राजपूताना विरासत एवं संस्कृति

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राजपूताना विरासत एवं संस्कृति .

तेजा दशमी विशेषांक: प्रणवीर तेजाजी: डाॅ. आईदान सिंह भाटीप्रकाशन: राजपुताना विरासत एवं संस्कृति राजस्थान की पावन धरती सदा...
03/09/2025

तेजा दशमी विशेषांक: प्रणवीर तेजाजी: डाॅ. आईदान सिंह भाटी

प्रकाशन: राजपुताना विरासत एवं संस्कृति

राजस्थान की पावन धरती सदा से वीरता, बलिदान और आस्था की कहानियों से सजी रही है। इन कहानियों में लोकदेवता तेजाजी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। भादवा सुदी दशमी, जिसे तेजा दशमी के रूप में उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, न केवल एक पर्व है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। यह दिन हमें तेजाजी की वीरता, वचनबद्धता और लोक कल्याण की भावना की याद दिलाता है, जो शताब्दियों से लोकमानस में बसी हुई है।

सांस्कृतिक झरोखा का यह विशेषांक तेजाजी की अमर गाथा को समर्पित है। उनकी कहानी केवल एक ऐतिहासिक या लोककथात्मक वृत्तांत नहीं है, बल्कि यह सत्य, निस्वार्थ सेवा और दृढ़प्रतिज्ञा का जीवंत दस्तावेज है। तेजाजी का जीवन हमें सिखाता है कि विपत्तियों के बीच भी आस्था और साहस से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है। उनकी नाग कथा, गूजरी की गायों की रक्षा और परबतसर मेले की परंपरा आज भी लोगों के दिलों में जीवित है, जो हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ती है।

आज के आधुनिक युग में, जहां भौतिकवाद और स्वार्थ हावी है, तेजाजी की कहानी हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उनकी डस्सी (धागा) और उनके मंदिर न केवल आस्था के केंद्र हैं, बल्कि वे हमें यह भी याद दिलाते हैं कि वचन का पालन और दूसरों की मदद मानव जीवन के सर्वोच्च मूल्य हैं।

इस विशेषांक में हमने डॉ. आईदान सिंह भाटी के लेखन के आधार पर तेजाजी के जीवन, उनकी वीरता, नाग कथा, तेजा दशमी के महत्व और उनके सांस्कृतिक योगदान को विस्तार से प्रस्तुत किया है। हमारा उद्देश्य नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ना और तेजाजी के आदर्शों को जीवित रखना है।

तेजा दशमी के इस पावन अवसर पर, आइए हम तेजाजी के जीवन से प्रेरणा लें और उनके त्याग, वीरता और आस्था के मार्ग पर चलने का संकल्प लें। यह विशेषांक उनके प्रति हमारी श्रद्धांजलि है और एक प्रयास है कि उनकी गाथा हर घर तक पहुंचे।















"गणपति की उत्पत्ति: पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों का अन्वेषण"गणेश चतुर्थी विशेष: भगवान् गणेश और उनकी लीलाएं अनुवाद ...
27/08/2025

"गणपति की उत्पत्ति: पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों का अन्वेषण"
गणेश चतुर्थी विशेष: भगवान् गणेश और उनकी लीलाएं

अनुवाद और संपादन : डॉ. श्रीकृष्ण "जुगनू"
सहयोग: बलवीर सिंह "सोलंकी" बासनी खलिल

श्री गणेश, भारतीय संस्कृति और धर्म के एक अनन्य प्रतीक, न केवल अपनी विशिष्ट प्रतिमा और गुणों के कारण, बल्कि अपने व्यापक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव के लिए भी विख्यात हैं। गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर, यह लेख श्री एम.एस. धवलीकर के आर. जी. भंडारकर जयंती व्याख्यान (5 सितंबर 1989) के आधार पर श्री गणेश के उद्भव, उनके ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व, तथा उनकी पूजा के विकास को रेखांकित करता है। भारतीय देववाद के क्रमिक विकास में गणेश का उदय एक रोचक अध्याय है, जो स्थानीय पशु टोटेम से लेकर सर्वमान्य देवता के रूप में उनके स्थापित होने की यात्रा को दर्शाता है।

