी मददगार है।

रक्तचाप और हृदय स्वास्थ्य:
रुद्रवंती उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक है। यह कोर्टिसोल हार्मोन को संतुलित रखती है, जो तनाव और रक्तचाप को कम करने में मदद करता है।

♦️त्वचा रोग:
त्वचा के संक्रमण, घाव, और सूजन को ठीक करने में रुद्रवंती का उपयोग होता है। इसके एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण त्वचा को स्वस्थ रखते हैं।
♦️मूत्र संबंधी समस्याएं:
यह मूत्र मार्ग के संक्रमण (UTI) और पथरी के उपचार में सहायक है। यह मूत्र प्रवाह को बेहतर करती है और गुर्दे की कार्यक्षमता को बढ़ाती है।
♦️बुखार और सूजन:
रुद्रवंती में ज्वरनाशक गुण होते हैं, जो बुखार को कम करने में मदद करते हैं। यह शरीर की सूजन को भी कम करती है।
♦️प्रतिरक्षा प्रणाली:
यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है, जिससे शरीर वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम होता है।

♦️रुद्रवंती की सेवन विधि
रुद्रवंती का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जा सकता है, लेकिन इसे किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर ही लेना चाहिए। सामान्य सेवन विधियाँ निम्नलिखित हैं:

▪️चूर्ण (पाउडर):
रुद्रवंती के सूखे फलों को पीसकर चूर्ण बनाया जाता है।
सेवन विधि: 1-2 ग्राम चूर्ण को गुनगुने पानी या शहद के साथ दिन में 1-2 बार लें।
रुद्रवंती की जड़ या पत्तियों का चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में दिन में 1-2 बार गुनगुने पानी या शहद के साथ लिया जा सकता है।
यह पाचन और श्वसन समस्याओं के लिए प्रभावी है।

▪️काढ़ा (Decoction):
रुद्रवंती की जड़ या पत्तियों को पानी में उबालकर काढ़ा बनाया जाता है। 10-15 मिली काढ़ा दिन में दो बार लिया जा सकता है।
यह बुखार, खांसी, और मूत्र संबंधी समस्याओं में उपयोगी है।

▪️रस (Juice):
ताजा पत्तियों का रस निकालकर 5-10 मिली की मात्रा में शहद के साथ लिया जा सकता है। यह त्वचा रोगों और पाचन के लिए लाभकारी है।
▪️लेप (Paste):
रुद्रवंती की पत्तियों या जड़ को पीसकर लेप बनाया जाता है, जिसे त्वचा पर लगाने से घाव, सूजन, और संक्रमण में राहत मिलती है।

♦️खुराक और सावधानी:
सामान्य खुराक: 1-3 ग्राम चूर्ण या 10-20 मिली काढ़ा, दिन में 1-2 बार।
गर्भवती महिलाओं, बच्चों, और गंभीर बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को चिकित्सक की सलाह के बिना इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
अधिक मात्रा में सेवन से पेट में जलन या दस्त हो सकते हैं।

♦️सावधानियाँ
चिकित्सक की सलाह: रुद्रवंती का उपयोग शुरू करने से पहले किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श लें, क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है और यह सभी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती।
शुद्धता: हमेशा शुद्ध और प्रामाणिक रुद्रवंती का उपयोग करें, क्योंकि बाजार में मिलावटी उत्पाद हो सकते हैं।
एलर्जी: पहली बार उपयोग करने से पहले त्वचा पर थोड़ा लेप लगाकर एलर्जी की जाँच करें।

नोट: रुद्रवंती के बारे में कुछ मतभेद हैं, क्योंकि कुछ लोग इसे Astragalus candolleanus मानते हैं, जबकि अन्य इसे Cressa cretica के रूप में पहचानते हैं। इसलिए, उपयोग से पहले पौधे की सही पहचान सुनिश्चित करें।।।।।

सत्तू एक पारंपरिक भारतीय भोजन है, जो भुने हुए चने के आटे से बनता है...। यह प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है, और गर्मियो...
26/07/2025

