Kavita

Kavita बचपन की स्मृतियां

19/06/2025

।।बरसात।।

आ गया बरसात का मौसम सुहाना।
हो रहा हर शख्स है इसका दिवाना।।
छा रही चारों दिशाओं में घटाएं।
झूम कर हैं आ रहीं ठंडी हवाएं।।
दादुरों का शोर सुनने को मिला है।
डाल पर है फूल मुस्काता खिला है।।
है प्रणय उन्मत्त आकुल को मिला सुख।
किन्तु प्रोषितभर्तृका के मन भरा दुख।।
वृक्ष सुख से झूमते लहरी लताएं।
मिल रहीं मनमीत से देतीं दुआएं।।
ले सलिल नदियां मचलतीं बढ़ रही हैं।
कूल पर निर्मित घरों पर चढ़ रही हैं।।
दृश्य है वीभत्स मन भी कांपता है।
दुर्दशा को झेल थककर हांफता है।।
हर समस्या के लिए सन्नद्ध हैं हम।
चित्त में संवेदना भी है नहीं कम।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

18/06/2025
18/06/2025

।। युग धर्म।।
युगधर्म बताकर जो करते हैं कदाचार।
वे कलिस्वरुप पातकी लोग पापावतार।।
चोरी,व्यभिचार,जुआ, कामुकता का विचार।
नित ही चलता मन में है उनके बार बार।।
मन में घमंड आदर देने का भाव नहीं।
अनुचित जो भी करता सब लगता उसे सही।।
सत्पथ की बात सोचते ना सपने में भी।
ठगने का रहता भाव सदा अपने से भी।।
दिन-रात यही चिंतन रहता है मनभावन।
कर्तव्य बोध से दूर लोभ का संवर्धन।।
किसका कितना लें लूट फंसाकर जालों में।
है भेष बनाकर घूम रहे नक्कालों में।।
नेतागीरी, चमचागीरी, का धंधा है ।
उनका करता विश्वास सकल जग अंधा है।।
बनते समाज के सेवक हैं पर अपनी सेवा का जुनून।
ऐसे खटिया के खटमल हैं पीते समाज का सदा खून ।।
फोटो खिंचवा बनते उदार मन में बैठी मक्कारी है।
करते रहते मौका तलाश ऐसे सेवा व्रतधारी हैं ।।
जो न्याय सत्य विश्वासी हैं उन पर आते संकट हजार।
जो दुष्ट ,मूढ़ अघरासी हैं लड्डू पूरी खाते उधार।।
निंदा में रहते सदा लीन वे सज्जन साधु कहाते हैं।
आपस में फूट डालकर के दोनों से माल उड़ाते हैं।।
आभूषण भूषित गात सदा मुख पर मुस्कान निराली है।
वंचकता मन में रची बसी इस युग के प्रतिभाशाली हैं।।
प्रतिभाएं आत्मघात करतीं दाने-दाने को तरस रहीं।
धोखेबाजों की पौ बारह घर में है लक्ष्मी बरस रही।।
इसको कलि का युगधर्म बता पापों से ना जो डरते हैं।
वे ही आनंदित होते हैं सज्जन कुढ़ कुढ़ कर मरते हैं।।
‌ एस के त्रिपाठी
हिंदी शिक्षक
एम एन पी एस

15/06/2025

।। सूरदास जी महाराज।।
जन्म हुआ तब मां को खोया नाम "सुरेश"धराया।
रामप्रताप शुक्ल जी का वह ज्येष्ठ पुत्र कहलाया।
नेत्र ज्योति से हीन किन्तु प्रज्ञा प्रकाश था पाया।
जन्मभूमि "तूरी"में कुछ दिन बचपन खेला खाया।1।
स्वामी योगेश्वरानंद जी की पा स्नेहिल छाया।
वह बालक "डलमऊ"आ गया जीवन था सरसाया।
गुरुदीक्षा मिल गयी नाम "गीता चैतन्य" धराया।
सभी गुरुजनों ने मिलकर "गीता"कण्ठस्थ कराया।2।
खुली प्रगति की राह नियति ने उन्नति पथ दरशाया।
राधेश्याम कथक ने इनको हार्मोनियम सिखलाया।
गीत और संगीत वाद्य में निज कौशल प्रगटाया।
गायन वादन में रुचि जागी भजनानन्द उठाया।3।
छोटा मठ डलमऊ गंग तट आश्रम हुआ बसेरा।
संस्कृत विद्यालय के बच्चों ने था हर पल घेरा।
चुम्बकीय व्यक्तित्व का धनी बना मित्र था मेरा।
भ्रातृ भाव , गुरु भाव जोड़ कर किया न मेरा तेरा।4।
जीवन में उन्नति अवनति के दिन सबही के आते।
स्वारथवश जुड़ते आपस में अथवा हैं ठुकराते।
किन्तु साधु के जीवन से हम जैसे जो जुड़ जाते।
आद्योपांत सगे बन जाते एक राम के नाते।5।
श्रद्धांजलि वाचिक देकर भी हृदय शून्य में खोया।
हर उसने वह ही काटा,था जीवन में जो बोया।
सदा रहा, निरपेक्ष आज तक एकभुक्त रह सोया।
उस अभिन्न व्यक्तित्व के लिए आज बहुत मैं रोया।6।

