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14/08/2025

एक व्यापक सांस्कृतिक क्षेत्र जिसे इतिहासकारों ने बृहत्तर भारत (Greater India) कहा है। यह केवल राजनीतिक या आर्थिक नहीं था, बल्कि धर्म, भाषा, लिपि, स्थापत्य और जीवन मूल्यों के रूप में भारत की सांस्कृतिक चेतना का प्रसार था।

14/08/2025

आज जब कुछ विचारधाराएँ उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य कृत्रिम विभाजन की रेखाएँ खींचने का प्रयास कर रही हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपने प्राचीन ग्रंथों, इतिहास और सांस्कृतिक स्मृतियों की ओर लौटें।
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प्राचीनतम साहित्य - वेद, पुराण, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों का गहन अध्ययन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारतवर्ष की भौग...
14/08/2025

प्राचीनतम साहित्य - वेद, पुराण, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों का गहन अध्ययन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारतवर्ष की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक एकता केवल एक विचार नहीं, बल्कि हजारों वर्षों की एक वस्तुनिष्ठ सत्यता है।

23/07/2025

मलते रह गए हाथ शिकारी उड़ गया पंछी तोड़ पिटारी अंतिम गोली खुद को मारी  #चंद्रशेखर आज़ाद जयंती
23/07/2025

मलते रह गए हाथ शिकारी
उड़ गया पंछी तोड़ पिटारी
अंतिम गोली खुद को मारी

#चंद्रशेखर आज़ाद जयंती

  जयंती
19/07/2025

जयंती

  और
25/06/2025

और

25/06/2025

आपातकाल के विरोध में संघ की भूमिका

सभी प्रकार की संचार व्यवस्था, यथा-समाचार-पत्र-पत्रिकाओं, मंच, डाक सेवा और निर्वाचित विधान मंडलो को ठप्प कर दिया गया। प्रश्न था इसी स्थिति में जन आंदोलन को कौन संगठित करे ? इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता था। संघ का देश भर में शाखाओं का अपना जाल था और वही इस भूमिका को निभा सकता था। संघ ने प्रारम्भ से ही जन से जन के संपर्क की प्रविधि से अपना निर्माण किया है। जन संपर्क के लिए वह प्रेस अथवा मंच पर कभी भी निर्भर नहीं रहा। अतः संचार माध्यमों को ठप्प करने का प्रभाव अन्य दलों पर तो पड़ा, पर संघ पर उसका रंचमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। अखिल भारतीय स्तर के उसके केन्द्रीय निर्णय, प्रांत, विभाग, जिला और तहसील के स्तरो से होते हुए गाँव तक पहुच जाते हैं। जब आपात घोषणा हुई और जब तक आपातकाल चला,उस बीच संघ की यह संचार व्यवस्था सुचारु ढंग से चली। भूमिगत आंदोलन के ताने-बाने के लिए संघ कार्यकर्ताओं के घर महानतम वरदान सिद्ध हुए और इसके कारण ही गुप्तचर अधिकारी भूमिगत कार्यकर्ताओं के ठोर ठिकाने का पता नहीं लगा सके। (H॰V॰ Sheshadri, Kratiroop Sangh Darshan, pp. 486-87)
श्री जयप्रकाश नारायण ने अपनी गिरफ्तारी से पूर्व लोक संघर्ष समिति का आंदोलन चलाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता श्री नानाजी देशमुख को ज़िम्मेदारी सौपी थी।
जब नानाजी देशमुख गिरफ्तार हो गए तो नेतृत्व की ज़िम्मेदारी श्री सुंदर सिंह भण्डारी को सर्वसम्मति से सौपी गयी।
आपातकाल लगाने से उत्पन्न हुई परिस्थिति से देश को सचेत रखने के लिए तथा जनता का मनोबल बनाए रखने के लिए भूमिगत कार्य के लिए संघ के निम्न कार्यकर्ता तय किए गए :
नागरिक स्वातंत्र्य के मोर्चे के लिए मा॰ रज्जू भय्या,
आचार्य सम्मेलन के मोर्चे के लिए डॉ आबाजी
विदेशों में संपर्क के लिए बाला साहब भिड़े, चमनलाल जी, जगदीश मित्र सूद तथा केदारनाथ साहनी
राजनीतिक क्षेत्र के लिए रामभाऊ गोडबोले, सुंदर सिंह भण्डारी, ओम प्रकाश त्यागी तथा उत्तम राव पाटिल
कॉमन वैल्थ कॉन्फ्रेंस के लिए जगन्नाथ राव जोशी
कानूनी मोर्चे के लिए डॉ अप्पा घटाटे
साहित्य निर्माण के लिए दिल्ली में भानुप्रताप शुक्ल तथा वेद प्रकाश भाटिया।
साहित्य प्रकाशन तथा दिल्ली केन्द्रित संपर्क के लिए बापुराव मोघे
धर्माचार्य संपर्क के लिए दादासाहब आपटे
पत्र पत्रिकाओं से संपर्क के लिए जगदीश प्रसाद माथुर
महिलाओं से संपर्क के लिए लक्ष्मीबाइ ‘मौसी जी’ केलकर (मोहनलाल रुस्तगी, आपातकालीन संघर्ष गाथा, पृष्ठ 24)

