12/05/2025
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बुद्ध से बड़ा बुद्धत्व।
भारतीय दार्शनिक परंपरा में 'बुद्ध' शब्द का उच्चारण होते ही एक ऐसे व्यक्तित्व की छवि उभरती है, जिसने समस्त संसार को करुणा, ध्यान और जागरूकता का मार्ग दिखाया। उन्होंने न केवल सत्य का साक्षात्कार किया, बल्कि उसे समाज के समक्ष सरल शब्दों में प्रस्तुत किया। तथागत गौतम बुद्ध एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, किंतु 'बुद्धत्व' एक अवस्था है—एक ऐसी चित्त की परिपक्वता, जो आत्मबोध और ब्रह्मज्ञान की चरम सीमा तक पहुँच चुकी हो।
"बुद्ध से बड़ा बुद्धत्व "—यह कथन सुनने में विरोधाभासी प्रतीत हो सकता है, किंतु यह एक गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक सत्य को प्रकट करता है।
'बुद्ध' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है—'जागृत' या 'जिसने जान लिया है'। गौतम बुद्ध वह व्यक्ति थे जिन्होंने सत्य को जानने के लिए अपने राजसी जीवन का त्याग कर आत्मबोध की यात्रा की और अंततः ज्ञान प्राप्त कर 'बुद्ध' कहलाए।
वहीं 'बुद्धत्व' उस अनुभूति का नाम है जिसमें चित्त पूर्णरूपेण शुद्ध, निरहंकारी, जागरूक और करुणामयी हो जाता है। यह अवस्था किसी एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, अपितु वह हर आत्मा के लिए सुलभ है, जो अपने भीतर झांकने का साहस रखती है।
इसलिए कहा जाता है—बुद्ध एक व्यक्ति हैं, बुद्धत्व एक संभावना।
बुद्धत्व कोई बौद्ध धर्म की संकीर्ण परिभाषा में नहीं आता। यह मानव चेतना की एक ऐसी अवस्था है जो कई संतों, योगियों और मनीषियों द्वारा भी प्राप्त की गई है, भले ही उन्होंने स्वयं को 'बुद्ध' न कहा हो।
महावीर ने मौन और ध्यान के माध्यम से यही अनुभूति पाई।
नानक ने "एक ओंकार सतनाम" में उस सर्वचेतन तत्व को अनुभव किया।
कबीर ने "साहब" कहा और कहा "मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में"।
मीरा ने कृष्ण-भक्ति के माध्यम से इस ज्ञान को प्रेम रूप में पाया।
इन सबका अनुभव एक ही था—बुद्धत्व।
ओशो कहते हैं:
"बुद्ध से चिपकना मूर्खता है, क्योंकि बुद्ध तो बस उदाहरण हैं। बुद्धत्व एक संभावना है—वह चित्त की परिपूर्ण अवस्था है जिसमें न तो भय है, न लोभ, न वासना, न अहंकार।"
ओशो की दृष्टि में, जब हम बुद्ध को पूज्य मानकर उनके चित्र की पूजा करने लगते हैं, और उनके बताए मार्ग पर चलने की जगह बस प्रतीक में उलझ जाते हैं, तब हम बुद्ध को तो मानते हैं, पर बुद्धत्व को खो बैठते हैं।
बुद्धत्व प्राप्ति का मार्ग
बौद्ध और योग परंपरा दोनों ही इस चेतना की प्राप्ति के मार्ग बताते हैं। बुद्धत्व की ओर अग्रसर होने के लिए आवश्यक है:
i. आत्मनिरीक्षण (Introspection)
• स्वयं को जानना ही पहला कदम है।
• "अप्प दीपो भव"—बुद्ध का यही उपदेश रहा है।
ii. ध्यान और मौन
• चित्त का स्थिरीकरण बुद्धत्व की नींव है।
• ध्यान से मन की अशांत तरंगें शांत होती हैं और सत्य दृष्टिगोचर होता है।
iii. करुणा और अहिंसा
• बुद्धत्व केवल ज्ञान की बात नहीं है, वह करुणा की भी चरम अवस्था है।
• जब हृदय विश्व के प्रति प्रेम और संवेदना से भर जाए, तब बुद्धत्व फूट पड़ता है।
iv. तृष्णा और अहंकार का क्षय
• जब 'मैं' का बोध मिटता है और केवल 'जो है' का बोध रह जाता है, तब बुद्धत्व जन्म लेता है।
बुद्धत्व की सार्वकालिकता और सार्वभौमिकता
बुद्धत्व किसी धर्म, जाति, लिंग या भौगोलिक क्षेत्र की सीमा में नहीं आता। यह प्रत्येक जीवित आत्मा की अंतर्निहित संभावना है।
बुद्ध स्वयं कहते हैं:
"मैंने कुछ भी नया नहीं कहा, मैंने केवल स्मरण दिलाया है।"
इसका तात्पर्य है कि सत्य पहले से ही हमारे भीतर है। हम उसे खोजने बाहर भागते हैं, जबकि वह भीतर विराजमान है। बुद्धत्व का मार्ग भीतर की यात्रा है—'inward journey'।
सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में बुद्धत्व का प्रभाव।
बुद्धत्व केवल आध्यात्मिकता नहीं है, यह एक जीवन शैली है। यदि समाज के अधिक से अधिक लोग जागरूक, करुणावान और अहंकारहीन बनें, तो मानवता के अधिकांश संकट स्वतः समाप्त हो जाएंगे।
व्यक्तिगत प्रभाव:
• मानसिक शांति
• स्पष्टता और विवेक
• संतुलन और आत्मविश्वास
सामाजिक प्रभाव:
• संघर्ष और द्वेष का क्षय
• सह-अस्तित्व की भावना
• पर्यावरण और जीवन के प्रति संवेदनशीलता
बुद्ध से बड़ा बुद्धत्व: सार और संकेत
गौतम बुद्ध स्वयं यही संदेश देकर गए कि:
• किसी व्यक्ति की पूजा मत करो।
• सत्य को स्वयं खोजो।
• बुद्ध बनो—उस अनुभव को स्वयं जियो।
"बुद्ध से बड़ा बुद्धत्व" इसलिए है क्योंकि बुद्धत्व एक अनुभव है, बुद्ध उसकी अभिव्यक्ति मात्र। एक बार जब बुद्ध चले गए, तब बुद्धत्व बाकी रह गया—जिसे कोई भी साधक पा सकता है।
"बुद्ध से बड़ा बुद्धत्व"—यह वाक्य न केवल एक दार्शनिक वक्तव्य है, बल्कि यह एक आह्वान है कि हम भीतर जागें, स्वयं को पहचानें, और उस अवस्था तक पहुँचें जहाँ बुद्धत्व खिलता है। गौतम बुद्ध एक पथप्रदर्शक थे, परंतु जो मार्ग उन्होंने दिखाया, वह हर किसी के लिए खुला है।
आज के भौतिकवादी और अशांत समाज में यह बुद्धत्व ही है जो मानवता को फिर से स्थिर, करुणामयी और संतुलित बना सकता है। यह केवल एक आध्यात्मिक अवस्था नहीं, अपितु एक क्रांति है—अंदर की क्रांति।
इसलिए...
बुद्ध से बड़ा बुद्धत्व है ।