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"Krishnamurti Paddhati: A divine blend of logic, timing, and intuition written in timeless texts."
22/07/2025

"Krishnamurti Paddhati: A divine blend of logic, timing, and intuition written in timeless texts."

"ये मन्नत के धागे गवाह हैं उन खामोश दुआओं के जो आँसुओं में नहीं, आस्था में भीगी होती हैं।"
21/07/2025

"ये मन्नत के धागे गवाह हैं उन खामोश दुआओं के जो आँसुओं में नहीं, आस्था में भीगी होती हैं।"

शिव को क्यों चढ़ाते हैं जल?"अभिषेकं च रुद्रस्य ये नराः सततं स्मरन्। शिवलोकं गमिष्यन्ति शूलपाणेः प्रियो जनाः॥" — शिवमहाप...
20/07/2025

शिव को क्यों चढ़ाते हैं जल?
"अभिषेकं च रुद्रस्य ये नराः सततं स्मरन्। शिवलोकं गमिष्यन्ति शूलपाणेः प्रियो जनाः॥"
— शिवमहापुराण, विद्येश्वर संहिता
अर्थ: जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमितता से भगवान रुद्र का जलाभिषेक करते हैं, वे शूलधारी शिव के प्रिय बनते हैं और अंततः शिवलोक को प्राप्त करते हैं।

शिव को जल चढ़ाने की परंपरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसके पीछे गहराई से जुड़ा ऊर्जात्मक, तात्त्विक और पौराणिक रहस्य छिपा है। शिव का स्वरूप अग्नि, तांडव, भस्म और तप का प्रतीक है। उनके शरीर पर भस्म, त्रिपुंड, नाग और रुद्राक्ष जैसे चिन्ह उन्हें अत्यंत उष्ण और ऊर्जावान देवता बनाते हैं। ऐसे में जल अर्पण उनके उग्र स्वरूप को शांत करने और ऊर्जा को संतुलित करने का उपाय बनता है।
इस गूढ़ रहस्य को समझने के लिए हमें समुद्र मंथन की कथा को याद करना होगा। जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब अमृत से पहले अत्यंत विषैला हलाहल विष निकला। वह इतना भयंकर था कि सृष्टि का विनाश निश्चित था। ऐसे समय में भगवान शिव ने सारा विष अपने कंठ में धारण कर लिया, परंतु उसे निगला नहीं। उन्होंने उसे वहीं रोक लिया और नीलकंठ कहलाए। यह विष उनके भीतर तीव्र ताप और ऊष्मा का कारण बना, जिसे शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें निरंतर जल अर्पित किया।
यही परंपरा आज भी चली आ रही है। शिव को जल चढ़ाना उनके त्याग, करुणा और तपस्या का स्मरण भी है और ऊर्जात्मक संतुलन की प्रक्रिया भी। महावैदिक दृष्टिकोण से देखें तो यह energy healing है — जहां साधक शिव की अग्निस्वरूप ऊर्जा को जलतत्त्व के माध्यम से संतुलित करता है। शिव पंचतत्त्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश – के जीवंत समन्वय हैं। जल अर्पण हमारे भीतरी ताप को बाहर निकालने और मन को शीतलता देने का माध्यम बनता है।
और जब कोई साधक गहन ध्यान की स्थिति में पहुँचता है, तो एक विशेष अनुभव होता है — मानो सिर से जल की बूंद टपक रही हो! यह कोई भौतिक जल नहीं, बल्कि चेतना की वह अवस्‍था होती है जब साधक शिवतत्त्व से जुड़ जाता है। जैसे शिव की जटाओं से गंगा प्रवाहित होती है, वैसे ही उस साधक के सिर से भी ऊर्जा के रूप में ‘गंगाजल’ की अनुभूति होती है। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि उच्च अवस्था में प्रवेश कर चुका साधक शिव के तरंगित जलतत्त्व से एकाकार हो जाता है।
शिवलिंग पर जल चढ़ाना इस आध्यात्मिक यात्रा की एक शुरुआत है। श्रावण मास, सोमवार, महाशिवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर यह प्रक्रिया और भी अधिक प्रभावशाली मानी जाती है क्योंकि इन समयों में ब्रह्मांडीय ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय होती है।

