Er. Manish

Er. Manish - Navodayan

- Digital Media Consultant

 #गदर2025
16/05/2025

#गदर2025

15/05/2025

कर्नाटक में हिंदी भाषी लोगों पर बढ़ते हमले चिंता का विषय है।

हाल ही में हमारे समाज के चिंतक Rakesh Kumar भैया के साथ सिर्फ़ हिंदी बोलने की वजह से शारीरिक हमला किया गया। ये घटनाएं न सिर्फ़ भाषा के अधिकारों पर हमला हैं, बल्कि देश की एकता को भी चुनौती देती हैं।

कांग्रेस शासित कर्नाटक में ऐसी घटनाओं का बढ़ना दुर्भाग्यपूर्ण है। खासकर तब, जब कांग्रेस के बिहार प्रभारी Krishna Allavaru स्वयं कर्नाटक से आते हैं। क्या वे मुख्यमंत्री Siddaramaiah जी से मिलकर इन घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कोई पहल करेंगे?

बिहार के पत्रकार साथियों से निवेदन है कि वे कृष्णा अल्लावरू जी से इस मुद्दे पर जवाब मांगें। क्या हिंदी भाषी लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं बनती?

भाषा का सम्मान, नागरिक का अधिकार। 🙏

15/05/2025

तुर्की पर अपना स्टैंड स्पष्ट करने में कांग्रेस पार्टी को आखिर इतनी परेशानी क्यों हो रही है?

विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफिंग में साफ़ बताया गया कि पाकिस्तान ने तीन दिनों तक जो सैकड़ों ड्रोन भारतीय सीमा में भेजे, उनमें से कई तुर्की निर्मित थे।

ऐसे में कांग्रेस की चुप्पी या भ्रमित प्रतिक्रिया क्या दर्शाती है?

जब एक हिंदू ब्राह्मण नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी मुस्लिम आइडेंटिटी पॉलिटिक्स को प्राथमिकता देगी, तो उसकी विदेश नीति भी इसी ढांचे में ढलती नज़र आएगी।

मुस्लिम आइडेंटिटी पॉलिटिक्स पर पलने वाली ‘हिंदू राजनीति’ इस देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है!

Rakesh Kumar

इंदिरा गांधी होना कोई आसान बात नहीं है!आज एक बार फिर से देश को यह समझ में आ रहा है कि क्यों इंदिरा जी को "लौह महिला" कहा...
10/05/2025

इंदिरा गांधी होना कोई आसान बात नहीं है!
आज एक बार फिर से देश को यह समझ में आ रहा है कि क्यों इंदिरा जी को "लौह महिला" कहा जाता था। देशहित में लिए गए उनके फैसले आज भी प्रेरणा देते हैं।

आज की परिस्थितियों को देखकर मन में उनके लिए सम्मान और भी गहरा हो गया है।
जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर अगर लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा और गृह मंत्री अमित शाह के अंदर ज़रा सी भी नैतिकता और शर्म बची हो, तो उन्हें तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए।

देश आपसे जवाब मांग रहा है।

जब हम युद्ध के द्वार पर खड़े थे, तब वार्ता की ओर बढ़ना क्या वाकई सही फैसला है प्रधानमंत्री जी?पाकिस्तान से POK को वापस ल...
10/05/2025

जब हम युद्ध के द्वार पर खड़े थे, तब वार्ता की ओर बढ़ना क्या वाकई सही फैसला है प्रधानमंत्री जी?

