बागड़ी मीडिया राजस्थान की झलक

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12/08/2025

सूरतगढ़ में नया इलेक्ट्रॉनिक्स फर्नीचर शो रूम

07/08/2025

राजस्थान की भजनलाल शर्मा सरकार ने खैरथल-तिजारा जिले का नाम बदलकर भर्तृहरिनगर करने का निर्णय लिया है।

02/08/2025

गनमैन द्वारा युवक को थप्पड़ मारने के वायरल वीडियो का पूरा सच! क्या विधायक गेदर को घेरने की कोशिश होगी कामयाब ?
सूरतगढ़। विधायक डूंगरराम गेदर के पीएसओ द्वारा एक युवक को थप्पड़ मारने का वीडियो कल से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो के बहाने विरोधी विधायक गेदर को घेरने का प्रयास कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग इस घटनाक्रम को लेकर सवाल भी उठा रहे हैं कि आखिर विधायक के पीएसओ को थप्पड़ करने का क्या अधिकार है ? हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि विधायक के गनमैन को किसी आम आदमी को थप्पड़ मारने का अधिकार नहीं है ? लेकिन अगर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो को गौर से देखा जाए तो गलती केवल विधायक के पीएसओ की ही नहीं नज़र आती, कहीं ना कहीं युवक भी घटनाक्रम के लिए बराबर का जिम्मेदार नज़र आता है। प्रत्यक्षदर्शीयों के मुताबिक युवक काफी एग्रेसिव था और बार-बार विधायक के नजदीक आने की कोशिश कर रहा था। इस पर विधायक के पीएसओ ने युवक को विधायक के नजदीक जाने से रोक दिया। इसके बाद वीडियो में जैसा की नजर आ रहा है युवक बार-बार पीएसओ से उलझने की कोशिश करता है। विधायक के पीएसओ ने एक बार युवक को धक्का देकर दूर कर दिया, उसके बाद फिर युवक पीएसओ की तरफ बढा तो पीएसओ युवक को पीछे कर आगे बढ़ गया, जिसे वीडियो में साफ देखा जा सकता है। लेकिन इसके बाद एक बार फिर यह उत्तेजित युवक यह कहते हुए पीएसओ का गिरेबान पकड़ लेता है (जिसे खबर के साथ लगे थंबनेल में देख सकते है) और कहता है कि धक्का मार दोगे क्या (वीडियो में सुन सकते है) ? बस यहीं पर विधायक के पीएसओ ने आपा खो दिया और युवक को थप्पड़ जड़ दिया। साफ है कि पूरी घटना को किसी खास राजनीतिक चश्मे से देखने वाले लोग इसे केवल पीएसओ की गलती बताकर विधायक डूंगरराम गेदर को घेरना चाहते हैं। वहीं कुछ नासमझ लोग यह भी कह रहे हैं कि विधायक को पीएसओ की जरूरत ही क्या है ? अरे भई विधायक को पीएसओ की जरूरत है या नहीं, यह सवाल तो राज्य सरकार से पूछना चाहिए, जिसने कि सुरक्षा की दृष्टि से सभी विधायकों को पीएसओ दिए है।

बहरहाल इस घटनाक्रम के बाद एकबारगी तो यह मामला सुलट गया। लेकिन राजनीति करने वालों को मुद्दों की नहीं, मोकों की जरूरत होती है तो अब कुछ लोग मामले को जातीय अस्मिता से जोड़कर विधायक के पीएसओ के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। अब इन लोगों को कौन समझाए कि ज़ब युवक की तरफ से पीएसओ के खिलाफ मुकदमा होगा तब क्या पीएसओ की तरफ से युवक पर राज्यकार्य में बाधा और जाति सूचक गालियां निकालने जैसी संगीन धाराओं में मामला दर्ज नहीं करवाया जाएगा ? साफ है कि पीएसओ का तो पता नहीं क्या होगा राजनीति के चक्कर में युवक जरूर मुश्किल में फंस जायेगा।

