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Prem Kumar Jangid जय श्री राम, भारत माता की जय

रक्षाबंधन का इतिहास बहुत पुराना है और इसमें धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तीनों पहलू जुड़े हुए हैं। यह पर्व केवल भाई–ब...
09/08/2025

रक्षाबंधन का इतिहास बहुत पुराना है और इसमें धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तीनों पहलू जुड़े हुए हैं। यह पर्व केवल भाई–बहन के रिश्ते का प्रतीक नहीं है, बल्कि “सुरक्षा, प्रेम और जिम्मेदारी” के वचन का प्रतीक भी है।

भगवान विष्णु और राक्षस राजा बलि
कथा के अनुसार, जब राजा बलि ने तीन पग भूमि दान में दी और वामन अवतार में भगवान विष्णु ने तीनों लोक जीत लिए, तो बलि ने भगवान से सदैव अपने महल में रहने का आग्रह किया। लक्ष्मी जी ने बलि को राखी बांधी और भाई मानकर विष्णु जी को मुक्त करने का वचन लिया।
द्रौपदी और कृष्ण महाभारत में, जब श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लगी, द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर बांध दिया। बदले में श्रीकृष्ण ने वचन दिया कि वह हर संकट में उसकी रक्षा करेंगे (चीरहरण प्रसंग में यही निभाया)।
यम और यमुनाजी कथा है कि यमराज की बहन यमुनाजी ने उन्हें राखी बांधी और अमरत्व का आशीर्वाद दिया। तभी से यह “रक्षा का वचन” देने की परंपरा बनी।

ऐतिहासिक उदाहरण राजपूताना और मुगल काल
चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने बहादुर शाह के आक्रमण से बचाव के लिए हुमायूँ को राखी भेजी। हुमायूँ ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार कर उनकी रक्षा के लिए सेना भेजी।
सिख गुरुओं के समय सीमावर्ती क्षेत्रों में बहनें अपने भाई या राखीधारी वीरों को रक्षा सूत्र बांधकर सीमाओं की रक्षा का वचन लेती थीं।

संघ और राष्ट्र दृष्टि से रक्षाबंधन को केवल भाई–बहन तक सीमित न मानकर, समाज में आपसी विश्वास और सुरक्षा का बंधन माना गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी यह पर्व “समरसता और सामाजिक एकता” के प्रतीक रूप में मनाया जाता है — हर वर्ग के लोग एक-दूसरे को राखी बांधकर “हम सब एक हैं” का संदेश देते हैं।
गाँव और कस्बों की परंपरा पहले गाँवों में बहनें भाई को राखी के साथ अनाज, मिठाई, नारियल देती थीं और भाई सालभर उसकी व परिवार की रक्षा का संकल्प लेता था।

#ऱक्षाबंधन

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महानायक, अप्रतिम राष्ट्र भक्त, अदम्य साहस और वीरता के प्रतीक, महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजा...
23/07/2025

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महानायक, अप्रतिम राष्ट्र भक्त, अदम्य साहस और वीरता के प्रतीक, महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!

राष्ट्र के लिए उनका त्याग और बलिदान हर भारतवासी के हृदय में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला को सदैव प्रज्वलित करता रहेगा।

संकट ते हनुमान छुड़ावै।मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥भावार्थ:जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान करता है, उसके ...
22/07/2025

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

भावार्थ:
जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान करता है, उसके सभी संकट हनुमान जी दूर कर देते हैं।

संघे शक्ति युगे युगे !!!
17/07/2025

संघे शक्ति युगे युगे !!!

Dj
10/07/2025

Dj

गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं 2025 भगवान दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है, क्योंकि उन्होंने यह शिक्षा दी कि ज्ञा...
10/07/2025

गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं 2025
भगवान दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है, क्योंकि उन्होंने यह शिक्षा दी कि ज्ञान किसी भी स्रोत से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन में 24 गुरु बनाए, जिनमें मनुष्य ही नहीं, बल्कि प्रकृति और विभिन्न जीव-जंतु भी शामिल थे। इन सभी से उन्होंने कुछ न कुछ महत्वपूर्ण सीखा। यह दर्शाता है कि सीखने की कोई सीमा नहीं होती और हर चीज में हमें गुरु तत्व दिख सकता है, बशर्ते हमारे पास विवेक और जिज्ञासा हो।
आइए जानते हैं भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु और उनसे मिली शिक्षाएँ:
दत्तात्रेय के 24 गुरु और उनसे प्राप्त शिक्षाएँ
#पृथ्वी: पृथ्वी से दत्तात्रेय ने सहनशीलता, क्षमा और परोपकार की शिक्षा ली। पृथ्वी सभी जीवों का भार सहन करती है और बिना किसी भेदभाव के उन्हें आश्रय और पोषण देती है। इससे उन्होंने सीखा कि व्यक्ति को संसार के सुख-दुख को सहन करते हुए, अपनी प्रकृति में दृढ़ रहना चाहिए और दूसरों का भला करना चाहिए।
#वायु: वायु हर जगह मौजूद होती है, लेकिन किसी से चिपकती नहीं। इससे उन्होंने निर्लिप्तता और अनासक्ति सीखी। जिस प्रकार वायु अच्छी-बुरी गंध से अप्रभावित रहती है, उसी प्रकार ज्ञानी को भी संसार के भोगों और दोषों से अप्रभावित रहना चाहिए।
#आकाश: आकाश सर्वव्यापी है और किसी भी चीज से दूषित नहीं होता। इससे दत्तात्रेय ने असंगता और निराकारता का ज्ञान प्राप्त किया। आत्मा भी आकाश की तरह सर्वव्यापी, असंग और शुद्ध है।
#जल: जल स्वाभाविक रूप से पवित्र और शुद्ध होता है, और दूसरों को भी पवित्र करता है। इससे उन्होंने सीखा कि व्यक्ति को स्वयं शुद्ध होकर दूसरों को भी पवित्रता की प्रेरणा देनी चाहिए।
#अग्नि: अग्नि जिस भी वस्तु को ग्रहण करती है, उसे स्वयं में समाहित कर लेती है और पवित्र कर देती है। इससे उन्होंने प्रकाश, तेज और समदर्शिता की शिक्षा ली। जिस प्रकार अग्नि चाहे किसी भी वस्तु को जलाए, उसका मूल स्वरूप नहीं बदलता, वैसे ही ज्ञानी को भी सभी अवस्थाओं में एक समान रहना चाहिए।
#चंद्रमा: चंद्रमा अपनी कलाओं को घटाता-बढ़ाता है, लेकिन उसका मूल स्वरूप कभी नहीं बदलता। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि शरीर का जन्म, विकास, क्षय और मृत्यु तो होती है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है।
#सूर्य: सूर्य एक होते हुए भी विभिन्न पात्रों में अलग-अलग दिखाई देता है, और अपने प्रकाश से सभी को प्रकाशित करता है। इससे उन्होंने आत्मा की एकता और प्रकाश का ज्ञान प्राप्त किया।
#कबूतर: एक कबूतर जोड़ा अपने बच्चों के अत्यधिक मोह में इतना अंधा हो जाता है कि वह शिकारी के जाल में फंस जाता है। इससे दत्तात्रेय ने अत्यधिक मोह और आसक्ति से होने वाले दुखों को सीखा।
#अजगर: अजगर बिना किसी प्रयास के जो कुछ भी मिल जाए, उसी में संतोष करता है और बिना चले उसी स्थान पर रहता है। इससे उन्होंने संतोष, धैर्य और अपरिग्रह की शिक्षा ली।
#समुद्र: समुद्र की नदियाँ हमेशा भरती रहती हैं, लेकिन वह कभी अपनी सीमा नहीं लांघता। इससे दत्तात्रेय ने शांत मन, स्थिरता और असीम गहराई का पाठ पढ़ा। ज्ञानी का मन भी समुद्र की तरह शांत और गहरा होना चाहिए।
#पतंगा: पतंगा आग की लौ के प्रति इतना आकर्षित होता है कि स्वयं को जला लेता है। इससे दत्तात्रेय ने भौतिक इच्छाओं और इंद्रियों के वश में होने से होने वाले विनाश को समझा।
#मधुमक्खी: मधुमक्खी विभिन्न फूलों से थोड़ा-थोड़ा रस इकट्ठा करती है, और भिक्षुक भी अलग-अलग घरों से थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करता है। इससे उन्होंने थोड़ा-थोड़ा संग्रह करने और आवश्यकतानुसार ग्रहण करने की शिक्षा ली। (यह भी सीखा कि अधिक संचय विपत्ति का कारण बन सकता है, जैसे मधुमक्खी का शहद छीन लिया जाता है)।
