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naman_official_13 मेरा नाम रश्मि है।
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हाथ जोड़ कर रिक्वेस्ट है इस कहानी को पूरा पढ़िएगा और अगर पसंद आए तो एक लाइक जरूर कर दीजियेगा..चंद्रपुर नगर में एक प्रसिद...
10/09/2025

हाथ जोड़ कर रिक्वेस्ट है इस कहानी को पूरा पढ़िएगा और अगर पसंद आए तो एक लाइक जरूर कर दीजियेगा..

चंद्रपुर नगर में एक प्रसिद्ध सुनार रहता था, उसका नाम था तिलकराज।
वह सोने के गहने बनाकर बेचता था और उसकी सबसे बड़ी पहचान थी – ईमानदारी।

बाजार में उसकी जैसी कई दुकाने थीं, मगर भीड़ हमेशा तिलकराज की दुकान पर उमड़ी रहती थी।
क्योंकि लोग जानते थे – उसके गहनों में कभी मिलावट नहीं होती।

बाकी सुनार इससे परेशान थे।
वे चोरी-छुपे सोने में तांबा-पीतल मिलाकर मोटा मुनाफा कमाते और चाहते कि तिलकराज भी उसी राह पर चले।

एक रात, दुकान बंद करने के बाद जब तिलकराज घर लौट रहा था,
तो कुछ सुनारों ने उसे रोक लिया।

वे बोले –
“भाई, तुम कब तक इस ईमानदारी का बोझ उठाओगे?
थोड़ी मिलावट कर लो, पैसा चार गुना बढ़ेगा।
इतनी सच्चाई से तुम्हें हासिल ही क्या हो रहा है?”

उनकी बातें तिलकराज के दिल में कील की तरह चुभ गईं।
वह सोच में डूबा घर पहुँचा।

जैसे ही उसने दरवाजा खोला, उसकी पाँच साल की बेटी दौड़कर गले से लिपट गई।
बेटी की मासूम हँसी ने उसका मन हल्का कर दिया।

तभी पत्नी कावेरी भोजन लेकर आई।
आम दिनों में तिलकराज हर निवाले की तारीफ करता था,
मगर आज चुपचाप थाली में घूरता रहा।

कावेरी ने हैरानी से पूछा –
“क्या आज खाना अच्छा नहीं बना?”

तिलकराज चौंक कर बोला –
“नहीं… खाना तो हमेशा की तरह उत्तम है।
बस मेरा मन कहीं और अटका है।”

वह धीरे से बोला –
“कावेरी, हम सालों से ईमानदारी से जी रहे हैं।
लेकिन अब लगता है कि इसी कारण हम ठहरे रह गए हैं।
बाकी सुनार तो अमीर हो चुके हैं,
क्योंकि वे सोने में मिलावट कर बेहिसाब कमाई करते हैं।
आज उन्होंने मुझे भी समझाया कि थोड़ी मिलावट कर लूँ।
सोच रहा हूँ… अगर ऐसा करूँ तो हमारी बेटी का भविष्य संवर जाएगा।”

कावेरी यह सुनते ही अवाक रह गई।
उसने कड़े स्वर में कहा –
“क्या आप चाहते हैं कि अपनी संतान का भविष्य चोरी के पैसों से गढ़ें?
लोग आप पर भरोसा करते हैं,
उस विश्वास के साथ आप गद्दारी करेंगे?”

तिलकराज झुँझलाकर बोला –
“तुम समझती क्यों नहीं?
कुछ साल ऐसा कर लूँगा,
फिर छोड़ दूँगा।
इससे हमारे पास संपत्ति आ जाएगी।”

कावेरी की आँखों में आँसू भर आए।
उसने कहा –
“संपत्ति तो आ जाएगी,
लेकिन इज्जत?
ईमान?
ये सब खो दोगे तो बचा ही क्या रहेगा?”

लेकिन तिलकराज पर लालच का पर्दा चढ़ चुका था।
वह चुप रहकर खाना खाता गया और सोने चला गया।
---
अगली सुबह उसने कारीगर को बुलाकर आदेश दिया –
“आज से गहनों में थोड़ी तांबे की मिलावट करना।”

कारीगर अनमने मन से मान गया।
पहला ही ऑर्डर एक बड़े सेठ का था।
उन्होंने बेटे की शादी के लिए भारी-भरकम गहने बनवाए थे।

जेवर तैयार हुए।
तिलकराज ने मुस्कराते हुए ग्राहक को सौंप दिए और पैसा थैले में रख लिया।
शाम को कारीगर ने बचा हुआ सोना लाकर दिया।
तिलकराज के मन में बिजली सी कौंधी –
“अगर रोज इतना सोना बचता रहा तो कुछ ही सालों में मैं नगर का सबसे धनी आदमी बन जाऊँगा।”

उस रात वह पैसों और सपनों में खोया रहा।
पर कावेरी जब सच्चाई जान गई तो उसकी नींद उड़ गई।
उसने पति को समझाया,
मगर तिलकराज ने उसे ‘मूर्ख औरत’ कहकर टाल दिया।
---
उस रात तिलकराज को एक भयावह सपना आया।
उसने देखा –
उसकी बेटी बड़ी हो गई है, विवाह का दिन है।
दूल्हे के परिवार ने गहनों की मिलावट पकड़ ली और बारात वापस लौट गई।
बेटी के आँसुओं में डूबकर पूरा घर उजड़ गया।

तिलकराज पसीने-पसीने होकर जागा।
उसने सपना कावेरी को बताया।
कावेरी बोली –
“देखा, यही होता है बेईमानी का अंजाम।
हमारी असली दौलत हमारी ईमानदारी है।
तुम ये रास्ता तुरंत छोड़ दो।”

तिलकराज ने थरथराती आवाज़ में कहा –
“तुम सही कहती हो।
अब मैं कभी ये गलती नहीं करूँगा।
लेकिन यह बचा हुआ सोना… इसका क्या करूँ?
अगर लौटाने जाऊँ तो सेठ मुझे झूठा समझेगा।”

कावेरी ने समझाया –
“कोई बहाना बनाकर सही समय पर सोना लौटा देना।
गलती मान लोगे तो भगवान भी माफ कर देंगे।”
---

अगले दिन तिलकराज दुकान पर बैठा,
मगर बेचैनी ने चैन छीन रखा था।
शाम को दुकान बंद कर घर लौटते समय
वह एक शादी के जुलूस के पास रुक गया।

भीड़ में शोर था।
दुल्हन का पिता चिल्ला रहा था –
“आप नकली गहने लेकर मेरी बेटी का अपमान करने आए हैं?
ये रिश्ता अब नहीं होगा!”

