31/05/2021
रेडी, वेन यू आर ..
कई बार लिखा है, कि "कांग्रेस, गवर्नेस के दायरे में राजनीति करती है, और भाजपा, राजनीति के दायरे में गवरनेंस"।
इसे समझिये तो समझ आएगा, की क्यो कांग्रेस क्यो विपक्ष में असफल है और भाजपा सरकार में।
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कांग्रेस का मूल डीएनए नेहरूवियन है। याने वेलफेयर, सोशलिज्म, सुनने की क्षमता, और किसी ड्रास्टिक चेंज से परहेज करना, जो अचानक सामाजिक आर्थिक सन्तुलन को अस्थिर कर दे।
वह क्रांतिबाजी से बचती है। याद कीजिये, वह सुभाष से असहमत है, वो रॉयल इंडियन नेवी में विद्रोह के नेताओं को समर्थन देने से इनकार करती है। इसलिए कि कोई भी क्रांति या एंटी एस्टबलिशमेंट सेंटीमेंट फैलाना, अंततः सोसायटी को उठापटक और अराजकता की ओर ले जाती है।
और जिस संवेधानिक तन्त्र को इसी काँग्रेस ने खड़ा किया, उस पर हमला कैसे करे। उसकी राजनीति, गवरनेंस की सीमाओं में है। अब वह सत्ता में रहे, या विपक्ष में।
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तो सत्ता में वो अधिक से अधिक, मुसलमानों को खुश करने के लिए कोर्ट का फैसला पलट सकती है, निरापद स्थान पर हिंदुओ को खुश करने के लिए मन्दिर का शिलान्यास करवा सकती है।
मगर विपक्ष रहने पर "वहीं बनाएंगे" जैसे बालहठ पर मस्जिद नही फोड़ सकती। जितना चाहे जनेऊ दिखा ले, दंगे नही भड़का सकती। वो आपको भड़काने के लिए जघन्य वीडियो नही भेज सकती।
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दूसरी तरफ जनसंघ/बीजेपी के इतिहास में सत्ता अलभ्य थी। तो सत्ता के बंधन, एस्टबलिशमेंट की मजबूरियां, राजधर्म, और व्यवस्था को बनाना उसके सर की बला नही थी।असल मे पूरा कॉडर , इंडियन एस्टबलिशमेंट के विरुद्ध पला बढ़ा हैं।
एक-एक कार्यकर्ता, एंटी एस्टबलिशमेंट है। एक सीट पाने या बचाने के लिए, किसी भी हद तक जाना उसकी शिक्षा मे है। लोकतन्त्र में बोलने की आजादी लेकर यह कैडर, बेखटके.. व्यवस्था और उसके प्रतीकों के विरुद्ध जहर उगलता रहा।
नेहरू, सम्विधान, तिरंगे के प्रति यह पुराना जहर ही है जो शाखाओं और क्लोज्ड सर्कल से निकल, अब आपके व्हाट्सप पर तैरता है। ये एक्सट्रीम एक्शन और बिगोटरी, विपक्ष होने का ट्रेडमार्क बन गया।
विपक्ष का ये ट्रेडमार्क द्रविड़ राजनीति से उत्तर भारत के रीजनल दलों ने भी अपनाया। किसी का बहाना हिन्दू धर्म रहा, तो किसी का भाषाई उपराष्ट्र, किसी की जातीय शोषण। हमने हमेशा गैर जिम्मेदार विपक्ष देखा है। उसे इस्टेबलिशमेंट पर प्रहार करते ही देखा है।
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लेकिन फिर हमने एक दिन बिसात पलट दी। टेलीविजन पर एक क्रांति का हिस्सा बने, पीछे पीछे ऊंचे सुर में "सबके साथ सबका विकास" की स्पीच भी आयी। जनता ऊंचा सुनती है, सुन लिया।
विपक्ष सत्ता हुआ, सत्ता विपक्ष। सात साल हो गए, सत्ता अपने विपक्षी एक्स्ट्रिमिजम में फंसी है, हर फैसला सीटो के गणित और चुनावी मजबूरियों के दायरे मे है। विपक्ष गवरनेन्स की जिम्मेदारी नही भूल पा रहा।
