
10/06/2025
हो सकता है मेरे इस लेख से बहुत सारे लोग असहमत हो और इसके विरोध में उतरें या मुझे भला बुरा कहने लगें, लेकिन कुछ कटु सत्य हैं जिनको स्वीकार करना ही पड़ेगा। उनका निदान न तो क्रोध से हो सकता है, ना आलोचना से ना विरोध से और ना ही भर्त्सना से। न हीं किसी आग्रह या पूर्वाग्रह से।
पिछले कुछ वर्षों में वैवाहिक संबंधों में सिर्फ दरार पड़ती ही नजर नहीं आ रही बल्कि उनमें जहर घुलता भी नजर आ रहा है। पति-पत्नी के बीच जो आपसी समझ और सामंजस्य व प्रेम होना चाहिए वह नहीं बन पा रहा है। उनके कारणों पर विचार करना होगा।
हमारे सनातन धर्म में जो परिवार की प्राचीन परंपरा थी वह अत्यंत वैज्ञानिक सामाजिक और समानता मूलक थी। पति और पत्नी दो किरदार हुआ करते थे। परिवार के लिए दो ध्रुव हुआ करते थे। परिवार को मजबूती प्रदान करने के लिए उनमें से एक ध्रुव को पति कहा जाता है उसके ऊपर दायित्व था घर वालों के भरण पोषण के लिए आर्थिक संसाधन जुटाना, जरूरत की सामग्री की व्यवस्था करना और समाज में संपर्क बनाए रखना।
दूसरा ध्रुव था पत्नी का जिसके जिम्मे घर की दहलीज के भीतर की सारी व्यवस्थाएं थी। घर के भीतर कैसे क्या चलेगा इससे पति का कोई संबंध नहीं हुआ करता था। कितनी अच्छी व्यवस्था थी। एक घर के बाहर का व्यवस्थापक एक घर के भीतर की व्यवस्थापिका। लेकिन समय परिवर्तनशील होता है सामाजिक मूल्य बदले। लड़कियां लड़कों के बराबर मानी जाने लगी। लड़कियों की शिक्षा दीक्षा भी लड़कों के समान ही होने लगी। को एजुकेशन सिस्टम लागू हुआ जिसमें लड़के लड़कियां एक साथ पढ़ने लगे और अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए स्वयं को स्वतंत्र करने लगे।
माता-पिता का नियंत्रण उनके शरीर पर तो रहा लेकिन उनके विचारों और निर्णय पर से माता-पिता की लगाम अनजाने ही हट गई। या यूं कहिए हटा दी गई। यह परिवर्तन सामान्य परिवर्तन नहीं था। अब से 50 साल पहले लड़कियों के विद्यालय अलग हुआ करते थे। उनके शिक्षा दीक्षा का अलग प्रबंध था और वह ज्यादा लड़कों के संपर्क में नहीं आती थी। उनके ऊपर माता-पिता का अनुशासन था।
यह बात मैं पहले भी कह चुका हूं कि सह शिक्षा एक तरफ लड़कियों के भीतर आत्मविश्वास उत्पन्न करती है दूसरा इसी के समानांतर उनके भीतर कुलबुलाती विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण की भावना मुखर रही जो कालांतर में उभर कर घर की परंपरा और मूल्यों के प्रति विद्रोह बन गई।
सिर्फ विद्रोही ही नहीं बनी बल्कि बर्बर भी हो गई। उसने माता-पिता के निर्णय जो उनके विवाह से सम्बंधित था, को धूल चटाना शुरू किया और जबरदस्ती यदि कोई निर्णय भले ही वो उनके भले के लिए था उनपर लागू किया गया तो उसको उन्होंने स्वीकार नहीं किया।
जिसके परिणाम स्वरूप या तो उनका तलाक हो गया या उनका जीवन उनके ही कारण नर्क होता गया। फिर हत्याएं होने लगी। इधर यह देखा गया है की लड़कियों के भीतर यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ी है। विवाह के मामले में माता-पिता का कोई महत्व नहीं रहा। उनका अनुभव नई पीढ़ी के सामने मूर्खता सिद्ध होने लगा। यदि किसी दबाव में आकर लड़की ने माता-पिता की इच्छा से विवाह कर भी लिया तो भी उसने अपने अपने पूर्व संबंधों को या यूं कहिए कि अफेयर को बंद नहीं किया और पति के प्रति समर्पित ना हो सकी जिसका परिणाम या तो पति को ब्लैकमेल करके धन उगाही हो गया। या फिर पति की हत्या होने लगी।
पिछले 1 वर्ष में तमाम लड़कियों ने अपने पति की हत्या स्वयं की या अपने पूर्व प्रेमी से करवाई। अब यह स्थिति है कि वो या तो अपने पति को छोड़कर प्रेमी के साथ फरार हो जाती है या फिर पति के सामने ही अपने अफेयर को आगे बढ़ाने लगती है इसका नतीजा यह होता है कि घर में क्लेश और अशांति फैलने लगती है। माता-पिता तो कितने अरमान के साथ अपनी बेटी का विवाह करते हैं लेकिन उस भोली सूरत के पीछे कितनी बर्बर मानसिकता छिपी होती है यह पिछले वर्षों में बहुत तेजी से दिखाई पड़ा है। लेकिन अब अफसोस इस बात का है कि इसका निदान भी संभव नहीं है क्योंकि सोशल मीडिया के कारण लड़कियों की आजादी निरंकुश्ता की सीमा लाँघ चुकी है और वह अपने घर को सिर्फ एक होमस्टे ही समझने लगी है। अपने प्रेमी के सामने अपने माता-पिता को जलील करना उनकी बेइज्जती करना आम बात हो गई है। लड़कियों के विद्रोही तेवर के सम्मुख माता-पिता ने भी हथियार डाल दिए हैं क्योंकि वह यदि कुछ कहते हैं या विरोध करते हैं तो या तो लड़कियां घर छोड़कर भाग जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं या फिर अपने प्रेमी के साथ मिलकर माता-पिता को ही मरवा देती हैं। सोशल मीडिया के कारण लड़कियों में नृशंसता अनजाने हीऔर बढ़ने लगी है।