अच्युत पटवर्धन ने लिखा है, “मुझे यह जानकार प्रसन्नता हुई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता राजनीतिक प्रतिरोध करनेवाले किसी भी अन्य समूह के साथ मिलकर, उत्साह और निष्ठा के साथ कार्य करने के लिए, तथा घोर दमन और झूठ का सहारा लेने वाले पैशाचिक शासन का जो कोई भी विरोध कर रहे हों, उनके साथ खुल कर सहयोग करने और साथ देने के लिए तैयार थे। जिस साहस और वीरता के साथ पुलिस के अत्याचारों और उसकी नृशंसता को झेलते हुए स्वयंसेवक आंदोलन चला रहे थे,उसे देखकर तो मार्क्सवादी संसद सदस्य – श्री ए के गोपालन भी भावकुल हो उठे थे। उन्होने कहा था “कोई न कोई उच्चादर्श अवश्य है जो उन्हे ऐसे वीरोचित कार्य के लिए और त्याग के लिए अदम्य साहस प्रदान कर रहा है”। (इंडियन एक्सप्रेस के 9 जून, 1979)
एमसी सुब्रमण्यम ने लिखा, “जिन वर्गों ने निर्भीक लगन के साथ यह कार्य किया, उनमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विशेषतः उल्लेखनीय है। उन्होने सत्याग्रह का आयोजन किया। अखिल भारतीय संचार तंत्र को बनाए रखा। आंदोलन के लिए चुपचाप धन एकत्र किया। बिना किसी विघ्न बाधा के साहित्य वितरण की व्यवस्था की। कारागार में अन्य दलों और मतों के संगी बंदियों को सहायता प्रदान की। इस प्रकार उन्होने सिद्ध कर दिया कि स्वामी विवेकानंद ने देश में सामाजिक और राजनीतिक कार्य के लिए जिस सन्यासी सेना का आवाहन किया था, उसके वो सबसे निकटतम पात्र हैं। वह एक परंपरावादी क्रांतिकारी शक्ति है। (इंडियन रिवियू - मद्रास, अप्रैल 1977)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और योग - एक समर्पित दृष्टिकोणराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 1925 में डॉ. हेडगेवार द्वा...
21/06/2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और योग - एक समर्पित दृष्टिकोण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा की गई थी, जिनका उद्देश्य था राष्ट्रभक्ति, शारीरिक और मानसिक विकास और आत्मानुशासन के माध्यम से भारत के युवाओं को संगठित करना। योग को संघ के आद्यात्मिक और शारीरिक प्रशिक्षण के अनिवार्य भाग के रूप में अपनाया गया। संघ की शाखाओं में सूर्य नमस्कार, प्राणायाम, ध्यान और आसनों का नियमित अभ्यास कराया जाता है।
योग और संघ का संबंध केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मनियंत्रण, सामाजिक सेवा, समरसता और आध्यात्मिक जागरण से भी जुड़ा है। संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार स्वयं योग साधक थे और उन्होंने शाखा पद्धति में योग को अनिवार्य रूप से जोड़ा।
श्रीगुरुजी गोलवलकर ने भी योग को आंतरिक तप और अनुशासन के अंग के रूप में देखा। उनका कहना था, “यदि स्वास्थ्य-रक्षा तथा रोग-प्रतिकार करने के लिए योगासनों के अभ्यास की ओर लोगों ने ध्यान दिया तो सर्वसाधारण जनता के स्वास्थ्य में सुधार होकर उनका औषधियों पर होने वाला व्यय कम होगा तथा सब दृष्टि से उनका कल्याण होगा।“
योग केवल आत्मोन्नति का साधन नहीं बल्कि समाजोद्धार और राष्ट्रनिर्माण का भी पथ है। यही दृष्टिकोण संघ द्वारा अपनाया गया। संघ के प्रमुख शिक्षा वर्गों में योगासन और ध्यान की विधिवत शिक्षा दी जाती है। योग के माध्यम से स्वयंसेवकों में संयम, साहस और शारीरिक स्फूर्ति का विकास किया जाता है, ताकि वे सेवा कार्यों में तत्पर रह सकें।
