
03/09/2025
तेजा दशमी विशेषांक: प्रणवीर तेजाजी: डाॅ. आईदान सिंह भाटी
प्रकाशन: राजपुताना विरासत एवं संस्कृति
राजस्थान की पावन धरती सदा से वीरता, बलिदान और आस्था की कहानियों से सजी रही है। इन कहानियों में लोकदेवता तेजाजी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। भादवा सुदी दशमी, जिसे तेजा दशमी के रूप में उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, न केवल एक पर्व है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। यह दिन हमें तेजाजी की वीरता, वचनबद्धता और लोक कल्याण की भावना की याद दिलाता है, जो शताब्दियों से लोकमानस में बसी हुई है।
सांस्कृतिक झरोखा का यह विशेषांक तेजाजी की अमर गाथा को समर्पित है। उनकी कहानी केवल एक ऐतिहासिक या लोककथात्मक वृत्तांत नहीं है, बल्कि यह सत्य, निस्वार्थ सेवा और दृढ़प्रतिज्ञा का जीवंत दस्तावेज है। तेजाजी का जीवन हमें सिखाता है कि विपत्तियों के बीच भी आस्था और साहस से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है। उनकी नाग कथा, गूजरी की गायों की रक्षा और परबतसर मेले की परंपरा आज भी लोगों के दिलों में जीवित है, जो हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ती है।
आज के आधुनिक युग में, जहां भौतिकवाद और स्वार्थ हावी है, तेजाजी की कहानी हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उनकी डस्सी (धागा) और उनके मंदिर न केवल आस्था के केंद्र हैं, बल्कि वे हमें यह भी याद दिलाते हैं कि वचन का पालन और दूसरों की मदद मानव जीवन के सर्वोच्च मूल्य हैं।
इस विशेषांक में हमने डॉ. आईदान सिंह भाटी के लेखन के आधार पर तेजाजी के जीवन, उनकी वीरता, नाग कथा, तेजा दशमी के महत्व और उनके सांस्कृतिक योगदान को विस्तार से प्रस्तुत किया है। हमारा उद्देश्य नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ना और तेजाजी के आदर्शों को जीवित रखना है।
तेजा दशमी के इस पावन अवसर पर, आइए हम तेजाजी के जीवन से प्रेरणा लें और उनके त्याग, वीरता और आस्था के मार्ग पर चलने का संकल्प लें। यह विशेषांक उनके प्रति हमारी श्रद्धांजलि है और एक प्रयास है कि उनकी गाथा हर घर तक पहुंचे।