तिलकराज ने जब पास जाकर देखा तो उसका दिल धक से रह गया।
वह वही सेठ था, जिसने उससे गहने बनवाए थे।
गहने वहीं रखे थे और लोग उनकी जाँच कर रहे थे।

सुनार बुलाया गया।
उसने कहा –
“इनमें तांबे की मिलावट है।”

सेठ गुस्से से गरज उठा –
“यह धोखा तिलकराज ने दिया है।
मैं कल ही उसकी दुकान बंद करवा दूँगा और जेल भिजवाऊँगा।”

तभी तिलकराज काँपते हुए आगे बढ़ा और बोला –
“सेठ जी, मुझे माफ कीजिए।
जेवर की मजबूती के बहाने थोड़ी मिलावट कर दी थी।
लेकिन ये रहा उतना ही सोना,
मैं आपको लौटाना चाहता था।
आपका पता नहीं जानता था,
यही वजह है कि देर हो गई।”

उसने थैले से सोना निकाला।
सुनार ने तौला तो उतना ही निकला जितनी मिलावट थी।

सेठ गुस्से में भी नरम हो गया और बोला –
“अच्छा हुआ समय पर आ गए,
वरना मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाती।”

समधी को सच्चाई पता चली तो उन्होंने शादी की रस्में जारी रखीं।

---
उस रात तिलकराज घर लौटा।
उसका मन हल्का और आत्मा साफ थी।
उसने पूरी घटना कावेरी को सुनाई।

कावेरी बोली –
“देखा, ज़रा सी बेईमानी से किसी की बेटी की शादी टूट सकती थी,
किसी की जान भी जा सकती थी।
याद रखना, सच्चाई ही सबसे बड़ी दौलत है।”

तिलकराज ने सिर झुकाकर कहा –
“हाँ कावेरी, अब मैं जीवनभर कभी बेईमानी नहीं करूँगा।”

अगले दिन से तिलकराज फिर वही पुराना सुनार बन गया –
ईमानदार, विश्वसनीय और सम्मानित।

---plese लाइक फॉलो एंड कॉमेंट

शनिवार की रात थी। घड़ी में 9 बज रहे थे।मैं मार्केट से सब्ज़ी और बाकी सामान लेकर घर की ओर लौट रहा था। रात का समय था इसलिए...
10/09/2025

शनिवार की रात थी। घड़ी में 9 बज रहे थे।
मैं मार्केट से सब्ज़ी और बाकी सामान लेकर घर की ओर लौट रहा था। रात का समय था इसलिए जल्दी-जल्दी चल रहा था। तभी अचानक सामने पत्नी की बहन, रिया, मिल गई।

रिया ने आते ही रास्ता रोक लिया और बोली –
“जीजाजी, आज आपके साडू भाई घर पर नहीं हैं… आप मेरे साथ चलिए, मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।”

उसके चेहरे पर अजीब-सा भाव था। मुझे उसकी बात सुनकर झटका लगा। देर रात किसी का इस तरह रोकना और अकेले घर चलने की बात करना बिल्कुल सही नहीं लगा।

मैंने तुरंत मोबाइल निकाला और अपनी पत्नी स्वरा को फोन किया।
“रिया मिली है, कह रही है कि मुझे घर चलना है। तुम भी वहीं आ जाओ,” मैंने जल्दी से कहा।

फोन रखकर मैं रिया की तरफ़ मुड़ा। उसने नाराज़ होकर कहा –
“जीजाजी, इतनी सी बात के लिए जीजी को क्यों बुलाया? मैं तो सिर्फ आपसे अकेले बात करना चाहती थी।”

मैंने साफ़ आवाज़ में जवाब दिया –
“रिया, रात का समय है। तुम परिवार की लड़की हो। अगर कोई सच में ज़रूरी काम है तो हम सब मिलकर हल करेंगे। लेकिन मुझे अकेले तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना। या तो हम सब साथ चलेंगे, या फिर मैं पुलिस हेल्पलाइन को कॉल करूंगा।”

कुछ ही देर में स्वरा भी वहाँ आ गई। अब हम तीनों रिया के घर पहुँचे। दरवाज़ा खोलते ही सारी सच्चाई सामने आ गई—वहाँ कोई समस्या ही नहीं थी। न कोई बीमारी, न कोई इमरजेंसी।

स्वरा ने हैरान होकर पूछा –
“रिया, आखिर तुमने ऐसा क्यों कहा? क्यों जीजाजी को अकेले बुलाना चाहा?”

रिया अचानक रोने लगी और बोली –
“मेरी शादी अच्छी नहीं चल रही। मेरे पति मुझसे ठीक से बात नहीं करते। मैं परेशान रहती हूँ। अंदर ही अंदर जलन होती है कि तुम्हारा घर खुशहाल है। इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम्हारे रिश्ते में भी दरार पड़ जाए, तो मुझे थोड़ा सुकून मिलेगा…”

उसकी बात सुनकर मैं और स्वरा दोनों हैरान रह गए। स्वरा ने गुस्से से कहा –
“रिया, ये सोच बहुत गलत है। हमारा घर भरोसे और विश्वास से चल रहा है। अगर तुम्हें परेशानी है तो हम सब तुम्हारे साथ हैं। तुम्हें संभालेंगे। लेकिन अपने दुख की वजह से दूसरों का घर तोड़ना बिल्कुल गलत है।”

मैंने भी गंभीर होकर कहा –
“परिवार में रिश्ते बहुत नाज़ुक होते हैं। अगर एक बार भरोसा टूट जाए तो ज़िंदगी भर जोड़ा नहीं जा सकता। झूठ और चालाकी से कभी सुख नहीं मिलता।”

अगले दिन परिवार की मीटिंग हुई। सब लोग इकट्ठा हुए और रिया ने सबके सामने माफ़ी माँगी। यह तय किया गया कि आगे से अगर किसी को कोई दिक़्क़त हो, तो सीधे सच बोलकर मदद मांगी जाएगी। झूठ और फरेब से किसी का घर तोड़ने की कोशिश नहीं होगी।

धीरे-धीरे रिया ने भी काउंसलिंग शुरू की। उसने अपनी शादी को सुधारने का प्रयास किया। और हमारी फैमिली में भरोसा पहले से और मज़बूत हो गया।

---

संदेश

रिश्ते भरोसे और सच्चाई से चलते हैं।

अगर परेशानी हो तो खुलकर बताओ, छुपकर चालाकी मत करो।

एक घर तोड़कर अपना सुख नहीं पाया जा सकता।

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डिस्क्लेमर

यह कहानी काल्पनिक है। इसका उद्देश्य केवल समाज को संदेश देना है कि परिवार में विश्वास, सीमाएँ और सच्चाई बहुत ज़रूरी हैं। इसे किसी वास्तविक घटना या व्यक्ति से जोड़कर न देखा जाए।

" माफ कीजिए ननद रानी। लेकिन आपको जो चाहिए अपने मायके वालों से मांगो। मेरे मायके वालों से क्या उम्मीद करती हो। भला वो आपक...
10/09/2025

