
02/08/2025
भागवताचार्य गुरुमाता ब्रजमोहिनी जी द्वारा कथित-
अथ विश्वनाथाष्टकम्
आदि शंभु स्वरूप मुनिवर चनद्रशीश जटाधरं।मुण्डमाल विशाल लोचन वाहनं वृषभध्वजम्।। नागचम्म॔ त्रिशूलडमरू भस्मअंग विहंभमम्। श्रीनीलकंठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।। १।।
गंग संग प्रसंग सरिता कामदेव सुसेवितं। नादबिन्दु संणेगसाधन पंचवक्त्र त्रिलोचनम्।।इन्दु बिन्दु विराज शशिधर सेवितं सुरवंदितं। श्री नीलकंठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।।२।।
ज्योतिर्लिंङ्ग सुलिंग फणिमणि दिव्यदेव सुसेवितं। मालती तनुपुष्पमाला गंधधूप निवेदितम्।। अनलकुंभ सुकुम्भ झलकत कलश कंचन शोभितं। श्री नीलकण्ठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।।३।।
मुकुट क्रीट सुकनक कुण्डल मण्डितं मुनि रंजितं। हार मुक्ता कनक रेखा रेखितं सुवेशेषितम्।। गंधमादन शैलआसन आसन परकासनं। श्री नीलकण्ठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।। ४।।
मेघडंवर छत्रधारन चरण कमल विशालितं पुष्परथरपर मदनमूरति गौरिसंग सदाशिवम्।। क्षेत्रपाल सुपाल भैरव कुसुम नवग्रह भूषितं। श्रीनीलकंठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।।५।।
त्रिपुरदैत्यसुदैत्य दानव प्राप्यते फलदायक। रावणा दशमकल मस्तक अंगजलधर सायकल श्री नीलकंठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।।६।।
मथित दधि जल शेष विगलित भ्रमत मेरु सुमेरुकं।स्त्रावत विगलित दीपप्रनवत युग्मनेत्र सुनेत्रकं। महादेव सुदेव सुरपति सव॔देव विश्वंभरं। श्री नीलकंठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।। ७।।
रुद्ररूप सुतेजनं कृत भक्षपान हलाहलं। गगन बेधित अखिल धारा आदि अन्त समाहितम्।कामकुञ्जर मानकेशव महाकाल विश्वेश्वरं। श्री नीलकंठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।।८।।
ऋतु बसंत सुचक्र चौंदिशि प्राप्यते फलदायकं। पूव॔काशी भये वासी मनुज मंगल दायकम्। अम्बिकेतट शैलशिखरमहेश्वरं। श्री नीलकंठ हिमालजलधर विश्वनाथ विश्वेश्वरम्।।९।।
हर हर महादेव 🙏