23/02/2025
हम भारत के लोग !
मैने जब पत्रकारिता शुरू की तो मेरे सामने बहुत बडे विद्वान पत्रकार थे, जो पत्रकारिता को समाज में सकारात्मक बदल लाने का एक माध्यम के स्वरूप में देखते थे और इस के लिये बहुत अध्ययन करते थे. चिंतन करते थे और चर्चा भी करते थे. इस के लिये इन पत्रकारो के पास काफी किताबे रहती थी और अक्सर वो किताबे खरिदा करते. मै भी इसलिये पत्रकारिता में आया था और उन्ही की आदत मुझ में पनप गई. मै भी कई विषयो को लेकर अध्ययन करतात था, इसी कारण मेरे घर में हजारो किताबो का अंबार लग गया.
इस के काफी अच्छे और काफी बुरे परिणाम हुए. क्यो के पुंजीवादी पत्रकारिता का दौर शुरू हुआ तो, पत्रकार बहुत अध्ययनशील हो इस की जरुरत नही बची, बस समसामाईक घटना पर इन्स्टंट मॅगी के जैसे खबर बना दे, दो तीन पक्ष है तो वो दे दे, उसे अध्ययन और उस पर चिंतन करने की जरुरत नही बची. बल्की ऐसा करनेवाला पत्रकार काम का समय फिजूल की बातो में गवा रहा है, ऐसा इन्स्टंट मॅगी टाईप पत्रकारो को लगता और वो मुझ से दूर रहते या, हा में हा मिला कर अपना दामन निकाल बाजू हो जाते.
उन की नजर में मै, ना समझ में आनेवाला पत्रकार था . लेकिन इस का फायदा यह हुआ की मै पत्रकारिता के किसी गिरोह का हिस्सा कभी नही रहा. दुसरा मै प्रगतीशील विचारधारा से प्रभावीत था, और इन्स्टंट मॅगी वाले पत्रकार कोई टिका लगाने वाला, कोई नमाज पढने वाला तो कोई अन्य रूप में डर, अज्ञान और लालच के कारण पूजा पाठ करनेवाले, तो कोई केवल धार्मिक दिखाना चाहिए इसलिये उस तरह का भेस बनाकर रहनेवाला. मेरा किसी की श्रद्धा को लेकर कोई आपत्ती कल भी नही थी, आज भी नही, लेकिन स्वाँग करनेवालो को लेकर और अंधश्रद्धा को श्रद्धा बतानेवालो को लेकर मेरा गुस्सा अक्सर फुटता
मै अपना अकेला या कभी एखाद काम चलावू दोस्त लेकर चालता था
मुझे इस अलग थलग पण का अध्ययन में काफी फायदा हुआ. मैने दुनिया के तकरीबन सारे दर्शन, क्लासिक साहित्य और तत्वज्ञान के अध्ययन के साथ सारे धर्मो का भी अध्ययन कर लिया. जिस का उपयोग मुझे आज बहुत अच्छा हो रहा है. आज भी व्याख्यान, किताबे और घुमना यह मेरी जैसी दिनचर्या हो गई है.
अब तो पत्रकारिता एक गाली बनकर उभरी है, जिस में फिलिंग द ब्लँक का काम सिर्फ हो रहा है. इस लिये पत्रकारिता यह संज्ञा ही अपने अर्थ और विचारो से भटक गई है. जैसे वो पुंजीपती, राजनेता और धर्म के ठेकेदारो के पैर की जुती मात्र रह गई है. उसे इस घेरे से बाहर निकालना होगा...
मै बहुत शक्तिशाली, पुंजीपती नही हू, मगर आप लोग अगर साथ दे तो आप और मै, मतलब हमलोग यह कर सकते है. पत्रकारिता का फिर से आवाज दे सकते है. इस की योजना मेरे पास है. आप अगर इस नई पत्रकारिता के आंदोलन से जुडना चाहते हो तो आ सकते है. लेकिन इस के लिये सत्य के साथ समता, स्वातंत्रता, बंधुत्व और न्याय इन मुल्यो पर आप की श्रद्धा होना अनिवार्य होगा. यह देश के निर्माण में मुल्यो को बोने की कोशिश है.
काम बहुत बडा है, लेकिन मुश्किल नही है, और आसान काम करने का क्या मजा, जो हर कोई कर ले
अगर इस नये दौर की पत्रकारिता आंदोलन में आप शरीक होना चहाते हो तो
मराठी, हिंदी, इंग्लिश, गुजराती, तेलगू, मळ्याळी, पंजाबी, भाषा जाननेवाले कोई किसी भी धर्म और मत मान्यता के 20 से 50 उम्र के व्यक्ती संपर्क कर सकते है
मुझे 7506000040 इस नंबर पर मेसेज करे. जिसमे
आप का नाम,
पता,
शिक्षा
और
किस स्वरूप योगदान दे सकते हो, इसे विस्तार से लिखे
(*उप्पर दिये नंबर पर कॉल मत करे, यह केवल मेसेज के लिए है*). 5000/7000 लोग भारत के अलग अलग प्रदेश और भाषा से जुडने के बाद मै खुद
आप से संपर्क करुंगा. एक मिटिंग के लिये, जो मुंबई या दिल्ली में होगी.
तब तक के लिये मुझे आज्ञा दीजिये. जल्द ही मुलाकात होगी. धन्यवाद, स्वस्थ राहिये, अपना खयाल राखिये! हम एक 100 मित्रो का ग्रुप " हम भारत के लोग " ग्रुप है. इसलिये
*हम भारत के लोग*