" माफ कीजिए ननद रानी। लेकिन आपको जो चाहिए अपने मायके वालों से मांगो। मेरे मायके वालों से क्या उम्मीद करती हो। भला वो आपको क्यों देंगे "
अभी एक महीने पहले आई नई बहु तान्या ने कहा।उसके मुंह से ये जवाब सुनकर ननद वाणी और सास जमुना जी हैरान रह गई। उन्हें तो बिल्कुल उम्मीद ही नहीं थी कि नयी बहू ये जवाब देगी। पर इतनी आसानी से भला वो क्यों हार मानती।" बहु तुम अपनी ननद को कैसे जवाब दे रही हो। वाणी तुमसे पद में भी बड़ी है और उम्र में भी। आज तक बड़ी बहू ने भी ये जवाब नहीं दिया"जमुना जी ने कहा।
" माफ करना मम्मी जी। मुझे नहीं पता कि भाभी जी ने क्यों जवाब नहीं दिया? पर मैं जवाब दे रही हूं। मेरे मायके में
कोई चीज बिना मोल के नहीं आती, जो एक जैसी दो लेकर आऊं "तान्या ने जवाब दिया।
" क्यों? तुम्हारा मायका अनोखा है जो दो चीज नहीं ला सकती। बड़ी भाभी भी तो लेकर आती है मेरे लिए सामान।आज उनकी शादी को पांच साल हो चुके हैं। लेकिन मजाल है कि उन्होंने पलटकर जवाब भी दिया हो"
वाणी ने कहा।"बड़ी भाभी ने क्या किया, क्या नहीं। ये मुझे नहीं पता। और ना ही मुझे जानने का शौक है। पर मैं अपने मायके से कोई भी सामान दो लेकर नहीं आऊंगी। मुझे अपने मायके पर बोझ बनने का शौक नहीं है"
तान्या ने कहा और अपने कमरे में चली गई।उसके यूं कमरे में चले जाने से वाणी और जमुना जी और ज्यादा जल भून गई।
" देखा आपने मम्मी, कैसे जवाब देकर गई है मुझे"वाणी ने तुनकते हुए कहा।" हां बेटा, देख रही हूं। इस नई बहू के बहुत ज्यादा पर है। जिन्हें काटकर छोटे करने ही पड़ेंगे। आने दे शाम को तेरे
भाई को। अब वही बात करेगा इससे"जमुना जी ने कहा।
जमुना जी के दो बेटे थे। बड़ा बेटा प्रदीप और उसकी पत्नी मानसी नौकरी के कारण दूसरे शहर में रहते थे। उनका एक
बेटा भी था जो अभी ती साल का था। छोटे बेटे समर की अभी एक महीने पहले ही तान्या से शादी हुई थी।उनकी एक बेटी भी थी जिसका नाम वाणी था। उसका ससुराल इसी शहर में था। पर जमुना जी के मन में वाणी के
लिए ज्यादा लगाव था। इसलिए वो उसके गलत में भी साथ देती थी।वाणी की बड़ी खराब आदत थी। उसे कपड़े और बाकी का सामान वैसे ही चाहिए होते थे जैसे भाभी के मायके से
आते थे। इसलिए जमुना जी ने अपनी बड़ी बहू को भी साफ कह रखा था कि वो अपने मायके से जो भी सामान लाए, वो एक नहीं बल्कि दो लेकर आए। ताकि वाणी को भी दिया जा सके।
शुरुआत में मानसी ये सोचकर एक जैसा ले भी आई कि जमुना जी उसे एक जैसे सामान के पैसे दे देगी। लेकिन उन्होंने जब काफी दिन तक पैसे नहीं दिए तो अगली बार मायके जाते समय मानसी ने जमुना जी से कहा,
"मम्मी जी दीदी के लिए पिछली बार जो सामान लेकर आई थी, आपने उसके पैसे नहीं दिए"
" अरे तेरे माता-पिता को हमसे पैसे लेते हुए शर्म नहीं आएगी। बेटी को दिया जाता है या उससे लिया जाता है"" पर मम्मी जी वो सामान तो दीदी के लिए आया था ना। आप ने ही तो कहा था एक जैसा लेकर आना है"
" हां तो एक जैसा लेकर आना है मतलब तेरे मायके वालों की तरफ से लेकर आना है। हम क्यों उसके पैसे देंगे भला "कहकर जमुना जी अपने हाथ नचाती हुई कमरे में जाकर बैठ गई। ये सुनकर मानसी का दिमाग खराब हो गया। उसने इस बारे में अपने पति प्रदीप से बात की तो प्रदीप ने समझाना चाहा। लेकिन उस समय वाणी भी जमुना जी
के एक फोन पर अपने मायके आ गई। और दोनों ने मिलकर काफी हंगामा कर दिया,"अरे बहन बेटी को ही तो दे रहे हैं। उनका तो काफी धर्म लगता है। उसमें भी इतने नाटक कर रहे हैं। नहीं देंगे पैसे। क्या कर लोगे? और दो सामान तो तुम्हें लाना ही
पड़ेगा। एक ही ननद है उसको लेने देने में मैं कभी कोई कमी नहीं छोड़ने दूंगी"जमुना जी ने कहा।आखिर थक हार कर प्रदीप ने मानसी को ही समझा दिया,
"देखो मैं इन लोगों को नहीं समझा सकता। तुम एक काम करो। तुम अपने ही जैसा सामान खरीद लिया करो और उसके पैसे मैं तुमको दे दिया करूंगा। मम्मी पापा से खर्च मत करवाना। आखिर मुझ में भी कुछ स्वाभिमान है "सुनकर मानसी चुप हो गई। जब अगली बार वह अपने मायके गई तो अपने जैसी ही दो साड़ियां खरीद कर वाणीके लिए ले आई लेकिन उसे समय उसके माता-पिता ने उसे डिनर सेट गिफ्ट किया था। उस डिनर सेट के लिए भी उसने काफी हंगामा कर दिया।
आखिर प्रदीप ने थक हार कर अपने साले से ही कह दिया कि तुम्हारे माता-पिता को जो भी विदाई देनी अपनी बेटी को, वो सीधा रेलवे स्टेशन ही पहुंचा दिया करें। हम लोग जाते समय वहां से ले जाया करेंगे।बस तब से मानसी ने यह नियम बना लिया। वो अपने मायके से हमेशा दो साड़ी से ज्यादा कुछ लेकर ही नहीं आती। और दो साड़ी के लिए भी कई बार जमुना जी ने ताना भी मारा,"तेरे माता-पिता आजकल विदाई कम दे रहे हैं "
तो प्रदीप ने जवाब दिया,
" अब एक जैसा दो-दो खरीदेंगे तो कितना खरीदेंगे। इसलिए बेटी की विदाई ही कम कर दी"
लेकिन तब भी जमुना जी ने ये नहीं कहा कि तुम दो-दो सामान मत लाया करो। खैर, पिछले पांच साल से यही सब चल रहा था। ये बात समर भी भली भांति जानता था क्योंकि वो ही अपने भाई भाभी को रेलवे स्टेशन छोड़ने जाया करता था। और वहां वो देखता था कि कैसे भाभी का भाई एक बैग में भाभी के लिए विदाई लेकर आता था।
जब उसकी शादी हुई तब मानसी ने उससे कहा भी," देवर जी तैयार हो जाओ। अब आपको भी कई मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा"समर मानसी के कहने का तात्पर्य समझ गया था।
" भाभी अब तो सीधा आर या पार की ही बात करनी पड़ेगी। भैया ने तो जो डिसीजन लिया, मैं वो नहीं ले सकता। आखिर
मुझे तो इसी जगह पर रहना है। मेरी तो नौकरी भी यही है। देखता हूं क्या कर सकता हूं "
कह कर समर चुप हो गया।
समर ऑफिस से घर आया तो देखा वाणी और जमुना जी मुंह फुलाए बैठी थी। समर को देखते ही जमुना जी बोली, " समर देख तेरी पत्नी ने आज मेरी और वाणी की कितनी बेज्जती की है"
यह सुनकर पहले तो समर हैरान रह गया लेकिन जब उन्होंने सारी बात बताई तो उसे समझते देर नहीं लगी कि आखिर क्या हुआ होगा। उसने अपने आप को शांत रखते हुए कहा,"हां मम्मी, अब मैं भी क्या कर सकता हूं। मैं तो वैसे ही परेशान हूं। आज जीजा जी का भी फोन आया था। कह रहे थे कि तुम्हारी दीदी को जो सामान दिलाते हो, वो कम से कम तीन दिलाया करो। मेरी दो-दो बहने हैं। उनके लिए भी चाहिए"" अरे हम क्यों देंगे सामान? बेटी की ननदों को तो मौके पर ही दिया जाता है। ऐसे हर बार की लाग थोड़ी ना है, जो
जितनी बार बेटी मायके आएगी तो उसकी विदाई के अनुसार उसकी ननदों को भी देंगे "
जमुना जी तुनकते हुए बोली।
" क्यों? दीदी भी तो लेकर जाती है यहां से। फिर जीजा जी और दीदी के ससुराल वाले क्यों गलत है?"" अरे मैं तो तुम्हारी अकेली बहन हूं। तुम्हारी पत्नियों को तो एक को ही देना पड़ता है। पर मेरी तो दो-दो ननदें है। आखिर मेरा मायका लुटाने के लिए थोड़ी ना है"अब की बार वाणी बोली।
" अच्छा दीदी, खुद के मायके वालों के पैसे खर्च हो रहे हैं तो दर्द हो रहा है। और अपनी भाभी के मायके वाले कुछ नहीं।
उनके पास क्या खजाना भरा पड़ा है। जो हर बार तुम पीछे पड़ जाती हो"" अच्छा! तो मेरी बेटी को देने के नाम पर ये सब सुना रहा है। खबरदार एक भी शब्द बोला तो। देख लेना फिर "
" क्या देख लेना मम्मी। कहीं ऐसा ना हो बेटी के चक्कर में आप अकेली रह जाओ। और जहां तक मुझे लगता है तुम्हारी बेटी तो तुम्हारी सेवा करने वाली नहीं है। जो खुद अपना मांग मांगकर काम चला रही है वो तुम्हारे लिए क्या कर लेगी। अपनी बेटी को देना है तो अपने दम पर दो ना। किसी और पर बोझ क्यों डाल रही हो"
समर ने कहा। समर की बात सुनकर जमुना जी ने वाणी की तरफ देखा। जिसके खुद के चेहरे पर से हवाइयां उड़ी हुई थी। आखिर ये देखकर जमुना जी चुप हो गई। उसके बाद उन्होंने दोबारा कभी अपनी बहूओं को एक जैसा दो सामान लाने के लिए नहीं कहा।
#नजरअंदाज
#शिकायत
#आंसू
#समय #दूरियां

