Harsh*ta Hunar

Harsh*ta Hunar डायरी के पन्नों पर छिटके कुछ शेर और नज़्में!

18/01/2025
10/10/2024

महादेव दोस्तों!

आपने शायद नोटिस किया होगा के कुछ समय से यहाँ मेरी चहल कदमी बंद है! मेरे इस पेज पर कुछ तकनीकी दिक्कत आ रही है जिसकी वजह से शायद पेज को कुछ समय के लिए या हमेशा के लिए बंद करना पड़ सकता है!

आपमें से जिनको मेरी रचनाओं और videos का इंतज़ार रहता है, वो मेरी प्रोफाइल follow कर सकते हैं. समस्या का समाधान होने तक इस पेज पर एक्टिविटी कम या नहीं रहेगी! प्रोफाइल का लिंक कमेंट बॉक्स में हैं!🙏🏻

आप सबकी अपनी

बैंकवाली / बनारसी पंडिताइन

Harsh*ta Chaturvedi हुनर

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कुछ कहानियाँ इतनी बेहतरीन होती हैं कि आप उनमें एक हिस्सा छोड़ आते हैं अपना! जब मैंने पहली बार   का ट्रेलर या यूँ कहूँ कि ...
10/09/2024

कुछ कहानियाँ इतनी बेहतरीन होती हैं कि आप उनमें एक हिस्सा छोड़ आते हैं अपना! जब मैंने पहली बार का ट्रेलर या यूँ कहूँ कि उसका तू खींच मेरी फोटो वाला गाना देखा तो यही सोचा था के ये कोई ब ग्रेड की फ़िल्म होगी।

ना कोई बड़ा एक्टर एक्ट्रेस था ना कोई ख़ास बड़ा नाम! ऐसे में इस पर ध्यान जाना मुश्किल तो था ही। पर कई सालों बाद इसके कुछ गाने सुनकर मन में आया कि शायद ये फ़िल्म देखनी चाहिए! Imdb पर सर्च किया और इसके reviews देखकर मैं दंग रह गई।

लोगों ने इस फ़िल्म की तारीफों के पुल बाँध रखे थे। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब मैंने देखा के यह फ़िल्म एक किताब पर बनाई गई है। आनन फानन में किताब मंगाई और उसे पढ़कर आँसुओ का जो सैलाब उमड़ा, उसे याद ना ही करूँ तो बेहतर है।

फिर ये फ़िल्म देखी और मैं इसकी जीवन भर के लिए मुरीद बन गई! कहानी का सबसे बेहतरीन पहलू मुझे लगा जिसमे कुछ लोगों ने इस फ़िल्म के किरदारों को शिव और शक्ति के किरदारों के इंसानी रूप में देखा! इस पहलू ने फ़िल्म को देखकर इसे मन की गहराइयों तक महसूस करने को मजबूर कर दिया मुझे।

प्यार के निस्वार्थ स्वरुप और मासूमियत से सराबोर ये कहानी आपको ज़रा सा हँसाती है, बहुत सारा रुलाती है और आख़िर में आपके मन में एक मीठी सी कसक छोड़ जाती है। कई रिश्तों के ताने बानों के टूटने और जुड़ने की कड़ी से बनी ये फ़िल्म आपके अंदर कुछ टूटा हो तो इसे जोड़ जाये शायद। या फिर जिसे आप समेट कर बैठे हों सालों से, उसे बिखेर कर आपको भी बिखरने को मजबूर कर दे।

अगर आप भी मेरी तरह hopeless romantic हैं और ऐसी कहानियों में सुकून का एक कतरा, दर्द की एक टीस ढूँढा करते हैं तो आपको ये फ़िल्म ज़रूर पसंद आएगी!

ऐसी कई के बारे में अपने ख़यालात लेकर आती रहूँगी और आपको ऐसे और कई किस्सों से रूबरू कराती रहूँगी!

तब तक के लिए इसका कोई गाना गुनगुनाइये और बने रहिये यहीं आस पास!