मजा देखिये। विपक्ष कोविड से लड़ने की नीति ट्वीट कर रहा है, पत्र लिख रहा रहा है, ऑक्सीजन जुगाड़ रहा है। सत्ता अपनी पुरानी तासीर से विवश , सुझाव फाड़कर फेंक रही है, और ऑक्सीजन देने वालो को रोड़ा अटका रही है। गृहमंत्री विपक्ष से पूछते है कि तुमने क्या किया?? फिर बाद मे डस्टबिन से वही कागज निकालकर पढते है, लागू करते हैं।
इतिहास की ऐसी अनोखी सरकार है जिसे आज तक यकीन नही की वही सिस्टम है। सिस्टम होकर, सिस्टम को गरिया रहा रही है। ।
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गजब तमाशा है। आदतन गवर्न करने वाले के पास गवरनेंट नही, आदतन विपक्ष के पास अपोजिशन नही। और उनकी मालिक, याने जनता - वो खुद भी आदतों से मजबूर है।
हम चाहते हैं कि गैस महंगी हो गयी, यह राहुल आकर बताये। जेब खाली हो गयी, राहुल आंदोलन करें। दवा आक्सीजन के अभाव मे आपके परीजन मर गए, यह राहुल आपको सचेत करे। चक्का जाम करे, अनशन करे, क्रांति करे।
हमे विपक्ष मुर्दा दिखता है, इसलिए कि कपड़े फाड़कर नारे लगाते, और पीएम को चूड़ियां भेजते कांग्रेसी, मीडिया पर नजर नही आते। फंडेबाजी, हो हल्ले, गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी को विपक्ष का काम समझा है। खरीद फरोख्त, गुण्डई, भाषण और नौटंकी को राजनैतिक चातुर्य समझा है।
इसे योग्यता समझकर, इनाम मे गवर्नेंस की जिम्मेदारी नवाजते है। आपने सोशल डिवीजन, खरीद फरोख्त और गुंडागर्दी से सरकार बनाने को पैनेपन, बुद्धिमत्ता का पैमाना समझ रखा है। तो ऐसी राजनीति में राहुल 100%, पप्पू है। नो डाऊट।
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लेकिन जीना मरना हमें है, तो हमे ही राजनीति और गवरनेंस का फर्क पकड़ना होगा। वैसे भी आजाद देश के 74% साक्षरों को बेसिक बात समझाने के लिए भड़काऊ कार्यक्रमों, आंदोलनों, घर घर प्रचार की जरूरत क्यो है?? इस निराशा, क्षोभ, बेबसी को विपक्ष के स्पार्क प्लग की जरूरत क्यों है??
सही है कि माहौल निराश है, गुस्सा अपार है, किसी विपक्ष के लिए मौका बढ़िया है। पर ऐसे विस्फोटक मिश्रण में आम दिनों के विपक्ष की तरह, राहुल से चिंगारी फूंकने की आशा मत कीजिये। राहुल को इसके कोलेटरल डेमेज का अंदाजा है।
वो चुनाव का इंतजार करेंगे। अफसोस, कि फिर हारे तो फिर इंतजार ही करेंगे, पर एस्टबलिशमेंट पर गैरजिम्मेदाराना प्रहार नही करेंगे। मन मसोसकर मुझे स्वीकारना पड़ता है कि मनमोहन, राजन, या राहुल जैसे लोगो की ये तासीर नही।
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खुद समझिये, विकल्प जांचिए, भविष्य में झांकिये। उम्मीदें बदलिये, लक्ष्य बदलिये, कोर्स करेक्शन कीजिये। उंचा सुनना छोडिये, मद्धिम कराहटें सुनिये। आने वाले दौर में पॉलिटिक्स नही गवरनेंस के लिए आदेश दीजिये।
ही इज ऑनली रेडी, वेन "यू आर"
वरना गंगा, एक और लाश झेलने से मना तो नही कर रही।
"आपकी लाश"