
21/06/2025
◆दिल की तहरीरें◆
कहनी हैं कुछ तहरीरें,
मगर किसको सुनाऊँ?
यहाँ हर लब ख़ामोश है,
हर दिल अपना ही अफ़साना दोहराता है।
हर निगाह में एक हिज्र ठहरा है,
हर मुस्कान के पीछे
एक सदी से ठहरा आँसू लरज़ता है।
लोग तो मिलते हैं,
मगर वक़्त कहाँ होता है किसी के पास?
हर शख़्स अपने ही शोर में
इतना गुम है कि
किसी और की सदा
महज़ ग़ुबार लगती है।
सोचता हूँ,
क्या मेरी ये नज़्म
किसी टूटे हुए दिल की दरार में
चुपचाप उतर पाएगी?
या फिर ये भी
किसी बेनाम आह में
खो जाएगी...
जैसे कभी कही ही ना गई हो।
शायद,
कुछ जज़्बात
सिर्फ़ काग़ज़ की आगोश में
सुकून पाते हैं,
वहीं सिसकते हैं,
वहीं सो जाते हैं...
~वरुण 'वीर'