Indore Dialogue By Prakash Hindustani

Indore Dialogue By Prakash Hindustani Prakash Hindustani Show on Current Affairs.

11/10/2024

लव यू हान कंग, आप हमारे जैसी हो !
साहित्य की नोबेल विजेता हान कंग और 'द वेजिटेरियन'

- इस साल साहित्य का नोबेल पुरस्कार पूर्वी एशिया दक्षिण कोरिया की उपन्यासकार और कवयित्री हान कंग को मिला है। वे नोबेल पाने वाली अपने देश की पहली साहित्यकार हैं।

- सभी एशियाई लोग हमारे जैसे ही हैं - इमोशनल, पारिवारिक, पितृ सत्तात्मक, धार्मिक, आध्यात्मिक, अक्खड़, एक सीमा तक उजड्ड, अनघड़ !

- दक्षिण कोरिया ने भी अतीत में भारी हिंसा झेली है। जिस दशक में भारत का विभाजन हुआ, उसी दशक में कोरिया भी टूटा। हान कंग का बचपन ग्वांगजू में बीता, यह वह शहर है जहां 1980 में खूनी राजनीतिक दमन हुआ था, जिसे ग्वांगजू विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इस विद्रोह और इसके बाद हुई हिंसा ने हान कंग को गहरे तक प्रभावित किया, और इसका प्रभाव उनके कई उपन्यासों में है।

- हान कंग ने अपनी गहन और मार्मिक लेखनी से साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। साहित्य में मानवीय संवेदनाओं, संघर्ष, हिंसा और जीवन की नाजुकता का अद्वितीय चित्रण है। उनके साहित्य ने न केवल कोरियाई समाज बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पाठकों को गहराई से प्रभावित किया है। उनकी रचनाएं भारतीय समाज की होती हैं।

हान कंग के पिता हान सेउंग वोन भी एक प्रसिद्ध लेखक हैं, जिनसे हान ने साहित्यिक दृष्टिकोण और लेखन की प्रेरणा प्राप्त की। कविताएं लिखनी शुरू कीं, लेकिन बाद में उन्होंने गद्य लेखन की ओर ध्यान केंद्रित किया। हान कांग की पहली साहित्यिक रचना 1994 में प्रकाशित हुई थी, लेकिन उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान 'द वेजिटेरियन' से मिली।

यह उपन्यास 2007 में प्रकाशित हुआ और बाद में इसका अंग्रेजी अनुवाद 2015 में हुआ। इस उपन्यास ने 2016 में बुकर इंटरनेशनल प्राइज जीता, जिससे हान को वैश्विक ख्याति प्राप्त हुई।'द वेजिटेरियन' की कहानी एक महिला के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अचानक मांसाहार छोड़कर शाकाहारी जीवन शैली अपनाने का निर्णय लेती है। यह उपन्यास मानवीय शरीर, हिंसा और समाज की पितृसत्तात्मक संरचनाओं की गहन पड़ताल करता है। इसकी सजीव और जटिल कल्पनाशीलता पाठकों को स्तब्ध कर देती है।

हान कांग का लेखन उनके निजी जीवन के अनुभवों से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। एक दिलचस्प किस्सा यह है कि हान के उपन्यास 'द वेजिटेरियन' की कहानी एक छोटे से विचार से उपजी थी, जब वे 'पेटा' की प्रदर्शनी में गई थीं। वहां उन्होंने एक चित्र देखा, जिसमें एक महिला के शरीर के हिस्सों को पत्तियों से ढका हुआ था। इस चित्र ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया और उसने उन्हें 'द वेजिटेरियन' लिखने की प्रेरणा दी।

हान की रचनाओं में हिंसा और मानवीय संवेदनाओं का टकराव एक मुख्य विषय है। उनके साहित्य में जीवन और मृत्यु, हिंसा और करुणा, स्वतंत्रता और दमन के बीच की जटिलताएं प्रमुख रूप से दिखाई देती हैं। उनके लेखन का एक प्रमुख उद्देश्य यह है कि वह पाठकों को उन विषयों पर सोचने के लिए मजबूर करती हैं, जिन पर समाज अक्सर मौन रहता है।उदाहरण के लिए, 'द वेजिटेरियन' में मुख्य पात्र योंगहे का मांस छोड़ने का निर्णय न केवल एक व्यक्तिगत पसंद है, बल्कि उसके समाज और परिवार के प्रति विद्रोह का प्रतीक है।