वैसे इस पुरे मामले में बीजेपी के शीर्ष नेता अभी भी मुंह में दही जमाए बैठे हैं। जिसके दो ही मतलब निकलते हैं एक तो ये कि इस प्रकरण में उन्हें कुछ गलत नजर नहीं आ रहा है या फिर दूसरा ये कि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों पार्टियों के ऊपरी स्तर पर सभी नेता मिले हुए है। ऐसे में मामले को तूल देने में जुटे छूटभैया नेताओं को कुछ भी निर्णय से लेने से पहले अपने आकाओं से एक बार अच्छी तरह से राय मशवरा कर लेना चाहिए।

गेदर की सक्रियता से विपक्षी परेशान, ऐसे में साज़िश की भी आशंका ?
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक विशेष वर्ग के कुछ नेताओं के विरोध और अपनी साफ छवि के चलते करीब 50000 वोटों से जीत दर्ज करने वाले डूंगरराम गेदर सरकार नहीं होने के बावजूद इलाके में पूरी तरह से सक्रिय हैं। जबकि पिछली सरकार में हमने देखा था कि पूर्व विधायक और दिग्गज नेता सरकार नहीं होने और मेरी तो चाल कोनी जैसे जुमलो का रोना रोते हुए पूरे 5 साल तक रजाई ओढ़कर सोते रहे। वहीं तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियों के बावजूद गेदर जनता के बीच मे मौजूद हैं। यहीं नहीं ज़ब डेढ़ साल की सत्ता में ही राष्ट्रवादी पार्टी के भाजपा नेता और उनके रिश्तेदार भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जनमानस में बेनकाब हो चुके हैं। विधायक डूंगरराम गेदर के पौने 2 साल के कार्यकाल की एक उपलब्धि यह भी है कि वे अब तक भ्रष्टाचारों के आरोपों से बचे हुए है।

दूसरी और शहर में आफत के रूप में बरस रही बरसात की बात करें तो भी विधायक गेदर भाजपा नेताओं से कहीं आगे नजर आते हैं। जहाँ भाजपा नेता और उनके पुत्र जिनकी सत्ता में पकड़ है और जो अधिकारियों का कान पकड़कर कोई भी व्यवस्था करवा सकते हैं, वे भी बस जनआक्रोश से बचने के लिए फोटो खिंचवाकर रस्म अदायगी कर रहे है। भाजपा के दूसरे खेमे का हाल तो और भी बुरा है अधिकारी उनकी मानेंगे या नहीं मानेंगे इस डर से वे बाहर भी निकालने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। उस पर बेशर्मी का आलम यह है कि शहर की अव्यवस्था के लिए विधायक गेदर पर असफलताओं का दोष मंढ़ने का प्रयास जोर शोर से जारी हैं। ऐसे में कांग्रेस के नेता इस पूरे प्रकरण को एक साजिश के रूप में भी देख रहे है, जिसकी संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता, क्यूंकि विधायक के पीएसओ द्वारा युवक को थप्पड़ मारने से पहले भी एक गुट द्वारा विधायक के विरुद्ध नारेबाजी की गई थी। जबकि विधायक तो विवाद को सुलझाने के लिए मौके पर पहुंचे थे।

कुल मिलाकर शहर के भाजपा के तमाम नेताओं से शहर की जनता की तरफ से हमारा अनुरोध है कि वे विधायक डूंगरराम गेदर के पीएसओ को भले ही जैल भिजवा दे किसी को भी कोई एतराज नहीं है, पर बरसात रूपी इस आफत से मुकाबला के लिए कम से कम शहर के आमजन के साथ खड़े होने की कृपा जरूर करें।

-राजेंद्र पटावरी, अध्यक्ष-प्रेस क्लब, सूरतगढ़।

01/08/2025
30/07/2025

गंगानगर के सिनेमाहॉल

आजाद टॉकीज(1)