शिव को जल चढ़ाना सिर्फ एक परंपरा नहीं है — यह शिव के भीतर छिपे त्याग, तप और चेतना के साथ एक गहरा ऊर्जात्मक संबंध है। जब साधक जल चढ़ाता है, तो वह केवल पूजा नहीं कर रहा, बल्कि अपनी चेतना को शिव के जलतत्त्व से जोड़कर, अपने भीतर संतुलन, शांति और शुद्धि का अनुभव कर रहा होता है। और जब यह जुड़ाव पूर्ण होता है, तो सिर पर टपकती ‘जल-बूंद’ की अनुभूति — वह शिवस्वरूप बन जाने की मौन घोषणा होती है।
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15/07/2025
🪔 जब भारतीयता विदेशों में ब्रांड बन गई — और हम चुप बैठे रहे! यह कोई पहली बार नहीं है कि भारत की मौलिक परंपराएं, ज्ञान और...
14/07/2025

🪔 जब भारतीयता विदेशों में ब्रांड बन गई — और हम चुप बैठे रहे!
यह कोई पहली बार नहीं है कि भारत की मौलिक परंपराएं, ज्ञान और संस्कृति को विदेशों में चमकदार पैकेजिंग में पेश कर महंगे दामों पर बेचा जा रहा है — और दुखद यह है कि हम भारतीय ही इसे तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं।
🇮🇳 कोल्हापुरी चप्पल से लेकर प्राड़ा तक का सफर
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड वायरल हुआ जिसमें एक प्रसिद्ध विदेशी फैशन ब्रांड ने कोल्हापुरी चप्पल को नया नाम देकर बेचना शुरू किया — और वह भी हज़ारों डॉलर में। भारतीय जनता आश्चर्यचकित रह गई कि जो चप्पल उन्होंने कभी गाँव के मेले में 300 रुपये में खरीदी थी, वह आज "डिज़ाइनर लग्ज़री" बन चुकी है।
🧘‍♂️ योग नहीं, "योगा" है अब ब्रांड
"योग" जिसे भारत में हजारों वर्षों से ऋषियों ने तप, साधना और स्वास्थ्य का माध्यम बनाया, आज "योगा" बनकर वेस्टर्न लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुका है। वहां लोग महंगे योगा स्टूडियो में जाते हैं, योगा टूरिज्म करते हैं, योगा मट्स और योगा वियर खरीदते हैं — जबकि हम भारतीय अक्सर इसे "बाबा जी की चीज़" कहकर हंसी में टाल देते हैं।
📜 हमारे वेद, हमारी नहीं रहे?
आज विदेशों के विश्वविद्यालयों में वेद, उपनिषद, आयुर्वेद, वास्तु शास्त्र और ज्योतिष जैसे विषयों पर शोध हो रहे हैं। NASA तक 'सूर्य सिद्धांत' और 'शून्य' की अवधारणाओं की प्रशंसा करता है, लेकिन भारत में लोग इन विषयों को "अंधविश्वास" या "पुराना जमाना" कहकर नजरअंदाज करते हैं।
🏠 वास्तु और ज्योतिष – भारत में उपेक्षा, विदेशों में आकर्षण
जब एक भारतीय कहता है कि "मैं वास्तु या ज्योतिष में विश्वास नहीं करता", तो वह केवल एक परंपरा को नहीं, बल्कि हजारों वर्षों की वैज्ञानिक ऊर्जा संतुलन की प्रणाली को नकार देता है। अमेरिका और यूरोप में आज हजारों वास्तु और ज्योतिष सलाहकार करोड़ों में खेल रहे हैं — क्यों? क्योंकि उन्हें इन विधाओं की गहराई और ऊर्जा विज्ञान की समझ हो चुकी है।
🤯 हमने खोया क्या?
गर्व खोया – अपनी चीज़ों पर विश्वास नहीं किया।
ज्ञान खोया – अपनी जड़ों से कटते चले गए।
मार्केट खोया – अपनी चीजों को ब्रांड बनाना नहीं सीखा।
पहचान खो दी – जिसे विदेशियों ने अपना लिया।
🛕 अब समय है – पुनर्जागरण का!
भारत को जरूरत है "संस्कृति-चेतना" की। हमें फिर से अपनी परंपराओं पर गर्व करना होगा, उन्हें गहराई से समझना होगा और अपनी अगली पीढ़ी को बताना होगा कि योग, आयुर्वेद, वास्तु, ज्योतिष केवल रीति-रिवाज नहीं, बल्कि जीवन जीने की विज्ञानपूर्ण प्रणाली हैं।