#हाथी: हाथी मादा हाथी के मोह में फंसकर बंदी बना लिया जाता है। इससे दत्तात्रेय ने इंद्रिय-भोग, विशेषकर कामवासना से होने वाले पतन को सीखा।
#हिरण: हिरण मधुर संगीत पर मोहित होकर शिकारी का शिकार बन जाता है। इससे उन्होंने शब्द (श्रवण) इंद्रिय के प्रति अधिक आसक्ति से होने वाले खतरे को समझा।
#मछली: मछली कांटे में फँस जाती है, क्योंकि वह स्वाद के लालच को नहीं छोड़ पाती। इससे उन्होंने जिह्वा (स्वाद) इंद्रिय के वश में होने से होने वाले बंधन को सीखा।
#पिंगला वेश्या: एक वेश्या (पिंगला) रात भर एक धनी ग्राहक का इंतजार करती रही, लेकिन कोई नहीं आया। अंत में, उसने सभी आशाएँ त्याग दीं और ईश्वर में मन लगाया, जिससे उसे परम शांति मिली। इससे दत्तात्रेय ने निराशा से वैराग्य और सच्ची शांति की शिक्षा ली।
#कुरर पक्षी: कुरर पक्षी अपनी चोंच में मांस का टुकड़ा लेकर उड़ रहा था, जिसे देखकर दूसरे पक्षी उसका पीछा कर रहे थे। जब उसने मांस का टुकड़ा छोड़ दिया, तो उसे शांति मिली। इससे उन्होंने अपरिग्रह (संग्रह न करना) और त्याग से मिलने वाली शांति का महत्व सीखा।
#बालक (शिशु): एक बालक हमेशा आनंदमय, चिंतामुक्त और निरपेक्ष होता है। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि व्यक्ति को संसार की चिंताओं से मुक्त होकर सहज आनंद में रहना चाहिए।
#कुमारी कन्या: एक अकेली कुमारी कन्या धान कूट रही थी। जब उसकी चूड़ियाँ बजने लगीं तो उसने एक-एक करके सारी चूड़ियाँ उतार दीं और केवल एक ही पहनी रखी, जिससे शोर न हो। इससे दत्तात्रेय ने सीखा कि एकान्त में रहकर ध्यान करना चाहिए और अत्यधिक संगति से बचना चाहिए, क्योंकि अधिक लोग होने पर अनावश्यक विवाद या शोर हो सकता है।
#बाण बनाने वाला (तीरंदाज): एक तीरंदाज बाण बनाने में इतना तल्लीन था कि उसे पास से गुजरती हुई एक बारात का भी आभास नहीं हुआ। इससे दत्तात्रेय ने एकाग्रता और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की शिक्षा ली।
#सर्प (साँप): साँप किसी एक घर में नहीं रहता, बल्कि बिना घर बनाए बिलों में रहता है और अपने लिए कुछ भी इकट्ठा नहीं करता। इससे उन्होंने अनासक्ति, अपरिग्रह और बिना किसी स्थायी निवास के विचरने की शिक्षा ली।
#मकड़ी: मकड़ी अपने भीतर से ही जाल बुनती है और फिर उसी में स्वयं को बांध लेती है, या उसे तोड़कर बाहर निकल जाती है। इससे दत्तात्रेय ने ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और संहार का रहस्य और योगियों द्वारा माया से मुक्ति का मार्ग समझा।
#भृंगी (भौंरा): भृंगी एक छोटे कीड़े (इल्ली) को अपने बिल में लाकर उसे बार-बार डंक मारता है, जिससे वह कीड़ा भी भृंगी जैसा बन जाता है। इससे उन्होंने ध्याता (ध्यान करने वाला) और ध्येय (जिसका ध्यान किया जा रहा है) के एक हो जाने के सिद्धांत को समझा (जैसा सोचोगे, वैसे बन जाओगे)।
#शरीर: स्वयं अपने शरीर से दत्तात्रेय ने सीखा कि यह नाशवान है और इसे अत्यधिक महत्व नहीं देना चाहिए। यह केवल आत्मा का एक अस्थायी वाहन है और यह दुख का मूल भी हो सकता है। इससे उन्होंने वैराग्य और आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा ली।
दत्तात्रेय का यह अद्वितीय दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि ज्ञान का कोई निश्चित स्रोत नहीं है। एक सच्चा जिज्ञासु व्यक्ति हर छोटी-बड़ी घटना, हर प्राणी और प्रकृति के हर कण से जीवन के गूढ़ रहस्यों को सीख सकता है। यह उनकी अवधूत स्थिति को दर्शाता है, जिसमें वह सभी बंधनों से मुक्त होकर, हर अनुभव से सीखते हुए परम ज्ञान को प्राप्त करते हैं।

