Clement Hansda

Clement Hansda Social Service

27/07/2025

साथियों के साथ !! ☺️☺️☺️

ग्रामीणों से मज़े लेते हुए !!! 😊
27/07/2025

ग्रामीणों से मज़े लेते हुए !!! 😊

27/07/2025
सिदो कानू के धरती में !!  शहरी गांव पतना क्षेत्रों में !!
17/07/2025

सिदो कानू के धरती में !! शहरी गांव
पतना क्षेत्रों में !!

सोच बदलो ,परिस्थिति खत्म होगें !!
09/07/2025

सोच बदलो ,
परिस्थिति खत्म होगें !!

समय बदलते जा रहे हैं! और हम कहाँ है! ☺☺
31/08/2024

समय बदलते जा रहे हैं!

और हम कहाँ है! ☺☺

हर व्यक्ति का, किसी भी घटनाक्रम को देखने का नज़रिया उसके पूर्वाग्रहों पर केंद्रित होता हैं। समाज में उसी बात की अधिक स्वी...
18/02/2024

हर व्यक्ति का, किसी भी घटनाक्रम को देखने का नज़रिया उसके पूर्वाग्रहों पर केंद्रित होता हैं। समाज में उसी बात की अधिक स्वीकृति अधिक होती है जिसका प्रचार और प्रचलन भी अधिक हो। इस कड़ी में केवल वीरता, नेता और सभ्यता ही नहीं बल्कि देवता तक सम्मिलित रहे हैं। उन्हें भी सबको मान्यता नहीं मिली है।
पौराणिक काल खंडों में बहुत धर्मों और उनके ईश्वरों का भी उदय हुआ। प्रचार और प्रचलन की कमी के चलते समाप्त हो गए। उनमें से कुछ अवतार बनने निकले थे कुछ सरकार बनाने निकले लेकिन सबको सफलता नहीं मिली इसलिए उनका इतिहास में कोई वर्णन नहीं है। इतिहास विजेताओं का रहता है, सही-गलत का नहीं।
जिनकी सभ्यताएं विकसित हो सकी उनका वर्णन भी हुआ और महिमामंडन भी हुआ। कुछ सभ्यताएं क्रूर रहीं, कुछ व्यवस्थाएं अमानवीय रही। पेशवाओं का दौर शूद्रों के लिए उन्हीं अमानवीय दौर में से एक था जिसमें मनुष्यों से उनके जिंदा होने या मनुष्य कहलाने का अधिकार छीन लिया था।
पेशवा, ब्राह्मणों के शासन काल में यदि कोई सवर्ण हिन्दू सड़क पर चल रहा हो तो वहां अछूत को चलने की आज्ञा नहीं होती थी ताकि उसकी छाया से वह हिन्दू भ्रष्ट न हो जाय। अछूत को अपनी कलाई या गले में निशान के तौर पर एक काला डोरा बांधना पडंता था। ताकि हिन्दू भूल से स्पर्श न कर बैठे।
पेशवाओं की राजधानी पूना में अछूतों के लिए राजाज्ञा थी कि वे कमर में झाडू बांधकर चलें। चलने से भूमि पर उसके पैरों के जो चिन्ह बनें उनको उस झाडू से मिटाते जायें, ताकि कोई हिन्दू उन पद चिन्हों पर पैर रखने से अपवित्र न हो जाय। पूना में अछूतों को गले में मिट्टी की हाड़ी लटका कर चलना पड़ता था ताकि उसको थूकना हो तो उसमें थूके।
पेशवाओं का मत था भूमि पर थूकने से यदि उसके थूक से किसी हिन्दू का पांव पड़ गया तो वह अपवित्र हो जायेगा। पेशवाओं के घोर अत्याचारों के कारण महारों में अन्दर ही अन्दर असन्तोष व्याप्त था। वे पेशवाओं से मिलकर यह संकेत दे चुके थे कि आपको अपना रवैया, विचार और शास्त्र बदलने होंगे अन्यथा परिणाम ठीक नहीं होंगे।
सत्ता और श्रेष्ठता के अहंकार में डूबे पेशवाओं ने महारों से कहा कि तुम शुद्र हो, शुद्र ही बने रहो। सुई की नोक पर टिके कण बराबर भी तुम्हारा इस मिट्टी में कोई स्वतंत्र हक नहीं है। तुम हमारे अधीन हो यही तुम्हारी नियति है। महार अब पेशवाओं से इन जुल्मों का बदला लेने के लिए मौके की जबरदस्त तलाश में थे। आवश्यकता थी एक उचित अवसर की।
जब महारों का स्वाभिमान जागा, तब पूना के आस-पास के महार लोग पूना आकर अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए। इसी का प्रतिफल कोरेगांव की लडाई का गौरवशाली इतिहास है। कोरेगांव महाराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत पूना जनपद की शिरूर तहसील में पूना नगर रोड़ पर भीमा नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा सा गांव है।
इस गांव को भीमा नदी के किनारे बसा होने के कारण ही इसको भीमा कोरे गांव कहते हैं। इस गांव की पूना शहर से दूरी 16 मील है। 1 जनवरी 1818 को 500 महारों और 28 हजार पेशवा सैनिकों के बीच युद्ध हो गया। जिसमें पेशवाओं की ऐतिहासिक हार ही नहीं हुई बल्कि उनकी पेशवाई और अहंकार सब दफ़न गया तथा नये युग का आगाज हुआ।
इतिहास में तमाम घटनाएं अंकित और उल्लेखित है लेकिन उन्हें तवज्जो देने वालों ने अपने हिसाब से प्रयोग में लाया। सारागढ़ी के इसी प्रकार सिखों और अफगानों के युद्ध पर अक्षय कुमार की फ़िल्म केसरी बनती है तथा पंजाबी में कई फिल्में, साहित्य भी उपलब्ध है लेकिन भीमा कोरेगांव की बात अभी अभी करना शुरू हुआ है।
जिस युद्ध का स्मारक आज भी कोरेगांव में विजय स्तम्भ के रूप में खड़ा है उसके इतिहास पर विमर्श करना सभी के लिए एक विचारणीय विषय है। व्यवस्था को बदलने के लिए हमेशा युद्धों की आवश्यकता न पड़े इसलिए भी कभी कभी विमर्श का रास्ता लाभकारी होता है। ऐतिहासिक प्रेरणा और मिसाल कायम करने वाले लोगों को मेरे तरफ से सभी को हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं बधाई हो !