1947-48 में स्टेशन से जो सड़क ,अब बन्द हो चुके शुगर मिल की ओर जाती है ,जहाँ उसके अंत में दाईं ओर एक टूटी फूटी सी चार दिवारी थीं , इस बड़े से स्थल पर एक तरफ सफेद पर्दा और दूसरी और कुछ ऊंचाई पर प्रोजेक्टर लगा दिया जाता था. यह एक तरह का ओपन थिएटर था .उन दिनों डब्बों में फिल्मों की रील आती थी . उसे चरखी नुमा यन्त्र पर चढ़ाया जाता था .एक रील ख़त्म होने के बाद दूसरी रील उसी यंत्र पर चढ़ाई जाती,तो ये बीच बीच मे सिनेमा रुकता रहता,चूँकि इस खुली चार दिवारी पर छत नहीं थी इसलिए यहाँ एक ही शो दिखाया जाता था जो रात को अँधेरा होने के बाद शुरू होता था . टिकट एक आना या दो आने थी . बैठने के लिए कोई कुर्सिया आदि नहीं थी कुछ बेंच जरूर थे. ज्यादातर लोग जमीन पर बैठ कर ही फिल्म देखते थे . या बैठने के लिये दरी या कोई चटाई अपने साथ लाते थे. बारिश होने पर शो बन्द हो जाते थे.ये ओपन थियेटर आजाद टॉकीज के नाम से जाना जाता रहा,बाद ये टॉकीज अपनी पक्की बिल्डिंग में ,फाटक के उस पर,अबोहर रोड पर स्थापित हुआ.

कृष्ण टॉकीज(2)

शहर का दूसरा सिनेमा हॉल रिहायशी इलाके में था. यह वास्तव में एक गोदाम जैसा था जिस पर छत थी और कुछ पंखे लगे हुए थे . वे इतनी ऊँचाई पर थे की उनकी हवा नीचे फिल्म देखने वालों शायद ही लगती थी .
इसमें तीन क्लास थी . सबसे आगे वाली क्लास में बेंच थे, इसे थर्ड क्लास कहा जाता था. अक्सर इसमें इसकी क्षमता से अधिक टिकट दे दी जाती थी तथा देर से अन्दर प्रवेश करने वालों को परदे के ठीक समाने नीचे बैठना पड़ता था. सेकंड क्लास में कुर्सियां थी . फर्स्ट क्लास छोटी थी . थर्ड क्लास के टिकट ढाई आने थी . सेकंड क्लास छः आने तथा फर्स्ट क्लास टिकेट दस आने थी . इसके पास सिनेमा दिखाने वाली दो मशीन थी . एक के खत्म होते ही दूसरी चल पड़ती थे इसलिए आज़ाद टाकीज़ की भांति हर रील के बाद ब्रेक नहीं आता था . यहाँ भी रोज़ तीन शो होते थे . पहला एक बजे , दूसरा छः बजे और तीसरा रात के 9 होता था.जिसे फिर बाद में चार शो 12,3,6 और 9 बजे कर दिया गया,फिर ये चलन सब सिनेमा हॉल में चला.

गणेश थियेटर(3)

उस समय शहर का आधुनिक कहा जाने वाला तीसरा सिनेमा हॉल श्रीगणेश थियेटर बना . जिसे देख कर लगता था कि बड़े शहरों सिनेमाघर कैसे होते हैं . यह लक्कड़ मंडी से दाई और जाने वाले बाजार की तरफ रोड पर बना से कॉटन मिल तरफ जाने वाली सड़क के अंत में था . जब तक गणेश टाकीज़ का आगाज़ नहीं हुआ था.बाकी दो टॉकीज अक्सर पुरानी फिल्मों को दिखाते थे जो दिल्ली जैसे बड़े शहरों में महीनो पहले दिखाई जा चुकी होती थी . इसके पीछे कारण था कि ये फिल्में इन्हें सस्ती मिल जाती थी . लेकिन गणेश टाकीज़ के आते ही सब बदल गया . यह सिनेमा हॉल इसलिए अधिक लोकप्रिय हो गया चूँकि यहाँ दिल्ली आदि में रिलीज़ होने के कुछ सप्ताह बाद ही फिल्म दिखाई जाती थी . कुछ फ़िल्में तो लगभग दिल्ली में रिलीज़ होने के साथ ही आ जाती थी .
उन दिनों किसी फिल्म के लोकप्रियता का अंदाज़ बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से नहीं बल्कि फिल्म किसी सिनेमा घर में कितने दिन चली, इससे लगाया जाता था.