कौन कौन से पेड़ लगाएं कि ज्यादा लाभ हो और मेहनत सही दिशा में हो ।👇🏻👇🏻स्कंदपुराण* में एक सुंदर श्लोक है👇👇अश्वत्थमेकम् पिच...
04/07/2025

कौन कौन से पेड़ लगाएं कि ज्यादा लाभ हो और मेहनत सही दिशा में हो ।👇🏻👇🏻

स्कंदपुराण* में एक सुंदर श्लोक है👇👇
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च
पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।

अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
पिचुमन्दः= नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
न्यग्रोधः= वटवृक्ष (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
कपित्थः= कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
बिल्वः= *बेल* (85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आमलकः = आवला (74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
(उप्ति = पौधा लगाना)

अर्थात्- जो कोई इन वृक्षों के पौधो का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ेंगे।

इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं।
अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं।
औऱ
गुलमोहर , निलगिरी- जैसे वृक्ष अपने देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं।

पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है।


पीपल, बड और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है।

ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है। साथ ही, धरती के तापनाम को भी कम करते है।

हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षो से दूरी बनाकर यूकेलिप्टस ( नीलगिरी) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की। यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत ४० वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।

शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है⤵️

मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।।
भावार्थ -जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी
तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है🙏

आगामी वर्षों में प्रत्येक ५०० मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा।

घरों में तुलसी के पौधे लगाना होंगे।

हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने "भारत" को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते हैं ।

भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।

आइए हम पीपल, बड़, बेल, नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं " सुजलां सुफलां पर्यावरण " देने का प्रयत्न करें।
🌳🌳🌲🌲

मोगा के बलिदानी स्वयंसेवक – जब आतंकियों के सामने डटे रहे स्वयंसेवकराष्ट्र विरोधी शक्तियों का स्वाभाविक व साझा दुश्मन है ...
25/06/2025

मोगा के बलिदानी स्वयंसेवक – जब आतंकियों के सामने डटे रहे स्वयंसेवक

राष्ट्र विरोधी शक्तियों का स्वाभाविक व साझा दुश्मन है – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. जब भी, जहाँ भी और किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि होती है, तो संघ स्वत: सामने आ खड़ा होता है. पंजाब में आतंकवाद के दौर में भी संघ ने आतंकवाद का सामना किया. इसी का परिणाम रहा कि आज ही के दिन (25 जून) 1989 को मोगा में संघ की शाखा पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 25 स्वयंसेवकों ने अपना बलिदान दिया.

आतंकियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से स्पष्ट मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न किया, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अन्धाधुन्ध फायरिंग करनी शुरू कर दी, जिसमें 25 जीवन बलिदान हुए. घटना ने न केवल पंजाब में हिन्दू-सिख एकता को नवजीवन दिया, बल्कि आतंकियों के मंसूबे नाकाम हुए. क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी, जिससे आतंकियों के मंसूबों को पस्त किया.

25 जून, 1989 को (अब के शहीदी पार्क) प्रतिदिन की ही तरह शहर निवासी सैर के लिए आए थे. उस दिन भी जहाँ नागरिक पार्क में सैर का आनन्द ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शाखा भी लगी हुई थी. इस दिन संघ का एकत्रीकरण था, और शहर की सभी शाखाएँ नेहरू पार्क में लगी थीं. अचानक पिछले गेट से भाग-दौड़ की आवाज सुनाई दी और पता चला कि वहाँ से आतंकी अन्दर घुस आए हैं, बावजूद इसके कोई भागा नहीं. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकवादियों ने आते ही शाखा में स्वयंसेवकों से ध्वज उतारने के लिए कहा, लेकिन स्वयंसेवकों ने साफ मना कर दिया. इस पर आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग (लगभग 6.25 पर) करनी शुरू कर दी. हर तरफ भगदड़ मच गई. गोलियों की बरसात रुकने के बाद हर तरफ खून का तालाब दिखाई दे रहा था. घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे.