प्रज्ञा चक्षु गीता चैतन्य (सूरदास जी)को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं एवं उनकी सद्गति हेतु परमात्मा से प्रार्थना करता हूं। ॐ शान्ति:🙏❤️🌹

27/05/2025

।।बारी बारी सब छूट रहे।।
जो रहे लंगोटिया यार मेरे बचपन के।
खेले खाये संग मित्र रहे तन मन के।
निश्छल निष्कपट तरीके थे अनबन के।
वह दिली प्यार अनमोल मिला बिन धन के।।
बीता बचपन दायित्व बोध जब जागा।
जाने अनजाने एक दूजे को त्यागा।
जीवन में जब स्वारथ का चस्का लागा।
दूरियां बढ़ीं टूटा वह स्नेहिल धागा।।
अनबूझ पहेली सा जीवन निरवधि है।
इच्छाएं पूरी हों इसकी न विधि है।
अपनापन जिनसे था वे ही अब छूटे।
बारी बारी यारी के बन्धन टूटे।।
एकाकी पन की नीरसता खाती है।
सांसें ही अब केवल आती जाती हैं।।
निस्तेज कान्ति वह छटा न सरसाती है।
है देह दिया बुझती जीवन बाती है।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

06/05/2025

बलि विक्रम वेन दधीचि गए और पारथ गे जिन भारत ठाना।
बालि महाबलशाली गये जिनकी कखरी दशकंठ लुकाना।
गये दुर्योधन जंग जुरे जिन चौंसठ कोस लौं छत्र विताना।
धरा को प्रमाण यही तुलसी जो फरा सो झरा जो बरा सो बुताना।।

21/02/2025

।। वासना।।
लाख चौरासी घुमाती वासना
पांव पुजवाती जगत से वासना।
स्नेह सरसाती सभी से वासना
प्रेम पिंजर में फंसाती वासना।
ढ़ोल पिटवाती घृणित का वासना।
काम करवाती अनोखे वासना
छद्म धोखे में फंसाती वासना।
हर कदम गिर गिर उठाती वासना
पाप से पैसा कमाती वासना।
चोर को छाती लगाती वासना
पापमय के गीत गाती वासना।
मां पिता से भी छुड़ाती वासना
दु:ख में गर्दन फंसाती वासना।
प्यार का झूला झुलाती वासना
सर्पिणी ज्यों काट खाती वासना।
छल कपट पग पग सिखाती वासना
दूसरों का छीन लाती वासना।
मोह के बन्धन बंधाती वासना
काम कौतुक में भुलाती वासना।
भार गर्दभ ज्यों ढ़ुलाती वासना
चोर को साधू बनाती वासना।
हथकड़ी बेड़ी पिन्हाती वासना
कण्ठ में फांसी लगाती वासना।
देव से दानव बनाती वासना
और का हक छीन खाती वासना।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

