31/07/2025
9 अगस्त, हम विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं — यह दिन सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत के मूलनिवासी समाज की गरिमा, गौरव और संघर्ष को सम्मान देने का दिन है।
आदिवासी समाज वह है जिसने हजारों वर्षों से जल, जंगल और जमीन की रक्षा की। जब इस धरती पर कोई कानून नहीं था, तब भी हमारे पुरखे प्रकृति के नियमों का पालन करते थे। हमने न तो किसी का शोषण किया, न किसी को गुलाम बनाया — बल्कि हर प्राणी के साथ समानता और सहअस्तित्व का रिश्ता निभाया।
अफसोस की बात है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी आदिवासियों के अधिकार छिनते जा रहे हैं।
वन अधिकार कानून 2006 लागू हुआ, लेकिन ज़मीन पर उसका क्रियान्वयन आज भी अधूरा है।
पेसा एक्ट और 5वीं-6वीं अनुसूचियां, आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार देती हैं, लेकिन उन्हें लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति गायब है।
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और न्याय — हर क्षेत्र में आदिवासी समाज को हाशिये पर धकेला गया है।
माननीय अध्यक्ष महोदय,
आज मैं इस सदन के माध्यम से कहना चाहता हूँ:
> "हम आदिवासी हैं, आदिम नहीं। हम पिछड़े नहीं, बल्कि पीछे धकेले गए हैं। हम मांग नहीं रहे, हम अपना हक याद दिला रहे हैं।"
आज आवश्यकता है कि:
वन अधिकार अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाए।
आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं सशक्त की जाएं।
पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं को पूर्ण अधिकार दिए जाएं।
जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार बहाल किए जाएं।
यह देश वेद-पुराण से नहीं, संविधान से चलता है। और संविधान में आदिवासियों को जो विशेष अधिकार मिले हैं, वे कोई "कृपा" नहीं, बल्कि उनके ऐतिहासिक योगदान का सम्मान हैं।
अंत में, मैं सभी माननीय सदस्यों से निवेदन करता हूँ कि आज के दिन आदिवासी समाज के संघर्ष को समझें, उनके साथ खड़े हों, और भारत को सच्चे अर्थों में समावेशी और न्यायपूर्ण राष्ट्र बनाने में योगदान दें।
जय भीम, जय बिरसा, जय संविधान।