राजेश और मीरा काफी दिनों के बाद आज एक साथ बैठकर चाय पी रहे थे क्योंकि आज उनकी शादी की 25वीं सालगिरह थी। पहले की तरह वह अ...
09/09/2025

राजेश और मीरा काफी दिनों के बाद आज एक साथ बैठकर चाय पी रहे थे क्योंकि आज उनकी शादी की 25वीं सालगिरह थी। पहले की तरह वह अब साथ में समय बिताते नहीं थे। ज्यादा साथ में एक दूसरे के पास बैठते नहीं थे। पता नहीं किन कारणों से उन दोनों के बीच की दूरी बढ़ती ही जा रही थी।

चाय पीते-पीते मीरा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा - मुझे आपसे बहुत कुछ कहना है, आपको बहुत कुछ बताना है लेकिन अब हमारे पास एक दूसरे के लिए #समय ही नहीं है। मैंने इस बारे में बहुत सोचा है और मैंने इस #सिचुएशन से निपटने का एक उपाय निकाला है, अगर आप #राजी हो तो बताती हूं।

राजेश ने सिर हिलाकर #हामी भरी।

मीरा ने टेबल के ड्रॉअर से दो #डायरी निकाली और बोली मैं यह दो डायरी लेकर आई हूं, एक आपके लिए और एक मेरे लिए। आज के बाद हम दोनों को एक दूसरे से जो भी #शिकायत होगी वह हम अपनी-अपनी डायरी में लिख कर रखेंगे! 1 साल बाद जब हमारी 26वीं सालगिरह आएगी तब हम उसे खोलकर पढ़ेंगे। तब हमे एक-दूसरों की उन चीजों या आदतों के बारे में पता चलेगा जो हमे नहीं पसंद है और हम उन्हें सुधार पाएंगे या कोई उपाय कर पाएंगे।

राजेश को भी मीरा का #आईडिया पसंद आया और उसी दिन से डायरी में लिखना शुरु हो गया। देखते ही देखते 1 वर्ष बीत गया और 26वीं सालगिरह का दिन आ गया।

राजेश और मीरा दोनों ही #डाइनिंग टेबल पर बैठकर चाय पी रहे थे और पास में दोनों की अपनी-अपनी डायरी रखी हुई थी जो उन्होंने एक दूसरे के साथ बदल दी। चाय खत्म कर के पहले राजेश ने मीरा की डायरी पढ़नी शुरू कि। उस डायरी में काफी सारी शिकायतें थी... जैसे कि आज #होटल में ले जाने के लिए वादा किया था लेकिन फिर भी नहीं लेकर गए!

आज मेरे #मायके से मेहमान आए थे, उनके साथ राजेश ने अच्छे से बात नही की!

कितने महीनों बाद आज मेरे लिए #साड़ी लाई लेकिन पुराने डिजाइन की!

आज मेरे #सीरियल देखने के समय राजेश ने चैनल बदल कर #न्यूज चला दी!

आज गीला तौलिया #सोफे पर छोड़ दिया!

ऐसी कई सारी शिकायतें थी... डायरी को पढ़ते-पढ़ते राजेश की आंखों में #आंसू आ गए। राजेश को काफी #अफसोस हुआ। वो अपनी पत्नी से बोला मुझे इन गलतियों के बारे में एहसास ही नहीं था लेकिन अब मैं तुमसे वादा करता हूं कि ऐसी गलतियां मैं अब फिर से नहीं दोहराऊंगा।

अब मीरा ने राजेश की डायरी खोली। मीरा ने डायरी के कई सारे पन्ने पलटे लेकिन वह पूरी तरह से खाली थी! कहीं पर भी एक शब्द भी नहीं लिखा था! मीरा बोली: आपने तो डायरी में कुछ लिखा ही नहीं है। राजेश बोला: आखिरी पन्ना देखो मैंने उसी पर लिखा है।

उस पन्ने पर लिखा था -

तुमने मेरे लिए और मेरे परिवार के लिए इतने सालों में जो #त्याग किया है और हम सब को जितना #प्यार दिया है, उसके आगे मैं तुम्हारे खिलाफ इस डायरी में कुछ भी नहीं लिख सकता! और इससे भी जरूरी, मुझे कभी तुम में कोई #कमी देखने की इच्छा हुई ही नहीं! ऐसा नहीं है कि तुम में कोई कमी नहीं है, लेकिन तुम्हारे प्यार, #समर्पण और त्याग के आगे तुम्हारी कोई भी कमी बहुत छोटी है। मेरी अनगिनत गलतियों को #नजरअंदाज करके तुमने इस कठिन जीवन में मेरा साए की तरह साथ दिया है और हमेशा मेरे साथ खड़ी रही। तुम ही बताओ, कोई भी अपने ही साए में दोष निकाले तो निकाले कैसे?