इसी प्रकार 'ह्यूमन एक्ट्स' में उन्होंने दिखाया है कि किस प्रकार सरकारी दमन के दौरान एक युवक की हत्या न केवल उसके परिवार बल्कि पूरे समाज पर गहरा असर छोड़ती है।'द वेजिटेरियन' की कहानी दक्षिण कोरिया में एक साधारण महिला, योंगहे, के जीवन पर आधारित है, जो एक दिन मांस छोड़ने का निर्णय करती है। यह निर्णय उसके जीवन और परिवार में उथल-पुथल मचा देता है।

उपन्यास तीन हिस्सों में विभाजित है, और हर हिस्सा एक अलग दृष्टिकोण से योंगहे की कहानी को उजागर करता है। योंगहे के पति, उसकी बहन और बहनोई की नजरों से यह कहानी पाठकों के सामने आती है, जिससे योंगहे के व्यक्तित्व और उसके निर्णयों की जटिलता सामने आती है।

'ह्यूमन एक्ट्स' 1980 के ग्वांगजू विद्रोह की पृष्ठभूमि में लिखा उपन्यास है। वह उस समय के दर्दनाक दमन और उसकी छाप को व्यक्त करता है। इस किताब में उन्होंने व्यक्तिगत और सामूहिक स्मृतियों को साहित्यिक रूप से बेहद संवेदनशील ढंग से पेश किया है।

हान कंग एकांतप्रिय साहित्यकार है। बहुत ही कम बोलती हैं। हान कंग कविताएं भी लिखती हैं, और बहुत खूब लिखती हैं। उनकी कविताओं में भी वही संवेदनशीलता और गहराई है, जो उनके गद्य में है। यहां उनकी एक प्रसिद्ध कविता 'बियॉन्ड द क्रीक' का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है:
Beyond the Creek
Beyond the creek where no birds cry,
No wind blows, and no rain falls.
There lies a field where silence grows,
And shadow covers all.

अनुवाद

धारा के उस पार, जहां पक्षी नहीं गाते,
हवा नहीं बहती, और न बरसात होती है।
वहां एक मैदान है, जहां मौन उगता है,
और छाया हर चीज को ढक लेती है।

इस कविता में मौन और शांति की गहराई का अद्वितीय चित्रण है, जो हान के साहित्यिक दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। उनके लिए मौन केवल एक स्थिति नहीं है, बल्कि एक अस्तित्व की अभिव्यक्ति है, जहां जीवन की नाजुकता और कठिनाइयां छिपी होती हैं।

लव यू हान कंग, आप बिलकुल हमारे जैसी हो।

-प्रकाश हिन्दुस्तानी 11 अक्टूबर, महानवमी 2024

A friend has sent the information. I am sharing it so that it might be useful to someone.Even if you need more informati...
02/09/2024

A friend has sent the information. I am sharing it so that it might be useful to someone.
Even if you need more information, don't call me. Please....
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New India Foundation book fellowships opens for applications.

Each fellow will be awarded an annual stipend of Rs 18 lakh to write a book on an aspect of post-Independence India.
The New India Foundation has been supporting the research and writing of works of non-fiction on various aspects of post-Independence India for several years now, giving out fellowships every two years.

Each fellow will be awarded an annual stipend of Rs 18 lakh, besides editorial guidance through from proposal to publishers to actual publication. Open only to Indian nationals, including those currently living abroad, these Fellowships are awarded for a period of one year.

From a pool of about 25 shortlisted proposals, the jury awards a maximum of 10 fellowships every two years. Proposals could, for instance, be for memoirs, works of reportage, academic studies. The books could be oriented towards economics, politics, or culture. Along with a book proposal, the applicant will also have to submit a writing sample of at least 5,000 words through the website before December 31, 2024.
https://www.newindiafoundation.org/nif-fellowships
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Fulbright-Nehru Master’s Fellowships
The Fulbright-Nehru Master’s Fellowships are aimed at highly motivated individuals with exceptional leadership potential. Applicants should have completed the equivalent of a U.S. bachelor’s degree, possess at least three years of professional work experience, and be committed to returning to and contributing to their communities in India. These fellowships support up to two years of study for a master’s degree at U.S. colleges and universities. Eligible fields of study include Economics, Environmental Science/Studies, Higher Education Administration, International Affairs, International Legal Studies, Journalism and Mass Communication, Public Administration, Public Health, Urban and Regional Planning, and Women’s Studies/Gender Studies.