आज भी संघ की हजारों शाखाओं में योगाभ्यास अनिवार्य गतिविधियों में शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं एक स्वयंसेवक के रूप में संघ से जुड़े रहे हैं। उनके द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा और उसे विश्व पटल पर स्थापित करना इस संघीय परंपरा की ही एक आधुनिक अभिव्यक्ति है। संघ का यह दृष्टिकोण "योग ही युक्ति है, योग ही शक्ति है, के सूत्र में संक्षेपित किया जा सकता है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2015 के अनुसार, “योग भारतीय सभ्यता की विश्व को देन है।“
संघ द्वारा योग दिवस पर पारित प्रस्ताव : संयुक्त राष्ट्र की 69वीं महासभा द्वारा प्रति वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा से सभी भारतीय , भारतवंशी व दुनिया के लाखों योग-प्रेमी अतीव आनंद तथा अपार गौरव का अनुभव कर रहे हैं । यह अत्यंत हर्ष की बात है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा के अपने सम्बोधन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का जो प्रस्ताव रखा उसे अभूतपूर्व समर्थन मिला। नेपाल ने तुरंत इसका स्वागत किया। 175 सभासद देश इसके सह-प्रस्तावक बनें तथा तीन महीने से कम समय में 11 दिसम्बर 2014 को बिना मतदान के, आम सहमति से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहती है कि योग भारतीय सभ्यता की विश्व को देन है। ‘युज’ धातु से बने योग शब्द का अर्थ है जोड़ना तथा समाधि। योग केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है, महर्षि पतंजलि जैसे ऋषियों के अनुसार यह शरीर मन, बुद्धि और आत्मा को जोड़ने की समग्र जीवन पद्धति है। शास्त्रों में ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:’, ‘मनः प्रशमनोपायः योगः’ तथा ‘समत्वं योग उच्यते’ आदि विविध प्रकार से योग की व्याख्या की गयी है, जिसे अपनाकर व्यक्ति शान्त व निरामय जीवन का अनुभव करता है। योग का अनुसरण कर संतुलित तथा प्रकृति से सुसंगत जीवन जीने का प्रयास करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसमें दुनिया के विभिन्न संस्कृतियों के सामान्य व्यक्ति से लेकर प्रसिद्ध व्यक्तियों, उद्यमियों तथा राजनयिकों आदि का समावेश है। विश्व भर में योग का प्रसार करने के लिए अनेक संतों, योगाचार्यों तथा योग प्रशिक्षकों ने अपना योगदान दिया है, ऐसे सभी महानुभावों के प्रति प्रतिनिधि सभा कृतज्ञता व्यक्त करती है। समस्त योग-प्रेमी जनता का कर्तव्य है कि दुनिया के कोने कोने में योग का सन्देश प्रसारित करे।
अ. भा. प्रतिनिधि सभा भारतीय राजनयिकों, सहप्रस्तावक व प्रस्ताव के समर्थन में बोलनेवाले सदस्य देशों तथा संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों का अभिनन्दन करती है जिन्होंने इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को स्वीकृत कराने में योगदान दिया। प्रतिनिधि सभा का यह विश्वास है कि योग दिवस मनाने व योगाधारित एकात्म जीवन शैली को स्वीकार करने से सर्वत्र वास्तविक सौहार्द तथा वैश्विक एकता का वातावरण बनेगा।
अ.भा. प्रतिनिधि सभा केंद्र व राज्य सरकारों से अनुरोध करती है कि इस पहल को आगे बढ़ाते हुए योग का शिक्षा के पाठ्यक्रमों में समावेश करें, योग पर अनुसन्धान की योजनाओं को प्रोत्साहित करें तथा समाज जीवन में योग के प्रसार के हर संभव प्रयास करें। प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी देशवासियों, विश्व में भारतीय मूल के लोगों तथा सभी योग-प्रेमियों का आवाहन करती है कि योग के प्रसार के माध्यम से समूचे विश्व का जीवन आनंदमय स्वस्थ और धारणक्षम बनाने के लिए प्रयासरत रहें।

#विश्व_योग_दिवस

09/06/2025
09/06/2025

छत्रपति शिवाजी महाराज का स्वराज्य प्रशासन
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09/06/2025

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