सत्तू एक पारंपरिक भारतीय भोजन है, जो भुने हुए चने के आटे से बनता है...।

यह प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है, और गर्मियों में शरीर को ठंडा रखने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। यहाँ सत्तू की कुछ सरल रेसिपी दी गई हैं:
1. नमकीन सत्तू (Salty Sattu Drink):
सामग्री:
सत्तू - 4 बड़े चम्मच
पानी - 2 गिलास
प्याज, बारीक कटा हुआ - 1/2
हरी मिर्च, बारीक कटी हुई - 1
अदरक, कद्दूकस किया हुआ - 1/2 इंच
धनिया पत्ती, बारीक कटी हुई - 2 बड़े चम्मच
नींबू का रस - 2 बड़े चम्मच
काला नमक - स्वादानुसार
भुना जीरा पाउडर - 1/2 छोटा चम्मच
नमक - स्वादानुसार

विधि:
एक बड़े कटोरे में, सत्तू और पानी को अच्छी तरह मिलाएं ताकि कोई गांठ न रहे।
प्याज, हरी मिर्च, अदरक, धनिया पत्ती, काला नमक, भुना जीरा पाउडर और नमक डालें।
नींबू का रस मिलाएं और अच्छी तरह मिलाएं।
ठंडा परोसें।

2. मीठा सत्तू (Sweet Sattu Drink):
सामग्री:
सत्तू - 4 बड़े चम्मच
पानी या दूध - 2 गिलास
गुड़ या चीनी - स्वादानुसार
इलायची पाउडर - 1/4 छोटा चम्मच
* बादाम और काजू, बारीक कटे हुए (वैकल्पिक)
विधि:
* एक बड़े कटोरे में, सत्तू और पानी या दूध को अच्छी तरह मिलाएं ताकि कोई गांठ न रहे।
* गुड़ या चीनी और इलायची पाउडर डालें।
* अच्छी तरह मिलाएं जब तक कि गुड़ या चीनी पूरी तरह से घुल न जाए।
* बादाम और काजू से सजाकर ठंडा परोसें।
3. सत्तू की लिट्टी (Sattu Litti):
सामग्री:
* सत्तू भरावन के लिए:
* सत्तू - 1 कप
* प्याज, बारीक कटा हुआ - 1/2 कप
* हरी मिर्च, बारीक कटी हुई - 1-2
* अदरक, कद्दूकस किया हुआ - 1 इंच
* धनिया पत्ती, बारीक कटी हुई - 2 बड़े चम्मच
* अजवाइन - 1/2 छोटा चम्मच
* काला नमक - स्वादानुसार
* नींबू का रस - 1 बड़ा चम्मच
* सरसों का तेल - 1 बड़ा चम्मच
* आटा के लिए:
* गेहूं का आटा - 2 कप
* नमक - स्वादानुसार
* पानी - आवश्यकतानुसार
* घी या तेल - सेकने के लिए
विधि:
* सत्तू भरावन तैयार करें: एक कटोरे में, सत्तू, प्याज, हरी मिर्च, अदरक, धनिया पत्ती, अजवाइन, काला नमक, नींबू का रस और सरसों का तेल मिलाएं। अच्छी तरह मिलाएं और अलग रख दें।
* आटा तैयार करें: एक कटोरे में, गेहूं का आटा और नमक मिलाएं। धीरे-धीरे पानी डालते हुए नरम आटा गूंथ लें।
* लिट्टी बनाएं: आटे की छोटी-छोटी लोइयां बनाएं। प्रत्येक लोई को चपटा करें और बीच में सत्तू का भरावन रखें। किनारों को सील करें और गोल या अंडाकार आकार दें।
* लिट्टी सेकें: तवा गरम करें और लिट्टी को मध्यम आंच पर सुनहरा भूरा होने तक सेकें। आप उन्हें ओवन में या उपले में भी सेक सकते हैं।
* घी या तेल लगाकर गरमागरम परोसें।
ये कुछ सामान्य सत्तू रेसिपी हैं। आप अपनी पसंद के अनुसार मसाले और सामग्री डालकर इन्हें बदल सकते हैं।