मोहब्बत आप सबको!

#बनारसी_पंडिताइन_की_क़लम_से





✍🏻 Harsh*ta Chaturvedi Hunar

Dear इम्तियाज़!बड़े दिनों बाद फिर लैला मज़नू देखी! इसके पहले भी मैंने आपकी रॉकस्टार से ख़ुद को काफ़ी impressed पाया था. हाँ ए...
31/08/2024

Dear इम्तियाज़!

बड़े दिनों बाद फिर लैला मज़नू देखी! इसके पहले भी मैंने आपकी रॉकस्टार से ख़ुद को काफ़ी impressed पाया था. हाँ एडिटिंग टेबल पर फ़िल्म थोड़ी मार खा गई। पर मेरी पसंदीदा फिल्मों में लैला मजनू और रॉक स्टार हमेशा रहेंगी!

ये ऐसी फ़िल्में हैं जो आपको प्यार के एहसास से इश्क़ करा देने का माद्दा रखती हैं। चाहे कभी प्यार महसूस किया हो या नहीं, चाहे हमारा दिल टूटा हो या नहीं, इम्तियाज़ आप दिल के कोने में जाकर एक ऐसी जगह ढूँढ लाते हैं जहाँ पत्थर भी मोम हो जाया करते हैं।

लैला मजनू हो या रॉक स्टार दोनों के सेकंड हाफ ने मुझे रुलाया। हाँ भई मैं फ़िल्में देखकर और किताबें पढ़कर रोने वाली जमात से हूँ। पर हर फ़िल्म या किताब मुझे रुला दे ऐसा नहीं होता। जिन फिल्मों या किताबों में कुछ ऐसा हो जो मन के अनजान से कोने को सहला जाये या फिर एक अजनबी के लिए मेरे मन में टीस पैदा कर दे, ऐसी किताबों और फिल्मों की मुरीद हूँ मैं।

जानते हैं! इस फ़िल्म का सबसे बेहतरीन सीन कौन सा लगा मुझे? जिसमे मजनू अपनी ख़याली लैला से अपनी बदहवासी, बेफिक्री में बातें कर रहा होता है और नमाज़ पढ़ते लोगों का गुस्सा उस पर फूट पड़ता है। उस को जब पत्थर लगता है तो वो कहता है,

"मैं जब अपने माशूक (लैला ) से बातें कर रहा था तो मुझे तो आप लोग नहीं दिखे, फिर आपको आपके माशूक (ख़ुदा) से बातें करते वक़्त मैं कैसे दिख गया? मेरी आवाज़ सुनाई कैसे दे गई। "

सूफ़ी इश्क़ में ख़ुदा को माशूक मानकर उसकी इबादत करने की इस रवायत को इंसानी प्यार से जोड़कर जो मिसाल आपने सामने रखी, उसने मुझे सूफ़ी साहित्य की याद दिला दी।

इश्क़ में ख़ुद को भूलकर दुनिया से दूर एक ऐसे जहाँ में जाकर बस जाने की कश्मकश जिसमे अपने माशूक के सिवा कोई ना हो। दोनों के बीच कोई दीवार, समाज की कोई बंदिश ना हो जैसे इस फ़िल्म में दिखी, मेरा मन छू लिया उसने।

पर मेरी आपसे एक शिकायत है, आप की फ़िल्में इश्क़ में दीवाने बने आशिक़ लड़को की आप बीती तो कह जाती है, पर उन माशूक लड़कियों का दर्द बयान करने में ज़रा कंजूसी बरत देते हो आप! उनके दर्द की इन्तहाँ और उनकी तड़प उभरकर इन फिल्मों में सामने आती नहीं दिखती!

उम्मीद है अगली फ़िल्म में ये शिकायत दूर हो और नहीं हुई तो फिर मुझे ऐसी कहानी लिखकर भेजनी होगी जिसमे माशूक के दर्द का वो किस्सा बयान करूँ कि आप भी रो पड़ो!