पाकिस्तान से POK को वापस लेने और बलूचिस्तान की आज़ादी का समर्थन करने का यह सबसे अनुकूल समय था। हमारे वीर जवान सरहद पर अदम्य साहस के साथ दुश्मन का सामना कर रहे हैं। पूरे देश का मनोबल ऊंचा है, माहौल हमारे पक्ष में है। ऐसे समय में बातचीत की पहल कहीं हमें एक ऐतिहासिक अवसर से वंचित न कर दे।

नरेंद्र मोदी जी, आपके पास इतिहास रचने का सुनहरा अवसर था — ऐसा निर्णय जो भारत की आने वाली पीढ़ियों को गौरवान्वित कर सकता था। लेकिन इस मोड़ पर अगर हम पीछे हटते हैं, तो भविष्य में आपको एक सशक्त नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक अवसर गंवाने वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जा सकता है।

कृपया विचार कीजिए — क्या हम वाकई एक स्वर्णिम मौका गंवा रहे हैं?

30/04/2025

सामाजिक चिंतक Rakesh Kumar भैया पेशे से गणित के शिक्षक हैं। इंजीनियरिंग एंट्रेंस की तैयारी करने वाले बच्चे को गणित पढ़ाते हैं। उनके साथ बंगलौर में इस वीडियो में दिख रहे फुलस्लिव टीशर्ट वाले व्यक्ति ने फिजिकली मिसबिहेव किया है। 112 नंबर पर कॉल करने पर पुलिस आई है और आरोपी को पकड़कर थाना ले गई है जहां राकेश भैया के द्वारा कंप्लेन लिखाया जा रहा है। इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है। ऐसी घटना नॉर्थ वर्सेज साउथ की दूरी को बढ़ाने वाला है। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। कर्नाटक की सरकार और बंगलौर पुलिस को इस तरह की घटना पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाए जाने की जरूरत है।
BENGALURU CITY POLICE

ऐश्वर्या ठाकुर के इस लेख को पढ़ने के बाद ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिए। ऐश्वर्या ठाकुर लिखती हैं:- 👇'करगस को हुमा क्या लिख...
25/04/2025

ऐश्वर्या ठाकुर के इस लेख को पढ़ने के बाद ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिए। ऐश्वर्या ठाकुर लिखती हैं:- 👇

'करगस को हुमा क्या लिखना..'

बौद्धिक वर्ग के चौधरियों के तुर्रे लगातार हो रही आलोचना से ढीले पड़ रहे हैं और इस वर्ग-विशेष में तिलमिलाहट है कि क्यों इन 'निर्दोष कलमवीरों' को बार-बार कोसा जाता है? हालांकि किस्सा-मुख्तसर यही है कि दोगलेपन, दोहरे मापदंडों, मौकापरस्ती और पक्षपात के चलते ही बुद्धिजीवी वर्ग की साख गिरी है, वरना बुद्धिजीवी होना अपनेआप में एक उपलब्धि हुआ करती थी। अगर अब भी कथनी-करनी में सामंजस्य बिठा थोड़ी ईमानदारी बरत लें, तो इनकी कागज़ी पगड़ी बची रह जाएगी। वरना Grok, Gemini, ChatGPT बड़ी जल्दी अपनी credibility से इनकी armchair कब्ज़ा लेंगे। मैंने तो इनकी बौद्धिक बेईमानी पर अपनी observations की एक सरसरी लिस्ट बनाई है; आप अपनी बनाइए 👉🏼

• बुल्डोजर राज के खिलाफ़ बौद्धिक मोर्चे पर डटे इंटेलेक्चुअल अपने झंडे तले होते 'ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के राजनीतीकरण' से जानबूझकर अंजान बने रहते हैं। 'बुल्डोजर न्याय' की आलोचना करते हुए tractor mobocracy पर चुप्पी साधे रखना इनकी विशुद्ध बौद्धिक बेईमानी का सबूत लगता है।

• किसानों के आवरण में बैठे मिलिटेंट यूनियनिस्टों के जो चेहरे बात-बात पर 'राजधानी जाम कर देंगे! दिल्ली घेर लेंगे! रसद पानी बंद कर देंगे' ललकारते हुए ON AIR चेतावनियां देते हैं, उनको हीरो बनाते हुए Indian Express जैसे अखबार PR PIECE लिख डालते हैं: "Farm agitation has a new face: 31-year-old engineer-turned-spokesperson फलाना ढिमका'! Mobocracy की फिक्र में दुबलाते बुद्धिजीवी इस khapocracy model पर खामोश रहते हैं।

