15/04/2025
#हिसालू (Hisalu) उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक जंगली फल है, जिसे हिमालयन रसभरी ) भी कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम रूबस एलिप्टिकस ) है। यह फल छोटी, कांटेदार झाड़ियों पर उगता है, खासकर 700 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर, और अप्रैल-जून के महीनों में पकता है।विशेषताएं:रंग और स्वाद: हिसालू मुख्य रूप से पीले और कभी-कभी काले रंग का होता है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा और रसीला होता है। पका हुआ फल मीठा और नरम होता है, जो मुंह में रखते ही पिघल जाता है।नाजुक प्रकृति: यह इतना कोमल होता है कि हल्के दबाव से इसका रस निकल जाता है और इसे तोड़ने के 1-2 घंटे बाद खराब होने लगता है, इसलिए इसे लंबे समय तक संग्रहित नहीं किया जा सऔषधीय गुण:हिसालू न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि इसमें कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं:एंटीऑक्सीडेंट्स: यह एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है, जो इम्यूनिटी बढ़ाने और संक्रमण से बचाव में मदद करता है।पेट के लिए लाभकारी: इसका रस पेट दर्द, बुखार, खांसी और गले की समस्याओं में राहत देता है।किडनी और मूत्र समस्याएं: यह किडनी टॉनिक के रूप में काम करता है और मूत्र संबंधी समस्याओं जैसे पॉलीयूरिया (अधिक पेशाब) और बिस्तर गीला करने की समस्या में उपयोगी है।पाचन और अन्य लाभ: इसकी पत्तियों और छाल का उपयोग पेप्टिक अल्सर, नाड़ी कमजोरी, और तिब्बती चिकित्सा में सुगंधित व कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता हसांस्कृतिक महत्व:उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में हिसालू लोकगीतों और संस्कृति का हिस्सा है। प्रसिद्ध कवि गुमानी पंत ने इसे अपनी कविताओं में स्थान दिया है, जैसे:"हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे।" इसका अर्थ है कि हिसालू की झाड़ियां कांटेदार होती हैं, जो छूने पर खरोंच देती हैं, फिर भी लोग इसे पसंद करते हैं, जैसे दूध देने वाली गाय की लात सहन की जाती इसे स्थानीय लोग "हिंसर" या "हिंसारू" के नाम से भी जानते उपलब्धता:हिसालू का व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता, लेकिन गर्मियों में नैनीताल जैसे पहाड़ी इलाकों में इसे सड़कों पर 30 रुपये प्रति 100 ग्राम की दर से बेचा जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण अब यह पहले से अधिक ऊंचाई पर पाया जाता है।संरक्षण:हिसालू को ने "वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पीशीज" की सूची में शामिल किया है, क्योंकि यह तेजी से फैलता है। फिर भी, इसके औषधीय और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए इसे संरक्षित करने की जरूरत है।