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सुप्रसिद्ध साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के जन्मदिन के अवसर पर उन्हें सादर नमन!
30/06/2025

सुप्रसिद्ध साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के जन्मदिन के अवसर पर उन्हें सादर नमन!

Dimensions of Social Work(An Introduction of Social Work Scope) Dr. Deena Nath YadavDr. Chhabinath Kalamkaar Publisher K...
23/06/2025

Dimensions of Social Work
(An Introduction of Social Work Scope)

Dr. Deena Nath Yadav
Dr. Chhabinath

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निहाई (कहानी संग्रह) विपिन बिहारीVipin Bihari Kalamkaar Publisher
22/06/2025

निहाई (कहानी संग्रह)

विपिन बिहारी
Vipin Bihari

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काव्य त्रिवेणी(कविता संग्रह) डॉ. रतन कुमारRatankumar Kamble Kalamkaar Publisher Kalamkaar Publishers Pvt Ltd
21/06/2025

काव्य त्रिवेणी
(कविता संग्रह)

डॉ. रतन कुमार
Ratankumar Kamble

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कथाशिल्पी प्रेमचंद राकेश प्रेम Rakesh Mehra Kalamkaar Publishers Pvt Ltd ‘कथाशिल्पी प्रेमचंद’ वरिष्ठ कवि-आलोचक राकेश प्र...
15/06/2025

कथाशिल्पी प्रेमचंद

राकेश प्रेम
Rakesh Mehra

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‘कथाशिल्पी प्रेमचंद’ वरिष्ठ कवि-आलोचक राकेश प्रेम की नई आलोचना कृति है। पिछले लगभग सौ वर्षों से प्रेमचंद का मूल्यांकन हो रहा है। उनके साहित्य पर केंद्रित एक हजार से अधिक पुस्तकें अब तक छप चुकी हैं और यह क्रम जारी है। अब बहुतों को यह चमत्कार की तरह लगता है । कुछ लोग प्रेमचंद से खीझे भी रहते हैं। उनके साहित्य में ‘वह’ खोजते हैं, जो उनका मंतव्य ही नहीं था। एक लेखक अपनी भाषा और अपने भाषा-भाषियों की अंतश्चेतना का अविभाज्य हिस्सा बन जाए, यह एक असाधारण बात है। प्रेमचंद के साथ ऐसा ही है। इस पुस्तक के लेखक राकेश प्रेम किसी हिंदी भाषी राज्य में नहीं बल्कि हिन्दीतर राज्य पंजाब में रहते हैं, यह रेखांकित किया जाना चाहिए। प्रेमचंद के साथ उनका संबंध दशकों पुराना है। आशय यह कि यह पुस्तक किसी हड़बड़ी में नहीं लिखी गई है। यह एक सुचिंतित मूल्यांकन है। यह भी महत्वपूर्ण है कि यह राकेश जी की प्रेमचंद पर केंद्रित दूसरी पुस्तक है।

इस पुस्तक में पाँच अध्याय हैं। प्रेमचंद की रचनाशीलता पर बात करते हुए राकेश प्रेम कई प्रामाणिक संदर्भों से प्रेमचंद के उस व्यक्तित्व की चर्चा करते हैं जो दिखने में साधारण लेकिन अपने होने में असाधारण था। सादगी का सौंदर्य उनके साहित्य के साथ ही उनके जीवन में भी था। यह किताब इस बात का प्रमाण है कि लेखक ने यह मूल्यांकन ऊपर-झापर नहीं, डूबकर किया है। किसी कालजयी सर्जक का मूल्यांकन ‘आग का दरिया’ ही होता है। इक आग का दरिया है और डूबकर जाना है। इस अर्थ में यह किताब एक आश्वस्ति की तरह है।

बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में स्त्री और दलित समाज के जीवन और संघर्ष को जिस वैचारिक आभा के साथ प्रेमचंद ने चित्रित-वर्णित किया, वह एक ऐतिहासिक तथ्य है। उनके समकालीन किसी अन्य रचनाकार के वहाँ इस प्रसंग में उनके जैसी वैचारिक स्पष्टता नहीं दिखती। वे हिंदीं के पहले ही लेखक थे जिन्होंने जाति व्यवस्था और पितृसत्तात्मकता की कठोर आलोचना करते हुए उनकी समाप्ति की कामना की। पति की संपत्ति में पत्नी के अधिकार की बात करने वाले वे पहले लेखक-चिंतक थे। यह कार्य उन्होंने सर्जनात्मक साहित्य के साथ ही अपने चिन्तनपरक लेखन में भी किया। उनके स्त्री और दलित पात्रों में उनकी दूर दृष्टि साफ दिखाई देती है। वे सही अर्थों में एक स्वाधीन और अग्रगामी राष्ट्र की कल्पना कर रहे थे। एक ऐसे राष्ट्र की जिसमें जन्मगत वर्णो की गंध और किसी भी प्रकार के शोषण की कोई जगह न हो। वे स्त्री शिक्षा के बड़े पैरोकार थे। शिक्षा को मुक्ति का सर्वाधिक जरूरी अस्त्र मानते थे। राकेश जी ने अपनी इस पुस्तक में प्रेमचंद की स्त्री दृष्टि और अग्रगामिता पर सार्थक चर्चा की है।

