07/11/2025
अगर भारत को अंदर से मज़बूत बनाना है, तो अनुसूचित जातियों और जनजातियों को जोड़ें और धर्मांतरण की फैक्ट्री की गिद्ध निगाहों से बचाएँ..
यह बहुत आसान है, आपको बस उनका सम्मान करना है और उन्हें अपना और महत्वपूर्ण महसूस कराएँ …
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इस कविता का मूल पाठ यहाँ प्रस्तुत है –
अछूत की शिकायत (मूल पाठ)
“हमनी के राति दिन दुखवा भोगत बानी,
हमनी के सेहेबे से मिनती सुनाइबि।
हमनी के दुख भगवनओं न देखताबे,
हमनी के कबले कलेसवा उठाइबि।
पदरी सहेब के कचहरी में जाइबिजाँ,
बेधरम होके रंगरेज बनि जाइबि
हाय राम! धरम न छोडत बनत बाजे,
बेधरम होके कैसे मुँहवा दिखाइबि।।1।।
खम्भवा के फारि पहलाद के बँचवले जाँ,
ग्राह के मुँह से गजराज के बचवले।
धोतीं जुरजोधना कै भइआ छोरत रहै,
परगट होके तहाँ कपड़ा बढ़वले।
मरले रवनवाँ कै पलले भभिखना के,
कानी अँगुरी पै धैके पथरा उठवले।
कहँवा सुतल बाटे सुनत न वाटे अब,
डोम जानि हमनी के छुए से डेरइले।।2।।
हमनी के राति दिन मेहनत करीलेजाँ,
दुइगो रुपयवा दरमहा में पाइबि।
ठकुरे के सुखसेत घर में सुतल बानीं,
हमनी के जोति जोति खेतिया कमाइबि।
हकिमे के लसकरि उतरल बानीं।
जेत उइओं बेगरिया में पकरल जाइबि।
मुँह बान्हि ऐसन नौकरिया करत बानीं,
ई कुल खबरि सरकार के सुनाइबि।।3।।
बभने के लेखे हम भिखिया न माँगवजाँ,
ठकुरे के लेखे नहिं लउरि चलाइबि।
सहुआ के लेखे नहि डाँड़ी हम मारबजाँ,
अहिरा के लेखे नहिं गइया चोराइबि।
भंटऊ के लेखे न कबित्त हम जोरबजाँ,
पगड़ी न बान्हि के कचहरी में जाइबि।
अपने पसिनवा कै पइसा कमाइबजाँ,
घर भर मिलि जुलि बाँटि-चोंटि खाइबि।।4।।
हड़वा मसुइया कै देहियाँ है हमनी कै,
ओकारै कै देहियाँ बभनओं कै बानीं।
ओकरा कै घरे घरे पुजवा होखत बाजे,
सगरै इलकवा भइलैं जिजमानी।
हमनी के इनरा के निगिचे न जाइलेजाँ,
पाँके में से भरि-भरि पिअतानी पानी।
पनहीं से पिटि पिटि हाथ गोड़ तुरि दैलैं,
हमनी के एतनी काही के हलकानी।।5।।
(दलित देवो भव: किशोर कुणाल, पृ. 745-746)
भावार्थ
PMO India Vivek Ramaswamy Dalit Dastak Dalit Samaj - दलित समाज Dalit Memers Collective The Dalit Voice संत रविदास महाराज
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