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15/07/2025

100 करोड़ हिंदुओं 😷
20 करोड़ के पक्ष में कोठा🥶

आवाज दो हम एक है 🤘
🙋

परोपकार कहानी: पेंशन 📒📓सुबह-सुबह, बैंक के परिसर में एक बूढ़ी औरत चिल्ला रही थी, बहस कर रही थी। उसकी आवाज़ इतनी कर्कश थी ...
15/07/2025

परोपकार कहानी: पेंशन 📒📓
सुबह-सुबह, बैंक के परिसर में एक बूढ़ी औरत चिल्ला रही थी, बहस कर रही थी। उसकी आवाज़ इतनी कर्कश थी कि बैंक के कर्मचारी भी एक पल के लिए सहम गए। वह निराधार योजना के तहत अपनी पेंशन माँग रही थी। लेकिन सूची में उसका नाम नहीं था। सरकारी तकनीकी खामी के कारण उसका नाम हटा दिया गया था।
गाँव की महाराष्ट्र बैंक की शाखा में अमरनाथ का हाल ही में तबादला हुआ था। साफ-सुथरा रहन-सहन, अपने काम से काम रखने वाला और सामने वाले की आँखों में देखकर बात करने की आदत वाला यह नौजवान, पहले ही दिन बैंक की गहमागहमी में उलझन में पड़ गया था।
उसका एक ही कहना था, "तुम ही लोग मेरे पैसे खाते हो।"
अमरनाथ ने कर्मचारियों से पूछताछ की। जवाब मिला, “उसका हर महीने का यही नाटक है। कभी भी आती है, झगड़ती है, चिल्लाती है और फिर चली जाती है।”
लेकिन दूसरे दिन कुछ अलग ही हुआ।
दूसरे दिन जब वह फिर से आई, तो अमरनाथ ने कैश काउंटर सँभाल लिया था।
वह लाइन में खड़ी हो गई और जब उसका नंबर आया तो उसने पासबुक दी और झगड़े की तैयारी में खड़ी हो गई।
अमरनाथ ने उसे कुछ कहे बिना पाँच सौ रुपए के नोट निकालकर दे दिए।
वह एक पल के लिए चौंक गई।
फिर उन पैसों को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं और वह बोली, “मेरी पेंशन रोकते हो क्या... आज कैसे दे दी? कहते हो कि नहीं आएगी, और अब कैसे दे दी?”
सारा स्टाफ हैरान रह गया। लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आया।
उसके बाद, हर महीने वह बूढ़ी औरत समय पर बैंक आने लगी। पेंशन लेकर जाने लगी।
एक साल, डेढ़ साल बीत गया। हर महीने वह आती, लाइन में खड़ी होती, पासबुक देती, और अमरनाथ से अपनी हक़ की पेंशन के पैसे लेती रही।
अमरनाथ ने एक बार भी उसे सच नहीं बताया कि वे पैसे उसकी तनख्वाह से जा रहे हैं।
इस दौरान दोनों के बीच अच्छी जान-पहचान हो गई। अमरनाथ उसकी पासबुक लेते समय हँसकर कहता, "दादी, अब तो सरकार से पेंशन आ रही है न... आपका रौब सब पर है।" और वह कुछ-न-कुछ बड़बड़ाती हुई पैसे लेकर चली जाती।
दोनों में हँसी-मजाक चलने लगा था।
परंतु, एक दिन अमरनाथ बैंक में नहीं था।
वह आई, लाइन में खड़ी हुई।
पासबुक दी।
लेकिन स्टाफ ने उसे साफ-साफ बता दिया।
उसका खाता बंद हो गया है...!
उसे गुस्सा आ गया और वह और भी बड़बड़ाने लगी।
"वो साहब कहाँ हैं? वो तो हर महीने मुझे मेरी पेंशन देते हैं! और आज क्या हो गया..?"
स्टाफ ने बताया,
"अमरनाथ साहब का आज एक्सीडेंट हो गया है, वे गंभीर रूप से घायल हैं और कराड के अस्पताल में हैं।"
बूढ़ी औरत ने कुछ नहीं कहा। चुप हो गई। दूसरे दिन वह फिर आई। फिर से पूछा।
पैसे नहीं आए थे और हमेशा की तरह अमरनाथ साहब भी नहीं थे। वह हंगामा करने लगी।
मुख्य साहब (मैनेजर) ने उसे केबिन में बुलाया। और सच बता दिया।