प्रेमचंद के कथा साहित्य की खूब चर्चा होती है लेकिन आलोचक अक्सर उनके नाटकों और चिन्तनपरक गद्य को छोड़ देते हैं। चिन्तनपरक गद्य को छोड़ने का परिणाम यह होता है कि कई बार उनके कथा साहित्य का विश्लेषण करते हुए लोग ऐसे निष्कर्षों पर पहुँच जाते हैं जो प्रेमचंद के ‘विजन' का विलोम होता है। राकेश प्रेम ने ऐसा नहीं किया है। यह उनकी आलोचनात्मक ईमानदारी का परिचायक है। उनकी इस पुस्तक में प्रेमचंद के मूल्यांकन को सही दिशा में ले जाने की कोशिश है। उनकी कुछ बातों से असहमति हो सकती है। आलोचना में ऐसा होता ही है। असहमति ज्ञान का वाहक है। कहने की आवश्यकता नहीं कि राकेश जी की यह पुस्तक प्रेमचंद के अध्येताओं को यह जरूरी किताब लगेगी।

-जितेन्द्र श्रीवास्तव
Jitendra Srivastava

पहली स्मृति(काव्य संग्रह) आशीष बन्दूनीसंवेदनशील मन का कविता संग्रह: पहली स्मृतिसमाज पुरूषों के विषय में यह मानकर चलता है...
08/06/2025

पहली स्मृति
(काव्य संग्रह)

आशीष बन्दूनी

संवेदनशील मन का कविता संग्रह: पहली स्मृति

समाज पुरूषों के विषय में यह मानकर चलता है कि महिलाओं की अपेक्षा वह अधिक व्यावहारिक है। अपने आसपास के माहौल और रिश्तों के प्रति वे उतने संवेदनशील नहीं होते जितनी कि महिलाएं। इसी बात को अंग्रेजी में पुरुषों का ‘प्रैक्टिकल होना’ कह कर भी काम चला लिया जाता है। धारणाएं अनुपात के आधार पर ही बनती हैं इसीलिए मानना होगा कि यह बात संपूर्ण पुरूष वर्ग के लिए सही नहीं है। यहाँ भी कुछ लोग बंजर धरती पर कोमल बीज को अंकुरित होने, पलने-पोसने का मौक़ा देते हैं फिर धारणाएं तो होती ही हैं टूटने के लिए। मूलत: देवभूमि उत्तराखंड के रहने वाले, मुंबई में जन्मे आशीष बन्दूनी ऐसे युवा है जो इस तरह की धारणाओं को तोड़ते हैं। ऐसी ही सदियों से चली आ रही धारणाओं को तोड़ती कविताओं का संग्रह है “पहली स्मृति”।
पहली पुस्तक यानी साहित्य की डगर पर पहला मजबूत कदम। भागदौड और एक हद तक कमर्शियल हो चुकी दिल्ली के रहने वाले इस युवा के भीतर इतनी कोमल भावनाओं और संवेदनाओं को देखकर मन आश्वस्त होना चाहता है कि आज का युवा और भविष्य का जिम्मेदार नागरिक चलता-फिरता रोबोट नहीं है। वह बकायदा प्रेम जैसी सबसे सुंदर और कोमल भावना को महसूसता भी है और जीना भी जानता है। किसी बात से बुरा लगने पर वह टूटता और कांच की तरह टिड़कता भी है।
आशीष की कुछ कविताएं नितांत प्रेम में डूबी हुई और समर्पित प्रेम-मय ह्रदय से लिखी गई हैं। इस बात को चरितार्थ करती यह पंक्तियाँ देखिए –
“ऐसी नजरों से मत देखो मुझको
ऐसी नजरों से मत देखो मुझको
ये गाल हो जाएंगे और लाल
इतनी खुशी की वजह बताऊंगा किस किसको”

जिससे प्रेम हो, उसे चाहना, रूठना-मनाना भी इन कविताओं में खूब दिखाई दे रहा है। ‘जीत जाओ मगर रूठो नहीं’ कविता में प्रेम में भीगे मन की गुजारिश देखिए
“हम से तुम यूं बेवजह रूठो नहीं
जुदाई का ज़हर आसानी से घूंटो नहीं
दाग़ तुम्हारे दिए हुए हैं जिस रुमाल पर
उसे बड़े प्यार से रखा है संभाल कर”

प्रेम में एक का दूसरे से नाराज होकर भी उसे कुछ ना कहना, हर इल्ज़ाम अपने सर ले लेना, ताजा-ताजा रूमानियत भरे दिनों की बात बताता है। इन कविताओं का मौजू यही है कि कवि बार-बार की हताशा के पीछे के कारण को जानता है। लगातार कई अपेक्षाओं, उम्मीदों की टूटन को समझता है मगर यह उम्र का वह दौर है जब बार-बार धोखे खा कर भी मन उसी ओर दौड़ता है जिस ओर की डगर कठिन है। इसी तरह प्रेम के मध्य विचार और विचारधारा तो आती है मगर सब पता होने के बावजूद राजनीति भी बीच में आ खड़ी हो, यह बात ‘पैदल चलने वाला मैं, और उसके पास कार थी’ कविता से कह रही है।
इसी तरह प्रेम में भीगे मन की मासूमियत का भाव ‘दामन किसी और का थाम आया वो’ कविता में दिखाई देता है-
दिल मेरा तीर्थ था, पवित्र था, फिर भी
घूमकर चारों धाम आया वो
दामन किसी और का थाम आया वो
यह बात कहने कल शाम आया वो