कचनार की छल (बौहिनिया की छाल) एक आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है।विशेषकर: थायरॉइड समस्याए...
26/07/2025

कचनार की छल (बौहिनिया की छाल) एक आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है।

विशेषकर: थायरॉइड समस्याएँ
(विशेषकर हाइपरथायरॉइडिज्म)

ट्यूमर या गांठें

स्किन रोग

रक्त शुद्धि

अगर आप इसे काढ़े के रूप में उपयोग करना चाहते हैं, तो नीचे उसका सही तरीका बताया गया है:

कच्‍चनार की छाल का काढ़ा कैसे बनाएं,,,,..??

सामग्री:

कच्‍चनार की सूखी छाल – 5 से 10 ग्राम (लगभग 1 से 1.5 चम्मच)

पानी – 400 मिली (लगभग 2 गिलास)

वैकल्पिक: 1–2 तुलसी पत्ते, सौंठ (अगर कफ की समस्या हो तो)

बनाने की विधि:

1. छाल को साफ पानी से धो लें अगर खुले में रखा हो।

2. उसे 400 मिली पानी में डालें।

3. मंद आंच पर पकाएं, जब तक पानी लगभग 1/4 रह जाए (यानि 100 मिली)।

4. छान लें और थोड़ा गुनगुना करके पिएं।

सेवन का समय:

दिन में दो बार, सुबह खाली पेट और शाम को खाना खाने से 1 घंटा पहले।

कोर्स: लगातार 21 दिन तक लें, फिर 7 दिन का विराम लेकर फिर दोहराएं (आवश्यकता अनुसार)।

सावधानियाँ:

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं बिना वैद्य की सलाह के न लें।

अगर थायरॉइड की दवाएं चल रही हैं, तो साथ में लेने से पहले डॉक्टर या आयुर्वेदाचार्य से परामर्श लें।

बहुत ज्यादा मात्रा में न लें — यह शरीर को ठंडक देती है।

गोखरू,,,,,,।।। गोखरू एक ऐसी जड़ी बूटी है जो सदियों से मानव के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद ही साबित हुआ है। ये उन जड़ी बूटि...
26/07/2025

गोखरू,,,,,,।।।

गोखरू एक ऐसी जड़ी बूटी है जो सदियों से मानव के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद ही साबित हुआ है। ये उन जड़ी बूटियों में से एक है जो वात पित्त और कफ तीनों को नियंत्रित करने में सहायता करती है। गोखरू का फल, पत्ता और तना आयुर्वेद में औषधि के रूप में प्रयोग किये जाता है। ये सिर्फ बीमारियों के लिए नहीं बल्कि यौन समस्याओं को ठीक करने में बहुत फायदेमंद साबित होता है।

वर्षा ऋतु में गोखरू अधिकता से फलते-फूलते हैं। इसके पौधे जमीन पर छत्ते की तरह फैले रहते हैं। चरक-संहिता में इसका मूत्र संबंधी रोग तथा वात रोग में उपचार स्वरुप उपयोग करने का उल्लेख मिलता है। यहां तक कि सूजन कम करने में भी गोखरू का प्रयोग किया जाता है। गोक्षुर के जड़ को दशमूल में और फल को वृष्य के रुप में प्रयोग करते है। इसके पत्ते चने के जैसे होते हैं। इसलिए संस्कृत में इसे चणद्रुम कहते हैं।

गोखरू वर्षा ऋतु में जमीन पर फैलकर बढ़ने वाला, शाखा- प्रशाखायुक्त पौधा होता है। इसके तने 1.5 मी लम्बे, और जमीन पर फैले हुए होते हैं। शाखाओं के नये भाग मुलायम होते हैं; पत्ते चने के पत्तों के समान, परन्तु आकार में कुछ बड़े होते हैं। इसके फूल पीले, छोटे, चक्राकार, कांटों से युक्त, चमकीले लगभग 0.7-2 सेमी व्यास या डाइमीटर के होते हैं।