🪔 "जो दुनिया को रास्ता दिखा रहा है, वह अपने ही घर में अंधकार में क्यों है?" भारत को फिर से अपनी जड़ों से जुड़ना होगा — न केवल पहचान बचाने के लिए, बल्कि अपने भविष्य को संवारने के लिए।


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🌿✨ सावन सोमवार व्रत — शिव जैसा जीवनसाथी क्यों चाहती हैं लड़कियाँ? ✨🌿सावन का महीना मतलब शिव का महीना... और इस पावन समय मे...
13/07/2025

🌿✨ सावन सोमवार व्रत — शिव जैसा जीवनसाथी क्यों चाहती हैं लड़कियाँ? ✨🌿
सावन का महीना मतलब शिव का महीना... और इस पावन समय में लड़कियाँ हर सोमवार व्रत रखती हैं — 💫 क्यों? ताकि उन्हें मिले शिव जैसा पति... क्योंकि शिव सिर्फ एक देव नहीं, आदर्श जीवनसाथी का प्रतीक हैं।

🔱 आख़िर क्यों शिव जैसा पति? क्योंकि शिव ऐसे हैं—
🌊 जिनकी जटाओं में समाई पूरी गंगा, पर वो उन्हें छू भी नहीं सकती... 🐍 गले में सबसे ज़हरीला साँप है, फिर भी वो उन्हें डस नहीं सकता... 🕉 त्रिलोक के नाथ होकर भी, सबसे सरल और सहज हैं... 🍂 भोलापन ऐसा कि एक बेलपत्र से प्रसन्न हो जाते हैं... 🌪 और जब रुष्ट हों तो तांडव से सृष्टि भी काँप जाए!
❝ शिव वो हैं, जो शक्तिशाली होकर भी संयमी हैं, और प्रेम में पूर्ण हैं। ❞

📖 पुराणों में कथा: एक निर्धन ब्राह्मण कन्या ने पूरे सावन में सोमवार व्रत रखे। पूरी श्रद्धा से शिव की पूजा की। शिव प्रसन्न हुए और उसे योग्य, समर्पित पति मिला। तभी से यह परंपरा चलती आ रही है।

🌼 व्रत की विधि:
🕊️ प्रातः स्नान कर शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र चढ़ाएं
"ॐ नमः शिवाय" या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें अंत में प्रार्थना करें — "हे भोलेनाथ, मुझे भी अपने जैसा सहचर दो — जो सरल हो, स्थिर हो, सच्चा हो।"

💚 शिव केवल पूजनीय नहीं, वो प्रेरणा हैं — हर स्त्री के लिए, हर पुरुष के लिए। इस सावन, शिव को मनाइए और शिवत्व को अपनाइए।

12/07/2025

Not Prada it's My OG kolhapuri

"जब देवता भी हारने लगे, तब गुरु बना अंतिम आश्रय – विज्ञान और वेदों की सम्मिलित गाथा"गुरु पूर्णिमा केवल श्रद्धा या परंपरा...
10/07/2025

"जब देवता भी हारने लगे, तब गुरु बना अंतिम आश्रय – विज्ञान और वेदों की सम्मिलित गाथा"