Clement Hansda ✍️

बाबा तिलका मांझी को शत-शत नमन।तिलका मांझी भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के जनजाती वीर थे। स...
11/02/2024

बाबा तिलका मांझी को शत-शत नमन।

तिलका मांझी भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के जनजाती वीर थे। सिंगारसी पहाड़, पाकुड़ के जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म 11 फ़रवरी 1750 ई. में हुआ था। 1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी और कभी न समर्पण करने वाली लड़ाई लड़ी और स्थानीय महाजनों-सामंतों व अंग्रेजी शासक की नींद उड़ाए रखा। तिलका मांझी को भारत के पहले आद्य क्रांतिकारक के रूप में पहचाना जाता हैं, जिन्होंने राजमहल, झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रिटानी हुकूमत से लोहा लिया। इन पहाड़िया लड़ाकों में सबसे लोकप्रिय आदिविद्रोही जबरा या जौराह पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हैं। इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया। 1784 में तिलका ने क्लीवलैंड को मार डाला। बाद में आयरकुट के नेतृत्व में उसकी गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ जिसमें कई लड़ाके मारे गए और तिलका मांझी को गिरफ्तार कर लिया गया। कहते हैं उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया। पर मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाड़िया लड़ाका जीवित था। खून में डूबी उसकी देह तब भी गुस्सैल थी और उसकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रही थी। भय से कांपते हुए अंग्रेजों ने तब भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटका कर उनकी जान ले ली। हजारों की भीड़ के सामने जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। तारीख थी संभवतः 13 जनवरी 1785।

बाद में आजादी के हजारों लड़ाकों ने जबरा पहाड़िया का अनुसरण किया और फांसी पर चढ़ते हुए जो गीत गाए - हांसी-हांसी चढ़बो फांसी ...! - वह आज भी हमें इस आदिविद्रोही की याद दिलाते हैं।