गणेश की छवि, जिसमें हाथी का सिर, फूला हुआ पेट और विभिन्न मुद्राओं में चित्रण शामिल है, न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी गहन प्रभाव डालती है। छठी शताब्दी ईस्वी से प्रारंभ होकर, उनकी पूजा ने न केवल भारत, बल्कि पूरे एशिया में हिंदू और बौद्ध परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर, यह लेख गणेश की उत्पत्ति, उनकी मूर्तियों और सिक्कों पर चित्रण, तथा गाणपत्य संप्रदाय के उदय को विस्तार से प्रस्तुत करता है। यह लेख पाठकों को गणेश की लीलाओं और उनके व्यापक प्रभाव की गहन समझ प्रदान करने का प्रयास करती है, जो भारतीय संस्कृति की समृद्धि और विविधता को उजागर करता है।

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गोगानवमी की हार्दिक शुभकामनाएं....
17/08/2025

गोगानवमी की हार्दिक शुभकामनाएं....

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का पवित्र पर्व, विश्व भर में भक्ति, प्रेम और उल्लास के साथ मनाया जाता है।...
16/08/2025

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का पवित्र पर्व, विश्व भर में भक्ति, प्रेम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यदुवंशी क्षत्रिय कुल में मथुरा की कारागार में माता देवकी और पिता वसुदेव के पुत्र के रूप में जन्मे श्रीकृष्ण ने गोकुल में यशोदा मैया की गोद में अपनी लीलाओं से विश्व को मोहित किया। श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित उनकी लीलाएँ—पूतना वध, गोवर्धन उद्धार, कंस वध और पाण्डवों की रक्षा—धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश का प्रतीक हैं। यह पर्व भगवद्गीता के शाश्वत उपदेशों का उत्सव है, जो अवतारवाद, भक्ति की प्रधानता, गुणों पर आधारित जीविका और स्वाभाविक कर्मों द्वारा ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर से लेकर द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर तक, श्रीकृष्ण की महिमा भक्तों के हृदय में बस्ती है। आइए, इस पत्रिका के माध्यम से श्रीकृष्ण की लीलाओं, यदुवंश की गौरवशाली परंपरा, उनके मंत्रों और दोहों के रस में डूबकर जन्माष्टमी का उत्सव मनाएँ।

Shri Krishan Jugnu

#जन्माष्टमी

आज गुजरात में मनाई जा रही शीतला सप्तमी पर्व।डॉ श्रीकृष्ण जुगनू शीतला माता की पूजा भारतीय लोक संस्कृति और धार्मिक परंपराओ...
15/08/2025

आज गुजरात में मनाई जा रही शीतला सप्तमी पर्व।

डॉ श्रीकृष्ण जुगनू

शीतला माता की पूजा भारतीय लोक संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक अनुपम स्वरूप है, जो मध्यकालीन भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य संबंधी परिप्रेक्ष्य को दर्शाती है। चेचक जैसे भयावह रोगों से मुक्ति और शीतलता की आकांक्षा ने शीतला माता को लोकदेवी के रूप में स्थापित किया। विशेष रूप से 11वीं-12वीं सदी के सोलंकी शासनकाल में, जब चेचक का प्रकोप समाज को पीड़ित कर रहा था, शीतला माता की पूजा और मंदिर निर्माण ने महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। गुजरात के मोढेरा सूर्य मंदिर परिसर में सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम द्वारा निर्मित शीतला माता का मंदिर इस परंपरा का जीवंत साक्ष्य है। वागड़ (डूंगरपुर, बांसवाड़ा) और गुजरात में भाद्रपद की सप्तमी को, जबकि अन्य क्षेत्रों में चैत्र की सप्तमी , अष्टमी को मनाई जाने वाली शीतला पूजा, क्षेत्रीय विविधता और लचीलेपन को दर्शाती है। महिलाओं द्वारा संचालित यह पूजा, लोकगीतों, सादगीपूर्ण मूर्तियों और ठंडी सामग्री के अनुष्ठानों के माध्यम से परिवार की सुरक्षा और कल्याण की भावना को जीवित रखती है। यह लेख शीतला माता की मान्यता, उनके मंदिरों, मूर्तियों और क्षेत्रीय परंपराओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो भारतीय संस्कृति में लोक विश्वासों और शास्त्रीय परंपराओं के अनूठे संगम को रेखांकित करता है।