गुरु पूर्णिमा केवल श्रद्धा या परंपरा का पर्व नहीं है, यह उस गहन शक्ति का स्मरण है जो हमें सबसे कठिन समय में भी नीति, विवेक और सुरक्षा का बोध कराती है। भारतीय पुराणों में जब असुरों का आतंक चरम पर था, तब देवताओं ने अनेक बार युद्ध में पराजय का स्वाद चखा। सूर्य का तेज भी असुरों के अज्ञान को चीर नहीं सका, चंद्रमा की शीतलता भी विफल रही। अंततः देवताओं ने देवगुरु बृहस्पति की शरण ली। यह वर्णन हमें देवी भागवत महापुराण, स्कंद पुराण और महाभारत के शांतिपर्व में मिलता है। गुरु बृहस्पति ने युद्ध नहीं, बल्कि धर्म, यज्ञ, नीति और आत्मबल का मार्ग बताया। उन्होंने देवताओं को बाहरी अस्त्रों से अधिक, भीतर की दुर्बलता से लड़ने की विद्या सिखाई। अंततः ज्ञान और संयम के बल पर ही देवताओं को विजय प्राप्त हुई।
आश्चर्य की बात यह है कि आज का विज्ञान भी वही कहता है जो वेदों ने हजारों वर्ष पहले बताया। खगोलशास्त्र के अनुसार, बृहस्पति ग्रह को ब्रह्मांडीय रक्षक कहा जाता है। इसका गुरुत्वाकर्षण इतना विशाल है कि यह हजारों उल्कापिंडों और धूमकेतुओं (वेदों के अनुसार असुर) को पृथ्वी से टकराने से पहले ही खींच लेता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि बृहस्पति न होता, तो पृथ्वी पर जीवन बार-बार नष्ट हो चुका होता। क्या यह केवल संयोग है कि वेदों में जिसे देवताओं का गुरु और रक्षक कहा गया है, वही ग्रह विज्ञान में भी हमारी रक्षा करता है?
यहाँ प्रश्न प्रमाण का नहीं, बल्कि दृष्टिकोण का है — और यही दृष्टिकोण देता है “महावैदिक दर्शन”, जो विज्ञान और वेदों के बीच सेतु बनाता है। जहां विज्ञान गणना से रक्षा करता है, वहीं वेद चेतना से संतुलन लाते हैं। गुरु तत्व उसी संतुलन का वाहक है। ज्योतिष में भी गुरु का स्थान विशेष है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य (पिता) और चंद्रमा (माता) कमजोर या पीड़ित हों, तब भी गुरु ग्रह ही दिशा, धैर्य और समाधान का माध्यम बनता है और जीवन में आशा का संचार करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का यह पर्व केवल वेदों में ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों में भी समान श्रद्धा और सम्मान से मनाया जाता है। सनातन धर्म में यह दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने चारों वेदों का वर्गीकरण किया, 18 पुराणों और महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना कर मानवता को दिव्य ज्ञान दिया। इसलिए उन्हें "आदि गुरु" कहा गया। बौद्ध परंपरा में यह दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि यही वह दिन है जब भगवान बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश दिया था — जिससे बौद्ध संघ की स्थापना हुई। जैन परंपरा में भी, गुरु पूर्णिमा का दिन आचार्य या उपाध्याय की दीक्षा और उनकी ज्ञान-परंपरा को सम्मानित करने का अवसर होता है। सभी परंपराओं में यह दिन गुरु को बाहरी व्यक्ति नहीं, बल्कि एक जाग्रत चेतना, एक ऊर्जा के रूप में प्रणाम करने का पर्व है।
महावैदिक जीवनशैली इस गुरु तत्व को केवल बाहरी व्यक्ति नहीं, बल्कि एक भीतर की ऊर्जा मानती है — जो हमारे शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करती है। जैसे बृहस्पति ग्रह पृथ्वी की रक्षा करता है, वैसे ही एक सच्चा गुरु हमारे भीतर के डर, भ्रम और असंतुलन से रक्षा करता है।
आओ इस गुरु पूर्णिमा पर हम तीन संकल्प लें: पहला, अपने जीवन के हर गुरु — माता-पिता, शिक्षक, और अनुभवों — को मन से स्मरण करें। दूसरा, अपने भीतर के गुरु को जाग्रत करें — जो हमें सत्य-असत्य का विवेक देता है। और तीसरा, केवल ज्ञान प्राप्त न करें, बल्कि उसे जीवन में उतारें। क्योंकि जब तेज विफल हो जाता है, तब गुरु की नीति ही जीवन की नाव को पार लगाती है।
लेखिका
आचार्या दीपिका जैन
(महावैदिक कोच)
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गुरु वह शक्ति है जो सारे ग्रहों को अपनी शक्ति से सीधा कर देनमन
10/07/2025

गुरु वह शक्ति है जो सारे ग्रहों को अपनी शक्ति से सीधा कर दे
नमन

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