इसी बात को कुछ इस तरह देखिए-
वो हँस रहे हैं मेरी सूरत पर
मैं आईना देखकर रो रहा हूँ
रुमाल भी खफ़ा है शायद
तभी आस्तीन भिगो रहा हूँ

एक और भाव देखें –
“वहां रावण जल रहा था, यहां मैं
तब जाकर आया यक़ीन,
कहां वो और कहां मैं”

प्रेमी मन धोखे को पहचानता है। वह देखता है, जानता है मगर स्वीकार नहीं करना चाहता। इन्हीं भावनाओं को इस तरह कहता है। कविता के बोल हकीक़त को पहचानने, समझने का संकेत भी करते हैं लेकिन फिर भी मन कहां मानता है। इस संग्रह में बचपन को याद करती हुई भी एक कविता है।
‘जब शून्य था’ कविता सूफियाना मिज़ाज की ओर संकेत करती है। मानो झूठ-फरेब की दुनिया ने एक चंचल मन को जैसे समाधि तक पहुंचा दिया है-
ज़िंदगी सच्ची हो या झूठी,बस चलती रहे
हां दो वक़्त की रोज़ी रोटी, बस चलती रहे
साथ छूटा ख़ुद का कुछ घंटों के लिए
क्या पैदा हुआ था मैं इन टंटों के लिए।

जब सरलता मन में बसती है तब आसपास के माहौल की चालाकियां तकलीफ देती हैं। अपने गांव के बदलाव को कवि मन इस तरह देखता है –
“इस उम्मीद में गए गांव कि लिखेंगे ख़याल
धोखेबाज़ गांव है अब शहर लगता है”

युवा कवि जानता है कि प्रेम की परिणित देने में है। यही अंतिम सुख है इसीलिए वह कहता है-
बस तुम इतना करना हमारे लिए
याद रखना कि मैं हूं तुम्हारे लिए
अगर कभी आँखें नम हों
बरसों पुराना कोई ग़म हो
तो याद रखना कि मैं हूं तुम्हारे लिए

एक अन्य कविता के भाव इस तरह हैं-
‘तुम्हारे छूने से शायद ठीक हो जाऊं
इस बहाने से और नज़दीक हो जाऊं’

गांव-शहर और इंसानों से बेजार मन किताबों पर भी तोहमत लगाता है –
“तुम्हारे अलावा बस इन किताबों का ही तो साथ था
मेरी बर्बादी में, तुम्हारे बाद, इन्हीं का हाथ था”

कुल 58 कविताओं वाली यह पुस्तक आशीष बन्दूनी की शुरुआत है। मैं दुआ करती हूँ कि भविष्य में भी यह लेखनी चलती रहे। आप लिखें और खूब लिखें। आपका लेखन स्व से समाज की यात्रा तय करे।

-वन्दना यादव

संविधान निर्माता, युग प्रवर्तक, भारत रत्न बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की जन्म जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन 🙏🙏
14/04/2025

संविधान निर्माता, युग प्रवर्तक, भारत रत्न बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की जन्म जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन 🙏🙏

सुलोचना जी आपको क़लमकार पब्लिशर्स की ओर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई.....आप रचनात्मक लेखन में निरंतर सक्रिय रहें.... पुनः ह...
12/04/2025

सुलोचना जी आपको क़लमकार पब्लिशर्स की ओर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई.....आप रचनात्मक लेखन में निरंतर सक्रिय रहें.... पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐

गगन दीप शर्मा जी को क़लमकार पब्लिशर्स की ओर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई .... आप रचनात्मक लेखन में निरंतर सक्रिय रहें.... ह...
10/04/2025

गगन दीप शर्मा जी को क़लमकार पब्लिशर्स की ओर से जन्मदिन की हार्दिक बधाई .... आप रचनात्मक लेखन में निरंतर सक्रिय रहें.... हार्दिक शुभकामनाएँ💐💐

सुप्रसिद्ध कवि-आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐💐💐
08/04/2025

सुप्रसिद्ध कवि-आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐💐💐

बिजली गुल (कहानी संग्रह) विपिन बिहारीVipin Bihari Kalamkaar Publisher
01/04/2025

बिजली गुल
(कहानी संग्रह)

विपिन बिहारी
Vipin Bihari

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भभकल ढिबरी (मगही कहानी संग्रह) प्रो. अलखदेव प्रसाद 'अचल'Kalamkaar Publishers Pvt Ltd
27/03/2025

भभकल ढिबरी
(मगही कहानी संग्रह)

प्रो. अलखदेव प्रसाद 'अचल'

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