यह वर्ष भारतीय स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव वर्ष है। तिलका मांझी जैसे हजारों ज्ञात अज्ञात क्रांतिकारियों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए लंबा संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दी।

जनजाति क्रांतिवीर तिलका मांझी को जन्म दिवस के अवसर पर शत-शत नमन।

10/02/2024

चाहे किसी भी पार्टी का सरकार बने , एक बात सही है कि जो अच्छा काम करता है उसे सम्मान नहीं मिलता , और जो खराब काम करता है उससे कभी उससे कभी सजा नहीं मिलती !! Hemant Soren

ना काहू से दोस्ती ना कहूं से बैर                          ____________&_____________झारखंड बने आज 24 वर्ष होने जा रहा है...
10/02/2024

ना काहू से दोस्ती ना कहूं से बैर
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झारखंड बने आज 24 वर्ष होने जा रहा है ! यहां खनिज संपादक से भरा प्रदेश है तात्पर्य यह है ! कि यह एक धनी प्रदेश है !पर यहां गरीब लोग रहते हैं ! धनी प्रदेश पर गरीब लोग ! यह कैसे विंडबना है ! झारखंड मूलत: दो क्षेत्र में मिलकर बना है ! संताल परगना एवं छोटा नागपुर यह आदिवासी बहुल राज्य है ! यहां दोनों जगह पर ब्रिटिश काल के दौरान अलग-अलग क्रांतियां हुई थी ! संताल परगना में सिदो मुर्मू और,कानू मुर्मू के नेतृत्व में संताल हुल 1855 एवं छोटा नागपुर बिरसा मुंडा के अगुवाई में बिरसा उलगुलान 1899 -1900 ! दोनों ही आंदोलन का एक ही उद्देश्य { मकसद } था -संताल परगना में " संताल राज " और छोटा नागपुर में "मुंडा राज " कायम करना ! ध्यान रहे संताल और मुंडा ये दोनो ही जातियां एक ही नस्ल की है! दोनों की भाषा संस्कृति एक ही है ! किसी काल में वे दोनों एक ही बिरादारी जाति एवं समुदाय के थे ! कालांतर में वे दोनों अलग-अलग जाति के नाम से जाने गए ! संताल एवम मुंडा इतिहासकार बताते हैं कि चाहे वह संताल हुल हो अथवा बिरसा उलगुलान , दोनों ही क्रांतियां ब्रिटिश राज के खिलाफ थी ! इतिहासकारों ने ऐसा लिख दिया और हम आज के हुल और उलगुलान के वंशज इस सच मान बैठे हैं ! जो कि हमें इस तरह की धारणाएं हमें गलत दिशा अर्थात हमें किसी गहरी खाई की और ले जा रही है ! जिसका हमें कुछ भान ही नहीं ! कहा जाता है कि अंग्रेज भारत में करीब 300 साल तक राज किए ! वे व्यापारी के रूप में आए ! और यहां के शासक अथवा राजा बन बैठे ! अंग्रेज से पहले इस देश में मुगलों का शासन था ! यह भी करीब 700 वर्ष तक राज किए थे ! क्या आपने कभी सोचा; मुगलों से पहले किसका शासन था ? बेशक तब भारतवर्ष में छोटे-मोटे कोई राजा राजवाड़े थे ! परंतु यहां के शासन प्रणाली धर्म तंत्र पर आधारित थी ! अर्थात देश में धर्म तंत्र के अंतर्गत मन्नू महाराज की मनुस्मृति थी ! इस जलती हुई आग में कोपल कल्पित धर्म ग्रंथ ने घी का काम किया ! यह तो अच्छा हुआ कि अंग्रेज आया ! अंधविश्वासी परंपराओं को जड़ से उखाड़ के फेंकने की हर संभव कोशिश की !
समझने के लिए यहां सन्ताल हुल - 1855 का जिगर किया जा रहा है ! आखिर हुल का मतलब क्या है ? हुल किसी एक व्यक्ति विशेष के खिलाफ ही हो सकता है ! हुल किसी वर्ग विशेष के खिलाफ ही हो सकता है ! भारत में अंग्रेज मुट्ठी भर थे ! इन्हें मुट्ठी भर अंग्रेजों ने देश के बागडोर को अपने हाथों में ले रखा था ! यहां अंग्रेज कोई गांव बस्ती बस कर नहीं रहते थे ! कुछ अंग्रेज थे जो बड़े-बड़े शहरों में निवास करते थे ! और वहीं से वे अपना राज काज चलाए करते थे ! तत्कालीन संताल परगना के साथ भी यही हुआ ! आज 6 जिले संताल परगना