इसके फल छोटे, गोल, चपटे, पांच कोण वाले, 2-6 कंटक युक्त व अनेक बीजी होते हैं। इसकी जड़ मुलायम रेशेदार, 10-15 सेमी लम्बी, हल्के भूरे रंग के एवं थोड़े सुगन्धित होते हैं। गोखुरू अगस्त से दिसम्बर महीने में फलते-फूलते हैं।

गोखुर के गुण अनगिनत है। जिसके कारण ही यह सेहत और रोगों दोनों के लिए औषधि के रुप में काम करता है। गोक्षुर या गोखरू वातपित्त, सूजन, दर्द को कम करने में सहायता करने के साथ-साथ, रक्त-पित्त(नाक-कान से खून बहना) से राहत दिलाने वाला, कफ दूर करने वाला, मूत्राशय संबंधी रोगों में लाभकारी, शक्तिवर्द्धक और स्वादिष्ट होता है।

गोक्षुर का बीज ठंडे तासीर का होता है। इसके सेवन से मूत्र अगर कम हो रहा है वह समस्या दूर हो जाती है। गोखुर का क्षार या रस मधुर, ठंडा तथा वात रोग में फायदेमंद होता है।

गोखरू के सामान्य फायदों के बारे में तो सुना है लेकिन ये किस तरह और कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद है और गोखरू का उपयोग कैसे करना चाहिए चलिये इसके बारे में जानते हैं।

आजकल के तनाव भरे जिंदगी में सिर दर्द की बीमारी का शिकार ज्यादा से ज्यादा लोग होने लगे हैं। 10-20 मिली गोखरू काढ़ा को सुबह-शाम पिलाने से पित्त के बढ़ जाने के कारण जो सिर दर्द होता है उससे आराम मिलता है। इस तरह गोखरू का उपयोग करने से लाभ होगा।

आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण के कारण बहुत लोग दमे का शिकार होने लगे हैं। गोखरू का सेवन इस तरह से करने पर दमे से जल्दी आराम मिलता है। 2 ग्राम गोखुर के फल चूर्ण को 2-3 नग सूखे अंजीर के साथ दिन में तीन बार कुछ दिनों तक लगातार सेवन करने से दमा में लाभ होता है। गोक्षुर तथा अश्वगंधा को समान मात्रा में लेकर उसके सूक्ष्म चूर्ण में 2 चम्मच मधु मिलाकर दिन में दो बार 250 मिली दूध के साथ सेवन करने से सांस संबंधी समस्या एवं कमजोरी में लाभ मिलता है।

गोखरू का काढ़ा पिलाने से जिसकी हजम शक्ति कमजोर है उसको खाना हजम करने में आसानी होती है। गोखरू के 30-40 मिली काढ़ा में 5 ग्राम पीपल के चूर्ण का मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पीने से पाचन-शक्ति बढ़ती है। यह गोखरू का उपयोग बहुत ही फायदेमंद है।

अगर मसालेदार खाना खाने के बाद दस्त हो रहा है तो गोखरू बहुत काम आता है। 500 मिग्रा गोक्षुरफल चूर्ण (गोखरू चूर्ण पतंजलि) को मट्ठे के साथ दिन में दो बार खिलाने से अतिसार और आमातिसार में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ्र की बीमारी में मूत्र संबंधी बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते समय दर्द और जलन, रुक-रुक पेशाब आना, कम पेशाब आना आदि। ऐसे समस्याओं में गोखरू बहुत काम आता है। 20-30 मिली गोखरू पञ्चाङ्ग काढ़ा में 125 मिग्रा यवक्षार या मधु (एक चम्मच) डालकर दिन में दो-तीन बार पिलाने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

गोखरू की जड़ (10-15 ग्राम) और समान मात्रा में चावलों को एक साथ अच्छी तरह मिलाकर पानी में उबालकर पिलाने से मूत्रवृद्धि होती है।

2 ग्राम पतंजलि गोखरू चूर्ण में 2-3 नग काली मिर्च और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

