11/07/2025
Shreemad Bhagawat Geeta
Barajaguli Gita Sangha
💐হরি ওঁ তৎ সৎ💐
💐ওঁ নমো ভগবতে বাসুদেবায়ঃ💐
💐 শ্রীমদ্ভগবদ গীতা___ দ্বিতীয় অধ্যায় 💐
💐সাংখ্যযোগ💐
শ্লোক___শব্দার্থ___অনুবাদ
শ্লোকঃ ৭
কার্পণ্যদোষোপহতস্বভাবঃ
পৃচ্ছামি ত্বাং ধর্মসম্মূঢ়চেতাঃ ।
যচ্ছ্রেয়ঃ স্যান্নিশ্চিতং ব্রুহি তন্মে
শিষ্যস্তেহহং শাধি মাং ত্বাং প্রপন্নম্ ॥৭॥
শব্দার্থঃ
কার্পণ্য - কৃপণতা, দোষ – দুর্বলতা; উপহত— প্রভাবিত হয়ে; স্বভাবঃ—স্বভাব; পৃচ্ছামি আমি জিজ্ঞাসা করছি, তাম্ – তোমাকে, ধর্ম – ধর্ম, সম্মূঢ়—হতবুদ্ধি; চেতাঃ– চিত্ত, যৎ - যা, শ্রেয়ঃ – শ্রেয়স্কর, স্যাৎ - হয়, নিশ্চিতম্ – নিশ্চিতভাবে; ব্রুহি—বলঃ তৎ– তা, মে— আমাকে শিষ্যঃ — শিষ্য; তে– তোমার, অহম্ - আমি শাধি—নির্দেশ দাও, মাম্ আমাকে, ত্বাম্ – তোমার, প্রপন্নম্ – আত্মসমর্পিত।
অনুবাদ : কার্পণ্যজনিত দুর্বলতার প্রভাবে আমি এখন কিংকর্তব্যবিমূঢ় হয়েছি এবং আমার কর্তব্য সম্বন্ধে বিভ্রান্ত হয়েছি ৷এই অবস্থায় আমি তোমাকে জিজ্ঞাসা করছি, এখন কি করা আমার পক্ষে শ্রেয়স্কর, তা আমাকে বল। এখন আমি তোমার শিষ্য এবং সর্বতোভাবে তোমার শরণাগত ৷ দয়া করে তুমি আমাকে নির্দেশ দাও ।
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💐हरि ओम तत्सत् 💐
💐ॐ नमो भगवते वासुदेवाय💐
श्रीमद्भगवद्गीता___ अध्यायः२
💐💐सांख्ययोग💐💐
श्लोक___शब्दार्थ___भावार्थ
श्लोकः ७
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्म सम्मूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्र्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेSहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् || ७ ||
शब्दार्थः
कार्पण्य – कृपणता; दोष – दुर्बलता से; उपहत – ग्रस्त; स्वभावः – गुण, विशेषताएँ; पृच्छामि – पूछ रहा हूँ; त्वाम् – तुम से; सम्मूढ – मोहग्रस्त; चेताः – हृदय में; यत् – जो; श्रेयः – कल्याणकारी; स्यात् – हो; निश्र्चितम् – विश्र्वासपूर्वक; ब्रूहि – कहो; तत् – वह; मे – मुझको; शिष्यः – शिष्य; ते – तुम्हारा; अहम् – मैं; शाधि – उपदेश दीजिये; माम् – मुझको; त्वाम् – तुम्हारा; प्रपन्नम – शरणागत |
भावार्थः
अब मैं अपनी कृपण-दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चूका हूँ | ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो उसे निश्चित रूप से बताएँ | अब मैं आपका शिष्य हूँ और शरणागत हूँ | कृप्या मुझे उपदेश दें |
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