
13/08/2025
अगर आपकी बेटी, बहन या दोस्त 16–17 साल की है, तो ये कहानी पढ़ते समय साँस रोक लीजिए... हो सकता है ये उसकी भी सच्चाई हो। मैं, डॉ. राधिका मेहता, बेंगलुरु के एक सुपर-स्पेशलिटी अस्पताल में गाइनकोलॉजिस्ट के रूप में काम करती हूँ।
पढ़ाई के दौरान मुझे लगता था कि मेरा काम नवविवाहित जोड़ों और नई दुल्हनों की जिंदगी बेहतर बनाना होगा।
पर अस्पताल जॉइन करने के कुछ ही दिनों बाद मुझे अहसास हुआ कि असली दुनिया इससे बहुत अलग है। पहले हफ्ते में ही मेरे पास एक मरीज आई।
उम्र मुश्किल से 18–19 साल।
चेहरा सफेद, आँखों के नीचे गहरे काले घेरे।
धीरे-धीरे आवाज में बोली, डॉक्टर, संभोग करते समय बहुत दर्द होता है। मैंने सहजता से पूछा, आपके पति कहाँ हैं?
उसने बिना झिझके जवाब दिया, शादी नहीं हुई।
उस वक़्त मैंने ज़्यादा कुछ नहीं कहा, बस दवा दी और चुपचाप अपने आप से सवाल करने लगी कि आखिर इतनी कम उम्र में किसी लड़की की ज़िन्दगी में ये मोड़ क्यों आया। कुछ ही दिन बाद, एक और लड़की मेरे पास आई।
पेट में असहनीय दर्द था।
रजिस्ट्रेशन फॉर्म में उसकी उम्र 27 लिखी थी, लेकिन चेहरे और शरीर से साफ लग रहा था कि वो मुश्किल से 21–22 की होगी। अल्ट्रासाउंड में पता चला कि उसकी बच्चेदानी में गंभीर सूजन है। मैंने धीरे से पूछा, इतनी कम उम्र में ये कैसे?
वो मासूमियत से बोली, पता नहीं, डॉक्टर।
मैंने अपने अनुभव से अंदाज़ा लगा लिया था कि मामला क्या हो सकता है। मैंने सीधे पूछा, क्या कभी i-pill जैसी दवा ली है?
पहले तो उसने नजरें झुका लीं, फिर बोली, हाँ, कभी-कभी। मुझे उसके जवाब पर यकीन नहीं आया, इसलिए मैंने कड़ाई से कहा, सच बताओ, वरना दवा असर नहीं करेगी।
उसकी आँखों में पानी आ गया और आखिरकार उसने सच्चाई उगल दी जब भी बॉयफ्रेंड के साथ संबंध बनाती थी, अगले दिन i-pill लेती थी।
हफ्ते में दो बार… और ये सिलसिला एक साल से चल रहा है। मैं अंदर तक हिल गई।
i-pill को कभी-कभी और इमरजेंसी में लेने के लिए बनाया गया है, लेकिन इसे ऐसे लेना शरीर के लिए जहर है।
मैंने उसे समझाया कि इस आदत ने उसकी बच्चेदानी को बुरी तरह कमजोर कर दिया है और अगर यही चलता रहा तो भविष्य में माँ बनने की संभावना बहुत कम रह जाएगी। वो फूट-फूटकर रोने लगी।
उस दिन के बाद मैं बार-बार सोचती रही ये लड़कियाँ गलत नहीं, बस अनजान हैं। उन्हें कोई बताता ही नहीं कि शरीर भी एक जिम्मेदारी है, और लापरवाही कभी-कभी पूरी ज़िन्दगी की कीमत बन जाती है।
कई बार लगता है कि काश, ये बातें स्कूलों और घरों में खुलकर सिखाई जातीं, तो शायद अस्पताल में इतनी कम उम्र की लड़कियाँ इस हालत में न आतीं।
अगले हफ्तों में मैंने कई ऐसे केस देखे कोई 17 साल की, तो कोई 20, जो रिश्तों में थीं लेकिन सुरक्षित तरीके नहीं अपनातीं। और जब समस्या इतनी बढ़ जाती कि दर्द और खून रुकने का नाम न ले, तब अस्पताल आतीं। उनके चेहरे पर मासूमियत और आँखों में डर होता था।
मुझे उन सभी में एक ही बात नज़र आती उन्होंने प्यार तो किया, लेकिन खुद से और अपने शरीर से जिम्मेदारी का रिश्ता कभी नहीं जोड़ा।
आज भी जब मैं रात को अपने कमरे में बैठती हूँ, तो उन चेहरों की झलक याद आती है। किसी का चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ, किसी की आँखें खाली।
और मैं सोचती हूँ क्या हमारी समाज की चुप्पी ही इनकी सबसे बड़ी दुश्मन है? शायद हाँ।
अगर ये कहानी पढ़ते हुए आप किसी लड़की को जानते हैं जो इस उम्र में है, तो बस उसे ये बात ज़रूर समझा दें ज़िन्दगी के खेल में गलतियों की गुंजाइश कम होती है।
कुछ फैसले पल भर के होते हैं, लेकिन उनका असर पूरी उम्र चलता है। और जब तक हम ये नहीं मानेंगे कि जागरूकता शर्म से बड़ी है, तब तक ऐसी कहानियाँ बार-बार दोहराई जाएँगी।