“दादी, आपकी पेंशन सरकार की ओर से डेढ़ साल पहले ही बंद हो चुकी है। अमरनाथ साहब हर महीने आपको अपनी तनख्वाह से आपकी पेंशन देते थे। और अब उनका एक्सीडेंट हो गया है, वे बेहोश हैं। ऑपरेशन के लिए तीन-चार लाख रुपए लगेंगे।”
उसका चेहरा उतर गया। वह कुछ नहीं बोली। शांत, सिर झुकाए खड़ी रही, उसकी आँखें भर आईं और वह वहाँ से चली गई।
उसी रात कराड के अस्पताल में अमरनाथ का ऑपरेशन होना था। खर्च – चार लाख आने वाला था।
घर में पिता नहीं थे।
एक माँ, एक छोटी बहन।
दोनों रो रही थीं।
स्टाफ और मैनेजर ने साढ़े तीन लाख रुपए उनके हाथ में दिए और उनकी मदद की। ऑपरेशन हो गया। कुछ दिनों बाद अमरनाथ को होश आया। वह हिलने-डुलने लगा, बोलने लगा। माँ ने बताया कि साहब और स्टाफ ने मदद की है। उसे बहुत गर्व महसूस हुआ कि सबकी मदद से उसे अनमोल जीवनदान मिला है। वह उनका उपकार कभी नहीं भूल पाएगा।
एक महीना बीत गया। वह बैंक आने लगा।
काम सुचारू रूप से शुरू हो गया।
पेंशन बाँटने का दिन आया।
अमरनाथ काउंटर पर था, और वह बूढ़ी औरत फिर से आई।
पासबुक दी।
बीमारी, दवाओं के खर्च और काम से छुट्टी के कारण अमरनाथ के पास उसे देने के लिए पैसे नहीं थे।
वह बोला, "दादी, आज पैसे नहीं आए... लेकिन यहाँ दिखा रहा है कि कल ज़रूर आ जाएँगे..." उसकी आवाज़ लड़खड़ा गई। उसकी आँखों में अपराधबोध दिख रहा था।
बूढ़ी औरत ने कुछ नहीं कहा।
वह सीधे काउंटर के अंदर चली गई और एक पल में अमरनाथ को कसकर गले लगा लिया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। उसे कुछ भी समझ नहीं आया।
सारा स्टाफ बाहर आ गया। सब आश्चर्य से देख रहे थे।
मैनेजर केबिन से बाहर आए, आगे बढ़कर बोले,
"अब बताता हूँ अमरनाथ...
इसे सब पता चल गया है। जब उसे पता चला कि तुम उसे अपनी तनख्वाह से पैसे देते थे, तो तुम्हारे एक्सीडेंट के बाद, ऑपरेशन के समय एक घंटे के अंदर इसने अपने घर का सोना गिरवी रखकर साढ़े तीन लाख रुपए मेरे पास लाकर दिए।
और एक शर्त रखी – कि यह बात तुम्हें नहीं बतानी है। हम मान गए। लेकिन आज वह खुद को रोक नहीं पाई। तुम हर महीने उसकी मदद करते थे, और जब उसे यह पता चला तो उसने बिना सोचे-समझे अपनी ज़िंदगी भर की जमापूँजी तुम्हें देकर तुम्हारी जान बचाई।"
अमरनाथ की आँखें भर आईं। उसने उस बूढ़ी औरत को कसकर गले लगा लिया और दोनों दादी-पोता रोने लगे।
अमरनाथ ने कहा, "दादी, मेरे लिए इतना क्यों किया..?"
दादी रोते हुए बोली, "भले ही मैं पराई हूँ, पर तूने मुझे अपनी दादी जैसा प्यार दिया... मुझे डेढ़ साल तक पेंशन देता रहा, तो क्या मैं अपने पोते को अस्पताल में ऐसे तड़पते हुए छोड़ देती रे बेटा...!"
बैंक का पूरा माहौल भावुक हो गया।
सभी रो रहे थे।
कभी-कभी हमारा दिया हुआ प्यार और मदद, अनजाने में हमारी ज़िंदगी में कुछ बहुत बड़ा लौटाकर लाते हैं। कर्म के हिसाब में एक भी रुपया कम या ज्यादा नहीं होता। जीवन अनमोल है। दिया हुआ हमारे पास लौटकर आता ही है – इसलिए कर्म पर विश्वास रखकर अच्छे कर्म करते रहें।
🚩 जय श्री राम #हिंदूसंस्कार

S    #श्रावणमास
13/07/2025

S #श्रावणमास

श्रावण मास व्रत, पहला सोमवार ‎⁨⁩ #श्रावण_सोमवार #सावन_भोलेनाथ_स्टेटस #सावन_2025 #हरहरमहादेव #बोलबम #बोलब...

