01/09/2025
संघर्ष से शिखर तक... ऊना की 53 वर्ष की शानदार यात्रा
आज जिला ऊना अपना स्थापना दिवस मना रहा है। 1 सितंबर, 1972 को कांगड़ा जिले के पुनर्गठन के बाद अस्तित्व में आया यह जिला गौरवशाली इतिहास और अनेक उपलब्धियों से भरा पड़ा है। कभी राजनीतिक गलियारों में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध थी कि ऊना उन्ना ही रह गया। इसका आशय यही था कि यह छोटा जिला जितना विकास का अधिकार रखता था, उतना विकास इसे नहीं मिल पाया। यह नारा लंबे समय तक चुनाव रैलियों में गूंजता रहा और कई बार सच भी प्रतीत होता था। लेकिन समय की धारा ने परिस्थितियों को बदला और आज यह कहावत बेमानी सी लगती है। कारण साफ है जिला के जनप्रतिनिधियों, प्रशासन और स्थानीय वासियों ने मिलकर विकास की वह इबारत लिखी है, जिसने जिले को एक नई पहचान दी है। चिंतपूर्णी से लेकर हरोली, ऊना से लेकर कुटलैहड़ और गगरेट तक पिछले दो से तीन दशक में विकास कार्यों ने नई गति पकड़ी है। प्रदेश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में पंजाब से सटा यह जिला आज हर क्षेत्र में अपनी अलग छाप छोड़ रहा है। 1540 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले ऊना ने कृषि में अपनी पहचान बनाई है। कृषि ऊना की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। यहां के लोग मेहनती हैं और आधुनिक तकनीक अपनाकर उन्होंने खेती को नए आयाम दिए हैं। धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में चिंतपूर्णी धाम का महत्व विश्वभर में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। जिला के खैर के पेड़ से निकलने वाले कत्थे की देश भर में धाक है। सोमभद्रा नदी से निकलने वाली सिलिका रेत अद्वितीय है। दौलतपुर तक पहुंचा रेलवे ट्रैक और उस पर सरपट दौड़ती रेलगाड़ियां यहां के हर निवासी के सीने में गर्व भर देती है। स्थापना दिवस पर यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि ऊना ने अपनी स्थापना के बाद से अनगिनत मंजिलें तय की हैं और निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर है। यह यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन मेहनत, लगन और सहयोग से आज ऊना एक सशक्त और प्रगतिशील जिले के रूप में सामने आया है। इस शुभ अवसर पर हर ऊनावासी बधाई का पात्र है, क्योंकि जिले की यह प्रगति सामूहिक प्रयास और समर्पण का ही परिणाम है। सचमुच अब ऊना, उन्ना नहीं रहा है।