आजकल के जीवनशैली और प्रदूषित आहार के कारण पथरी की समस्या से लोग परेशान रहते हैं। गोखरू के सेवन से पथरी को प्राकृतिक तरीके से निकालने में मदद मिलती है। 5 ग्राम पतंजलि गोखरू चूर्ण को 1 चम्मच मधु के साथ दिन में तीन बार खाने के बाद ऊपर से बकरी का दूध पिलाने से अश्मरी टूट-टूट कर निकल जाती है।

अगर किसी कारण गर्भाशय में दर्द हो रहा है तो गोखरू का सेवन बहुत गुणकारी होता है। 5 ग्राम गोखरू फल, 5 ग्राम काली किशमिश और दो ग्राम मुलेठी इनको पीसकर सुबह शाम सेवन करने से गर्भाशय के दर्द से राहत मिलती है।

उम्र के बढ़ने के साथ जोड़ो में दर्द से सब परेशान रहते हैं। गोखरू फल में समान भाग सोंठ चतुर्थांश का काढ़ा बनाकर सुबह एवं रात में सेवन करने से कमर दर्द, जोड़ो के दर्द से आराम मिलती है।

आज के प्रदूषण भरे वातावरण में त्वचा रोग होना लाज़मी हो गया है। गोखुर फल को पानी में पीसकर त्वचा में लेप करने से खुजली, दाद आदि त्वचा संबंधी रोगों में लाभ होता है।

अगर स्पर्म काउन्ट कम होने के कारण आपके पिता बनने में समस्या उत्पन्न हो रही है तो गोखरू का सेवन इस तरह से करें। गोखरू के 20 ग्राम फलों को 250 मिली दूध में उबालकर सुबह शाम पिलाने से स्पर्म या वीर्य संबंधी समस्याएं कम होती है। इसके अलावा 10 ग्राम गोखरू एवं 10 ग्राम शतावर को 250 मिली दूध के साथ उबालकर पिलाने से स्पर्म का काउन्ट और क्वालिटी बढ़ती है तथा शरीर को शक्ति मिलती है।

अगर मौसम के बदलने के साथ-साथ बार-बार बुखार आता है तो गोखरू का सेवन बहुत फायदेमंद हैं। 15 ग्राम गोखरू पञ्चाङ्ग को 250 मिली जल में उबालकर, काढ़ा बना लें। काढ़ा को चार बार पिलाने से ज्वर के लक्षणों से राहत मिलती है। इसके अलावा 2 ग्राम पतंजलि गोखरू पञ्चाङ्ग चूर्ण के नियमित सेवन करने से बुखार कम होता है।

अगर रक्तपित्त के समस्या से पीड़ित हैं तो गोखरू का ऐसे सेवन करने से लाभ मिलता है। 10 ग्राम गोखुर को 250 मिली दूध में उबालकर पिलाने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

गोखरू का औषधि के रूप में पत्ता, फल, तना और पञ्चाङ्ग का प्रयोग किया जाता है।

बीमारी के लिए गोखरू के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए गोखरू का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

चिकित्सक के परामर्शानुसार ही ले।
पतंजलि गोखरू चूर्ण -3-6 ग्राम और गोखरू काढ़े -20-40 मिली का सेवन कर सकते हैं।

यह वनस्पति भारतवर्ष के सभी प्रदेशों, विशेषत गर्म प्रदेशों में बहुत से पाई जाती है।

तिल,,,,,बरसात के मौसम में बिहार में तिल की व्यापक पैमाने पर खेती की जाती हालांकि उत्तर बिहार में काले तिल की खेती होती ह...
26/07/2025