अच्छाई का देवता - परोपकार की कहानीमैं कईं दिनों से बेरोजगार था , एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ों लग रही थी , इस उठापटक ...
17/06/2025

अच्छाई का देवता - परोपकार की कहानी

मैं कईं दिनों से बेरोजगार था , एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ों लग रही थी , इस उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए। आज एक इंटरव्यू था , पर दूसरे शहर जाने के लिए जेब में सिर्फ दस रूपये थे . मुझे कम से कम दो सौ रुपयों की जरूरत थी। अपने इकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो, पड़ोसी की प्रेस माँग के तैयार कर पहन, अपने योग्यताओं की मोटी फाइल बगल में दबाकर दो बिस्कुट खा के निकला। लिफ्ट ले पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में तरबतर बस इस उम्मीद में स्टेंड पर पहुँचा कि शायद कोई पहचान वाला मिल जाए , जिससे सहायता लेकर इन्टरव्यू के स्थान तक पहुँच सकूँ।

काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई नहीं दिखा। मन में घबराहट और मायूसी थी , क्या करूँगा अब कैसे पँहुचूगा ?

पास के मंदिर पर जा पहुंचा , दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठा था। मेरे पास में ही एक साधु बैठा था , उसके कटोरे में मेरी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थे।

मेरी नजरें और हालात समझ के बोला , "कुछ मदद चाहिए क्या ?"
मैं बनावटी मुस्कुराहट के साथ बोला , "आप क्या मदद करोगे ?"
"चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लो ." वो मुस्कुराता बोला . मैं चौंक गया ! उसे कैसे पता मेरी जरूरत?

मैनें कहा "क्यों"?

"शायद आपको जरूरत है" वो गंभीरता से बोला।

"हाँ है तो सही, पर तुम्हारा क्या होगा, तुम तो दिन भर माँग के कमाते हो ?" मैने उस का पक्ष रखते हुए कहा .

वो हँसता हुआ बोला , "मैं नहीं माँगता साहब ! लोग डाल जाते हैं मेरे कटोरे में, पुण्य कमाने के लिए। मैं तो साधु हूँ , मुझे इनका कोई मोह नहीं . मुझे सिर्फ भूख लगती है , वो भी एक टाइम . और कुछ दवाइयाँ . बस! मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूँ ." वो सहज था कहते कहते।

मैनें हैरानी से पूछा , "फिर यहाँ बैठते क्यों हो..?"

"जरूरतमंदों की मदद करने" कहते हुए वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

मैं उसका मुँह देखता रह गया। उसने दो सौ रुपये मेरे हाथ पर रख दिए और बोला , "जब हो तब लौटा देना।"
मैं उसका धन्यवाद करता हुआ वहाँ से अपने गंतव्य तक पँहुचा . मेरा इंटरव्यू हुआ , और सलेक्शन भी। मैं खुशी खुशी वापस आया, सोचा उस साधु को धन्यवाद दे दूँ।

मैं मंदिर पँहुचा , बाहर सीढ़़ियों पर भीड़ लगी थी , मैं भीड़ में घुस के अंदर पँहुचा , देखा वही साधु मरा पड़ा था। मैं भौंचक्का रह गया ! मैने दूसरों से पूछा यह कैसे हुआ ?

पता चला , वो किसी बीमारी से परेशान था . सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था . आज उसके पास दवाइयाँ नहीं थी और न उन्हें खरीदने के पैसे।

मैं अवाक् सा उस साधु को देख रहा था। अपनी दवाईयों के पैसे वो मुझे दे गया था जिन पैसों पे उसकी जिंदगी का दारोमदार था। उन पैसों से मेरी ज़िंदगी बना दी थी।

भीड़ में से कोई बोला , अच्छा हुआ मर गया ये भिखारी भी साले बोझ होते हैं , कोई काम के नहीं।

मेरी आँखें डबडबा आयी!

अरे वो भिखारी कहाँ था , वो तो मेरे लिए भगवान ही था। अच्छाई का देवता। मेरा भगवान!