Eligibility Criteria:

Must have completed an equivalent of a U.S. bachelor’s degree from a recognized Indian university with at least 55% marks. Applicants must have either a four-year bachelor's degree or a completed master’s degree; or a full-time postgraduate diploma from a recognized Indian institution if the bachelor’s degree is of less than four years' duration.
Must have at least three years of full-time professional work experience relevant to the proposed field of study by the application deadline.
Should demonstrate experience in leadership and community service.
Must not have another degree from a U.S. university or be enrolled in a U.S. degree program.
If employed, must obtain the endorsement from the appropriate administrative authority on the FNMasters Employer’s Endorsement Form. The employer must confirm that leave will be granted for the fellowship period.
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Applications now open! Round 12 of the NIF Book Fellowships Apply Now NIF Book Fellowships The core activity of the New India Foundation is the NIF Book Fellowships, awarded to scholars and writers working on different aspects of the history of independent India. From a large pool of several hundred...

सत्य हिंदी में  फिल्म समीक्षा : द   डायरी ऑफ़ वेस्ट बंगाल पिछले कुछ साल में कई पॉलिटिकल फ़िल्में आईं, जिनमें पीएम नरेंद्र ...
01/09/2024

सत्य हिंदी में फिल्म समीक्षा : द डायरी ऑफ़ वेस्ट बंगाल

पिछले कुछ साल में कई पॉलिटिकल फ़िल्में आईं, जिनमें पीएम नरेंद्र मोदी, एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, द ताशकंद फाइल्स, द बस्तर स्टोरी, आर्टिकल 370, इंदु सरकार, रजाकार, मिशन मंगल, कश्मीर फाइल्स, वैक्सीन वार, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, द साबरमती रिपोर्ट आदि शामिल हैं। इनमें से ज़बर्दस्त कमाई की द कश्मीर फाइल्स और द केरल स्टोरी ने। इन फिल्मों को कई राज्यों में टैक्स फ्री किया गया था। बाकी फ़िल्में कहीं चलीं, कहीं नहीं।

अब बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन और उबल रहे पश्चिम बंगाल के माहौल में द डायरी ऑफ़ वेस्ट बंगाल आई है।

फिल्म का मेन मोटिव यही के इसमें दिखाया गया है के बंगलादेशी हिन्दू खतरे में है। फिल्म में एक विधवा की कहानी को भी दिखाया गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को सीधा -सीधा फिल्म में विलेन ही दिखाया गया है। इस फिल्म को आप अपनी फैमिली के साथ बैठ कर न देखे, क्योंकि फिल्म में बहुत से एडल्ट सीन हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि बांग्लादेशी देशी हिन्दू खतरे में है। हिन्दू और मुस्लिम बांग्लादेशी भारत में आ रहे हैं, और दो दो हजार में आधार कार्ड हासिल कर रहे हैं।

https://youtu.be/el3kcnUZQLc

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पड़ गए पंगे में रॉ कॉमेडी

कॉमेडी के नाम पर अगर कोई कैंसर जैसी बीमारी के संदर्भ को लेकर आ जाए तो उसकी बुद्धि पर तरस ही खाया जा सकता है। लेकिन फ़िल्म वालों का क्या!

पड़ गए पंगे में ना तो कोई बहुत बड़ा हीरो है, ना डायरेक्टर बहुत मशहूर !

राजपाल यादव, फैसल मलिक, वर्षा रेखाटे, समर्पण सिंह, राजेश शर्मा आदि को लेकर बनाई गई इस फिल्म में निर्देशक संतोष कुमार ने हल्की फुल्की हास्य फ़िल्म बनाने की कोशिश की है। इस फिल्म की पूरी कॉमेडी सिचुएशनल है और सिचुएशन के मुताबिक कलाकार काम करते हैं, लेकिन हास्य वो मज़ा नहीं दे पाता, जिसकी दर्शक को अपेक्षा थी।

60 साल के रिटायर्ड मैथ्स टीचर की
अजीबोगरीब हरकतों से उसकी बहू परेशान है। बहू उसके बेटे को लेकर अलग घर में जाने की कोशिश करती है। अचानक एक दिन से पता चलता है कि माटसाब को कैंसर है। एक युवा बैंक मैनेजर के स्वास्थ्य को लेकर भी यही रिपोर्ट आती है। फिर कन्फ्यूजन और ड्रामा! इस फ़िल्म की कॉमेडी में सबसे बड़ी ट्रेजेडी यही है कि राजपाल यादव जैसे मंजे हुए कलाकार का रोल बाहर छोटा है, वे कैप्टन जहाज सिंह बने है। अंत में भ्रम दूर होते हैं। फिल्म की सिचुएशनल कॉमेडी अटपटी जरूर लगती है।

