15/08/2025
आज़ादी के 77 साल बाद भी, आज भी कई मासूम ज़िंदगियाँ सलाखों के पीछे कैद हैं…न किसी का कसूर, न कोई जुर्म, फिर भी ये “सड़क के बच्चे” कहकर इन्हें हटाने, बाँधने, और बंद करने का फ़ैसला ले लिया गया।
कभी सोचा है, ये वही हैं जो बरसों से हमारी गलियों की रखवाली करते आए हैं…रात के सन्नाटे में हमारी नींद के पहरेदार बने हैं…गर्मी में सड़क के किनारे पानी की तलाश करते हैं, सर्दी में किसी कोने में सिकुड़कर सोते हैं…
भूखे होते हैं, तो भी अपनी आँखों में उम्मीद लेकर इंसान को देखते हैं।
लेकिन अब, एक आदेश के बाद…
इनकी दुनिया और भी छोटी हो जाएगी, इनकी “आज़ादी” छिन जाएगी।
आज़ाद देश में, इनका कसूर सिर्फ़ इतना है कि ये सड़कों पर जन्मे।
अगर हम सच में आज़ाद हैं, तो क्यों न इन्हें भी जीने का वही हक़ दें जो हमें मिला है?
इनके लिए प्यार, देखभाल और इंसानियत भी क़ानून का हिस्सा बने… वरना ये सलाखें सिर्फ़ इनके लिए नहीं, हमारी इंसानियत के लिए भी होंगी। 💔