भगवान कौन हैं ? कहाँ हैं ?
किसने देखा है ? बस ! इसी तरह मिल जाते हैं। .....
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बेरोजगार बेटा - बोध कथामां भी अब बुजुर्ग हो रही है बहन भी तो स्यानी हो रही है करे क्या मगर बेरोजगार बेटा उसको भी अब चिंत...
13/06/2025

बेरोजगार बेटा - बोध कथा

मां भी अब बुजुर्ग हो रही है बहन भी तो स्यानी हो रही है करे क्या मगर बेरोजगार बेटा उसको भी अब चिंता हो रही है

कौन बैठ कर खाना चाहता है हर कोई काम पर जाना चाहता है मेहनत करने को धक्के खा रहा है कोई क्या करे जब किस्मत सो रही है

कोस रहे सब जब से शहर आया है कोई गुनाह तो नहीं करके आया है आखिर उसको भी तो जल्दी है उसकी भी तो जिंदगी खो रही है

समझो कभी एक बेटे का गम है उसका भी तो हृदय नम उसके भी तो कुछ सपने हैं उसको भी तो पीड़ा हो रही है

थोड़ी अपनी उम्मीदें हटा लो सारा बोझ ना उस पर डालो जरा सुकून उसको भी दे दो इस बोझ से घुटन हो रही हैं।

13/06/2025
"ना उसने नाम पूछा, ना पैसे लिए... बस मेरे 'माँ' बनने की राह आसान कर गया..."शिवानी.. 29 साल की, पेशे से एक शिक्षिका और मन...
12/06/2025

"ना उसने नाम पूछा, ना पैसे लिए... बस मेरे 'माँ' बनने की राह आसान कर गया..."
शिवानी.. 29 साल की, पेशे से एक शिक्षिका और मन से बहुत ही भावुक।
शादी को तीन साल हो गए थे। पति, राहुल, एक कंपनी में सीनियर इंजीनियर थे और प्रोजेक्ट के काम से अक्सर बाहर रहते थे।
जब शिवानी सातवें महीने की गर्भवती थी, तो डॉक्टर ने सलाह दी:
“अब आपको आराम की ज़रूरत है। हो सके तो अपने मायके चली जाओ।”
शिवानी के माता-पिता मुंबई में थे और राहुल उस समय चेन्नई में थे।
उसने तुरंत अपने छोटे भाई, आरव से कहा कि वह शिवानी को स्टेशन पर छोड़ आए।
शिवानी सूजे हुए पैरों और भारी-भरकम बैग के साथ स्टेशन पर पहुँची, लेकिन ट्रेन दो घंटे लेट थी।
आरव बोला, "भाभी, मैं ज़रा ऑफिस का एक मेल भेजता हूँ... अभी आता हूँ।" ...लेकिन वो गया और वापस ही नहीं आया।
शिवानी एक बेंच पर बैठी थी। प्यास से व्याकुल, पीठ में दर्द और अकेलापन... वह असहाय होती जा रही थी।
तभी उसे एक बूढ़ा कुली नज़र आया। उम्र लगभग 65 से ज़्यादा, सफ़ेद टोपी, फटी हुई कमीज़, और आँखों में भूख और स्वाभिमान का भाव।
शिवानी ने कहा, “बाबा, सामान ट्रेन में रखना है... प्लेटफॉर्म नंबर पाँच है।”
बाबा ने आँखें झुकाकर जवाब दिया, “ठीक है बेटी, पंद्रह रुपये दोगी क्या? आज शाम की रोटी हो जाएगी।”
शिवानी ने धीरे से सिर हिला दिया।
करीब डेढ़ घंटे बाद ट्रेन की घोषणा हुई। लेकिन वो कुली कहीं नज़र नहीं आ रहा था।
रात के 12:30 बज चुके थे। स्टेशन सुनसान होता जा रहा था। कुछ लोग सो रहे थे, कुछ मोबाइल में व्यस्त थे, लेकिन शिवानी की नज़रें सिर्फ़ उस बूढ़े को ढूँढ रही थीं।
तभी वो दूर से दौड़ता हुआ दिखाई दिया।
साँस फूली हुई, पसीना, लेकिन चेहरे पर न थकने वाली करुणा।
“बेटा चिंता मत करो... सामान चढ़ाता हूँ ट्रेन में।”
ट्रेन आने के कुछ मिनट पहले घोषणा हुई, "आपकी ट्रेन अब प्लेटफॉर्म नंबर 9 पर आएगी।"
अब पुल चढ़कर जाना था। तीन बैग, एक गर्भवती महिला और वो बूढ़ा आदमी।
शिवानी ने कहा, “बाबा, रहने दीजिए... मैं किसी और से पूछ लेती हूँ।”
लेकिन बाबा कुछ सुनने को तैयार नहीं थे।
सारा सामान उठाया और काँपते पैरों से वो पुल चढ़ने लगे।
ट्रेन चलने लगी। शिवानी दौड़ते हुए अपना डिब्बा ढूँढ रही थी।
रोशनी नहीं थी, आवाज़ नहीं थी... लेकिन मन में एक तूफ़ान था।
शिवानी ट्रेन में चढ़ी। दरवाज़े में खड़ी थी...
और तभी...
वो बूढ़ा कुली दौड़ता हुआ आया...
एक बैग रखा... फिर दूसरा... फिर तीसरा...
साँस चढ़ी हुई थी, लेकिन चेहरा शांत था।
शिवानी ने काँपते हाथों से जेब से दस-पाँच रुपये निकाले... और ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ ली..
लेकिन वो हाथ अब दूर जा चुका था...
वो सिर्फ़ हाथ जोड़कर "नमस्कार" करता हुआ खड़ा था।
शिवानी की आँखों में आँसू थे।
एक अनजान आदमी, जिसने ना नाम पूछा, ना पैसे लिए...
सिर्फ़ मदद की... नि:स्वार्थ।
शिवानी दिल्ली पहुँची। कुछ महीनों में एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।
उसका नाम रखा, “करुण”,
उस भावना के सम्मान में, जो उसे उस रात मिली थी।
डिलीवरी के बाद शिवानी बार-बार उस स्टेशन पर गई...
कभी सुबह, कभी दोपहर, कभी रात...
“बाबा कहाँ हैं?”
किसी को नहीं पता था।
“ऐसे बहुत से कुली हैं मैडम... लेकिन आपके बताए हुलिए से मिलता-जुलता कोई नहीं दिखा।”
वो इंसान... वो करुणा... वो नि:स्वार्थता —
अब सिर्फ़ यादों में रह गई थी।
आज शिवानी “करुण फाउंडेशन” नाम की एक संस्था चलाती है।
यह संस्था स्टेशन पर रहने वाले बूढ़े, कुली और असहाय लोगों को
भोजन, दवाइयाँ, और गर्म कपड़े देती है।
कोई पूछता है, "यह सब क्यों?"
वो सिर्फ़ मुस्कुराकर कहती है, “कभी किसी बूढ़े ने बिना कुछ पूछे, मुझ पर जो उपकार किया था, आज मैं वो क़र्ज़ हर रोज़ किसी न किसी पर उतारती हूँ।”
🕯️ हर मदद पैसों से ही नहीं होती... कुछ लोग ऐसे भी मिलते हैं जो सिखा जाते हैं, कि इंसानियत की असली भाषा 'नि:स्वार्थता' होती है।
💔 कुछ चेहरे हमारी ज़िंदगी से गुज़र जाते हैं,
लेकिन उनका स्पर्श हमारी आत्मा में हमेशा के लिए ज़िंदा रहता है।
❣️ अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो ❤️LIKE और 💬SHARE ज़रूर करें।
क्योंकि शायद आपकी ज़िंदगी में भी कभी कोई बिना नाम का फ़रिश्ता आया होगा जो आज भी यादों में घर किए हुए है...
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स्वामी विवेकानंद और ब्रह्मचर्य की शक्ति: एक छोटी कहानीस्वामी विवेकानंद जी के जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन केवल एक नियम नह...
11/06/2025

