20/10/2025
दीपावली मिथिला क्षेत्र में सिर्फ रोशनी और उमंग का पर्व नहीं, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक गौरव और अनूठी परंपराओं का भी प्रतीक है। यहाँ दीपावली पर हमलोग , बच्चे , नौजवान , बूढ़े भी अपने से बड़ों के घर घर जा के उसको गोर लगते हैं और उसका आशीर्वाद लेते हैं, और ये परंपरा दुश्मन के घर पर भी लागू होता है , उसके यहां भी जाते है और वो भी हमारे यहां आते हैं , ये है हमारी असली खूबसूरती ।
मिथिला में दीपावली की रात पुरखों को विदाई देने की भी खास रस्म होती है। “प्रकाश तर्पण” कर पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है। इस अवसर पर सन की लकड़ी (संठी) से बने आकृति को जलाया जाता है और दरिद्रता को घर से बाहर करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। लक्ष्मी-गणेश के साथ भगवान राम-सीता की पूजा भी की जाती है, क्योंकि सीता माता मिथिला की बेटी मानी जाती हैं।
घर और आंगन की विशेष सफाई, मिट्टी या चावल के आटे के दीये, और पूरे परिवार का सामूहिक जुटाव—यह सब मिथिलांचल की दीपावली को विशेष बनाता है। बदलते समय के बावजूद ग्रामीण इलाकों में ये परंपराएं आज भी जीवित हैं, जिससे हमारी सांस्कृतिक पहचान और अधिक मजबूत होती है।
"मिथिला की दीपावली—परंपरा, श्रद्धा और सांस्कृतिक आत्मगौरव का जीवंत उत्सव।
आप सभी को हर्षोल्लास से भरी दीपावली की शुभकामनाएं!" 🎇🪔🪔🪔🪔🙏🙏
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