फिल्म के संगीत औसत है। दो गाने ठीक हैं। कुल मिलाकर फिल्म कोई प्रभाव नहीं छोड़ती। देखने की जरूरत नहीं।

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शादी में हॉरर : द वेडिंग स्टोरी

कुछ लोग यह मानते हैं कि अगर किसी की मृत्यु पंचक काल में हो जाए तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती। पंडित कहते हैं कि ऐसे में मृतक की देह को अकेले जलाना ठीक नहीं होता। उसके साथ 5 और जीवों को भी जलाना होता है। इसके लिए पांच पुतले बनाए जाते हैं। उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और फिर उन पांचों पुतलों को मृतक के साथ जला दिया जाता है।

ऐसे में 5 पुतले बनाये जाते हैं। उनकी प्राण प्रतिष्ठा होती है लेकिन बेटे के विरोध के बाद अग्निदाह मृतक का अकेले ही होता है। 'प्राण पा चुके' सभी 5 पुतले यहां वहां बिखर जाते हैं। इनमें से एक पुतला चला जाता है एक विवाह वाले घर में।

वह पुतला क्या-क्या गुल खिलाता है उससे ही हॉरर उपजता है फ़िल्म । यह फिल्म अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली है।

By Dr. Prakash Hindustanifilm Review The Diary of West Bengal | सत्य हिंदी में डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी की फिल्म समीक्षा film Review The Diar...

इतनी फ़िल्में एक दिन में!  बताइए देखूं तो क्या-क्या देखूं?मेरे शहर इंदौर में कभी अंग्रेजी की फ़िल्में मिल्की वे और बेम्बिन...
20/06/2024

इतनी फ़िल्में एक दिन में! बताइए देखूं तो क्या-क्या देखूं?

मेरे शहर इंदौर में कभी अंग्रेजी की फ़िल्में मिल्की वे और बेम्बिनो मिनी टॉकीज़ में सबसे पहले लगा करती थीं।

बाद में हिन्दी की नवीनतम फ़िल्में सेन्ट्रल सिने सर्किट होने के कारण पहले दिन लगने लगी थीं। राज, प्रकाश, यशवंत, रीगल, मधुमिलन, अलका, ज्योति, एलोरा, अजंता, सपना, संगीता आदि में नई नई फ़िल्में लगती थीं।

अब अनेक मल्टीप्लेक्स भी हैं और एक ही दिन में कई फ़िल्में लगती हैं।

इस शुक्रवार को हिन्दी, अंग्रेजी, तमिल, पंजाबी, सिंधी आदि की ड्रामा, रोमांस, हॉरर, कार्टून, साइंस फिक्शन, एक्शन, थ्रिलर, एडवेंचर, कॉमेडी, बायोपिक, स्पोर्ट्स, एनीमेशन, फेंटेसी फ़िल्में लग रही हैं।

हिन्दी की ही (1 ) हमारे बारह, (2)जे एन यू - जहांगीर नेशनल युनिवर्सिटी, (3) इश्क विश्क रिबाउंड, (4) तृषा ऑन द रॉक्स, (5 ) पुश्तैनी रिलीज़ हो रही हैं। साथ में (6) कुड़ी हरया (पंजाबी), (7 )देवलो (सिंधी), (8) हाइकू (जापानी), (9) महाराजा (तमिल) भी इसी दिन लग रही है। इसके अलावा 8 /10 विदेशी अंग्रेजी फ़िल्में भी हैं।

Film : सिर्फ एक माही काफी है रे बाबा !नोट : मिस्टर एंड मिसेज माही फिल्म का न तो महेन्द्र सिंह धोनी से कोई नाता है, न धोन...
01/06/2024

Film : सिर्फ एक माही काफी है रे बाबा !
नोट : मिस्टर एंड मिसेज माही फिल्म का न तो महेन्द्र सिंह धोनी से कोई नाता है, न धोनी की पत्नी साक्षी धोनी से! यह फिल्म क्रिकेट के बैकड्राप पर जरूर बनी है, लेकिन क्रिकेट इसका आधार नहीं है।