में सिर्फ एक ही अंग्रेज अफसर था ! जिसका नाम था -जेम्स पोणटेंट ! वह कोई मजिस्ट्रेट नहीं था ! बल्कि वह एक अदना -सा सुपिरिटेंटेंड था ! सुपिरिटेंटेंड का काम सिर्फ कर वसूली था ! उसके पास कोई मजिस्ट्रेरियल पावर नहीं था ! किसी खास मुकदमे के लिए लोगों को दूर दराज अर्थात भागलपुर जंगीपुर आदि स्थानों में जाना होता था ! फिर हुल किसके विरुद्ध हुवा ? हुल मूलत: महाजनों के विरुद्ध हुआ ! क्योंकि महाजनों ने संतालों को हद से ज्यादा प्रताड़ित किया था ! संतालों ने अपना दुखड़ इन्हीं अंग्रेजों द्वारा तैनात दरोगा जमींदार तहसीलदार और कोर्ट कचहरी के मुख्यत्तर अमला कपला को बताया ! पर यहां भी महाजनों ने सभी सरकारी कर्मचारियों को अपने मुट्ठी में कैद करके रखा था ! जिससे संतालों को कोई न्याय नहीं मिल सका ! इतना ही नहीं संतालों ने ब्रिटिश शासक के बड़े अधिकारियों से भी न्याय का गुहार लगाई ! पर वहां से भी संताल लोगों को अपना मुंह लटका कर वापस आना पड़ा ! इतना ही नहीं संतालों ने 30 जून 1855 को भोगनाडीह में एक बहुत बड़ी मीटिंग बुलाई गई ! इस मीटिंग में एक ज्ञापन तैयार हुआ !
सिदो मुर्मू द्वारा 28 , 29 और 30 जून 1855 को भोगनाडीह में आहूत संतालों कि एक विशाल मीटिंग संपन्न हुई ! अस्पताल में 30000 लोग शामिल हुए ! उसे मीटिंग में सरकार के नाम पर एक स्मृति पत्र तैयार किया ! जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि अगर 15 दिन के अंदर कोई उचित सुनवाई नहीं होती है ! तो वे हुल करने का विवश होगा ! उपरोक्त स्मृतिपत्र पर कोई करवाया नहीं हुवी ! नतीजतन संतालों ने हुल कर दिया ! हुल का श्री गणेश 7 जुलाई 1855 को हुवा ! जिसमें कुख्यात दरोगा महेश लाल दात शाहिद 14 सिपाही मारे गए ! हुल दावानल चित्र चारों ओर फैल गया ! अत्याचारी महाजनों को एक-एक करके घाट उतारा जाने लगा ! हुल ने भयानक रूप धारण कर लिया ! ब्रिटिश शासको में 10 नवंबर 1855 को मार्शल लॉ लागू किया ! फिर भी हुल थमने का नाम नहीं ले रहा था ! अनन फनन में ब्रिटिश शासको ने हुल के कारणों की जांच हेतु एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की ! जिसके फलस्वरुप 22 दिसंबर 1855 को संतालों के लिए एक अलग प्रदेश " संताल परगना "का गठन किया गया ! अलग प्रदेश गठन करने का एक ही उद्देश्य था - " आबोआक दिसम आबोआक राज !" [ हमारा देश हमारा राज ! ] अर्थात देश में संतालो का राज कायम हो गया ! इस उद्देश्य को लेकर संताल परगना काश्तकारी अधिनियम बनाया गया ! संतालों कि भाषा संस्कृति रीति रिवाज सभी तरह के प्रशासनिक कार्य करने के लिए कानून भी बनाए गए !
यह ऐसे ही हुआ ! मानो ,मंगरु बुधना को कोई चमचमाती बीएमडब्ल्यू { BMW } कार दान स्वरूप दी गई हो , क्या करें मंगरु बुधना , दिन रात उस कार को निहारत रहे ! मंगरू बुधना को उसे कर की उपयोगिता के बारे में खाक भी मालूम नहीं था ! हुआ यही की उसका चालक और कोई बन बैठा ! वहीं चालक उसे कर को अपनी मर्जी के अनुसार चलना फिराता था ! धीरे-धीरे वह चतुर चालक उसे गाड़ी को ही अपने नाम करवा लिया ! कर लो अब क्या कर सकते हो ? ठीक यही स्थिति संतालों के साथ भी घट गई !
बेचारे इतने दयावान अंग्रेज भी क्या कर सकते हैं ! जिस समय संताल परगना मिला था , उसे समय एक भी संताल शिक्षित ना था ! सभी अंगूठा टेक थे ! अंग्रेज किसको सरकारी ऑफिस में बहाली करते ? यही कारण था की पर्दे के पीछे फिर वही अत्याचारी महाजनों का राज कायम हो गया , जिन महाजनों के विरुद्ध इतना बड़ा संताल हुल - 1855 घटित हुआ था !
अब जरा सोचो और समझो !