स्वामी विवेकानंद और ब्रह्मचर्य की शक्ति: एक छोटी कहानी
स्वामी विवेकानंद जी के जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन केवल एक नियम नहीं, बल्कि उनकी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति का मूल आधार था। उनके ब्रह्मचर्य से जुड़ी कई घटनाएं हैं जो आज भी प्रेरणा देती हैं। उन्हीं में से एक छोटी कहानी यहाँ प्रस्तुत है:
एक बार की बात है, बेलूर मठ में स्वामी विवेकानंद जी अपने कुछ शिष्यों के साथ बैठे थे। उनके पास ही 'एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' (Encyclopædia Britannica) के नए संस्करण रखे हुए थे। एक शिष्य ने उन भारी-भरकम और कई खंडों वाले ग्रंथों को देखकर कहा, "स्वामी जी, इन सभी ग्रंथों को एक जीवन में पढ़ पाना तो लगभग असंभव है।"
स्वामी जी मुस्कुराए और बोले, "तुम क्या कह रहे हो? मैंने तो इसके दस खंड पढ़ भी लिए हैं और ग्यारहवाँ पढ़ रहा हूँ।"
शिष्य को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे विश्वास नहीं हुआ कि इतने कम समय में कोई इतने विशाल और ज्ञान से भरे ग्रंथों को कैसे पढ़ सकता है। उसने अपनी शंका प्रकट करते हुए स्वामी जी से पूछा, "क्या आपने सच में ये सभी ग्रंथ पढ़ लिए हैं?"
स्वामी जी ने शांत भाव से उत्तर दिया, "हाँ, यदि तुम्हें विश्वास नहीं होता, तो तुम इन दस खंडों में से कहीं से भी कुछ भी पूछ सकते हो।"
शिष्य ने कौतूहलवश एक खंड उठाया और उसमें से एक कठिन विषय पर प्रश्न पूछ लिया। स्वामी जी ने न केवल उस प्रश्न का विस्तृत उत्तर दिया, बल्कि उन्होंने उस पृष्ठ की पंक्तियों को भी लगभग शब्दशः दोहरा दिया। शिष्य और वहाँ बैठे अन्य लोग यह देखकर स्तब्ध रह गए। उनकी इस अद्भुत स्मरण शक्ति को देखकर सभी चकित थे।
शिष्य ने हाथ जोड़कर पूछा, "स्वामी जी, यह कैसे संभव है? आपकी इस अलौकिक स्मरण शक्ति का रहस्य क्या है?"
तब स्वामी विवेकानंद ने ब्रह्मचर्य के महत्व को समझाते हुए कहा, "यह सब ब्रह्मचर्य के पालन से संभव हुआ है। यदि कोई व्यक्ति मन, वचन और कर्म से बारह वर्षों तक अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करता है, तो उसकी बुद्धि और स्मरण शक्ति असाधारण हो जाती है। ब्रह्मचर्य से प्राप्त ओजस (आध्यात्मिक ऊर्जा) मस्तिष्क में ऐसी शक्ति का संचार करता है, जिससे कुछ भी असंभव नहीं रहता। यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि ब्रह्मचर्य की शक्ति का ही फल है।"
यह छोटी सी घटना दर्शाती है कि स्वामी विवेकानंद के लिए ब्रह्मचर्य केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि अपनी समस्त ऊर्जा को एकाग्र कर उसे आध्यात्मिक और मानसिक उन्नति में लगाने का एक सशक्त माध्यम था।
Echoes of Swami Vivekananda