Shri Krishan Jugnu
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जल के लिए मंदिर जैसी वापी: रानी उदयमती का संकल्प: डाॅ. श्रीकृष्ण “जुगनू” डाॅ.श्रीकृष्ण "जुगनू" जी द्वारा रचित "जल के लिए...
14/08/2025

जल के लिए मंदिर जैसी वापी: रानी उदयमती का संकल्प: डाॅ. श्रीकृष्ण “जुगनू”

डाॅ.श्रीकृष्ण "जुगनू" जी द्वारा रचित "जल के लिए मंदिर जैसी वापी" एक ऐसी रचना है, जो गुजरात राजस्थान के पाटन की पृष्ठभूमि में अकाल की त्रासदी और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से उकेरती है। यह कथा न केवल एक ऐतिहासिक घटना का चित्रण करती है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को भी जीवंत करती है। महारानी उदयमती के नेतृत्व में निर्मित बावड़ी केवल एक जलस्रोत नहीं, बल्कि प्रजा के प्रति उनके अटूट समर्पण, दृढ़ संकल्प और सृजनात्मक दृष्टिकोण का प्रतीक है।

कथा में अकाल के भयावह दृश्य, प्रजा की पीड़ा, और रानी की करुणा का मार्मिक चित्रण है। यह कथा जल की महत्ता को रेखांकित करते हुए बावड़ी के निर्माण को एक महायज्ञ के रूप में प्रस्तुत करती है, जिसमें श्रम, कला, और भक्ति का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। बावड़ी का निर्माण केवल पत्थर और पानी का मेल नहीं, बल्कि एक समुदाय की आस्था, एकता और आशा का मूर्त रूप है।

रानी उदयमती का चरित्र इस कथा का केंद्रबिंदु है, जो अपनी प्रजा के लिए माता, मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत बनकर उभरती हैं। उनकी तपस्या, त्याग और नेतृत्व नारी शक्ति का प्रबल उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। कथा में शिल्पकारों की कला, प्रजा की मेहनत, और हरजी जैसे पात्रों के माध्यम से सामुदायिक सहयोग की भावना को रेखांकित किया गया है।

यह रचना राजस्थानी लोकजीवन, संस्कृति और परंपराओं का जीवंत दस्तावेज है, जो पाठकों को इतिहास, कला और मानवीय संवेदनाओं की गहराई में ले जाती है। "जल के लिए मंदिर जैसी वापी" केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक प्रेरक गाथा है, जो जल संरक्षण, सामुदायिक एकता और नेतृत्व के महत्व को आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक बनाती है।
Shri Krishan Jugnu









"सोलंकी युग में परमारों का पराक्रम: किराडू शिलालेख की कहानी"लेखक :  बलवीर सिंह सोलंकी बासनी खलिल सहयोग:  डॉ. श्रीकृष्ण "...
13/08/2025

"सोलंकी युग में परमारों का पराक्रम: किराडू शिलालेख की कहानी"

लेखक : बलवीर सिंह सोलंकी बासनी खलिल
सहयोग: डॉ. श्रीकृष्ण "जुगनू"

मरुस्थल में किराडू, शिलालेख गीत गाय।
परमार-सोलंकी यश, सदा अमर रह जाय॥

ॐ नमः शंभवे तुभ्यं, विश्वरूपाय शाश्वते,
कपालमालिकायैव, गौरीहृद्य नमो नमः।
सर्वज्ञ सूक्ष्मदेवाय, किराटकूप-संनादति,
शिलालेखे प्रशस्तिस्तु, सोलंकीयं प्रकाशति।