इस गोली कांड के दौरान 25 लोग बलिदान हो गए, वहीं शाखा में शामिल स्वयंसेवकों के साथ ही आसपास के करीब 31 लोग घायल भी हो गए थे. घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, लेकिन फिर भी स्वयंसेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई. बाद में नेहरू पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान है.

इस गोली कांड में बलिदानी होने वालों में लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओमप्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पण्डित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवन्त सिंह थे.

गोली काण्ड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीनानाथ, हंसराज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, रामप्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचन्द और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे.

दंपति ने आतंकियों को ललकारा

गोलीकाण्ड के बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहाँ मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम प्रकाश और छिन्दर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकड़ने की कोशिश की. लेकिन एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नीन्द सुला दिया. साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय पास के घरों के पास खेल रहे बच्चों में से डेढ़ साल की डिम्पल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया.

10 साल की उम्र में गोलीकांड आँखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था. रविवार का दिन होने के कारण वह सुबह पार्क में चला गया. जैसे ही आतंकवादियों ने धावा बोलकर गोलियाँ चलानी शुरू कीं, वह धरती पर लेट गया और जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकड़ने की कोशिश की. नितिन भी इसको खेल समझ कर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकड़ कर घर भेजा.

दंगा चाहने वाले भी हुए निराश

आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिन्दू-सिक्ख एकता में दरार डालने का प्रयास किया था, साथ में कुछ दंगा सन्तोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिक्खों ने अब लगाया है शेर की पूँछ को हाथ. संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और न ही शहर में. अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिन्दू-सिक्ख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही सिक्ख पंथ के नाम पर चलने वाला आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता है।

25 जून के अगले दिन संघ के स्वयंसेवक गीत गा रहे थे – कौन कहंदा हिन्दू-सिख वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन कहता है कि हिन्दू-सिक्ख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आँख हैं।

अगली ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया गया तो उस दौरान बलिदानियों की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया. इसी कार्य के अधीन मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति का भी गठन हुआ।

शहीदी स्मारक की नींव का पत्थर 9 जुलाई को माननीय भाऊराव देवरस द्वारा रखा गया. इस स्मारक का उद्घाटन 24 जून, 1990 को रज्जू भैया द्वारा किया गया. आज भी हर साल बलिदानियों की याद में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है।

वीरता, आत्मबल और स्वाभिमान की प्रतीक रानी दुर्गावती जी को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन करता हूँ!अद्भुत नेतृत्व व अप...
24/06/2025

वीरता, आत्मबल और स्वाभिमान की प्रतीक रानी दुर्गावती जी को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन करता हूँ!

अद्भुत नेतृत्व व अपराजेय साहस से आपने मातृभूमि की रक्षा की, पर आत्मसमर्पण नहीं किया।
आपका त्याग युगों तक नारी शक्ति और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा बना रहेगा।

21/06/2025

योग केवल व्यायाम नहीं,यह आत्मा का परमात्मा से संवाद है।सनातन संस्कृति का अमृत है योग –जो तन, मन और आत्मा को समरस करता है ।।अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! योग करें ,रहें निरोग 🧘‍♀️

पंजाब की पहचान गुरुओं, ऋषियों, मुनियों, साधुओं, संतों, देवी-देवताओं और वीरों की भूमि के रूप में रही है, लेकिन अब यह पादर...
19/06/2025

पंजाब की पहचान गुरुओं, ऋषियों, मुनियों, साधुओं, संतों, देवी-देवताओं और वीरों की भूमि के रूप में रही है, लेकिन अब यह पादरियों और पास्टरों का पंजाब बनता जा रहा है।

हिंदू सिखों में धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मतभेद पैदा करके विदेशी ईसाई मिशनरियाँ पंजाब को ईसाई प्रदेश बनाने के लिए बड़े पैमाने पर अवैध धर्म परिवर्तन कर रही हैं।

हमारे आपसी द्वेष और भेदों के कारण हमारे गुरु, देवी-देवता बहुत अपमानित हो रहे हैं।

इन ईसाई मिशनरियों के अवैध धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए
हिंदू-सिख एकता होना बहुत जरूरी है।

इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पंजाब के बठिंडा के जागरूक हिंदुओं और सिखों ने संभाव्यता पहली बार धर्म परिवर्तन के विरुद्ध आवाज बुलंद करने के लिए एक संत सम्मेलन का आयोजन किया है।

बठिंडा के इन वीर पंजाबियों को साधुवाद। जय हो।

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