अब मीरा की आंखें #नम थी। मीरा ने राजेश के हाथ से अपनी शिकायतों की डायरी ले ली और उसे जला दिया!

पति-पत्नी का रिश्ता एक दूसरे पर #विश्वास पर टिका होता है और उसी से वह मजबूत होता है। उम्र के एक दौर में पति-पत्नी को एक बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि एक-दूसरे में गलतियां और कमियां निकालने के बजाय अगर यह याद रखा जाए कि उसके साथी ने उसके लिए कितना त्याग किया है, तो इससे उनका रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत हो जाएगा।

दोस्तो, छोटी सी इस कहानी को लिखने के पीछे मेरा प्रयास है कि इन दिनों पति-पत्नी में बढ़ती जा रही #दूरियां कम हो सकें और खासकर गलतफहमियों की वजह से या सिर्फ बात ना करने की वजह से बढ़ती जा रही दूरियों को आराम से, शांति से बैठकर #बात करके कम किया जा सकता है या खत्म भी किया जा सकता है।

दोस्तो कहानी पसन्द आई हो तो एक लाइक और अपने दोस्तों से शेयर करना मत भूलना !

शनिवार की रात थी। घड़ी में 9 बज रहे थे।मैं मार्केट से सब्ज़ी और बाकी सामान लेकर घर की ओर लौट रहा था। रात का समय था इसलिए...
09/09/2025

शनिवार की रात थी। घड़ी में 9 बज रहे थे।
मैं मार्केट से सब्ज़ी और बाकी सामान लेकर घर की ओर लौट रहा था। रात का समय था इसलिए जल्दी-जल्दी चल रहा था। तभी अचानक सामने पत्नी की बहन, रिया, मिल गई।

रिया ने आते ही रास्ता रोक लिया और बोली –
“जीजाजी, आज आपके साडू भाई घर पर नहीं हैं… आप मेरे साथ चलिए, मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।”

उसके चेहरे पर अजीब-सा भाव था। मुझे उसकी बात सुनकर झटका लगा। देर रात किसी का इस तरह रोकना और अकेले घर चलने की बात करना बिल्कुल सही नहीं लगा।

मैंने तुरंत मोबाइल निकाला और अपनी पत्नी स्वरा को फोन किया।
“रिया मिली है, कह रही है कि मुझे घर चलना है। तुम भी वहीं आ जाओ,” मैंने जल्दी से कहा।

फोन रखकर मैं रिया की तरफ़ मुड़ा। उसने नाराज़ होकर कहा –
“जीजाजी, इतनी सी बात के लिए जीजी को क्यों बुलाया? मैं तो सिर्फ आपसे अकेले बात करना चाहती थी।”

मैंने साफ़ आवाज़ में जवाब दिया –
“रिया, रात का समय है। तुम परिवार की लड़की हो। अगर कोई सच में ज़रूरी काम है तो हम सब मिलकर हल करेंगे। लेकिन मुझे अकेले तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना। या तो हम सब साथ चलेंगे, या फिर मैं पुलिस हेल्पलाइन को कॉल करूंगा।”

कुछ ही देर में स्वरा भी वहाँ आ गई। अब हम तीनों रिया के घर पहुँचे। दरवाज़ा खोलते ही सारी सच्चाई सामने आ गई—वहाँ कोई समस्या ही नहीं थी। न कोई बीमारी, न कोई इमरजेंसी।

स्वरा ने हैरान होकर पूछा –
“रिया, आखिर तुमने ऐसा क्यों कहा? क्यों जीजाजी को अकेले बुलाना चाहा?”

रिया अचानक रोने लगी और बोली –
“मेरी शादी अच्छी नहीं चल रही। मेरे पति मुझसे ठीक से बात नहीं करते। मैं परेशान रहती हूँ। अंदर ही अंदर जलन होती है कि तुम्हारा घर खुशहाल है। इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम्हारे रिश्ते में भी दरार पड़ जाए, तो मुझे थोड़ा सुकून मिलेगा…”

उसकी बात सुनकर मैं और स्वरा दोनों हैरान रह गए। स्वरा ने गुस्से से कहा –
“रिया, ये सोच बहुत गलत है। हमारा घर भरोसे और विश्वास से चल रहा है। अगर तुम्हें परेशानी है तो हम सब तुम्हारे साथ हैं। तुम्हें संभालेंगे। लेकिन अपने दुख की वजह से दूसरों का घर तोड़ना बिल्कुल गलत है।”

मैंने भी गंभीर होकर कहा –
“परिवार में रिश्ते बहुत नाज़ुक होते हैं। अगर एक बार भरोसा टूट जाए तो ज़िंदगी भर जोड़ा नहीं जा सकता। झूठ और चालाकी से कभी सुख नहीं मिलता।”

अगले दिन परिवार की मीटिंग हुई। सब लोग इकट्ठा हुए और रिया ने सबके सामने माफ़ी माँगी। यह तय किया गया कि आगे से अगर किसी को कोई दिक़्क़त हो, तो सीधे सच बोलकर मदद मांगी जाएगी। झूठ और फरेब से किसी का घर तोड़ने की कोशिश नहीं होगी।

धीरे-धीरे रिया ने भी काउंसलिंग शुरू की। उसने अपनी शादी को सुधारने का प्रयास किया। और हमारी फैमिली में भरोसा पहले से और मज़बूत हो गया।

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संदेश

रिश्ते भरोसे और सच्चाई से चलते हैं।

अगर परेशानी हो तो खुलकर बताओ, छुपकर चालाकी मत करो।

एक घर तोड़कर अपना सुख नहीं पाया जा सकता।

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डिस्क्लेमर

यह कहानी काल्पनिक है। इसका उद्देश्य केवल समाज को संदेश देना है कि परिवार में विश्वास, सीमाएँ और सच्चाई बहुत ज़रूरी हैं। इसे किसी वास्तविक घटना या व्यक्ति से जोड़कर न देखा जाए।


एक गाँव में एक किसान रहता था, जिसका जीवन साधारण था, लेकिन उसकी ज़िन्दगी में एक उलझन भी थी। उसकी दो पत्नियाँ थीं, और दोनो...
08/09/2025

एक गाँव में एक किसान रहता था, जिसका जीवन साधारण था, लेकिन उसकी ज़िन्दगी में एक उलझन भी थी। उसकी दो पत्नियाँ थीं, और दोनों से उसे एक-एक बेटा था। दोनों बेटों की शादी हो चुकी थी, और किसान को लगा कि अब उसकी ज़िन्दगी स्थिर और सुखी हो गई है। लेकिन समय ने उसे एक नई चुनौती दी, जब उसके छोटे बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी।

बड़े भाई ने अपने छोटे भाई का इलाज करवाने की पूरी कोशिश की। उसने गाँव के आस-पास के वैद्यों से परामर्श लिया, लेकिन छोटे भाई की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। धीरे-धीरे खर्च बढ़ता गया, और छोटे भाई की हालत और भी बिगड़ती चली गई। बड़े भाई के मन में चिंता ने धीरे-धीरे एक कड़वाहट का रूप ले लिया।