मध्यकालीन भारत का इतिहास राजनैतिक पराक्रम, धार्मिक निष्ठा और स्थापत्य कला के अनुपम संगम का साक्षी है। सोलंकी (चालुक्य) राजवंश का शासनकाल (10वीं से 13वीं शताब्दी) गुजरात और राजस्थान के इतिहास में स्वर्णिम युग के रूप में अंकित है। इस युग में पाटण (अणहिलवाड़) शक्ति, संस्कृति और धर्म का केंद्र बना। सोलंकी राजाओं—मूलराज, भीमदेव प्रथम, सिद्धराज जयसिंह, कुमारपाल और भीमदेव द्वितीय—ने शैव धर्म, सामाजिक एकता और सोमपुरा शिल्प शैली को न केवल संरक्षण दिया, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। राजस्थान के बाड़मेर में स्थित किराडू के शिलालेख इस युग की गौरवगाथा को जीवंत करते हैं। ये शिलालेख, विशेष रूप से विक्रम संवत् 1218 (1161 ई.) का किराडू शिलालेख, परमार सामंत सोमेश्वरदेव और सोलंकी सम्राटों के गठजोड़ को उजागर करता है, जो शैव धर्म के प्रचार, सैन्य विजयों और स्थापत्य वैभव का प्रतीक है।

यह दस्तावेज न केवल किराडू के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि किराडू मंदिर से जुड़ी दंतकथाओं और मिथकों पर भी अंकुश लगाता है, जो प्रायः इसकी प्रामाणिक गाथा को धूमिल करते हैं।

किराडू के शिलालेख न केवल परमार वंश की शौर्यगाथा और सोलंकी वंश की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं, बल्कि सोमनाथ मंदिर परंपरा और सोमपुरा शिल्प शैली के माध्यम से भारतीय स्थापत्य कला की भव्यता को भी रेखांकित करते हैं। यह लेख किराडू शिलालेख के हिंदी अनुवाद, परमार-सोलंकी संबंधों, और सोलंकी काल की स्थापत्य व धार्मिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालता है। मरुस्थल की रेत में बसे किराडू के मंदिर और शिलालेख आज भी उस गौरवशाली अतीत की कहानी कहते हैं, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।

इस लेख के माध्यम से, बलवीर सिंह “सोलंकी” और डॉ. श्रीकृष्ण “जुगनू” ने किराडू शिलालेख की कहानी को सरल और प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत किया है, जो इतिहास प्रेमियों, शोधकर्ताओं और संस्कृति के अध्येताओं के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह प्रस्तुति न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करती है, बल्कि उस युग की सामाजिक, धार्मिक और स्थापत्य विरासत को पुनर्जनन देकर हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती है।

सिद्धराजो जयसिंहश्च, कुमारपाल-नरेश्वरः,
सोमेश्वरदेवः सामन्तः, चालुक्यस्य कृपाप्रियः।
जयसलं दण्डति स्म, सप्तदशाश्वशतैः सह,
नवसरं तनुकोट्टं च, विजयेन समन्वितम्।
#किराडू_शिलालेख #सोलंकी_युग #परमार_वंश
#सोमनाथ_मंदिर #सोमपुरा_शिल्प #मध्यकालीन_भारत


मेवाड़ की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत का जब भी जिक्र होता है, महाराणा कुम्भा का नाम स्वर्णाक्षरों में उभरता है। किंतु ...
11/08/2025