आज के लिए इतना ही!

✍🏻 Harsh*ta Chaturvedi Hunar

15/08/2024

पंचायत में प्रहलाद चचा का डायलॉग तो आप सबने सुना ही होगा,  कि समय से पहले कोई नहीं जाएगा, मतलब कोई नहीं। इस एक डायलॉग ने...
08/06/2024

पंचायत में प्रहलाद चचा का डायलॉग तो आप सबने सुना ही होगा, कि समय से पहले कोई नहीं जाएगा, मतलब कोई नहीं। इस एक डायलॉग ने बड़े बड़े पत्थर और जाने कितना सख़्त लड़के पिघला दिए। जानते हैं क्यों? समय से पहले माँ पिता या किसी अपने का जाना एकबार में ख़त्म होने वाली घटना नहीं होती!

किसी सिनेमा की तरह नहीं, कि बस क्लाइमैक्स में आँसू, भावनाओं का तूफान, मन का उफान सब आएगा और पिक्चर ख़त्म होते ही सब सामान्य हो जाएगा। असमय अपनों को खोना एकता कपूर के सीरियल जैसी बोझिल और सदी के अंत तक खिंचकर आपको तार तार कर देने वाली घटना होती है। जिसमे क्लाईमैक्स जैसा कुछ नहीं, बल्कि हर नए एपिसोड में नये तरीके से नई चुनौती की आहट होतीहै।

जब अपने जाते हैं, तो हम टूटते बिखरते है, कुछ सूझता समझता नहीं। हालांकि धीरे धीरे हम सामान्य भी होने लगते हैं। पर सबसे दिल दहलाने वाली बात ये है कि बीतते वक़्त के साथ समय समय पर, ज़िन्दगी इस कमी का एहसास दिलाती रहती है।

माँ पिता को खोकर जब आप ख़ुद माँ बाप बनते हैं, या अपने बच्चों का बचपन जीते हैं तो ये कमी आपके मन पर फिर दस्तक देती है। हर उस लम्हे की शक्ल में, जो आपके बचपन से निकलकर आपके बच्चो के बचपन में दोहराया जा रहा हो।

यही नहीं, अगर आपके आस पास भी किसी को उसी तकलीफ से गुज़रना पड़े तो अपने घाव जैसे फिर से हरे होने लगते है। किसी की रुख़सती से पीछे छूट गए मासूम चेहरों से चाहे जाना पहचान ना हो, पर एक अनदेखा दर्द का रिश्ता महसूस करते हैं आप!

कभी यूँ भी लगता है कि कैसे भी जाकर उन मायूस सी शक्लों और बेचैन से मन को सुकून दे सको। बाँहों में भरकर कह सको कि सब ठीक नहीं हो सकता। पता है, पर फिर भी एक दिन आदत हो जाएगी, दिल इतना मजबूत हो जायेगा कि अपनों की कमी महसूस कर के बिलखने की बजाय उनके साथ बिताये लम्हों को सोचकर मुस्कुरा उठेगा। हाँ उस मुस्कुराहट में नमी की कमी कभी नहीं होगी क्योंकि पलकें बारिश भले करना रोक दें, बूँदाबाँदी फिर भी हुआ करेगी एहसासों की!

इसलिए कहती हूँ, माँ पिता या अपनों का जाना एक कालजयी घटना है और शायद इसीलिए इस दस बारह शब्द के एक डायलॉग ने लाखों के मन में वो कसक पैदा कर दी, जो कई बार 3 घंटे की पिक्चर भी नहीं कर पाती!

आपके आस पास किसी ने अपनों को खोया हो तो चाहे तेरहवीं का भोज करने जाना या नहीं, पर कोशिश करना उन्हें अकेला महसूस ना हो। एक हाथ ज़रूर बढ़ाना, वो थामे या ना थामे, ये अलग बात है, पर आप अपने कदम पीछे मत लेना। खड़े रहना एक ऐसे मोड़ पर जहाँ अगर वो पलट के देखे तो भरोसा हो कि वो अकेले नहीं है।

फिर प्रहलाद चचा जैसी उनकी अमूल्य मुस्कुराहट एक ना एक दिन लौट आएगी!