मजारा अब समझ में आ गया होगा ! ठीक वैसे ही है ! जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य गठन हुवा ! झारखंड एक आदिवासी राज्य है ! आदिवासियों के उत्थान हेतु ही इस नए प्रवेश का सृजन हुआ !
अब सवाल उठता है ! अब बताओ तब कितने आदिवासी आईएएस -आईपीएस अधिकारी थे या अब है ? कितने - डीसी , एसडीओ बीडीओ प्रशासनिक अधिकारियों हैं ? कितने आईपीएस , डीएसपी , एसडीपीओ , दरोगा आदि पुलिस अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं ? औरतों और कितना आदिवासी कर्मचारी हैं जो विभिन्न सरकारी कार्यालयों में नियुक्त है ! साथ ही शिक्षण स्थान में कितने टीचिंग एवं नॉन टीचिंग स्टाफ कार्यरत है ? स्वास्थ केंद्र विभाग में कितने आदिवासी डॉक्टर नर्सें है ! कितने आदिवासी इंजीनियर्स , वकील है ? इतना ही नहीं क्या आपने कभी रिजर्वेशन रोस्टर का नजदीक में अध्ययन किया है ! क्या आरक्षण के मुताबिक हर सरकारी दफ्तरो में बहाली हो रही है ? सारांश यही है कि सभी सरकारी दफ्तरों में ना तो आपके आदिवासी नियुक्ति है और ना ही आरक्षण के नियमों का सही रूप से पालन किया जा रहा है ! यही कारण है कि सरकार की तरफ से कितने भी नए-नए ,अच्छी-अच्छी योजना बना डालो ! धरातल पर आधे मुंह गिर जाएगी ! इसलिए तमाम सरकारी कार्यालयों की बहाली होनी चाहिए ! और बहाली के लिए उच्च शिक्षित उम्मीदवारों की सख्त जरूरत है ! निचोड़ यही है कि शिक्षा की बगैर कुछ भी संभव नहीं है! अत: शिक्षित बनो और पूरे झारखंड के दफ्तरों में कब्ज डाल दो ! नहीं तो वहीं हुल के बाद वाली घटना दोहराई जाएगी !
" अधिक से अधिक शेयर करें और क्वेश्चन आंसर का जवाब दे ! "
धन्यवाद !!
जोहार !!!
Clement Hansda ✍️

05/02/2024

महिलाओं के लिए शिक्षा की देवी किसे कहना चाहिए सावित्री जी फूले को या मनुवादी लोगों द्वारा बनायी गयी सरस्वती को?