मेवाड़ की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत का जब भी जिक्र होता है, महाराणा कुम्भा का नाम स्वर्णाक्षरों में उभरता है। किंतु इस भव्य इतिहास के पीछे एक गुमनाम नायक की कहानी छिपी है—सूत्रधार मंडन। मारुवास गांव में जन्मे इस महान वास्तुकार ने न केवल कुंभलगढ़ जैसे विश्वविख्यात पर्वतीय दुर्ग की रचना की, बल्कि अपने ग्रंथों के माध्यम से भारतीय वास्तुशास्त्र को एक नया आयाम दिया। उनकी कल्पनाशीलता और शिल्पकौशल ने मेवाड़ को किलों, कुंडों, सरोवरों और मूर्तियों से अलंकृत किया।यह पत्रिका मंडन की उस अनकही कहानी को सामने लाने का प्रयास है, जो मारुवास की गलियों में और उनके ग्रंथों की पंक्तियों में बिखरी पड़ी है। श्रीकृष्ण "जुगनू" की खोजयात्रा और संकल्प ने मंडन की विरासत को पुनर्जनन दिया है। इस अंक में हम मंडन के जीवन, उनके ग्रंथों, कुंभलगढ़ की भव्यता और मारुवास की गुमनामी को उजागर करेंगे, ताकि एक सूत्रधार की कला और योगदान को वह सम्मान मिले, जिसका वह हकदार है।


















"संस्कृत दिवस: देवभाषा का अमर स्वर, संस्कृति का गौरवमय उत्सव" डाॅ. श्रीकृष्ण "जुगनू" संस्कृत, विश्व की प्राचीनतम और सर्व...
09/08/2025

"संस्कृत दिवस: देवभाषा का अमर स्वर, संस्कृति का गौरवमय उत्सव" डाॅ. श्रीकृष्ण "जुगनू"

संस्कृत, विश्व की प्राचीनतम और सर्वाधिक संस्कारित भाषा, भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का आधार-स्तंभ है। यह वह गीर्वाणवाणी है, जो ज्ञान, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की कृपा से विश्व में सदा प्रकाशित रही है। श्रावणी पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर मनाया जाने वाला **संस्कृत दिवस** हमें इस अमर भाषा के गौरव को स्मरण करने और इसे पुनर्जनन करने का संकल्प लेने का अवसर देता है।

यह विशेषांक माँ सरस्वती के आशीर्वाद और संस्कृत की महिमा को समर्पित है। इसमें संस्कृत के ऐतिहासिक, साहित्यिक और वैज्ञानिक योगदान को उजागर करने के साथ-साथ, इसके प्रति हमारी निष्ठा और दायित्व को रेखांकित किया गया है। श्रीकृष्ण "जुगनू" जी के प्रेरणादायी विचारों से प्रेरित यह पत्रिका संस्कृत प्रेमियों, विद्वानों और संस्कृति के रक्षकों को समर्पित है।

आइए, इस संस्कृत दिवस पर हम संकल्प लें कि संस्कृत के ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाएँ, इसके ग्रंथों को जीवंत करें और इसे अपने कंठ और हृदय में संनादित होने दें। माँ सरस्वती की कृपा से हमारी यह यात्रा विश्व में संस्कृत के स्वर को और अधिक गूंजायमान करे।

#संस्कृत_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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"NCERT का पक्षपात: राजपूत इतिहास के 2 पृष्ठों में बेईमानी, मराठा इतिहास का 22 पृष्ठों में महिमामंडन"सत्ता का दुरुपयोग: N...
09/08/2025

"NCERT का पक्षपात: राजपूत इतिहास के 2 पृष्ठों में बेईमानी, मराठा इतिहास का 22 पृष्ठों में महिमामंडन"

सत्ता का दुरुपयोग: NCERT में राजपूत वीरता की अनदेखी, मराठा पेशवाई नरेटिव का प्रचार"