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का महत्व: एक स्वतंत्र संप्रभु हिंदू राष्ट्र की स्थापनाप्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक, ब...
11/06/2025

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का महत्व: एक स्वतंत्र संप्रभु हिंदू राष्ट्र की स्थापना
प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक, बाबासाहेब पुरंदरे के अनुसार, छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक केवल एक शासक के सत्ता में आने का उत्सव मात्र नहीं था, बल्कि यह एक युगांतकारी घटना थी जिसने भारत के राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया। अपनी प्रसिद्ध कृति "राजा शिवछत्रपति" में पुरंदरे इस घटना को सदियों की दासता के बाद एक स्वतंत्र और संप्रभु हिंदू साम्राज्य की स्थापना के रूप में रेखांकित करते हैं।
पुरंदरे के विश्लेषण के अनुसार, राज्याभिषेक के माध्यम से शिवाजी महाराज ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण लक्ष्यों को साधा:
1. हिंदवी स्वराज्य की औपचारिक घोषणा: राज्याभिषेक, दक्कन की सल्तनतों और शक्तिशाली मुगल साम्राज्य को एक स्पष्ट संदेश था कि अब एक स्वतंत्र, संप्रभु हिंदू राज्य का उदय हो चुका है। यह 'हिंदवी स्वराज्य' की स्थापना की औपचारिक और कानूनी घोषणा थी, जिसका सपना शिवाजी महाराज ने देखा था। इसने उन्हें अन्य शासकों के बराबर खड़ा कर दिया और उनके राज्य को एक वैध इकाई के रूप में स्थापित किया।
2. एक छत्रपति के रूप में वैधता: इस राज्याभिषेक से पहले, शिवाजी महाराज को कई लोग केवल एक जागीरदार के पुत्र या एक विद्रोही सरदार के रूप में देखते थे। वैदिक परंपराओं और अनुष्ठानों के साथ राज्याभिषेक ने उन्हें एक विधिवत अभिषिक्त 'छत्रपति' (एक संप्रभु सम्राट) के रूप में स्थापित किया। इसने उन्हें कानून बनाने, न्याय प्रदान करने और अपने नाम के सिक्के चलाने का अधिकार दिया, जिससे उनकी प्रजा और अन्य शासकों के बीच उनकी स्थिति को वैधता मिली।
3. राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक प्रभुत्व: सदियों से भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों का शासन रहा था और यह धारणा बन गई थी कि केवल वे ही शासन करने के लिए पैदा हुए हैं। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक ने इस मनोवैज्ञानिक बाधा को तोड़ दिया। यह इस बात का प्रतीक था कि एक भारतीय शासक भी विदेशी शक्तियों को सफलतापूर्वक चुनौती दे सकता है और एक स्वतंत्र साम्राज्य स्थापित कर सकता है। इसने पूरे भारत में हिंदुओं के लिए आशा और प्रेरणा की एक शक्तिशाली लहर पैदा की।
4. एक नई राज परंपरा की शुरुआत: राज्याभिषेक ने एक नई शासन व्यवस्था और परंपरा की नींव रखी। दरबार में फारसी के स्थान पर मराठी और संस्कृत को राजभाषा के रूप में स्थापित किया गया। एक नया कैलेंडर, 'राज्याभिषेक शक' शुरू किया गया। यह केवल एक राजनीतिक क्रांति नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान भी था जिसका उद्देश्य स्वदेशी परंपराओं और मूल्यों को पुनर्जीवित करना था।
5. मराठा सरदारों का एकीकरण: इस भव्य समारोह ने विभिन्न मराठा सरदारों और घरानों को एक शासक के झंडे के नीचे एकजुट किया। शिवाजी महाराज को अपने छत्रपति के रूप में स्वीकार करके, उन्होंने एक एकीकृत मराठा साम्राज्य के प्रति अपनी निष्ठा का संकल्प लिया, जिसने भविष्य में साम्राज्य के विस्तार की नींव रखी।
