24/08/2025
" बुंदेलखंड पिछड़ा है या रखा गया है? "
लोगों को यह पोस्ट क्षेत्रवाद से ग्रसित लग सकती है, पर यह एक बहुत बड़ी और कड़वी सच्चाई है।।
मध्यप्रदेश में अगर डिजिटल डिवाइड को अपनी आंखों से देखना हो, तो आप भोपाल में जाइए।
पहले भोपाल से इंदौर हाइवे देखिए, फिर भोपाल से सागर हाइवे।
भोपाल से इंदौर मार्ग भोपाल महानगर में ही व्यवस्थित,शानदार और संपन्न दिखाई देगा, वहीं भोपाल से सागर मार्ग अव्यवस्थित, दुर्दशा से ग्रस्त और घोर विपन्न ।।
आजादी के बाद से ही बुंदेलखंड को या तो जानबूझकर या अनजाने में ही पिछड़ेपन का टैग पकड़ा दिया गया।
या यूं कहें कि इसे "पैकेजों" का झुनझुना दे दिया गया कि इसे बजाओ और प्रभु के गुण गाओ।
जनप्रतिनिधियों , नौकरशाहों और प्रबुद्घ बुंदेलखंडियों ने अपना नया ठिकाना भोपाल, इंदौर जैसे महानगरों में बना लिया, और इन्हीं को विभिन्न मानदंडों पर "नंबर 1" बनाते रहे।
बुंदेलखंड, बुंदेलखंड के महानगर, नगर और गांव तरसती नजरों से सत्ताधीशों, नौकरशाहों और बुंदेलखंड के लालों की ओर देखता रह गया कि कब बुंदेलखंड विकास में नंबर 1 बनेगा।
बुंदेलखंड को जान बूझकर पिछड़े रखने की कुछ बानगी देखिए
1- झांसी लखनादौन नेशनल हाइवे (उत्तर दक्षिण कॉरिडोर) को बेहद चालाकी से झांसी से ललितपुर होते हुए निकाल दिया गया , जबकि इसे झांसी से टीकमगढ़ होते निकाला जाता, तो आज टीकमगढ़ जिले के विकास की कहानी ही अलग होती।
2- मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में एक भी केंद्र सरकार/ राज्य सरकार का शोध संस्थान नहीं है, जो कहीं न कहीं जानबूझकर बुंदेलखंड के संभागीय मुख्यालय और जिलों की अनदेखी को बयां करता है।
3- बुंदेलखंड के जिलों की राज्य की राजधानी से कनेक्टिविटी देखिए।
पन्ना से भोपाल जाना हो, तो आपको बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी, हाइवे पुरातनकाल से टूटा फूटा ही पड़ा है,, अमूमन यही हाल छतरपुर भोपाल मार्ग का भी है।
टीकमगढ़ से भोपाल तो अपने आप में अजूबी कहानी है, आप बिना उत्तरप्रदेश से गुजरे राज्य की राजधानी पहुंच ही नहीं सकते, कई मार्ग हैं, जो उत्तरप्रदेश के सामान्य रोड हैं, हाइवे न होने से बहुत समय लेते हैं।
अगर टीकमगढ़ से सागर हो कर भोपाल जाएंगे, तो बनते बिगड़ते हाइवे के हिचकोले खाते हुए जाएं, और कम से कम 70 किमी का अतिरिक्त सफर तय करें।
4- स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो आज भी टीकमगढ़, पन्ना, छतरपुर जिले झांसी और ग्वालियर पर बुरी तरह निर्भर करते हैं, जो कम से 100 से 300 किमी की दूरी पर हैं।।
मरीज अगर गंभीर है, तो 300 किमी भगवान का भजन करना भी कष्टप्रद हो जाता है, ऐसे में अगर मरीज बच जाए तो वह भी भगवान भरोसे।।
हां, बुंदेलखंड के हर जिले में मेडीकल कॉलेज खोले जाने का "स्वर्णिम झुनझुना" पकड़ा दिया गया है।
5- रोजगार, उद्योग और अधोसंरचना के विकास का जो स्वरूप भोपाल से पश्चिमी मध्यप्रदेश की ओर मिलेगा, वह भोपाल से बुंदेलखंड की ओर एकदम विलुप्त ही मिलेगा, क्या सत्ताधीशों, नौकरशाहों और बुंदेलखंड के पावरफुल लालों को यह अंतर दिखाई नहीं देता??
इन सब प्रश्नों के उत्तर लोगों को इन सभी से पूछने चाहिए, तभी ये बुंदेलखंड और शेष मध्यप्रदेश के बीच की यह "डिजिटल डिवाइड" मिट सकेगी।।
आखिरकार,समानता का अधिकार और समानता से विकास प्राप्त करने का अधिकार सबको है।