इतिहास केवल अतीत की घटनाओं का संकलन नहीं है, बल्कि यह एक समाज की पहचान, गौरव और प्रेरणा का आधार है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ता है। NCERT की 8वीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तक में मराठा साम्राज्य और राजपूत इतिहास के चित्रण को लेकर उत्पन्न विवाद इस बात को रेखांकित करता है कि इतिहास की प्रस्तुति कितनी संवेदनशील और प्रभावशाली हो सकती है। सोशल मीडिया पर मराठा साम्राज्य के मानचित्र को लेकर चल रही बहस ने इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है, किंतु वास्तविक चिंता मानचित्र से परे जाकर ऐतिहासिक निष्पक्षता, क्षेत्रीय अस्मिता और शैक्षिक संतुलन की ओर संकेत करती है। जब राजस्थान के बच्चे अपने गौरवशाली राजपूत इतिहास को मात्र दो पृष्ठों में सीमित देखते हैं, जबकि मराठा इतिहास को 22 पृष्ठों में विस्तार से पढ़ाया जाता है, तो यह असमानता न केवल अन्यायपूर्ण प्रतीत होती है, बल्कि सांस्कृतिक और शैक्षिक असंतुलन का गंभीर संकेत भी देती है। यह लेख इस विवाद के विभिन्न आयामों की पड़ताल करता है और इतिहास की सही प्रस्तुति की मांग को बल देता है।

दो पृष्ठ राजपुत्रों के, गौरव खो गया किधर,
मराठों को बीस-दो दिए, सत्य हुआ है अधर।

िवाद #इतिहासअसंतुलन #मराठा #पेशवा #शैक्षिकन्याय #राजपूतइतिहास #राजपूत #मराठाइतिहास ाठ्यपुस्तक #क्षेत्रीयअस्मिता

पेशवाई मराठों का काल्पनिक मानचित्र का सच और बढ़ता विरोध: बलवीर सिंह सोलंकी इतिहास सत्य गंगा सा प्रेरित करता है जन मन को,...
08/08/2025

पेशवाई मराठों का काल्पनिक मानचित्र का सच और बढ़ता विरोध: बलवीर सिंह सोलंकी

इतिहास सत्य गंगा सा प्रेरित करता है जन मन को,
ना कि मिथ्या हो कलंकित करता तथ्य - रतन को।।

भारत का इतिहास सत्य और साहस की गाथाओं से सुसज्जित है, जो इस पावन भूमि पर फलने-फूलने वाले प्राचीन राजवंशों—मौर्य, गुप्त, राष्ट्रकूट, प्रतिहार, चालुक्य, परमार, चौहान, गुहिल और अन्य—के शिलालेखों, ताम्रपत्रों, मंदिरों और लोककल्याणकारी कार्यों में जीवंत है। ये अवशेष एक सुव्यवस्थित शासन और सांस्कृतिक वैभव की कहानी कहते हैं। किंतु, हाल के समय में मराठा साम्राज्य के नाम पर एक काल्पनिक और तथ्यहीन मानचित्र प्रस्तुत कर इतिहास के साथ छेड़छाड़ का प्रयास हो रहा है। यह लेख द्वारा, इस मिथ्या प्रचार का पर्दाफाश करता है, जो न केवल ऐतिहासिक सत्य को कलंकित करता है, बल्कि राजपूतों और अन्य समुदायों के गौरवशाली इतिहास को भी हाशिए पर धकेलने का प्रयास करता है। मराठा प्रभाव की वास्तविकता, उनके कथित शासन के अभाव में प्रमाण, और राजस्थान सहित अन्य क्षेत्रों में उनके अभियानों की सच्चाई को उजागर करते हुए, यह लेख ऐतिहासिक सत्य को पुनःस्थापित करने और इस छलपूर्ण प्रचार के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान करता है।

राजपुताना वीर धरा, कभी न झुकी पेशवा।
तुंगा जयपुर की जंग में, हराया लुटेरों साथ।।
विरोध करो, सत्य लाओ, छल का अंत करो।
भारत का इतिहास सजा, सदा सत्य से भरो।।

#मराठा_साम्राज्य_का_सच
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#राजपूत_प्रतिरोध
#ऐतिहासिक_सत्य
#लूटमार_का_नक्शा
िवाद
#राष्ट्रवाद_नहीं_महाराष्ट्रवाद
#शिलालेख_ताम्रपत्र
#भारत_का_इतिहास