• अक्सर हमारा बौद्धिक-वर्ग इतिहास में अंग्रेज़ों के साथ रहे गुलाम भारतीय समूहों के संबंधों पर एकमुश्त 'ब्लैक एंड व्हाइट' रुख अख्तियार कर उन सबको, खासकर राजपूतों को, नैतिक कटघरे में खड़ा कर देता है, जो अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध बना पाए। प्रोफेसर हरबंस मुखिया जैसे अग्रज भी राजपूत समुदाय के आज़ादी आंदोलन में दिए योगदान को बड़ी बेशर्मी से नकार देते हैं जबकि अन्य समुदायों जैसे बंगाली भद्रलोक, जाटों, सिखों, दलितों, मुसलमानों और राष्ट्रपिता गांधी के अंग्रेजों के साथ रहे मधुर व्यावहारिक संबंधों पर चुप्पी साधे रहते हैं ताकि खलनायकी का ठीकरा 'ठाकुर के सिर' फोड़ा जा सके। इतिहासबोध और इतिहासलेखन में इससे बड़ी बौद्धिक बेईमानी क्या होगी।

• कर्गस की ही तरह बुद्धिजीवी, जातीय हिंसा में प्रोफाइलिंग और बैलेंसिंग करते हुए चुन चुनकर वही केस उजागर करते हैं जिनमें आरोपी राजपूत हों लेकिन आरोपी अगर गैर राजपूत, पिछड़े या मुसलमान हों तो मामले पर चुप्पी बनाए रखेंगे। जालौर या हाथरस की वीभत्स दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर जिन बौद्धिक लिखाड़ों ने हिंदी पट्टी के जातिवाद और सामंती अपराधतंत्र पर आवाज़ उठाई, उनकी आवाज़ लखीमपुरी खीरी की दलित बहनों की अल्पसंख्यकों द्वारा की गई हत्या पर खामोश हो जाती है। यह देखना खतरनाक है कि 'एक्टिविज्म' भी कितना 'सेलेक्टिव' है यहां!

• रिया चक्रवर्ती को सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई से क्लीन चिट मिलते ही बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया को रिया से माफ़ी मांगने के लिए कह रहा था, लेकिन वही बुद्धिजीवी वर्ग क्या हाथरस गैंगरेप के आरोपियों को SC/ST COURT से क्लीन चिट मिलने और बरी होने के बाद क्या इन लड़कों को खलनायक बनाकर पेश किए जाने पर राहुल गांधी और मीडिया से माफ़ी मांगवाएगा?

• यह बुद्धिजीवी फूलन देवी के कथित खूनी प्रतिशोध को सेलिब्रेट करते हैं, कंगना को थप्पड़ मारने वाली सिक्योरिटी गार्ड को चीयर करते हैं मगर lynching के खिलाफ उपन्यास भी लिखते हैं; गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी की प्रतिशोधवश की गई हत्याओं को सुविधानुसार शहादत भी बताते हैं। यानी प्रतिशोध भी कैटेगरी वाइस कैटलॉग्ड है।

• जब विद्युत जमवाल की नई फ़िल्म 'शेर सिंह राणा' की घोषणा हुई,जो फूलन देवी के हत्यारोपी & तिहाड़ से अफगानिस्तान जाकर पृथ्वीराज चौहान की कथित अस्थियां भारत लाने वाले शेर सिंह राणा पर आधारित थी, तब बौद्धिक वर्ग में इस फिल्म के खिलाफ खूब विरोध हुआ,बवाल मचा,माहौल बनाया गया। लेकिन अब JNUSU के पूर्व प्रेसिडेंट कॉमरेड चंद्रशेखर (चंदू) के हत्यारोपी और राजद से पार्षद रहे गैंगस्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन के जीवन पर आधारित सिरीज़ 'रंगबाज़' ओटीटी पर आ चुकी है मगर मजाल है इसी बौद्धिक वर्ग से विरोधस्वरूप कहीं से कोई चूँ भी सुन जाए।