18/02/2025

।। बेटियों पर बन्दिशें क्यों?।।
प्रश्न मन में कौंधता हरदम रहा है।
बेटियों पर खूब लोगों ने कहा है।
बाप मां सन्तान में क्यों भेद करते
बेटियों को छोड़ बेटों पर हैं मरते।
गांव घर या हो कोई शहरी मुहल्ला
बेटियों को ले सदा मचता है हल्ला।
जायें बेटे जब कभी घर से निकलकर
सोहबतें कैसी भी हों लगतीं हैं बेहतर।
छूट बेटों के लिए हर हाल में है
रात दिन संध्या सुबह हर काल में है।
बेटियों पर हर समय पैनी नजर है
हर किसी से बोलने पर भी कहर है।।
हर पड़ोसी की नज़र शक से भरी है।
बेटियां हरदम सहज रहती डरी हैं।।
कौन क्या इल्जाम कब कैसा लगा दे।
शक सुबह मां बाप के मन में जगा दे।।
बेटियों की जिंदगी मुश्किल भरी है।
बेटियां हर पल स्वयं से भी डरी हैं।।
सब सिखाते हैं शलीका ज़िन्दगी का
भाव ना निर्मूल होता गन्दगी का।।
घर से बाहर क्यों निकलना है अकेले
बेटियां हर खेल बाहर जा न खेलें।।
कौन से कपड़े पहन बेटी चलेगी
कौन सी पोशाक लोगों को खलेगी।
शौक़ या श्रृंगार अनुचित बेटियों का
हो सदा व्यवहार समुचित बेटियों का।।
बेटियां कुल को कलंकित कर रही थीं
जन्मने से पूर्व ही तो मर रही थीं।
बेटियों की भ्रूण हत्या क्यों हुई है।
मां पिता के हाथ ही बेटी मुई है।।
प्रश्न हर बेटी सभी से कर रही है
बन्दिशों की त्रास सहकर मर रही है।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

07/01/2025

।। ठगी से सावधान।।
सावधान!हर बस्ती में दो चार भेड़िए घूम रहे हैं।
खिली कली के दीवाने भौंरे आ आकर चूम रहे हैं।
सहज सुलभ सौन्दर्य देह का आकर्षण पैदा करता है।
लोभी वंचक लालच देकर इस निधि का सौदा करता है।
दुनिया का बाजार सजा है क्रय-विक्रय का चक्र चल रहा।
बाह्य प्रदर्शन को लालायित चेहरे पर नर क्रीम मल रहा।
जिसकी पैकिंग है मन मोहक माल भले हो दो नम्बर का।
वही वस्तु बिक रही फटा फट यह प्रभाव है आडम्बर का।।
मूर्ख बाहरी देख प्रदर्शन लालायित हो ठगे जा रहे।
एक दूसरे को लख लख कर उसी दिशा में भगे जा रहे।
रुप सजाने की दूकानें ब्यूटीपार्लर कहलाती है।
पैसे लेकर वे सुन्दरियां चेहरे को सुख सहलाती हैं।।
औरत मर्द सभी की चाहत ठगने को प्रेरित करती है।
यही वंचना मन में रखकर यह दुनिया प्यासी मरती है।।
यह पागलपन लाइलाज है भरी जवानी में पलता है।
ज्यों नजदीक बुढ़ापा आता मन ही मन ज्यादा खलता है।।
कहें कहां तक अकथ कहानी रहते समय समझ ना आनी।
चढ़ा मुलम्मा जहां उतरता दिखता अलग दूध और पानी।।
इस बेवकूफी के शिकार हो बर्बादी का जश्न मनाते।
पाॅकेट खाली हो जाने पर वही लोग ज्यादा दुख पाते।।
इस बाजार वाद के युग में देखा देखी करो न भाई।
स्वयं वास्तविकता को आंको जीवन में है तभी भलाई।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

28/12/2024

।।करो या मरो।।
हिन्दू मानस अब भी सोचे क्यों सिमट रहा है तू दिन दिन।
खतरे इससे आगे भी हैं वे मारेंगे तुमको गिन गिन।
योजना समझकर के उनकी उसका उपाय करना होगा।
अन्यथा पीढ़ियां भोगेंगी काश्मीर भूमि पर जो भोगा।
वे सघन बस्तियां बसा बसा अपना एकत्व बनाते हैं।
फिर हर हिन्दू आतंकित हो अपना सर्वस्व लुटाते हैं।
जीवन जीना मुश्किल करके हिन्दू को मार भगाते हैं।
औने पौने ले जायदाद वे नरपिशाच बस जाते हैं।।
नेता भी वोटों के खातिर उन पर निज प्यार लुटाते हैं।
सत्ता लोलुप सत्ता पाकर हिन्दू को आंख दिखाते हैं।।
प्रतिरोध करो तो शक्ति प्रदर्शन कर गोली चलवाते हैं।
फिर संविधान कानून बता उल्टे हमको समझाते हैं।।
यह खेल चल रहा दशकों से हिन्दू बनता बेचारा है।
अब भी न हुए सब एक अगर हिन्दू खुद का हत्यारा है।
उनका चरित्र अब तक देखा अपने पड़ोस के देशों में।
वे अजगर ज्यों ग्रस लेते हैं भाईचारे के वेशों में।।
वे भीड़ जुटा हमला करते सर्वस्व तुम्हारा हरते हैं।
सत्ता शासक निरुपाय बने बस हां हां ना ना करते हैं।।
चाहो अपना अस्तित्व अगर हर भेद-भाव से उठ जाओ।
एकता सूत्र में बंध कर ही इनकी लंका को दहकाओ।।
अन्यथा तुम्हें भाई कहकर ये चारा ज्यों खा जायेंगे।
हिन्दू हिन्दू कहने वाले कर मल मलकर पछतायेंगे।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