एक है मर्द माही, नाम है महेंद्र अग्रवाल।

एक है लुगाई माही, नाम है महिमा अग्रवाल।

मर्द माही क्रिकेटर बनना चाहता है, खूब पापड़ बेलता है। बेचारा बन नहीं पाता। उसका बापू कहता है - बेटा दुकान संभाल। स्पोर्ट्स गुड्स की घर की दुकान है। बेचारे को मज़बूरी में दुकान पर बैठना पड़ता। है।

लुगाई माही बचपन में बच्चों के साथ गली क्रिकेट खेलती है। उसका बापू उसे कहता है- बेटी, इसमें कुछ नहीं धरा, पढ़-लिख ले, डॉक्टर बन जा। वह बेचारी भी क्रिकेट और गली छोड़कर पढ़ाई करने लगी और डॉक्टरनी बन गई।

शादी-ब्याह की बात होती है। दोनों के छत्तीस गुण मिल जाते हैं। यहाँ तक कि नाम भी महेंद्र यानी माही और महिमा यानी माही। फिर वही होता है जो धर्मा प्रोडक्शंस ने ट्रेलर में बताया है।

अब जो लड़की ब्याह कर आती है वह आधी सुहागरात को बिस्तर से गायब! मर्द माही घर में ढूंढता है तो पता चलता है कि लुगाई माही टीवी पर क्रिकेट का मैच देख रही है।

मर्द माही पूछता है- तुम्हें भी क्रिकेट का शौक है?

लुगाई माही बोलती है -हां, मैं क्रिकेट का शौक रखती हूं लेकिन पिता के अरमानों के कारण मैं डॉक्टरनी बन गई।

मर्द माही की तमन्ना थी कि वह क्रिकेट का बड़ा स्टार बने। धोनी टाइप। लेकिन बन नहीं पाता। उसके मन में तड़प रह जाती है। एक दिन मर्द माही का कोच कहता है कि तुम भले ही सिलेक्ट नहीं हो पाए हो, लेकिन कोच बन सकते हो।

मर्द माही पहले तो प्रस्ताव ठुकरा देता है, लेकिन जब कोच के जलवे देखता है तो बात मान लेता है।

अब सवाल यह कि उस जैसे व्यक्ति से क्रिकेट की कोचिंग लेगा कौन? फिर मर्द माही अपनी लुगाई माही के लिए क्रिकेट का कोच बन जाता है।
(जैसे अनेक लोगों का सिलेक्शन यूपीएससी में नहीं होता है तो वे यूपीएससी छात्रों के लिए मुखर्जी नगर या कोटा में कोचिंग क्लास खोल लेते हैं।)

मर्द माही कोचिंग करने लगता है और उसकी बावली डॉक्टरनी बीवी डॉक्टर का एक काम छोड़कर क्रिकेट सीखने लग जाती है। उसने जिंदगी में कभी क्रिकेट खेला, नहीं सिवाय गली क्रिकेट के। वो भी टेनिस बॉल से। लेकिन हीरो तो हीरो है।

15 साल पहले गली क्रिकेट खेलने वाली लड़की को वह 6 महीने में स्टेट टीम में जाने लायक बना देता है। लुगाई माही के जलवे होने लगते हैं और मर्द माही जल भुनता है।

और फिर शुरू हो जाती है पचास साल पहले आई अमिताभ-जया की अभिमान जैसी स्टोरी!

मर्द माही जलकुकड़ा हो जाता है और अपनी लुगाई को भला बुरा कहता है, कुंठा में आ जाता है। ऐसे में उसकी मां बनी जरीना वहाब उसे ज्ञान देती है और गाड़ी वापस पटरी पर! (वो गेल्या पहले ही अपनी मां से बात कर लेता तो दर्शकों पर रहम हो जाता। )

मर्द माही की मेहनत से लुगाई माही राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम में चुन ली जाती है। दोनों माहियों का मेल होता है और खेल ख़तम, पैसा हजम!