बस इतना ही! ख़याल रखिये अपना!

महादेव!

#बनारसी_पण्डिताइन_की_क़लम_से

✍🏻 Harsh*ta Chaturvedi Hunar

पंचायत तक़रीबन सभी लोग देख चुके हैं या देख रहे हैं जिन्हें मैं जानती हूँ। पंचायत और गुल्लक दो ऐसी वेब सीरीज़ है जो अपनेपन ...
07/06/2024

पंचायत तक़रीबन सभी लोग देख चुके हैं या देख रहे हैं जिन्हें मैं जानती हूँ। पंचायत और गुल्लक दो ऐसी वेब सीरीज़ है जो अपनेपन की महक से सराबोर करती सी लगती है। ये पहली सीरीज़ है जिसका मोह छूटता नहीं क्योंकि ये मुझे उस ननिहाल की याद दिलाता है जहाँ भारत के गाँव बसते हैं और अगर आप मुझे पढ़ते हैं तो जानते होंगे कि मैं भावनाओं का ज़रा ज़्यादा ही कस के पकड़ कर रखने वाली इंसान हूँ।

ख़ैर पंचायत के मेरे साथ भावनात्मक रिश्ते की बात फिर कभी।

मसालेदार, चटाकेदार या धुआँधार जैसा कुछ नहीं है यहाँ। ना तो माचो टाइप हीरो है, ना मौगाम्बो जैसा विलेन। अगर कुछ है तो आपके और मेरे जैसे इपरफेक्ट किरदार।

एक लड़का है जो आम युवा की तरह ज़िन्दगी में कुछ बनने की फ़िराक में हैं। एग्जाम देता है और फेल भी होता है और कोशिश नहीं छोड़ता। पर ये सब तो पहले सीजन की बात है। हैना?

तीसरा सीजन मुझे और पसंद आया। जानते हैं क्यों? क्योंकि इसमें गाँव की सच्चाई तो दिखी ही, साथ ही दिखी तो असली ज़िन्दगी की कच्ची पक्की झलक। अंग्रेजी में बोलें तो स्लाइस ऑफ़ लाइफ!

पंचायत ख़ास है क्योंकि इसमें किरदारों का चारित्रिक विकास दिखता है मुझे। शहर का थोड़ा सा सेल्फिश लड़का जिसे अपनी कुर्सी किसी से बाँटने में तकलीफ थी इस सीजन के अंत तक गाँव वालों के लिए हवा में बाँस का डंडा भाँजता दिखता है।

शहर में भी गाँव को याद करता है। रिजाइन करने का ख़याल छोड़ पहला मौका मिलते ही वापस आ जाता है। हाँ रिंकी और रोमांस की बयार इस बदलाव की बारिश का कारण तो है, पर साथ ही विकास जैसा बादल और प्रधान जी, प्रहलाद चचा जैसे बरगद के पेड़ भी तो उसके मन में आ रही नमी का मुख्य स्रोत हैं।

तभी तो प्रधान जी पर हमले से तैश में आकर विधायक और बनराकस समेत चार पाँच लोगों से दो दो हाथ कर लेता है। बस यहीं शहर वाले से गाँव वाला बनने की उसकी यात्रा की शुरुआत दिखती है।

विधायक भी तो टिपिकल विलेन नहीं है। दंड पेलता है, लोगों पर धौंस जमाता है, पर घोड़े से अलग होने पर फूट फूट कर रोता है। कहानी का कोई पात्र करन जौहर की तिलस्मी दुनिया, भंसाली की आडम्बर भरी या फिर रोहित शेट्टी की कार तोड़ू ज़मीन फोड़ू शक्तियों से निकल कर नहीं आता हमारे सामने। जिसे देखकर हमारी आँखें चौंधिया जाये और हम सीटियाँ या तालियाँ बजाने को मज़बूर हो जायें।