संक्षेप में, बाबासाहेब पुरंदरे के दृष्टिकोण में, छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक एक दूरगामी परिणाम वाली घटना थी। यह केवल एक व्यक्ति की विजय नहीं थी, बल्कि यह एक विचार की, एक सिद्धांत की और सदियों से दमित एक सभ्यता की आकांक्षाओं की विजय थी। इसने एक ऐसे साम्राज्य की नींव रखी जिसने आने वाली शताब्दियों के लिए भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी।
बाबासाहेब पुरंदरे की पुस्तक के अनुसार छत्रपति शिवाजी महाराज ने राज्याभिषेक से स्थापित किया एक संप्रभु ‘हिंदवी स्वराज्य’
मुंबई: प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक बाबासाहेब पुरंदरे के अनुसार, छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक केवल एक शासक के सत्ता में आने का उत्सव मात्र नहीं था, बल्कि यह सदियों की विदेशी दासता के बाद एक स्वतंत्र और संप्रभु 'हिंदवी स्वराज्य' की स्थापना की औपचारिक घोषणा थी। अपनी कालजयी कृति 'राजा शिवछत्रपति' में पुरंदरे ने इस ऐतिहासिक घटना के महत्व को विस्तार से समझाया है, जिसके माध्यम से शिवाजी महाराज ने कई महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त किया।
पुरंदरे के दृष्टिकोण से, राज्याभिषेक के माध्यम से शिवाजी महाराज ने निम्नलिखित प्रमुख साध्य किए:
1. सार्वभौम और वैध राज्य की स्थापना:
राज्याभिषेक ने शिवाजी महाराज के स्वराज्य को एक वैध और सार्वभौम हिंदू साम्राज्य के रूप में स्थापित किया। इससे पहले, उन्हें एक विद्रोही जागीरदार या मुगल और आदिलशाही दरबारों के एक विरोधी के रूप में देखा जाता था। वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार 'छत्रपति' की उपाधि धारण करने के बाद, उन्हें आधिकारिक रूप से एक संप्रभु शासक के रूप में मान्यता मिली। इसने उनके राज्य को राजनीतिक और धार्मिक दोनों तरह की वैधता प्रदान की।
2. ‘हिंदवी स्वराज्य’ के स्वप्न की पूर्ति:
पुरंदरे के लेखन का केंद्रीय भाव 'हिंदवी स्वराज्य' की स्थापना है। राज्याभिषेक इस स्वप्न की पराकाष्ठा थी। यह इस बात का प्रतीक था कि लंबे संघर्ष के बाद, दक्कन में एक ऐसा राज्य स्थापित हो गया है जो अपनी भूमि, अपनी संस्कृति और अपने धर्म पर आधारित है।
3. सांस्कृतिक और धार्मिक पुनरुत्थान:
शिवाजी महाराज ने राज्याभिषेक के साथ एक सांस्कृतिक क्रांति का भी सूत्रपात किया। उन्होंने प्रशासन में फारसी के स्थान पर संस्कृत के शब्दों को बढ़ावा दिया और एक नई राजमुद्रा जारी की। यह कदम अपनी जड़ों की ओर लौटने और विदेशी सांस्कृतिक प्रभाव को कम करने का एक सचेत प्रयास था। पुरंदरे इसे हिंदू धर्म और संस्कृति के गौरव के पुनरुत्थान के रूप में देखते हैं।
4. सुशासन और प्रशासनिक व्यवस्था की नींव:
राज्याभिषेक के अवसर पर, शिवाजी महाराज ने अपने 'अष्टप्रधान मंडल' (आठ मंत्रियों की परिषद) का गठन किया, जो एक सुव्यवस्थित और प्रगतिशील शासन प्रणाली का आधार बना। यह दर्शाता है कि उनका लक्ष्य केवल क्षेत्र जीतना नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण और जनकल्याणकारी प्रशासन प्रदान करना भी था।
5. भविष्य के लिए प्रेरणा:
बाबासाहेब पुरंदरे के अनुसार, शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थायी प्रेरणा स्रोत बन गया। यह समारोह इस बात का उद्घोष था कि संगठित प्रयास, अटूट संकल्प और कुशल नेतृत्व से विदेशी शक्तियों को चुनौती दी जा सकती है और एक स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।
संक्षेप में, बाबासाहेब पुरंदरे की दृष्टि में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक एक युगांतकारी घटना थी। इसने न केवल मराठा साम्राज्य को औपचारिक रूप दिया, बल्कि भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी, जिसने सदियों से चली आ रही पराधीनता की मानसिकता को समाप्त कर एक नए युग का आरंभ किया। #शिवराज्याभिषेक #छत्रपतिशिवजीमहाराज