" जमीन नही नियत घोटाला "        ___________________________जिसकी लाठी उसकी भैंस ! जी हां जिसके पास लाठी होगी ! वही भैंस ...
04/02/2024

" जमीन नही नियत घोटाला "
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जिसकी लाठी उसकी भैंस ! जी हां जिसके पास लाठी होगी ! वही भैंस का हांक ले सकते है! खाली हांथ रहोगे! तो कुते भी आप पर भोक पड़ेंगे ! सुना है इस वक्त देश में दूध की धुली सरकार विराजमान है ! मजाल है उसकी सरकार में कोई गड़बड़ घोटाला कर दे ! सभी मंत्री संतरी सरकारी तंत्र मंत्र मौन बाबा बनकर देश को आगे जाने में तन मन धन से लगे हुवे है ! उनके मंत्रालय में या दफ्तरों में एक भी भ्रष्टचार का मामला नही ! सभी काम एकदम टानाटन हो रहा है ! उनके नेता गण देवता तुलिय है !
भारत का सविधान कहता है ! की यहधर्मनिरपेक्ष देश है! अर्थात सरकार किसी भी धर्म के साथ कोई भेदभाव नहीं कर सकती है! सरकार सभी धर्म एक नज़र से देखेगी ! लेकिन कोन पूछता है ! उस शुद्र की सविधान को ! उस संविधान को जला कर राख कर दो ! इसी में हिंदुओं की भलाई है ! सरकार इसी मिशन कार्य में लगी हुई है ! हमने आपको सदियों की मांग पूरी कर दी है ! हमने अपने भगवान को जान फुक दी है! जाओ अयोध्या और उन्हें अपना दुखड सुनार आओ ! अब हमने आपके लिए रामराज्य ला दिया है !
ईडी फिडी सीडी जो कभी स्वतंत्र रुप से अपना काम करते थे! अब पूर्ण रूप सरकार के कब्जे में है ! ये आखों से देखा हुवा चीज है ! यह आब सरकार के जुमरा बन चुके है ! यह रीत है ! मदारी जो आदेश देता हैं ! जुमरा वही करते है ! इस लिय ईडी सिर्फ़ और सिर्फ़ विपक्ष के लोगों को येनकेन प्रकारेन बर्बाद करने पर तुल गए है ! इस लिय विपक्ष के घर आंगन को सूंघते रहते है ! जहां भी मौका मिलता है ! उसे वही दबोच लेते है ! जुमरा विपक्ष को मानसिकता एवम शारीरिक दोनो तरफ से यातनएं देने में सक्षम है! कल परसू बिहार में यहीं तो हुवा ! सुशासन बाबू फिर से मुनावदियो में जा बैठे गए !
यह शीशे के तरह साफ हो चूका है ! की मुनावादियों को शुद्र फूटी आंख नहीं सुहाता है ! यही एक मात्र कारण है ! की ED कई दिनों से झारखण्ड के राजकुमार पर नज़र गड़ाए रखी थीं ! वह समन पर समन दिए जा रही थी ! ED ने राजकुमार की नाक में दम कर रखा था ! बेचारा हेमन्त सोरेन कल दिल्ली से पैदल चल कर रांची पहुंचा! यह पंक्ति लिखने तक राजकुमार ने इस्तीफा दे दिया है ! खबर लिखने तक राजकुमार ने झारखंड टाइगर को अपनी कुर्सी सौंप दी ! और ED अपनी साथ ले गई !
जुमेर ने अपने मालिक मदारी के इशारे पर इस तरह की करवाई की हैं! इस तरह के काम बदले की भावना से लिए गए है ! क्या ED को सीएम के खिलाफ़ जमीन घोटाले का मामला ही हांथ लगा ? मालूम हो के भी CNT /SPT/ACT रहते हुवे आज यहां की आधी जमीन दिकुओं के हांथ में चली गई ! क्या ED की नज़र ऐसे जमीन घोटाले पर नहीं जा सकती है ! जरा सोचें !
आग लग जाए ऐसे झारखण्ड पर ! क्योंकि ED को तो एक आदिवासी मुखियमंत्री को प्रताडित करना था ! और वह इस काम में सफ़ल भी हो गई !
मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा निष्पक्ष जज अंग्रेजी भी चले गए अब कौन करेगा हमारा न्याय ? मनुवादी अब दुबारा हम पर शासन करने को उतावल है ! संविधान के बदले मनुस्मृति तैयार बैठी है ! अभी भी समय है ! SC/ST/OBC एक हो जाओ ! 2024 प्रवेश कर चुका है ! वरना सिर पे मैल ढोना , गले में मटका और कमर पर झाड़ू बांधने के लिय तैयार हो जाओ !
धन्यवाद !
हुल जोहार !🙏

Clement Hansda ✍️
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