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01/10/2025

"एक लड़का… जिसकी ज़िंदगी क्रिकेट और किस्मत, दोनों से खेल रही थी।"40 से ज़्यादा ट्रायल्स, हर बार वही नाकामी। कभी गेंदबाज़...
01/10/2025

"एक लड़का… जिसकी ज़िंदगी क्रिकेट और किस्मत, दोनों से खेल रही थी।"

40 से ज़्यादा ट्रायल्स, हर बार वही नाकामी। कभी गेंदबाज़ बनने का ख्वाब, कभी बैट हाथ में लेकर बल्लेबाज़ी का सपना, तो कभी ग्लव्स पहनकर विकेटकीपर बनने की कोशिश। लेकिन किस्मत बार-बार पूछ रही थी – "वरुण, तू बनेगा क्या?"

हार-थक कर उसने क्रिकेट को अलविदा कहा। पाँच साल आर्किटेक्चर की पढ़ाई, फिर तीन साल नौकरी। लेकिन दिल में कहीं न कहीं क्रिकेट की आवाज़ गूंजती रही – “ये तेरे बिना अधूरा है।”

और फिर एक दिन… आँसूओं से भीगी आवाज़ में वरुण ने अपने पिता से कहा –
“पापा, बस एक आख़िरी मौका दीजिए… अगर अब भी न हुआ तो हमेशा के लिए छोड़ दूँगा।”

नौकरी छोड़ी। तेज़ गेंदबाज़ बनने की कोशिश की – नाकामी। आख़िरी बार दांव लगाया – स्पिन गेंदबाज़ी पर।
और यहीं से शुरू हुआ – किस्मत का सबसे बड़ा ट्विस्ट!

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चैंपियंस ट्रॉफी का वो दिन याद है? ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ ट्रैविस हेड, शमी और पंड्या की गेंदों पर तांडव कर रहे थे। स्कोरबोर्ड भाग रहा था जैसे रेसिंग कार। सब मान चुके थे – “300 तो पक्का है।”

तभी कप्तान रोहित शर्मा ने गेंद थमाई उसी लड़के को, जिसने कभी हारकर बैट-पैड रख दिए थे।
दूसरी ही गेंद – और हेड का विकेट! मैदान में खामोशी, फिर तालियों का तूफ़ान।
यहीं से मैच का पूरा पासा पलट गया।

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सोचिए… अगर वरुण नौकरी में उलझे रहते, तो शायद ये नाम हमारी जुबां पर भी न होता।
लेकिन वरुण की जिद, उसका जुनून और हार न मानने वाला जज़्बा… उसे सिर्फ़ क्रिकेटर नहीं, बल्कि लाखों मिडिल क्लास सपनों की उम्मीद बना गया।

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"वरुण… तेरी कहानी फिल्म नहीं, एक इंस्पिरेशन है।
तूने साबित कर दिया – सपने टूटते नहीं, बस वक्त पर उड़ान भरते हैं।"

अरे भाई, असली मज़ा कभी भी चिंगम चबाने और छोटे-मोटे टीमों पर शेर बनने में नहीं है। वो तो बस दिखावा है, इंस्टाग्राम वाला ए...
30/09/2025

अरे भाई, असली मज़ा कभी भी चिंगम चबाने और छोटे-मोटे टीमों पर शेर बनने में नहीं है। वो तो बस दिखावा है, इंस्टाग्राम वाला एटीट्यूड!

असली मज़ा तब आता है जब आपके बगल में ऐसा खिलाड़ी खड़ा हो, जिसकी पहचान ही तोप से हो—और उसकी बैटिंग सुनकर सामने वाले की घिग्घी बंध जाए। मैदान में उसकी ऐसी धाक हो कि बाकी सब खिलाड़ियों की चमक ऐसे गायब हो जाए जैसे शादी में मिठाई पर मक्खियाँ।

लेकिन जनाब, ज़िंदगी का मज़ा तो तब दोगुना हो जाता है, जब वही "मामूली" दिखने वाला खिलाड़ी अचानक दिन का हीरो बन जाए। उस दिन बड़े-बड़े शेर भी म्याऊँ करने लगते हैं, और स्टेडियम गूंज उठता है सिर्फ़ उसके नाम से। उस वक्त सिर्फ़ मैच नहीं जीता जाता, दिल भी फतेह हो जाते हैं।

अब बात करें शिवम दुबे की—शुरुआत में लगा कि टीम इंडिया में बस “फोटो फ्रेम भरने” के लिए आए हैं। पर जनाब ने टाइम के साथ साबित किया कि असली ताक़त तो दबाव में ही निकलती है। और जब बाकी सब नाम फीके पड़ जाते हैं, तो यह बंदा बैटिंग करने आता है और गेंदबाजों की हालत ऐसे कर देता है जैसे गर्मी में कुल्फ़ी!

जियो दुबे जी!
आप वही तोप हो, जो सही वक्त पर दागते हो और पूरा रणक्षेत्र हिला देते हो। आपने साबित कर दिया कि असली मज़ा भीड़ में खोने में नहीं है—बल्कि उस एक दिन सबको चकित करके पूरी महफ़िल लूट लेने में है। 🔥🏏

29/09/2025
आ गया स्वाद 😂👌🤣
29/09/2025

आ गया स्वाद 😂👌🤣

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