आदर्श सिनेमाहॉल(4)

पुरानी आबादी में नहर के पास आदर्श सिनेमा हॉल खुला . ये सिनेमा हॉल बस स्टैंड और पुरानी आब्दी के नजदीक होने के कारण काफी चला.बेहद व्यस्त रोड और मार्किट में होने के कारण इसके आसपास वाले लोग ने अपने मकान,दुकान आदि इसके अनुरूप ढाल लिये,लगभग हर दुकान साइकल स्टैंड हो गई थी. खुद का परिसर ना होने के कारण फ़िल्म देखने आए लोगो की भीड़ सड़क पर ही रहती और टिकट विंडो भी बाहर सड़क की और बने हुए थे.

पायल सिनेमा(5)

फिर अगला सिनेमा पायल विनोबा बस्ती में बना.
विनोबा बस्ती जैसे रिहायशी इलाके में बना पायल थियेटर अपने समय के अनुसार अतिआधुनिक सुविधाओ से परिपूर्ण था- वातानुकूलित हॉल,बैठने की सुविधाजनक व्यवस्था, साउंड सिस्टम ,साफ सफाईऔर विशाल परिसर..अपने निर्माण के समय में ही ये चर्चा में आ चुका था...गंगानगर के आस पास के सभी शहरों और कस्बे के लोग विशेष तौर पर इस मे फिल्में देखने के लिये आते थे..
ये इस संभाग का 'राजमन्दिर' का दर्जा रखता था..
इसकी विशाल बिल्डिंग आज भी शान से अपने स्वर्णकाल को याद करती खड़ी है.

सुखवंत और दुर्गेश(6,7)

पायल के बाद इसके समकक्ष ही सुखवंत और दुगेश सिनेमाहाल का अस्तित्व सामने आया..लेकिन अपनी अव्यवस्था के चलते ये कभी लोकप्रिय नही रहे...लोग सिर्फ फ़िल्म के चुनाव के कारण ही इन मे जाते थे..

कृष्णा और गणेश थियेटर अब ध्वस्त हो चुके है, दुर्गेश अब मैरिज पैलेस में परिवर्तित हो चुका है,सुखवंत की जगह अब कॉलोनी/मार्किट बन गई है,आजाद,पायल और आदर्श की बिल्डिंग अभी भी मौजूद हैं.
ऐसा नही है कि इन सिंगल सिनेमा थियेटरों ने बदलते परिवेश के साथ खुद को अपडेट करने का प्रयास नही किया,कृष्णा और गणेश ने बड़े कॉपरेट कम्पनियों के साथ मिलकर इन्हें रेनोवेट किया,सुविधाएं बढ़ाई... लेकिन ये सब वर्क नही कर पाई.

कालांतर में, 2010 के बाद, इंटरनेट और ओटी टी चैनल्स ने सिनेमाहॉल का स्वर्गयुग का सफर खत्म करके खस्ता हालात में पहुंचा दिया और अब शहर में कोई भी सिनेमाहाल चालू अवस्था मे नही है..अब शहर की ये विशाल इमारतें जो पर्दे पर सुनहरा संसार रच दिया करती थी,अपनी दुर्दशा पर शोक नुमा अंदाज में खड़ी है..उम्रदराज और सिनेमा के शौकीन लोग इनके सामने से गुजरते हुए एक आह भर कर रह जाते है

अब सिर्फ दो मल्टीफ्लेक्स(जो शहर के दो मॉल में अवस्थित है) ही चल रहे है..जहाँ लोग फ़िल्म कम और पिकनिक मनाने ज्यादा जाते है.
- अरुण खामख्वाह

21/07/2025

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