12/03/2025
जो लोग आज तामलोर के सरपंच से सवाल कर रहे हैं, उन्हें पहले अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए। यह व्यक्ति कोई सांसद नहीं, कोई विधायक नहीं, बल्कि मात्र एक सरपंच है, जिसने अपनी सीमाओं से बाहर जाकर अपने गांव के लिए कार्य किया। बाड़मेर जैसे इलाके में, जहां पानी के लिए लोग आज भी तरसते हैं, वहां इस सरपंच ने अपने दम पर घर-घर पानी पहुंचाने का प्रयास किया। अब इसमें भी कुछ लोग राजनीति खोजने लगे हैं, तुष्टिकरण का नाम देकर इसे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल यह नहीं कि पानी रोजाना आ रहा है या नहीं, सवाल यह है कि पहल किसने की?
आज भी कई गांव ऐसे हैं, जहां पानी की पाइपलाइन तक नहीं बिछी। वहां के लोग अब भी टैंकरों और कुओं पर निर्भर हैं। लेकिन वहां कोई सवाल नहीं उठता, वहां कोई जातिगत राजनीति नहीं होती, वहां कोई मीडिया रिपोर्टिंग नहीं होती। क्योंकि वहां राजनीति चमकाने का मौका नहीं है। तामलोर के इस सरपंच ने कुछ किया, इसलिए वह निशाने पर आ गया। क्या यह उचित है? जिनका खुद का योगदान शून्य है, वे आज इस व्यक्ति को बदनाम करने में लगे हैं।
अगर किसी को पानी की समस्या उठानी ही है, तो पूरे थार की उठाएं, पूरे बाड़मेर की हालत पर बात करें, न कि सिर्फ एक गांव या एक जाति की। पहले कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण किया, अब वही कांग्रेस हिंदुओं को जातियों में बांटने की राजनीति कर रही है। यह बेहद निंदनीय है। पानी जैसी बुनियादी जरूरत को भी राजनीति का औजार बना देना कहां तक सही है?
अगर मीडिया को सच्चाई दिखानी ही है, तो पूरे क्षेत्र का सर्वे करे, तामलोर को बाकी गांवों से तुलना करे। क्या बाकी गांवों में लोग घर-घर पानी की सुविधा पा रहे हैं? क्या वहां के सरपंचों ने ऐसी कोई पहल की? अगर नहीं, तो फिर केवल तामलोर को निशाने पर लेने का क्या औचित्य है? क्या इसलिए कि यह गांव विकास की दिशा में आगे बढ़ा है?
तुलना करनी हो, तो आसपास के गांवों से कीजिए। तामलोर में पानी घर-घर पहुंच रहा है, भले ही कुछ दिक्कतें हों, लेकिन बाकी गांवों में तो पानी की पाइपलाइन तक नहीं डली। वहां के लोग आज भी पानी के लिए भटकते हैं, लेकिन वहां कोई आवाज नहीं उठती। क्या यह राजनीति नहीं है? तामलोर के इस सरपंच ने कुछ तो किया, लेकिन कुछ लोग सिर्फ इसलिए इसे गलत साबित करने में लगे हैं क्योंकि यह उनके एजेंडे के खिलाफ जाता है। यह मालानी की अपनायत और संस्कृति के खिलाफ है।
यह पूरी राजनीति के दोहरे चेहरे को उजागर करता है। एक तरफ जहां एक व्यक्ति अपने स्तर पर कुछ करने की कोशिश करता है, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इसे भी बदनाम करने में लगे हैं। तामलोर को विवाद में घसीटने के बजाय, इसे मिसाल के रूप में देखना चाहिए। यह दिखाता है कि अगर सही सोच और इरादे हों, तो संसाधनों की कमी के बावजूद भी बदलाव लाया जा सकता है। तामलोर ने यह करके दिखाया है, बाकी गांवों के लोगों को भी इसी दिशा में सोचना चाहिए।