तिल,,,,,
बरसात के मौसम में बिहार में तिल की व्यापक पैमाने पर खेती की जाती हालांकि उत्तर बिहार में काले तिल की खेती होती है जबकि मध्य बिहार में उजले तिल की। तिल की फसल काफी उपयोगी होती है किसान के लिए तिल काफी फायदेमंद फसल भी है तिल का इस्तेमाल कई प्रकार के व्यंजनों को बनाने साथ ही साथ तेल के लिए किया जाता है बिहार में तिल की लाई काफी फेमस है खासकर मगध के इलाके में यहां उजले तिल से तिलकुट बनाया जाता है जो विश्व प्रसिद्ध है इस मिठाई का जोर पूरी दुनिया में नहीं। मगध इलाके के गया नवादा बिहार शरीफ पटना जहानाबाद अरवल तथा औरंगाबाद के सुन के पूर्वी इलाके में व्यापक पैमाने पर उजले तिल की खेती होती है।
जबकि दूसरी तरफ उत्तर बिहार में भी तिल की खेती होती है पर यहां काले तिल की खेती होती है काला तिल तेल के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है जून जुलाई के महीने में जिन क्षेत्रों में जल जमाव नहीं होता वहां मक्का बाजार अरहर के साथ खेतों में तिल की भी सामूहिक खेती होती है।

तिल की खेती की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें सिंचाई की जरूरत नहीं होती है आप असिंचित क्षेत्रों में भी तिल की खेती कर सकते हैं यह 90 दिनों में तैयार हो जाता है तथा इसकी खेती में अतिरिक्त किसी भी प्रकार का खर्च नहीं होता।
तिल की खेती गरमा और खरीफ दोनों सीजन में होती है. गरमा तिल की खेती 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच होती है. गरमा तिल की पैदावार ज्यादा होती है. अब तक के अनुभव के तौर पर कहा जा सकता है कि इस जिले में एक एकड़ में गरमा तिल 3 क्विंटल तक हो जाता है. 120-150 रुपये प्रति किलो की दर से तिल बिकता है. सिर्फ 3 क्विंटल तिल से किसान 40 हजार की आमदनी कर सकता है. खेती में हुए तमाम खर्च के बाद भी 20-25 हजार रुपये प्रति एकड़ तक बचत हो जाती है. गरमा फसल में तिल की खेती में कोई कीट व अन्य बीमारी संभावना न के बराबर होती है. सिर्फ दो सिंचाई में गरमा तिल की फसल हो जाती है. बिहार में तिल की सबसे ज्यादा डिमांड तिलकुट के लिए ही होती है और उजले तिल के लिए बिहार को मध्य प्रदेश तथा राजस्थान पर निर्भर रहना पड़ता है तिल की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए बिहार में कृषि विभाग कई स्तरों पर काम कर रहा है।
तिल का तेल खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता आपको सेहतमंद भी रखता है. दिल की सेहत से लेकर डायबिटीज को कंट्रोल करने में तिल का तेल काफी फायदेमंद होता है. अगर आप हर दिन तिल के तेल को कुकिंग ऑयल की तरह इस्तेमाल करते हैं तो इसमें मौजूद पोषक तत्व हार्ट को मजबूत बनाने के साथ ही इन्फ्लेमेशन से भी आपको बचाते हैं. यह सूरज की किरणों से स्किन को भी डैमेज नहीं होने देता है. वेबएमडी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तिल के तेल में एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिंस पाए जाते हैं, जिससे हेल्थ को कई सारे फायदे होते हैं।

सफेद_बाल_काले करने में भृंगराज का चमत्कार  - बाल काले करे और बालों का झड़ना रोके भृंगराज_का_तेल बालों के लिये बहुत उपयोग...
26/07/2025

सफेद_बाल_काले करने में भृंगराज का चमत्कार - बाल काले करे और बालों का झड़ना रोके भृंगराज_का_तेल बालों के लिये बहुत उपयोगी माना जाता है बालों को घने, काले और सुंदर बनाने के लिए भृंगराज का उपयोग कई तरह से किया जाता है भृंगराज के पत्तों का रस निकालकर बराबर का नारियल तेल लें और धीमी आंच पर रखें जब केवल तेल रह जाए तो बन जाता है "भृंगराज_केश_तेल"-अगर धीमी आंच पर रखने से पहले आंवले का रस मिला लिया जाए तो और भी अच्छा तेल बनेगा-बालों में रूसी हो या फिर बाल झड़ते हों तो इसके पत्तों का रस 15-20 ग्राम लें।