एक दिन, बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह-मशविरा किया। उसने कहा, "यदि छोटा भाई मर जाए, तो हमें उसके इलाज के लिए और पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा।" उसकी पत्नी, जो उसकी सोच में सहभागी हो गई थी, ने एक भयानक सुझाव दिया, "क्यों न किसी वैद्य से बात करके उसे जहर दे दिया जाए? किसी को शक भी नहीं होगा, और उसकी मौत को बीमारी के कारण माना जाएगा।"

बड़े भाई ने अपनी पत्नी की बात मान ली और एक वैद्य से संपर्क किया। उसने वैद्य से कहा, "जो भी तुम्हारी फीस होगी, मैं देने को तैयार हूं। बस मेरे छोटे भाई को ऐसा जहर दे दो, जिससे उसकी मृत्यु हो जाए।" लालच और निर्दयता से भरे वैद्य ने इस नृशंस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और छोटे भाई को जहर दे दिया। कुछ ही दिनों में छोटे भाई की मृत्यु हो गई।

बड़े भाई और उसकी पत्नी ने अंदर ही अंदर खुशी मनाई, यह सोचते हुए कि अब रास्ते का कांटा निकल गया है और सारी संपत्ति उनकी हो गई। छोटे भाई का अंतिम संस्कार कर दिया गया, और समय बीतता चला गया।

कुछ महीनों के बाद, किसान के बड़े बेटे की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई, और उन्होंने बड़े लाड-प्यार से बच्चे की परवरिश की। समय के साथ वह लड़का जवान हो गया, और उसकी शादी भी धूमधाम से कर दी गई। लेकिन खुशी के ये दिन अधिक समय तक नहीं टिक सके।

शादी के कुछ समय बाद, बड़े बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। उसके माता-पिता ने उसके इलाज के लिए हर संभव कोशिश की। कई वैद्यों से परामर्श लिया गया, और जो भी पैसा माँगा गया, वे देने को तैयार थे। अपने बेटे की जान बचाने के लिए उन्होंने अपनी आधी संपत्ति तक बेच दी, लेकिन उसका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया। अब वह मौत के दरवाजे पर खड़ा था, शरीर इतना कमजोर हो चुका था कि उसकी हालत देखकर दिल दहल उठता था।

एक दिन, वह लड़का अपने चारपाई पर लेटा हुआ था, और उसका पिता उसे दुख भरी नजरों से देख रहा था। लड़के ने अचानक अपने पिता से कहा, "भैया, अपना हिसाब पूरा हो गया है। अब बस कफन और लकड़ी का इंतजाम बाकी है, उसकी तैयारी कर लो।"

पिता ने सोचा कि उसका बेटा बिमारी के कारण बड़बड़ा रहा है और बोला, "बेटा, मैं तेरा बाप हूं, भाई नहीं।"

लड़के ने दुखी आवाज में कहा, "पिताजी, मैं आपका वही भाई हूं जिसे आपने जहर देकर मरवा दिया था। जिस संपत्ति के लिए आपने मुझे मारा, वही अब मेरे इलाज में आधी बिक चुकी है। हमारा हिसाब बराबर हो गया है।"

यह सुनकर पिता का दिल टूट गया। वह फूट-फूट कर रोने लगा और बोला, "मेरा तो कुल नाश हो गया। जो मैंने किया, वह सब मेरे सामने आ गया। पर तेरी पत्नी का क्या दोष है, जो उसे इस बेचारी को जिंदा जलाया जाएगा?" उस समय सतीप्रथा चल रही थी, जिसमें पति की मृत्यु के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था।

लड़के ने दुख भरी नजरों से अपने पिता को देखा और कहा, "पिताजी, वह वैद्य कहां है, जिसने मुझे जहर खिलाया था?"

पिता ने उत्तर दिया, "तुम्हारी मृत्यु के तीन साल बाद वह मर गया था।"

लड़के ने कड़वाहट से हंसते हुए कहा, "वह दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी के रूप में है। मेरे मरने पर उसे भी जिन्दा जलाया जाएगा।"

कहते हैं, परमेश्वर का न्याय अटल होता है। इस कहानी में उस न्याय की झलक मिलती है। जीवन में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब कहीं न कहीं सामने आ ही जाता है।

कहानी के अंत में यही संदेश मिलता है कि जो बोओगे, वही काटोगे। जीवन में सच्चाई और ईमानदारी से जीना ही सबसे बड़ा धर्म है।

अंततः यही सच है कि:

"धर्मराज लेगा तिल-तिल का लेखा,
ऋण संबंध जुड़ा है ठाडा,
अंत समय सब बारह बाटा।"



रामनगर का युवक राहुल अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए सरकारी अस्पताल गया। डॉक्टरों ने कहा – “सब नॉर्मल है, डिलीवरी सामान्य त...
08/09/2025

रामनगर का युवक राहुल अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए सरकारी अस्पताल गया। डॉक्टरों ने कहा – “सब नॉर्मल है, डिलीवरी सामान्य तरीके से हो जाएगी।” लेकिन अस्पताल में व्यवस्था की इतनी कमी थी कि हर पल डर बना रहता—कभी बिजली चली जाती, कभी जरूरी दवाइयाँ नहीं मिलतीं। घबराए राहुल को लगा कि कहीं पत्नी और बच्चे की जान खतरे में न पड़ जाए।

मजबूरी में वह पत्नी को एक प्राइवेट हॉस्पिटल ले गया। वहाँ डॉक्टर ने तुरंत कह दिया – “ऑपरेशन करना पड़ेगा, वरना रिस्क है।” डर से काँपते राहुल ने लाखों रुपए खर्च करके ऑपरेशन करवा दिया। बच्चा और माँ दोनों तो सुरक्षित रहे, लेकिन राहुल भारी कर्ज़ में डूब गया।

कुछ दिन बाद राहुल सीधे खान सर के हॉस्पिटल पहुँचा और उनसे हाथ जोड़कर बोला –

“खान सर, आप लोगों के लिए शिक्षा में इतना कुछ कर चुके हैं। मेरी आपसे विनती है कि आपके अस्पताल में ऐसी व्यवस्था जरूर होनी चाहिए कि गरीब लोग बिना डर के यहाँ इलाज करा सकें। मरीज को नॉर्मल डिलीवरी हो तो ऑपरेशन का नाम लेकर लूट न हो। लोग अपने बच्चों को बचाने के लिए लाखों रुपये खर्च करके कर्ज़दार हो जाते हैं। अगर आपका हॉस्पिटल एक आदर्श बन जाए तो न जाने कितने परिवारों की तकलीफें कम हो जाएँगी।”

खान सर ने राहुल की बात गंभीरता से सुनी और वादा किया –
“राहुल, तुम्हारी पीड़ा ही असली समाज का दर्द है। मैं कोशिश करूँगा कि हमारे अस्पताल में गरीब और अमीर सबके लिए बराबर की सुविधा हो। यहाँ इलाज का मक़सद इंसान की जान बचाना होगा, न कि मुनाफा कमाना।”

राहुल की आँखों से आँसू छलक आए। उसे पहली बार लगा कि कोई तो है जो सच में जनता के दर्द को समझता है।

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समाज के लिए संदेश

👉 हमें ऐसी पारदर्शी और संवेदनशील अस्पताल व्यवस्था की ज़रूरत है, जहाँ इलाज का मक़सद मुनाफा नहीं बल्कि इंसान की ज़िंदगी हो।
👉 खान सर जैसे लोग अगर स्वास्थ्य सेवा में भी आदर्श खड़ा करें, तो लाखों गरीब परिवारों को कर्ज़ और डर से मुक्ति मिल सकती है।

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डिस्क्लेमर

यह कहानी केवल समाज की सच्चाइयों और चुनौतियों को उजागर करने के उद्देश्य से लिखी गई है। किसी भी डॉक्टर या अस्पताल को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाने का इरादा नहीं है।

07/09/2025

खाना खाकर पति-पत्नी रात को सो गए।
रात के 12 बजे पत्नी की नींद खुली तो उसने देखा – उसका पति जाग रहा है और बार-बार करवटें बदल रहा है।

पत्नी ने पूछा –
“क्या बात है जी? अभी तक सोए नहीं?”