विधायक के साथ हस्पताल के सामने हुई मुठभेड़ में जब डंडा पड़ता है तो पात्र रजनीकांत की तरह स्टाइल मारकर उठ खड़े नहीं होते। बल्कि अपनी तशरीफ सहलाते और बर्फ वाले पानी में हाथ डुबाते दिखते हैं। जैसे कि एक आम इंसान करेगा। बस इसीलिए पंचायत पसंद आई मुझे। क्योंकि उसमें इंपरफेक्ट लोगों की परफेक्ट तस्वीर दिखी।

बेटे के दुख से उभरते प्रहलाद चाचा की पहली हँसी रात के अँधेरे को चीरकर सुबह की पहली किरण सी गर्माहट दे जाती है। विकास के पिता बनने पर उसका नाचना, गाँव भर का ख़ुश हो जाना, रिंकी का मर्यादा में रहकर प्रेम में धीरे धीरे कदम बढ़ाना सब मन को सहला जाता है।

प्रधान होकर भी चूल्हे चौके में जीती महिला के राजनितिक दांव पेंच सीखने और उन्हें आजमाने की कहानी है पंचायत। ज़िद्दी दूल्हे की जिम्मेदार बेटे बनने की क़वायद भी। एक लाइन में कहूँ तो नकलियत की मंडी में असलियत की छोटी सी झलक है पंचायत।

#बनारसी_पंडिताइनकी_क़लम_से

Harsh*ta Chaturvedi Hunar

05/06/2024

मतलब गर्लफ्रेंड/ बीवी या ब्लॉक कर दे या घर वाले नाराज़ होकर घर से निकाल दे तो मनाकर आने जाने की बजाय सीधा तलाक़ तलाक़ तलाक़ या बँटवारा होना चाहिए है ना!

हाँ! इसका चुनाव और यूपी से पूरा संबंध है।

भाजपा के चाणक्य अवश्य चिंतन कर रहे होंगे, बाकी लोग भर पेट जनता को गरिया के अपना दुख निकाल रहे हैं। समझा भी जा सकता है।

पर उन्हीं की भाषा में कहें तो मान लो कि यूपी वाले मंथरा और कैकई हैं। पर वनवास तो राम को भी झेलना पड़ा था ना पर राम ने कैकई को कभी अपमानित नहीं किया। राजाज्ञा स्वीकारी वन गए और रावण को हराकर आये तब पुरुषोत्तम कहलाये।

उत्थान के साथ पतन आवश्यम्भावी होता है। कारण कुछ तो होगा! रुदाली का रूप छोड़कर कमियाँ तलाशिये और सुधारिये। जनता का प्रेम हैं इसलिए तीसरी बार सरकार बन रही है। पर इस बार के नतीजे कह रहे हैं, राम मंदिर के लिए धन्यवाद! पर ये जनता मांगे more!

थोड़ा complecent तो हो गए थे, तभी पैर फिसला है, सिर्फ़ मोदी जी के नाम और राम मंदिर से बात नहीं बनेगी, कुछ और ठोस कदम उठाने होंगे। भरोसा और पक्का कीजिये फिर वही जनता दीवाली मना रही होगी जिसने वनवास दिया है अभी!

#बनारसी_पंडिताइनकी_क़लम_से

04/06/2024

आई 400 सीट ही थी बस 28% के आस पास जी एस काट ली जनता ने! 😜😅

04/06/2024

04/06/2024

सुनने में आ रहा है कि जादू के सभी एलियन दोस्त धूप में बेहोश हो कर लू से तप गए इसलिये ईएवीएम की तार नहीं खींच पाए! कल पर्यावरण दिवस पर पेड़ लगाएं और 2029 में ई वी एम हैक करने में योगदान दें!😅😂

#पंडिताइन_का_पंच

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