इस फिल्म की पूरी कहानी इसके ट्रेलर में है। इसलिए अगर आप ट्रेलर देख चुके हो तो इस फिल्म की कहानी आपको अपने आप ही पता चल जाती है। जयपुर की कहानी है। अग्रवाल परिवार की कहानी है। शुद्ध शाकाहारी परिवार है। यह फिल्म भी शाकाहारी है। इसमें कोई हिंसा, मारधाड़, गाली-गलौज, बेडरूम सीन आदि नहीं है। शुद्ध पारिवारिक मारवाड़ी कहानी।

फिल्म में कुछ भी नया नहीं है। पुरानी कहानी है। जाह्नवी कपूर, राजकुमार राव, कुमुद मिश्रा, राजेश शर्मा, पुर्णेंदु भट्टाचार्य और जरीना वहाब ने अच्छा काम किया है। आप देखना चाहे तो देख सकते हैं।
-प्रकाश हिन्दुस्तानी

06/05/2024

लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण परवान पर

- 6 मई को राहुल गांधी मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के जोबट और खरगोन के सैगांव में कांग्रेस के उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार के लिए आए थे।

- 7 मई प्रधानमं मोदी धार और खरगोन में चुनावी सभा में वोट मांगेंगे।

- मंगलवार 7 मई को लोकसभा चुनाव का तीसरा दौर है। इन 93 सीटों में से 71 सीटों पर 2019 में बीजेपी जीती थी। अब इन पर क्या होगा?

- 7 मई को (दिग्गी) राजा, महाराजा (ज्योतिरादित्य सिंधिया), मामा (शिवराज सिंह चौहान), ननद भौजाई ( सुप्रिया सुले और सुनेत्रा पवार), गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सीएम वसवराज बोम्मई और जगदीश शेट्टार तथा सात केंद्रीय मंत्रियों की हार/जीत के लिए वोट पड़ेंगे। गुजरात की सभी बाकी 25 सीटों पर (सूरत में चुनाव निर्विरोध हो चुका है) 7 मई को है।

- पहले दौर में 19 अप्रैल को 102 सीट पर वोट गए। 2019 के चुनाव में इन 102 सीटों में बीजेपी 40, कांग्रेस 15 और डीएमके 24 सीटें, बसपा ने 3 सीट और सपा ने 2 सीटें जीती थी। 18 सीटें अन्य दलों को मिली थीं। 102 सीटों में से यूपीए 45 और एनडीए 41 सीटें जीती थीं। सियासी समीकरण बदले हुए हैं। अब कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के लिहाज से देखें तो उनमें से 49 सीटें इंडिया के पास है, और एनडीए का 47 सीटें पर कब्जा है।

-दूसरे दौर का चुनाव 26 अप्रैल को हुआ। दूसरे चरण की वोटिंग के साथ ही राजस्थान, केरल, त्रिपुरा और मणिपुर की सभी सीटों पर लोकसभा चुनाव पूरा हो गया। दूसरे चरण में जिन में जिन 88 सीटों पर चुनाव हुआ। जिन 88 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उसमें बीजेपी खुद 52 सीटें जीतने में कामयाब रही है. कांग्रेस को 18 सीट मिली थीं. वहीं, अन्य दलों को 18 सीटें मिली थीं. इसमें 7 सीटें बीजेपी के सहयोगी दलों को मिली थीं. 11 सीटें कांग्रेस के सहयोगी और अन्य विपक्षी दलों को मिली थीं।

तीसरे दौर का लोकसभा चुनाव के पहले की सरगर्मी देखकर हसीब सोज़ की ये लाइंस याद आ रही है:

बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है
हमेशा झूटी कहानी सुनानी पड़ती है

तुम अपना नाम बता कर ही छूट जाते हो
हमें तो ज़ात भी अपनी बतानी पड़ती है

Heera Mandi हीरा मंडी :  कोठों पर कब्जे की जंग में आज़ादी की जंग का तड़कातवायफ तो तवायफ ही होती है, भले ही वह कितनी भी पा...
02/05/2024

Heera Mandi
हीरा मंडी : कोठों पर कब्जे की जंग में आज़ादी की जंग का तड़का

तवायफ तो तवायफ ही होती है, भले ही वह कितनी भी पावरफुल क्यों न हो। तवायफ और वेश्या में अंतर होता है। यह बात बहुत सारे लोग नहीं जानते। संजय लीला भंसाली ने अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट हीरा मंडी में यह बात स्पष्ट की है और आम आदमी को बताया है कि तवायफ क्या होती है और वेश्या क्या होती है? तवायफें सिखाती थी कि तहज़ीब और तमीज़ क्या होती है। बड़े घरों के लोग अपने बेटों को तवायफों से तहज़ीब और तमीज़ सीखने के लिए भेजा करते थे। तवायफों की बड़ी इज्ज़त हुआ करती थी।