पति ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा –
“नींद नहीं आ रही… तुम सो जाओ, थोड़ी देर में मुझे भी आ जाएगी।”

पत्नी उसकी बात मानकर सो गई

रात के 2 बजे पत्नी को प्यास लगी। पानी पीने के लिए उठी तो देखा – उसका पति अब भी जाग रहा है, गहरी सोच में डूबा हुआ।

पत्नी के मन में सवाल उठा –
"दिनभर ठेले पर फल बेचने वाला आदमी, जो थककर पल भर में सो जाता है… आज उसे नींद क्यों नहीं आ रही? ज़रूर कोई बड़ी चिंता है।"

उसने प्यार से पूछा –
“क्या परेशानी है जी? मुझसे कुछ छुपा रहे हैं क्या?”

पति टालते हुए बोला –
“नहीं… बस नींद नहीं आ रही। तुम सो जाओ।”

लेकिन पत्नी ने उसका हाथ अपने सिर पर रखकर कहा –
“खाओ मेरी कसम! सच बताइए, क्या बात है?

कसम, सुनकर पति की आँखें भर आईं। धीरे से बोला –

“पड़ोसी से जो पैसे हमने एक साल के एग्रीमेंट पर लिए थे… वह अभी से मांग रहा है। कह रहा है, ‘पैसे नहीं दिए तो बहुत बुरा होगा।’
पर अभी तो तीन महीने भी नहीं हुए…
क्या करूँ? ठेला बेचकर भी इतना पैसा नहीं जुटा पाऊँगा।”

पति की बात सुनते ही पत्नी का चेहरा सख्त हो गया। उसने उसका हाथ पकड़ा और कहा –
“चलो मेरे साथ।”

रात के 2 बजे वह पति को लेकर पड़ोसी के घर पहुँची।
उसने जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू कर दिया।

शोर सुनकर मोहल्ला इकट्ठा हो गया।
पड़ोसी घबराकर बाहर आया और गुस्से में बोला –
“क्या हुआ? इतनी रात को दरवाजा क्यों पीट रही हो?”

पत्नी ने सबके सामने डटकर कहा –“सुनिए भाई साहब!
हमने आपसे पैसा एक साल के एग्रीमेंट पर लिया है। अभी तो तीन महीने ही हुए हैं।
एग्रीमेंट से पहले पैसे मांगना गलत है। और मेरे पति को धमकाना तो और भी गलत!”

वह गुस्से में आगे बोली –
“आपने कहा था कि ‘बहुत बुरा होगा’?
तो सुन लीजिए… जो करना है कर लीजिए।
कानून मेरे साथ है और मैं पीछे नहीं हटूँगी।”

सारा मोहल्ला खामोश होकर यह दृश्य देख रहा था।
पड़ोसी शर्म से पानी-पानी हो गया।
पति की आँखों से आँसू बह निकले – मगर इस बार दर्द के नहीं, गर्व के थे।

पत्नी उसका हाथ पकड़कर घर लौटी और बोली –
“अब आप आराम से सो जाइए… अब वह जागेगा।”

👉 यही होती है एक सच्ची पत्नी – जो अपने पति और बच्चों के लिए किसी से भी लड़ जाती है।
👉 पति जहाँ जिम्मेदारी से दबकर टूटने लगता है, वहीं पत्नी ढाल बनकर खड़ी हो जाती है।
👉 कभी-कभी जैसे को तैसा जवाब देना ज़रूरी होता है।

* मेहमानों की कैसी हिस्सेदारी *आज काफी देर हो गई थी। रात के आठ बज चुके थे। चंचल बार बार घड़ी की तरफ देख रही थी। घर जाकर ...
07/09/2025