सफेद_बाल_काले करने में भृंगराज का चमत्कार - आयुर्वेद, ऋषि मुनि और सभी पुराने वैद्य इस विषय पर सहमत है कि भृंगराज एक ऐसी बूटी है, जिसके निरन्तर सेवन से समय के पहिले बालों का सफेद होना रुक जाता है। आयुर्वेद के सभी वैद्यक ग्रन्थों में भृंगराज के हजारों नुस्खे मिलते है। हम आज आपको वह नुस्खा बता रहे हैं, जो हमें सब से अधिक प्रभावशाली प्रतीत हुआ है।

नुस्खा - आवश्यकता अनुसार सूखे आंवले लेकर किसी चीनी मिट्टी के बर्तन में डालें और ऊपर से भृंगराज का रस इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जावें कुछ दिन बाद जब रस सूख जाए तब फिर से डालें। इसी प्रकार सात भावना दें और फिर सूखने पर बारीक पीसकर शीशी में सुरक्षित रखें।

मात्रा - 3 ग्राम प्रतिदिन ताजा नल के साथ सेवन करे । इसके सेवन सफेद बाल शीघ्र ही काले हो जाते हैं।

बालों के लिए फायदेमंद बालों के झड़ने को रोकता है और नए बाल उगाने में मदद करता है। समय से पहले सफेद होने से बचाव करता है।
डैंड्रफ और स्कैल्प इंफेक्शन को दूर करता है। बालों को मज़बूत बनाता है। यह बालों का झड़ना रोकता है। यह बालों को काला करने में मदद करता है। यह बालों को घना बनाता है। यह बालों की चमक बढ़ाता है। यह बालों की ग्रोथ बढ़ाता है। यह बालों के विकास को बढ़ाता है।
वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी,,,,,।।।

चाहे कैंसर हो या गठिया, चाहे लिवर फेल हो या किडनी सबका एक मात्र चमत्कारी उपाय,,,, ˨!जीवन में आप अगर निरोग रहना चाहते हो ...
26/07/2025

चाहे कैंसर हो या गठिया, चाहे लिवर फेल हो या किडनी सबका एक मात्र चमत्कारी उपाय,,,, ˨!

जीवन में आप अगर निरोग रहना चाहते हो तो इस पोस्ट को ध्यान प्पूर्वक पढ़िए,,,,

आजकल की व्यस्त जीवन शेली में मनुष्य पे समय का अभाव है ,अनियमित खान -पान के चलते रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता दिनों-दिन घट रही है। मगर हम यदि जरा भी अपने अनमोल शरीर के लिए ध्यान दे और नियमित जीवन चर्या से सिर्फ पन्द्रह मिनट का समय निकाल कर इस प्रयोग को कर ले तो आपको कई बीमारियों से निजात मिल जायेगी और जो स्वस्थ लोग है उनको भी डॉक्टर का मुंह नहीं देखना पड़ेगा ,क्युकि जीवन का सुख निरोगी काया में है ।।

सुखी व्यक्ति जिसका पुत्र आज्ञाकारी है जिसकी पत्नी सदाचरानी है।

जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर ज्वारों का रस दिया जाता है।

जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है।

ज्वारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोग व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा?

तो अगर आप अपने जीवन को निरोग बनाना चाहते है तो हमारी पोस्ट को ध्यान पूर्वक पढ़े और शरीर आपका है तो आज से ही नीचे लिखे प्रयोग को काम में लाये।

कैंसर में गेहूँ के ज्वारे का उपयोग

गेहूँ के दाने बोने पर जो एक ही पत्ता उगकर ऊपर आता है उसे ज्वारा कहा जाता है। नवरात्रि आदि उत्सवों में यह घर-घर में छोटे-छोटे मिट्टी के पात्रों में मिट्टी डालकर बोया जाता है। ये गेहूँ के ज्वारे का रस, प्रकृति के गर्भ में छिपी औषधियों के अक्षय भंडार में से मानव को प्राप्त एक अनुपम भेंट है।