हीरा मंडी की स्टारकास्ट जबरदस्त है। इसमें मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, शर्मिन सहगल, संजीदा शेख, फरदीन खान, अध्ययन सुमन, शेखर सुमन, फरीदा जलाल आदि हैं। नेटफ्लिक्स पर यह सीरीज आठ एपिसोड में आ रही है। चार एपिसोड एक-एक घंटे के हैं और बाकी चार पौन-पौन घंटे के। संजय लीला भंसाली का कहना है कि वे इस प्रोजेक्ट में 18 साल से दिमाग लगा रहे थे। उनकी योजना तो थी कि इसमें पाकिस्तानी सितारे फवाद खान, माहिरा खान और इमरान अब्बास को कास्ट करें। रेखा, करीना कपूर, रानी मुखर्जी को लें पर उनके इरादे पूरे नहीं हो पाए। कई दर्शकों को हीरा मंडी का फिल्मांकन भव्य लगेगा। इसमें संजय लीला भंसाली का डायरेक्शन और संवाद हैं। कई लोगों लगेगा कि इसमें उमराव जान और पाकीज़ा का टच है।

संजय लीला भंसाली को सिनेमा के पर्दे की तरह छोटे पर्दे पर भी ग्लैमर क्रिएट करना आता है। उनके लिए भव्यता एक कंज्यूमर आइटम है। माहौल है 1940 के आसपास का। 'हीरा मंडी : द डायमंड बाजार' की मुख्य कहानी मल्लिका जान की कहानी है, जो लाहौर के हीरा मंडी की सबसे ताकतवर तवायफ है। वह आतंक का पर्याय है। उसकी बेटी बिब्बो जान क्रांतिकारियों का साथ दे रही है। दूसरी तवायफ बेटी आलमजेब भी बगावत वाली शेरो-शायरी करती है। उसका पुराना गुनाह नए तेवर में फरीदन बनकर लौट आता है। कोठों पर कब्जे की जंग में आजादी की जंग का तड़का है। तवायफ को का गुरूर है, नवाबों का सुरूर है, जेवरों से लदी और ज़री के वस्त्रों से लिपटी, बुढ़ापे की ओर अग्रसर तवायफों की कहानियां हैं।

इन कहानियों में षड्यंत्र है, ग्लैमर है और मोहब्बत की कशिश भी है। कहानियों के भीतर कहानियां हैं। कभी लगता है कि आप पाक़ीज़ा देख रहे हैं, कभी लगता है कि उमराव जान और कभी लगता है कि गंगूबाई काठियावाड़ी देख रहे हैं। कहानियां भले ही कोठों की हो, कहानी भले ही तवायफ की हो, लेकिन वहां भी साजिश है। मोहब्बत की कहानी है, मोहरा बनने और मोहरा बनाने की चालबाज़ी है। जासूसी है, उस्तादी है, उस्ताद जी भी हैं। उस्ताद और उस्तादजी का अर्थ कम ही लोग समझते हैं ! कुल मिलाकर कोठों पर कब्ज़ा ज़माने की साजिशों में आज़ादी की लड़ाई का तड़का है।

हीरा मंडी की तवायफों का अपना स्टैंडर्ड है ! वे सहज ही हमबिस्तर नहीं होतीं। हर किसी ग्राहक के साथ रिश्ता नहीं बनातीं। नवाब साब हों, या अंग्रेज़ बहादुर हों तो बेहतर! वे मुज़रे में लुटाया गया रूपया अपनी मालकिन को समर्पित कराती हैं। वो मालकिन ठहरी जल्लाद टाइप की। हेराफेरी हुई तो जामा तलाशी में नंगा कर देती है।

हीरा मंडी देखते हुए दिमाग लगाना पड़ता है कि आखिर कौन क्या है? कौन किसकी खाला है और कौन किसकी बेटी है? किसने किसको मारा? किसने किसकी विरासत पर कब्जा किया? सास बहू के सीरियलों जैसी कहानी आगे बढ़ती है, लेकिन इसमें जो ग्लैमर है इसका तड़का अलग ही है। इसकी कहानी को समझने के लिए जरूरी है कि इसकी फैमिली ट्री को समझा जाए। इसमें पुरुष किरदार तो केवल प्यादे हैं! एलजीबीटी किरदार भी आते हैं !