• पठान और जाट जैसी फ़िल्मों के जाति/नस्लसूचक शीर्षक पर किसी बौद्धिक सुधिजन को कोई सामाजिक आपत्ति नहीं होती मगर जब कोई रवींद्र जडेजा एक ट्वीट में लिख देता है तो The Print के शेखर गुप्ता, ज्योति यादव और आरफा ख़ानम शेरवानी जैसे नाम जडेजा की नस्ली पहचान के खिलाफ लेख लिख लिखकर अखबार काले कर देते हैं। वहीं 'अहीरवटी' को लेकर शान से ट्वीट करती हुई ज्योति यादव और अपनी 'मुस्लिम पहचान' को assert करने पर ज़ोर देती हुई आरफा ख़ानम पर किसी बुद्धिजीवी को कभी आपत्ति नहीं हुई।

• बुद्धिजीवियों के लाडले अनुभव सिन्हा ने बदायूं रेप केस पर आधारित फ़िल्म Article 15 को जातीय विषमता दर्शाने वाला सिनेमा बताया था पर बौद्धिक बेईमानी देखिए कि केस के असल अभियुक्त की(यादव)जाति बदलकर फ़िल्म में बलात्कारी एक 'निहाल सिंह','ब्रह्मदत्त सिंह' बनाकर उनकी असल जातीय पहचान गड्डमड़ कर दी जाती है। इस तरह के बेईमान cinematic depiction से जातीय विषमता की सूरत कैसे साफ होगी जब पिछड़ों द्वारा दलितों पर बरपाए जाने वाले तशद्दुद पर कहानीकार पर्दा डालने की कोशिश करेंगे?

• हमारे यही बुद्धिजीवी 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' के पक्ष में कुणाल कामरा और मुनव्वर फारुकी जैसी आवाज़ों को तो समर्थन देते हैं पर शाकाहार के पक्ष में और पशु हत्या के विरोध में लिखने वाले लेखक सुशोभित की किताबें न छापने की लिए सरेआम लॉबी बनाकर प्रकाशकों पर दबाव बनाते हैं।

• एक तरफ जहां 'पद्मावती', 'सम्राट पृथ्वीराज' और हल्दीघाटी प्रसंग जैसी बहसों को बार-बार हवा देकर राइटविंग '(हिंदू) राजपूत बनाम (मुसलमान) मुगल' नैरेटिव गढ़ता है, वहीं इसी राइटविंग नैरेटिव को घुमाकर आगे बढ़ाने का काम लेफ़्ट-लिबरल-सेंट्रिस्ट और बुद्धिजीवी खेमा भी खूब करता है, 'राजपूत बनाम मुगल' ब्रांड के टारगेटेड रिव्यू, लेख, पोस्ट्स, चुटकुले और निबंध लिखकर।

• इन्हीं बुद्धिजीवियों द्वारा जब जब नवाबों, सुल्तानों और मुगल बादशाहों की बात होती है, तब नफ़ासत, तहज़ीब & शान-ओ-शौकत की बात होती है। पर जब किसी राजपूत रियासत की बात होती है, तो इनके द्वारा सामंतवाद की 'बात उठाई जाती है', तब अत्याचार की 'बात उठाई जाती है'! रजवाड़ा अगर 'नवाब' न होकर 'राजपूत' हो ,तो Intelligentsia की नज़र में वह by default 'खलनायक' हो जाता है। टोंक के साहिबजादे इरफ़ान खान हों या पटौदी के नवाब सैफ़, यहां तक कि अयोध्या के ब्राह्मण रजवाड़े इनके लिए 'सम्मानित रॉयल्स' हैं लेकिन राजपूत राजशाही को देखते ही इनको द्वेषपूर्ण विशेषण लिखने याद आजाते हैं।