23/12/2024

।। लोकतंत्र या शोकतन्त्र।।
जनता नहीं जनार्दन अब कहलायेगी।
जब लावचवश शासक के गुण गायेगी।।
लोकतंत्र के रक्षक वोट कमायेंगे।
मुफ्त रेवड़ियां जनता को बंटवायेंगे।
जनता नेता को चुनाव जितवायेगी।
फिर सरकारी कर्ज माफ करवायेगी।
व्यापारी जनता की जेबें काटेंगे।
सत्ता भोगी अफसर को ही डांटेंगे।।
मुफ्त खोर भ्रष्टाचारी बढ़ जायेंगे।
चोर उचक्के ठग कोठी बनवायेंगे।।
रिश्वत लेकर होंगे गन्दे काम सभी।
शुचिता के भाषण होवेंगे कभी-कभी।।
बन्दर बांट योजनाओं की कर लेंगे।
नेता अफसर खुद अपने घर भर लेंगे।।
लोकतंत्र के खैरख्वाह पछतायेंगे।
झूठे आरोपों में डण्डे खायेंगे।।
उनका क्या होगा जो कल बलिदान हुए।
अमर शहीदों ने जो जो अहसान किए।।
जहां तहां उनके स्मारक बनवायेंगे।
कभी-कभी जाकर माला पहनायेंगे।।
जाति,धर्म की घुट्टी खूब पिलायेंगे।
जगह-जगह से आन्दोलन करवायेंगे।।
संविधान न्यायाधीशों की अलग कथा।
इसी लिए तो लोकतंत्र की बढ़ी व्यथा।।
भीड़ तन्त्र का आलम जोर दिखाता है।लूटक,मारक,दाहक बन मुस्काता है।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

21/12/2024

।।पढ़े लिखे मूर्ख।।
पैकिंग देख हुए दीवाने गुणवत्ता का ध्यान नहीं है।
असली नक़ली ना पहचाने सच्चाई का ज्ञान नहीं है।
कम्पनियां प्रोडक्ट बेचकर तुमको पागल बना रही हैं।
जनता है कि आंख मूंद कर सेहत अपनी गंवा रही है।।
चूल्हे चौके से मुंह मोड़ा जीवन स्वस्थ रहेगा कैसे?
मेहनत से जो करी कमाई खर्च कर रहे पानी जैसे।।
मात्र जीभ का स्वाद खोजते बीसों रोग हो रहे पैदा।
पल छिन के सुख हित न्यौछावर होना तो घाटे का सौदा।।
चटक मटक विज्ञापन देखे और वही पाने को आतुर।
बर्बादी की गर्त गिर रहे झूठी शान दिखाने खातिर।।
अपना खुद का खो विवेक बचकानी जिद पर ऐसे जूझे।
पेट गटर में कुछ भी झोंकों हित अनहित की बात न सूझे।।
नहीं जरुरी जो रुचिकर हो उससे तुम्हें मिलेगा फायदा।
खाना-पीना सुखद सात्विक,यही स्वस्थ रहने का कायदा।।
अधुनातन की जीवन-शैली सौ में नब्बे नहीं निरोगी।
दवा खा रहे किसी रोग की ऐसे हैं हम सुविधा भोगी।।
शोचनीय बच्चों का जीवन चिप्स कुरकुरे हर-दिन खाते।
पीज़ा बर्गर ब्रेड जेम खा बचपन में तुन्दिल हो जाते।।
हर मनुष्य यह सोच रहा है हम तो पैसे कमा रहे हैं।
किन्तु छल-कपट का शिकार बन अपना सर्वस गंवा रहे हैं।।
विज्ञापन के द्वारा सबको झूठ परोसा जाता है।
अल्पकाल में निधन प्राप्त कर विधि को कोसा जाता है।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

Address

IN

Telephone

+19308521368

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Kavita posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Kavita:

Shortcuts

  • Address
  • Telephone
  • Alerts
  • Contact The Business
  • Claim ownership or report listing
  • Want your business to be the top-listed Media Company?

Share