इससे बचने का कोई उपाय नहीं है अब। जो सामाजिक और पारिवारिक मूल्य लड़कियों में पनपाये जाते थे वो तिरोहित हो चुके हैं। बराबरी की होड़ में बर्बर होती जा रही हैं। यह प्रवृत्ति उन्ही के लिए घातक है।
लड़कियां सोच रही होगी कि मैं सिर्फ लड़कियों के ही खिलाफ बोल रहा हूं। मैं लड़कों के भी खिलाफ बोल रहा हूं माता-पिता के दबाव में लड़के भी उस जगह विवाह कर लेते हैं जहां उनका मन नहीं होता लेकिन विवाह के बाद अपनी पूर्व प्रेमिका को वह भी भूल नहीं पाते और उसके संपर्क में रहते हैं यदि पत्नी विरोध करती है तो या तो उसे तलाक झेलना पड़ता है या फिर उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। बहुत कठिन समय आ गया है लड़कियों को भी विचार करना होगा कि जिस परिवार के साथ उन्होंने अपना सुनहरा बचपन और जवानी विताई है क्या वह इतने बुरे हैं कि उनके परामर्श को न माना जाए और उनसे विद्रोह किया जाए। उनके अनुभव को मूर्खता समझा जाए। लड़कों को वह भी सोचना होगा की माता-पिता अपने अनुभव के आधार पर तुम्हें परामर्श दे रहे हैं। प्रेम की आंधी में अंधे होने से कोई लाभ नहीं होता। सोच समझकर घर परिवार देखकर ही प्रेम विवाह का निर्णय लेना चाहिए। मुझे उम्मीद है की लड़कियां और लड़के इस दिशा में सोचना प्रारंभ करेंगे और माता-पिता भी बचपन से अपने बच्चों को निरंकुशता और आधुनिकता की अंधी दौड़ से बचायें वरना परिणाम बहुत ही दुखद होने वाले हैं।
भौतिकता की होड़ में मॉडर्निटी के दिखावे में माता-पिता भी अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा छूट दे देते हैं और खुश भी होते हैं कि हमारे बच्चे मॉडर्न हैं। जबकि उनकी यह बड़ी गलतफहमी होती है। बच्चे मॉडर्न नहीं होते भटक चुके होते हैं। जो बच्चा आपके सामने शर्मीला बना रहता है और आज्ञाकारी दिखाई पड़ता है वह आपकी नजर की ओट में वह सारे कार्य कर चुका होता है जो असंवैधानिक है चारित्रिक रूप से पतित है और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। माता-पिता जान ही नहीं पाते हैं कब उनका बच्चा बड़ा हो गया और दुनियादारी उन से ज्यादा समझने लगा है। माता-पिता ने बच्चों को नैतिक शिक्षा देनी बंद कर दी है ना तो बच्चों को अच्छी कहानी सुनाई जा रही है न ही महान व्यक्तियों के बारे में बताया जा रहा है। बच्चे भी जो कुछ सोशल मीडिया से देखकर सीखते हैं वही उनकी सामाजिकता है। उनको पता ही नहीं है कि अनुचित क्या है और उचित क्या है। क्योंकि उन्हें तो यह सब बताया ही नहीं गया है।
सावधान हो जाओ अभिभावकों माता-पिताओं। आपके अविवाहित बच्चे अभी इतने बड़े नहीं हुए हैं कि उनको देर रात तक बाहर रहने की अनुमति दी जाए। आधुनिकता की ओट में अपनी लड़कियों को पुरुष मित्रों के साथ देर रात तक बाहर रहने की छूट दी जाए। यह बात सत्य मानिए की दो लड़के और लड़की में कभी भी सिर्फ मित्रता नहीं हो सकती उनका विपरीत लिङ्गीय होना उन्हें एक दूसरे के प्रति आकर्षित करता ही है। और फिर जिन वर्जनाओं कि उन्हें शिक्षा नहीं दी गई उन वर्जनाओं को यह नई पीढ़ी सामान्य रूप से लेती है। अत्याधुनिक समाज में तो विवाह से पूर्व शारीरिक संबंधों को भी मॉडर्निटी की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन किया भी क्या जा सकता है आधुनिकता के दौड़ ऐसी ही है जिसमें घर परिवार और समाज के मूल्य की आहुति होनी ही है।
अगर आगामी पीढ़ी को बचाना है तो माता पिता को स्वयं अनुशासित होना पड़ेगा। अन्यथा समाज मे तंदूर धधकते रहेंगे और नीले ड्रम की संख्या बढ़ती जाएगी। हनीमून के पहले दिन ही किसी की लाश पहाड़ से नीचे गिरी मिलेगी या फिर कोई लड़की अटैची में भरी हुई मिलेगी।