हीरा मंडी के संवाद बड़े ही साफ़ हैं। भाषा पर पकड़ सभी कलाकारों ने बनाए रखी है। मौसिकी दिलचस्प है। हीरा मंडी पाक़ीज़ा की याद दिलाती है। वैसे ही डायलॉग, वैसे ही भव्य झूमर, नाचते फव्वारे, हीरे जवाहरात का प्रदर्शन, नोटों की बौछार, कमी रह जाती तो रेल की सीटी की। प्रकाश और छाया संयोजन शानदार है। अमीर खुसरो का गाना और पीले कपड़े पहने बसंत की स्वागत करती तवायफ हुई दिल जीत लेती हैं। यही है संजय लीला भंसाली का खेला !

जो चीज खटक सकती है, वह है बनावटीपन की हद! हर फ्रेम को इतना सजा दिया गया है कि लगता ही नहीं, हम गुलामी के दौर की कोई कहानी देख रहे हैं। हरेक पात्र पूरे मेकअप में ! कोई भी गरीब नजर नहीं आता! इतनी ज्यादा समृद्धि अगर गुलाम भारत में थी तो इससे तो अच्छा है कि भारत गुलाम ही रहता !!!

मनीषा कोइराला की वापसी हुई है। नेपाल की यह अभिनेत्री ऐसी ख़ालिस उर्दू बोलती है कि असली बिब्बोजान लगती है। अपने रोल को ऋचा चड्ढा ने पूरी शिद्दत से निभाया। संजीदा शेख की आंखों में लगातार सुलगती हुई आग आंसू बनकर बिखरती है और सोनाक्षी सिन्हा वैम्प के रूप में प्रभावी है। संजय लीला भंसाली मिर्ची को भी खीर बनाकर पेश करने का हुनर जानते हैं। वे कैमरे से खेलते हैं और एक मायावी संसार रचते हैं! इतिहास के एक शर्मिंदगी भरे को वे इतना ग्लैमराइज़्ड कर देते हैं कि दर्शक वाहवाह करने लगते हैं।

29/04/2024

कांग्रेस के डमी उम्मीदवार मोती सिंह पटेल नामांकन तकनीकी कारणों से रद्द हो चुका है। लोकसभा चुनाव में यह पहला मौका है जब कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं रहेगा।
इंदौर में लोकसभा चुनाव से 14 दिन पहले कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने नामांकन वापस ले लिया है। नामांकन वापस लेने के बाद अक्षय भाजपा कार्यालय पहुंचे और पार्टी में शामिल हो गए।

भोपाल का BRTS.भोपाल का अरबों रुपये के खर्च से बना बीआरटीएस तोड़ा जा रहा है! रोड के एक मुहाने पर बोर्ड लगा है - वर्क इन प...
01/03/2024

भोपाल का BRTS.
भोपाल का अरबों रुपये के खर्च से बना बीआरटीएस तोड़ा जा रहा है! रोड के एक मुहाने पर बोर्ड लगा है - वर्क इन प्रोग्रेस!

अरे भाई, तोड़ रहे हो, इसमें वर्क कहां प्रोग्रेस कर रहा है?

मजेदार बात यह है कि तोड़ने वाली कंपनी का नाम है...रोड ‘मेकर्स’ प्रा. लि.

अब यह कंपनी रोड बना रही है कि तोड़ रही है!? उसे अरबों रुपये 'तोड़ने' के लिए दिए जा रहे हैं!!

भोपाल के एक मित्र ने 'आउट ऑफ बॉक्स' सुझाव दिया कि इसे तोड़ने पर फिर अरबों रुपये खर्च करने की क्या ज़रूरत थी? भोपाल के लोग बहुत ही सहयोगी, क्रिएटिव, मेहनती हैं। सरकार बस यह ऐलान कर देती कि इसमें लगा हजारों टन लोहा और तमाम बस स्टॉप की सामग्री तोड़कर ले जाने की छूट दे दी गई है! कोई भी उसे तोड़कर घर ले जा सकता है!!!

तोड़ा हुआ माल उसी का होगा!

कई मित्रों को यह बात हास्यास्पद लगेगी, पर आइडिया कैसा है?

मप्र में सभी 230 और छत्तीसगढ़ में 70 सीटों पर मतदान शुरू हुआ। youtu.be/oW5-I46YNXc?si…
17/11/2023

मप्र में सभी 230 और छत्तीसगढ़ में 70 सीटों पर मतदान शुरू हुआ।
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