"मेवाड़ की स्वतंत्रता गाथा में राणा पूंजा सोलंकी का योगदान और सत्य साक्ष्य" – बलवीर सिंह सोलंकीमेवाड़स्य स्वातंत्र्यं, प...
07/08/2025

"मेवाड़ की स्वतंत्रता गाथा में राणा पूंजा सोलंकी का योगदान और सत्य साक्ष्य" – बलवीर सिंह सोलंकी

मेवाड़स्य स्वातंत्र्यं, पूंजा सोलंकी वीरः,
भील-राजपूत संनादति, एकतायाः प्रतीकती।।

भारत का इतिहास केवल युद्धों और विजयों की गाथाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह उन अनगिनत वीरों की कहानियों का संगम है, जिन्होंने स्वतंत्रता, स्वाभिमान और सामाजिक एकता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। मेवाड़ का स्वातंत्र्य संग्राम इस गौरवशाली इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है, जिसमें महाराणा प्रताप के नेतृत्व में पानरवा के सोलंकी राणा पूंजा और उनकी भील सेना ने अप्रतिम वीरता और समर्पण का परिचय दिया। यह पत्रिका, "मेवाड़ की स्वतंत्रता गाथा में राणा पूंजा सोलंकी का योगदान और सत्य साक्ष्य," मेवाड़ के इस अमर इतिहास को सत्यता, सटीकता और सामाजिक सौहार्द के साथ प्रस्तुत करने का एक प्रयास है।

राणा पूंजा सोलंकी, जो सोलंकी राजवंश की गौरवशाली परंपरा के वाहक थे, ने अपनी छापामार युद्ध रणनीति और भील सैनिकों के साथ मिलकर मुगल सेनाओं को मेवाड़ की पहाड़ियों में परास्त किया। पानरवा का शिलालेख, प्राचीन दस्तावेज, और मेवाड़ के अभिलेखागार इस बात के साक्षी हैं कि राणा पूंजा न केवल एक वीर योद्धा थे, बल्कि भील-राजपूत एकता के प्रतीक भी थे। यह पत्रिका उनके योगदान को उजागर करते हुए, मेवाड़ के राजचिन्ह और राणा पूंजा की पहचान से जुड़े विवादों को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर स्पष्ट करती है।

हमारा उद्देश्य न केवल ऐतिहासिक सत्य को सामने लाना है, बल्कि उस एकता और सौहार्द को पुनर्जनन करना भी है, जो मेवाड़ की स्वतंत्रता की नींव थी। श्री क्षत्रिय युवक संघ और स्वतंत्रता सेनानी बलवंत सिंह मेहता जैसे व्यक्तित्वों के प्रयासों ने राणा पूंजा के गौरव को समाज तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पत्रिका मेवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर, सोलंकी वंश की गाथा, और उस अमर एकता को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने का संकल्प लेती है, जो आज भी हमें प्रेरित करती है।

राणा पूंजा एक वीर, सोलंकी गौरव गान,
राजनेता भेद भजें, तोड़ें सौहार्द सम्मान।।

पूंजा को दो रूप दे, राजनीति खेल रचाय,
सौहार्द की डोर बने, सत्य गाथा गाय।।

विक्रम संवत् सोलह बत्तीस, पानरवा की गाथा,
सोलंकी पूंजा का यश, शिलालेख में सदा सज़ा।।

ॐ श्रीं ह्रीं क्षेमंकरी मातायै नमः।
ॐ सोलंकी कुलदेव्यै, रक्षा कर, सौभाग्य दे,
पानरवा गौरवं रक्षति, श्री क्षेमंकरी नमो नमः।।

ॐ श्रीं शिलाय मातायै नमः।
ॐ पानरवा ईष्टदेव्यै, शक्ति दे, यश विस्तर,
राणा पूंजा रक्षति, श्री शिलाय नमो नमः।।

आलेख: बलवीर सिंह सोलंकी बासनी खलिल
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