संत कबीर दास जी की जीवनी * संत कबीर दास 15वीं सदी के एक महान रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे, जिनका जन्म लगभग सन् 1...
11/06/2025

संत कबीर दास जी की जीवनी
* संत कबीर दास 15वीं सदी के एक महान रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे, जिनका जन्म लगभग सन् 1398 में वाराणसी के लहरतारा नामक स्थान पर हुआ माना जाता है।
* उनका पालन-पोषण एक गरीब मुस्लिम जुलाहा दंपति, नीरू और नीमा, ने किया था, जिस कारण उनके जीवन में हिंदू और इस्लामी दोनों संस्कृतियों का गहरा प्रभाव पड़ा।
* कबीर ने प्रसिद्ध वैष्णव संत, स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया और उनसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया।
* उन्होंने समाज में व्याप्त धार्मिक आडंबरों, मूर्ति पूजा, जाति-पाति और अंधविश्वासों पर कठोर प्रहार किया।
* कबीर ने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की कुरीतियों की निंदा करते हुए एकेश्वरवाद और सच्ची भक्ति का संदेश दिया।
* उनकी शिक्षाएं 'एक ईश्वर' की अवधारणा पर केंद्रित थीं, जिसे वे 'राम' और 'रहीम' दोनों नामों से पुकारते थे।
* कबीर की वाणियों और दोहों का संग्रह उनके शिष्यों द्वारा "बीजक" नामक ग्रंथ में किया गया है, जिसके तीन मुख्य भाग हैं: साखी, सबद और रमैनी।
* उनकी भाषा सरल और आम बोलचाल की थी, जिसे 'सधुक्कड़ी' कहा जाता है, ताकि उनके संदेश सीधे जनमानस तक पहुँच सकें।
* वे एक गृहस्थ संत थे; उनकी पत्नी का नाम लोई और पुत्र-पुत्री का नाम कमाल और कमाली था। उन्होंने श्रम करके जीवनयापन करने पर बल दिया।
* लगभग 120 वर्ष की आयु में सन् 1518 के आसपास मगहर में उनका देहांत हो गया, जहाँ आज भी उनकी समाधि और मजार हिंदू एकता का प्रतीक हैं।
#संतकबीर #संत_कबीर

23/05/2025

ज्ञान धन से उत्तम है, क्योंकि
धन की आपको रक्षा करनी पड़ती है,
और
ज्ञान आपकी रक्षा करता है

जिस देश में लाख से ऊपर महिलायें पाकिस्तान में शादी करे बैठी हो, मैं हैरान हूँ कि वहाँ सिर्फ़ 15-20 ही जासूस अब तक मिले ह...
23/05/2025

जिस देश में लाख से ऊपर महिलायें पाकिस्तान में शादी करे बैठी हो, मैं हैरान हूँ कि वहाँ सिर्फ़ 15-20 ही जासूस अब तक मिले है।

सुरक्षा एजेंसी जरा सख्ती करे तो सैकड़ो-हजारों की संख्या में मिलेंगे।

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