• जनकवि रमाशंकर यादव विद्रोही का यह कहना कि "मैं अहीर हूँ और ये दुनिया मेरी भैंस है" बौद्धिकों की नज़र में 'assertion' हो जाता है लेकिन मनीष सिसोदिया का खुद को महाराणा प्रताप का वंशज बता देना 'जातिदम्भ' की श्रेणी में रख दिया जाता है।

• यह थिंकटैंक सवर्ण अत्याचार पर तो डटकर रिपोर्टिंग करते हैं मगर पिछड़ों की लठैती और नव-सामंतवाद पर मुंह फेर लेते हैं।

• रूपकंवर केस को नज़ीर बना मीडिया के मठाधीशों & बौद्धिक जगत के वडेरों ने जानबूझकर सतीप्रथा का एकमुश्त ठीकरा राजस्थान के क्षत्रीय समाज पर फोड़ उन्हें बदनाम किया है पर बड़ी चालाकी से अलग-अलग समाजों और राज्यों में प्रचलित सतीप्रथा पर मौन धारण कर लिया जाता है।

• Intellectual flexing करने वाले बुद्धिजीवी 'भगवा आ***कवाद' पर तो मुखर रहते हैं पर इस्लामी आ*****कवाद का जुमला लिखते बोलते हुए भी इनकी कलम कांपती है, इनका हलक सूख जाता है।

• हमारे बुद्धिजीवी जब जब ब्राह्मणवाद के खिलाफ़ बात करते हैं, तब तब डिस्क्लेमर लगाते हैं कि हम ब्राह्मणवाद के खिलाफ हैं, ब्राह्मणों के खिलाफ़ नहीं। मगर शोषण की बात हो तब तब ठाकुर को 'शोषक का रूपक' बनाने से बाज़ नहीं आते। इस्लामोफोबिया के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले अपने अंदर रचे बसे राजपूतफोबिया को झांक कर नहीं देखते। इसी को 'बौद्धिक बेईमानी' कहते हैं!

• बौद्धिक वर्ग में हम अक्सर जिन लोगों को अहिंसा और नारीवाद पर आख्यान देते देखते हैं, उनके अपने domestic violence के किस्से आम होते हैं लेकिन सांप्रदायिकता के खिलाफ चार सतही शब्द बोलकर ऐसे लोग बुद्धिजीवी वर्ग के घोषित वडेरे बने रहते हैं।

• Metoo आंदोलन में बुद्धिजीवी वर्ग के जिन दुलारों के नाम आए, रेप के केस तक चले, उन्हें बेगुनाह साबित करने के लिए तरह तरह के तर्क गढ़े जाते हैं और धीरे धीरे ऐसे लोगों को दास्तानगो, गीतकार, व्यंग्यकार बनाकर इनकी rebranding तक की जाती है। दुर्भाग्य यह कि यही enabler वर्ग स्त्रीवाद पर symposium कर उसी झूठे मुंह से लंबी चौड़ी तकरीरें भी कर जाता है।

👉🏼 बाकि हरिशंकर परसाई ने कुछ सोच-समझकर ही कहा होगा कि "इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं लेकिन वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं।"
:~ Aeshvarya Thakur

पाकिस्तानी आतंकियों ने हमारे लोगों को मारा, आतंकियों ने नाम पूछकर, धर्म देखकर मारा। ये भी सह लेंगे। लेकिन तकलीफ़ उन लोगो...
24/04/2025