* मेहमानों की कैसी हिस्सेदारी *
आज काफी देर हो गई थी। रात के आठ बज चुके थे। चंचल बार बार घड़ी की तरफ देख रही थी। घर जाकर खाना भी बनाना है, कोई मदद तो करेगा नहीं। बस दिमाग में यही चले जा रहा था। जैसे ही उसने घर में कदम रखा, मेघा जी ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया,"इतनी देर कैसे लग गई? ध्यान नहीं था क्या कि रात का खाना भी बनाना है"
"आज हॉस्पिटल में बहुत भीड़ थी। नंबर आते-आते काफी वक्त लग गया"
"अरे तो खाना बना कर चली जाती। कोई पता होता है कि हॉस्पिटल में कितना वक्त लगता है। आते समय घर के लिए सब्जियां ले आई क्या। कल सुबह जल्दी खाना बनेगा तो तैयारी तो अभी करनी पड़ेगी"
"जी, ले आई"
चंचल चुपचाप रसोई की तरफ चल दी सब्जियां रखने। उसे पता था हाल तो कोई पूछेगा नहीं पर यह जरूर पूछेगा कि जो सामान लाना था, वह लाई कि नहीं। सामान रखकर पानी का गिलास लिया ही था कि मेघा जी रसोई में भी आ गई,"चंचल एक काम करो। अभी के लिए तो सिर्फ रोटी, कोई भी सब्जी और बूँदी का रायता बना लो। और फिर सुबह के लिए भी तैयारी कर के रख देना। विनीत और नित्या (मेघा जी के छोटे बेटे बहू, जो कि दूसरे शहर रहते हैं और कुछ दिनों के लिए यहां आए हुए हैं) सुबह सात बजे यहाँ से निकल जाएँगे। तैयारी रहेगी तो खाना बनाने में देर नहीं लगेगी"
यह कहकर मेघा जी जिस गति से रसोई में आई थी, उसी गति से चली भी गई। रसोई में चंचल अकेली खड़ी रह गई। उसे तो बोलने का मौका ही नहीं दिया। जबकि सबको पता है कि उसकी तबीयत खराब है।
मन मार कर चंचल आटा गूंथने के लिए आटा निकाल ही रही होती है कि उसी समय आशीष (चंचल का पति) रसोई में आता है और चंचल को काम करते देख कर बोलता है,
"यह तुम क्या कर रही हो? खड़े रहने की तो हिम्मत नहीं है और तुम ऐसे में काम करने में लगी हो"
"मैं क्या करूं आशीष? किसी ने मेरी तबीयत का नहीं पूछा। बस बता कर चले गए काम क्या करना है"
"अरे! तो मां को कह देती। मां और नित्या दोनों मिलकर खाना बना लेते"
"क्या मां और नित्या दोनों को नहीं पता कि हम लोग हॉस्पिटल से ही आए हैं"
"तुम जाओ कमरे में, आराम करो। आज खाना बाहर से मंगा लेंगे"
"मम्मी जी हंगामा कर देगी"
"मैं देख लूंगा। तुम जाओ"
चंचल अपने कमरे में आराम करने चली गई चली गई। थोड़ी देर बाद मेघा जी रसोई में आई तो चंचल को वहां ना पाकर उसके कमरे की तरफ गई। देखा तो चंचल बिस्तर पर लेटी हुई है,
"बहू, आज का खाना नहीं बनेगा क्या? जो तुम आराम कर रही हो"
"मम्मी जी, मेरी हिम्मत नहीं है। वैसे भी आशीष जी ने कह दिया है कि वो खाना बाहर से मंगा रहे हैं"
बाहर से खाना मंगाने की बात सुन कर के ही मेघा जी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया,
"सब समझती हूं मैं। विनीत और नित्या को देख कर तुम खुश नहीं होती। जलती हो तुम उन दोनों से, तभी तो तुम्हारी तबीयत खराब हो गई। आशीष को बेवकूफ बना सकती हो, अपने पापा जी को भी बेवकूफ बना सकती हो, पर मुझे नहीं"
मेघा जी की बात सुनकर चंचल की आंखों में आंसू आ गए,
"ऐसा क्या कर दिया मैंने? आज मेरी हिम्मत नहीं है इसलिए मैं खाना नहीं बना पाई। नित्या और विनीत जब भी आते हैं मेहमानों की तरह ही आते हैं, घर के सदस्यों की तरह तो कभी नहीं आए। वह भी तो बहू है, क्या वह आज खाना नहीं बना सकती थी। फिर भी हमने उससे कहने से अच्छा बाहर से खाना मंगा लिया, तब भी आप मुझे सुना रही है"
"हां, मेहमान ही है। थोड़े दिन के लिए आती है पर फिर भी आंखों में सालती है तुम्हारी। अरे, कौन सा ऐसा तुम से पकवान बनाने को कह दिया था मैंने। रोटी सब्जी बनाने को ही तो कहा था"
इतने में आशीष कमरे में आ गया जिसे देखकर मेघा जी चुप हो गई।
"मां, खाना आ चुका है। आप और नित्या सबको खाना परोस दीजिए"
"अब क्या खाना परोसने की भी हिम्मत नहीं है इसकी"
"हां, चंचल की तबीयत ज्यादा खराब है। डॉक्टर ने उसे आराम करने के लिए कहा है। आप लोग अपने लिए परोस लीजिए। रही बात मेरी और चंचल की, मैं खुद खाना परोस कर अपने कमरे में ले आऊंगा"
मेघा जी भूनभूनाती हुई कमरे के बाहर निकल गई। बाहर जाकर नित्या को बुलाकर विनीत, पापा जी, खुद के और नित्या के लिए खाना परोसने लगी। इतने में आशीष भी आ गया और खुद के और चंचल के लिए खाना लगाने लगा।
"भैया, भाभी को हमारा आना पसंद नहीं है क्या, जो बीमार पड़ गई"विनीत ने कहा।
"अब तुम क्यों बेवजह बोले जा रहे हो? किसी को घर में मेहमानों का आना पसंद नहीं है तो क्या कर सकते हैं? अपने अपने संस्कार है"नित्या ने कहा।
इससे पहले कि आशीष कुछ कहता मेघा जी ही बोल पड़ी,
"अब हर किसी के मां बाप तो संस्कार नहीं सिखा सकते ना। जैसे पल्ले पड़ी है, वैसे ही निभाओ। और वैसे भी, अभी हम जिंदा है। हमारा घर है, आराम से आओ। देखती हूं कौन मना करता है"
काफी देर से पापा जी सब बकवास सुने जा रहे थे उन्होंने आशीष की तरफ देखते हुए कहा,
"अरे आशीष, जो शास्त्री नगर वाले प्लॉट को हमने बेचा था, उसका सारा पेमेंट आ गया क्या?"
आशीष एकटक पापा जी को देखता ही रहा। उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि पापा जी ने यह क्या पूछा? पर इतना तो था कि सबकी निगाहें अब पापा जी की तरफ थी।
"अरे, हमारा शास्त्री नगर में कोई प्लॉट भी था, मुझे तो पता ही नहीं। और था भी तो कितने में बेचा? हमें तो कुछ भी नहीं बताया" मेघा जी ने कहा।
"हां, बहुत पहले खरीदा था मैंने। पूरे सत्तर लाख में बिका है। आधा पेमेंट तो उन लोगों ने पहले दे दिया था, आधा पेमेंट बाद में देने के लिए कहा था। उसी के लिए पूछ रहा था"
अभी भी आशीष अपने पापा को एकटक ही देखे जा रहा था। इससे पहले कि वह कुछ बोलता पापा जी ने दोबारा कहना शुरू कर दिया,
"सोच रहा हूं कि एक प्लॉट खरीद लूँ आशीष और चंचल के नाम से। आखिर हमारे बेटे बहू है, इन पर इतना तो विश्वास किया ही जा सकता है"
"आखिर ऐसे कैसे? दो बेटे हैं आपके तो हिस्सा भी तो बराबरी का होना चाहिए"मेघा जी ने कहा।
"हां, पापा यह तो गलत बात है। आखिर भैया के साथ साथ मैं भी तो आपका बेटा हूं। मेरा भी बराबर का हिस्सा बनता है"विनीत ने कहा।
"हां पापा जी, आप प्लाॅट लोगे तो चारों के नाम का लोगे। अन्यथा अपने नाम से ही लो, ताकि बाद में जब बंटवारा हो तो सबको बराबर का हिस्सा मिले"अबकी बार नित्या ने कहा।
सबकी बातें सुनकर पापा जी मुस्कुराने लगे, "अरे! ऐसा कैसे हो सकता है? भला मेहमानों की कैसी हिस्सेदारी"
"कैसी बात कर रहे हैं आप? विनीत भी आपका बेटा है, नित्या भी आपकी बहू है। तो ये भी बराबर के हकदार हुए ना"
"अच्छा! हिस्सेदारी में बराबर का हक याद है तुम्हें, और घर के कामों में और जिम्मेदारी में बराबर का हिस्सा याद नहीं तुम्हें। और वैसे भी, अभी थोड़ी देर पहले तुम लोग अपने आप को मेहमान बता रहे थे घर का। अब क्या हुआ?"
"आज चंचल की तबीयत खराब है तो तुम लोग इतना नाच रहे हो, जबकि जब भी तुम लोग घर में आते हो, तब वह अकेली ही काम में लगी रहती है"
"और तुम, तुम्हारी सेवा करने के लिए चंचल ही यहां पर होती है, तुम्हारे ये मेहमान नहीं। उसके संस्कार गिनाने से अच्छा अपने संस्कार गिनो। समझे ना। और हां, कोई प्लॉट लौट नहीं है। यह तो मैंने तुम्हारी जुबान खुलवाने के लिए बोला था। आइंदा जरा सोच समझकर बोलना"
पापा जी की सीधी और सपाट बात सुनकर सब चुप हो गए। मेघा जी के मुंह से बोल तक नहीं फूटे। और आशीष, वह आंखों ही आंखों में अपने पिता को धन्यवाद दे रहा था कि कम से कम उन्होंने तो सच का साथ दिया।


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