शरीर के आरोग्यार्थ यह रस इतना अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है कि विदेशी जीववैज्ञानिकों ने इसे 'हरा लहू' (Green Blood) कहकर सम्मानित किया है। डॉ. एन. विगमोर नामक एक विदेशी महिला ने गेहूँ के कोमल ज्वारों के रस से अनेक असाध्य रोगों को मिटाने के सफल प्रयोग किये हैं।

उपरोक्त ज्वारों के रस द्वारा उपचार से 350 से अधिक रोग मिटाने के आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आये हैं। जीव-वनस्पति शास्त्र में यह प्रयोग बहुत मूल्यवान है।

गेहूँ के ज्वारों के रस में रोगों के उन्मूलन की एक विचित्र शक्ति विद्यमान है। शरीर के लिए यह एक शक्तिशाली टॉनिक है।

इसमें प्राकृतिक रूप से कार्बोहाईड्रेट आदि सभी विटामिन, क्षार एवं श्रेष्ठ प्रोटीन उपस्थित हैं। इसके सेवन से असंख्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिली है।

कैन्सर, मूत्राशय की पथरी, हृदयरोग, लीवर, डायबिटीज, पायरिया एवं दाँत के अन्य रोग, पीलिया, लकवा, दमा, पेट दुखना, पाचन क्रिया की दुर्बलता, अपच, गैस, विटामिन ए, बी आदि के अभावोत्पन्न रोग, जोड़ों में सूजन, गठिया, संधिशोथ, त्वचासंवेदनशीलता (स्किन एलर्जी) सम्बन्धी बारह वर्ष पुराने रोग, आँखों का दौर्बल्य, केशों का श्वेत होकर झड़ जाना, चोट लगे घाव तथा जली त्वचा सम्बन्धी सभी रोग।

हजारों रोगियों एवं निरोगियों ने भी अपनी दैनिक खुराकों में बिना किसी प्रकार के हेर-फेर किये गेहूँ के ज्वारों के रस से बहुत थोड़े समय में चमत्कारिक लाभ प्राप्त किये हैं।

ये अपना अनुभव बताते हैं कि ज्वारों के रस से आँख, दाँत और केशों को बहुत लाभ पहुँचता है। कब्जी मिट जाती है, अत्यधिक कार्यशक्ति आती है और थकान नहीं होती।

गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि

आप मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें। उनमें खाद मिली मिट्टी लें। रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें। पहले दिन एक कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें। पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें। सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें।

इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें। सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें। नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें। इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें। इस प्रक्रिया में भूलकर भी प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें।

प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है। प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें। मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें।

सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के ज्वारे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे। ऐसे ज्वारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं। ज्यो-ज्यों ज्वारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे। अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए।

ज्वारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये। इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें।

ज्वारों का रस बनाने की विधि

जब समय अनुकूल हो तभी ज्वारे काटें। काटते ही तुरन्त धो डालें। धोते ही उन्हें कूटें। कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें। इसी प्रकार उसी ज्वारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा।

चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है। रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें।

किसी सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है। प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है।

दिन में किसी भी समय ज्वारों का रस पिया जा सकता है। परन्तु रस लेने के आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए।

आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है। परंतु इससे घबराना न चाहिए।

शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है। सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे।

ज्वारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं।

इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी। विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि ज्वारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें।

रस निकालने की सुविधा न हो तो ज्वारे चबाकर भी खाये जा सकते हैं। इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे। मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े ज्वारे चबाने से दूर हो जाती है। दिन में दो या तीन बार ज्वारों का रस लीजिये।

सस्ता और सर्वोत्तम ज्वारों का रस

ज्वारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है। दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस ज्वारे के रस में है।

इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है। घर में उगाने पर सदैव सुलभ है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है।

गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है। नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी ज्वारे के रस का सेवन कर सकते हैं। नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है।

ज्वारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं। इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति ज्वारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है।

इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।

डॉक्टर की सहायता के बिना गेहूँ के ज्वारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो।

ज्वारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं। शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं।।।

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