04/04/2025
हैदराबाद के कांचा गाचीबौली जंगल की 400 एकड़ भूमि को आईटी और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए इस्तेमाल करने की सरकार की योजना का स्थानीय लोग और पर्यावरणविद कड़ा विरोध कर रहे हैं। यह जंगल शहर के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय बैलेंस बनाए रखता है और यहां कई दुर्लभ वनस्पतियाँ, जीव-जंतु और जल स्रोत मौजूद हैं।
राज्य सरकार का कहना है कि इस भूमि का उपयोग आईटी हब, रियल एस्टेट, इंडस्ट्रियल और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए किया जाएगा, जिससे हैदराबाद में निवेश और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। अधिकारियों के अनुसार, शहर के तेजी से होते विस्तार के चलते इस तरह के नए प्रोजेक्ट जरूरी हैं, ताकि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके।
पर्यावरण विशेषज्ञों और एक्टिविस्ट्स का मानना है कि यह जंगल हैदराबाद के ‘ग्रीन लंग्स’ की तरह काम करता है, जो हवा को शुद्ध करने, तापमान को नियंत्रित रखने और जल संरक्षण में अहम भूमिका निभाता है। इस जंगल की कटाई से शहर में तापमान बढ़ेगा और हीटवेव्स अधिक प्रभावित करेंगी। कांचा गाचीबौली क्षेत्र हैदराबाद के भूमिगत जलस्तर को बनाए रखने में मदद करता है। जंगल में कई दुर्लभ पक्षी, तितलियाँ, छोटे स्तनधारी जीव और औषधीय पौधे पाए जाते हैं, जो इसके पारिस्थितिकी तंत्र को अनमोल बनाते हैं। यह क्षेत्र कार्बन सिंक की तरह काम करता है, जो कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करके प्रदूषण को कम करने में मदद करता है।
हैदराबाद के नागरिकों और स्थानीय गांववासियों को डर है कि इस जंगल की कटाई से बाढ़, सूखा और प्रदूषण की समस्या बढ़ सकती है। वे मांग कर रहे हैं कि सरकार इस क्षेत्र को संरक्षित जंगल घोषित करे और यहां बिना किसी छेड़छाड़ के इको-टूरिज्म, नेचर ट्रेल्स और रिसर्च सेंटर जैसी परियोजनाएं विकसित करे।
सस्टेनेबल डेवलपमेंट के तहत ग्रीन बिल्डिंग टेक्नोलॉजी और अर्बन प्लानिंग का उपयोग कर विकास किया जाए, जिसमें जंगलों को ज्यादा नुकसान न पहुंचे। अगर जंगल काटा जाए, तो दूसरी जगह दोगुने पेड़ लगाए जाएं और इसे कड़ाई से लागू किया जाए। सरकार, स्थानीय समुदाय और पर्यावरण संगठनों के बीच सहयोग हो, ताकि विकास और पर्यावरण का संतुलन बना रहे। जंगल को छेड़े बिना, आईटी और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए अन्य जगहों पर वैकल्पिक भूमि तलाशी जाए।
यह केवल हैदराबाद की समस्या नहीं है, बल्कि भारत के कई बड़े शहरों में इसी तरह ‘विकास और प्रकृति’ के बीच संघर्ष चल रहा है। दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर और कोलकाता जैसे शहरों में भी ग्रीन एरिया कम होते जा रहे हैं, जिससे वायु प्रदूषण, जल संकट और तापमान वृद्धि जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे में, सरकारों को ‘सस्टेनेबल अर्बन डेवलपमेंट’ को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि प्रकृति और विकास दोनों साथ-साथ आगे बढ़ सकें।