पाकिस्तानी आतंकियों ने हमारे लोगों को मारा, आतंकियों ने नाम पूछकर, धर्म देखकर मारा। ये भी सह लेंगे। लेकिन तकलीफ़ उन लोगों से अधिक पहुँचती है जो थोड़े से फेम के लिए कह रहे हैं कि नहीं आतंकियों ने तो धर्म पूछा ही नहीं। ये वे लोग हैं जिनके पोस्ट दिखाकर BJP फ़ायदा लेती है, बीजेपी इन्हें ही दिखाकर कहती है कि ये Liberal,हिंदुओं की तकलीफ़ पर कभी नहीं बोलेंगे। बोलना छोड़िये, उल्टा वाइटवाश करेंगे।

इससे शिक्षित, धर्मनिरिपेक्ष हिंदुओं में आम हिंदुओं का विश्वास घटता है। जब शिक्षित हिंदू अन्य पीड़ितों या अल्पसंख्यकों के मामले पर बोलते हैं। तब शिक्षित हिंदुओं के सामने यही प्रश्न आता है कि आप लोग तब तो बोले नहीं? जब पीड़ित हिंदू था, तब तो आप ये बोल रहे थे, तब तो आप ये तर्क दे रहे थे? इस तरह अंत में शिक्षित हिंदुओं के पास कोई जवाब नहीं होता. क्योंकि अति उत्साहित, लिबरल समाज के पालनहारों और रखवालों ने माहौल बना रखा है कि सत्य को छुपाने की कला का प्रदर्शन करना है इससे एक अलग हीरोइक इमेज उभरकर सामने आएगी। बुद्धिजीवियों का एक धड़ा “इन सॉलिराडिटी” और “मोर पॉवर टू यू” जैसे शस्त्रों से नवाजेगा।

लेकिन असल में ऐसे लोग एक बड़ी कॉज को नुक़सान पहुँचाते हैं। बड़ा मसला ये है कि धर्म और जाति के नाम पर जहाँ भी भेदभाव, हिंसा हो, हम उसका विरोध करें। ऐसा करने में सबसे कमजोर व्यक्ति का फायदा है। क्योंकि ताकतवर को हमारी सहानुभूति और सपोर्ट की नहीं है। वे बदला लेने में सक्षम हैं। जरूरत कमजोर को पड़ती है।

इसलिए जरूरी है कि या तो सत्य बोलें। या अगर सत्य के जोखिम हैं, उसका लाभ हत्यारा उठा लेगा तो संयम से बोलें, समझदारी से बोलें। और अगर इतना ना बोल पाएँ तो चुप रहें। लेकिन ऐसा कुछ ना बोलें जिससे व्यापक तौर पर हमारे अच्छे काम पर भी आम लोगों को शक हो।

कोई भी मूर्ख नहीं है। एक बच्चे की प्रेस कॉन्फ्रेंस है जिसमें वह कह रहा है कि हमें कहा गया कि हिंदू अलग हो जाएँ। और गोली मार दी। एक पीड़ित महिला ने कहा कि उसके पति को कलमा पढ़ने को कहा गया। एक पीड़ित महिला की वीडियो है जिसमें वो कह रही है कि मेरे पति से नाम पूछा और गोली मार दी। साफ़ है, आतंकियों ने टार्गेट किलिंग की है, उनके लिए वे हिंदुस्तानी थे, हिंदू थे। इसलिए मारे। उन्हें इंडिया से नफ़रत थी। इसलिए मारे।

इसलिए हीरो बनना बंद कर दीजिए। सच नहीं बोला जा सकता तो शांत रहिए। मुसलमानों को आपसे सफ़ाई की जरूरत नहीं है। ये आतंकी उनके रिश्तेदार नहीं थे। उन आतंकियों ने अनगिनत बार उन मुस्लिमों की भी हत्या की है जो भारत के पक्ष में रहे हैं या भारत की आर्मी में थे ये पुलिस में थे। कोई सांप्रदायिक व्यक्ति ही होगा जो किसी दूसरे के काम के लिए किसी ऐसे को दोष देगा जो ना वहाँ है, ना उसका कोई संबंध है।

अगर कोई पाकिस्तान के चार आतंकियों के लिए पूरी मुस्लिम क़ौम को गाली दे, तो वह ख़ुद नफ़रती और जाहिल होगा। लेकिन इसके बदले में जब आपकी बातें “हिंदुओं को नहीं मारा। नाम पूछकर नहीं मारा, एक मुस्लिम भी तो मारा था।” ऐसी बातें अंत में भारत के शिक्षित, प्रबुद्ध और प्रगतिशील हिंदुओं के प्रति आम हिंदुओं के मन में अविश्वास और घृणा का भाव भरते हैं।

इसलिए बेहतर हो कि हम सब इस आतंकी हमले के ख़िलाफ़ एक साथ हों। हिंदू मुसलमान दोनों एक दूसरे के साथ हों। कश्मीरी भाइयों के साथ हों। पीड़ित परिवारों के साथ हों। हमारे इसी कर्म में पाकिस्तानी आतंकियों की पराजय है।

भारत माता की जय। इस देश का लोकतंत्र, सेक्युलरिज्म, भाईचारा बना रहे। पीड़ित परिवारों को भगवान साहस दे।

एक नेता जिसे हर दूसरे दिन पागल साबित करके मृत्यु शैय्या पर भेजने की बात की जाती है... आज जब मूसलाधार बारिश से पूरे बिहार...
10/04/2025

एक नेता जिसे हर दूसरे दिन पागल साबित करके मृत्यु शैय्या पर भेजने की बात की जाती है... आज जब मूसलाधार बारिश से पूरे बिहार के बुजुर्ग तो छोड़िए जवान भी घर से निकलने से कतराते हैं तब हमारे राज्य के मुखिया झमाझम बरसात में अपनी परवाह किए बगैर निर्माण कार्यों का जायजा लेने के लिए मोर्चा पर निकल गए। इसलिए क्योंकि राज्य के 13 करोड़ लोग चैन से रह सके। डियर बिहारियों तुम नीतीश कुमार को डिजर्व नहीं करते। डियर बिहारियों तुमने भारत माता को आजाद कराने के लिए अपनी जवानी जेल में गुजार देने वाले बटुकेश्वर दत्त को पटना की सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर किया था, जिस वशिष्ठ नारायण सिंह का नासा के वैज्ञानिक लोहा मानते थे उस वशिष्ठ नारायण सिंह को पागल होने के लिए तुमने छोड़ दिया था। आज की यह तस्वीर नीतीश कुमार के बारे में अपशब्द बोलने वाले के गाल पर करारा तमाचा है।
हमें आप पर गर्व है मुख्यमंत्री जी...❤️

28/06/2024
शुभ कदम!बधाई!!
28/01/2024

शुभ कदम!
बधाई!!

मेरे phone contact list में दो हज़ार लोगों का नंबर Saved है , जिसमें हर जाति , वर्ग , धर्म के लोग हैं ! उत्तर भारत से दक...
22/01/2024

मेरे phone contact list में दो हज़ार लोगों का नंबर Saved है , जिसमें हर जाति , वर्ग , धर्म के लोग हैं ! उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक अलग-अलग समाजिक समूहों के व्यक्ति का Whatsapp Status हम देख पाते हैं !

पूरी हिन्दू आबादी के Whatsapp status पर अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम, भव्य राम मंदिर 🛕 का स्वागत हो रहा है !

सारे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों ने राम-मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का स्वागत किया है , officially Poster released किया गया है !

धार्मिक , आस्था , श्रद्धा को अलग कर भी देखें तो राम-मंदिर का निर्माण का Historical Significance बहूत ज़्यादा है ! ये एक Historical events है !

भारत से दक्षिण भारत तक घर-घर अक्षत (निमंत्रण) पहुँच चुका है !

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